हिम स्पर्श - 11 (10) 131 118 छत के कोने से वफ़ाई ने देखा कि एक युवक धरती की तरफ झुक कर कुछ कर रहा था। धरती पर गिरे हुए रंग इधर उधर बिखरे हुए थे। भूमि पर पानी भी फैला हुआ था। वह युवक उस सब को समेटने का प्रयास कर रहा था। वफ़ाई वहाँ की प्रत्येक वस्तु को देखने लगी। एक चित्राधार, जो कि रंगो के समीप ही गिरा था, उस पर एक बड़ा सा केनवास जिसमें बादल और गगन का ताजा रचा चित्र था। वफ़ाई चित्र को ध्यान से देखने लगी। उसमें गगन था, बादल था। बादल का आकार साड़ी में सजी सुंदर यौवना सा था। गगन गहरे नीले रंग का था, बादल नारंगी था। ऐसा लग रहा था कि यौवना ने नारंगी साड़ी पहनी हो। यौवना का शरीर घुमावदार था। प्रत्येक घुमाव, पहाडी घाटी की भांति तीक्ष्ण थे। “यह द्रश्य तो कहीं देखा था मैंने, किन्तु कहाँ?” वफ़ाई विचारने लगी। “अरे हाँ, यह तो कुछ क्षण पहले गगन में बादलों के आकार में देखा था। हाँ, यह गगन में ही था। “ वफ़ाई ने गगन की तरफ देखा। उसे विस्मय हुआ कि गगन में बादल की वही मुद्रा अभी भी दिखाई दे रही थी। वह बिलकुल वैसी ही थी जैसी केनवास पर चित्रित की गई थी। केवल एक ही अंतर था, केनवास पर यौवना का चित्र बिखरे रंगों के कारण बिगड़ गया था। रंग अस्त व्यस्त से बिखरे हुए थे किन्तु वह यौवना की साड़ी के रंगो को और निखार रहे थे। रंगों के धब्बे सुंदर लग रहे थे। पूरा चित्र अदभूत लग रहा था। वफ़ाई उस चित्र के विस्मय और सम्मोहन से घिर गई। “गगन में देखे किसी द्रश्य को कोई व्यक्ति कैसे चित्रित कर सकता है? बादल अपने आकार को गति से और अविरत रूप से बदलता रहता है। परिवर्तन की इस गति के साथ ताल मिलाकर केनवास पर वही द्रश्य अंकित करना कठिन होता है, असंभव सा लगता है। किन्तु, यह बात मेरी आँखों के सामने वास्तविक रूप से दिख रही है।“ वफ़ाई पूर्ण रूप से उस चित्र से प्रभावित थी। मन ही मन वफ़ाई ने उस चित्रकार की प्रशंसा की। “लगता है कि केनवास पर का चित्र इसी युवक ने बनाया होगा। किसी कारण से चित्राधार गिर गई होगी और सारा सामान धरती पर बिखरा होगा।“ युवक अभी भी गिरि हुई वस्तुओं को समेटने में व्यस्त था। वफ़ाई के फोटोग्राफर मन ने खेल रचाया। ‘यदि मैं यह घटना को केमरे में कैद कर लेती हूँ, बॉस को भेजती हूँ, बॉस उसे प्रसिध्ध करता है, तो यह उत्तम कला के रूप में माना जाएगा और कला जगत में मेरा नाम हो जाएगा।“ वह मन ही मन हंसी। चुपचाप, युवक का ध्यान भंग किए बिना ही, वफ़ाई उस घटना की तस्वीरें लेने लगी। चित्राधार, चित्रित केनवास, चित्र, बिखरे रंग, रंग और अन्य वस्तुओं को समेटता युवक। वफ़ाई इन सब की तस्वीरें लेने लगी। वह पूरी तरह केमरे में खो गई। तस्वीर लेते लेते वफ़ाई छत पर घूमने लगी। घूमते घूमते वफ़ाई का हाथ किसी दीवार पर बड़े से पथ्थर को धक्का दे गया। पत्थर धरती पर जा गिरा। बड़ा सा ध्वनि हुआ। युवक का ध्यान भंग हुआ और उसने ऊपर छत की तरफ देखा। उसे वहाँ एक सुंदर युवती, हाथ में केमरा लिए खड़ी दिखाई दी। भय, विस्मय और आश्चर्य की रेखाएँ उसके मुख पर आ गई। “एकांत से भरे इस भू भाग के इस घर तक एक लड़की कैसे आ गई? और बिना मेरे संज्ञान के छत पर भी चढ़ गई?” वह युवक बड़बड़ाया। वफ़ाई ने भी युवक को देखा। वफ़ाई की आँखों में भी भय था। दोनों मौन थे, दोनों में से किसी में बोलने का साहस ना था। उस समय, उन क्षणों पर मौन और भय का साम्राज्य था। समय के कुछ प्रवाह व्यतीत हो गए। ना कोई हिला, ना कोई कुछ बोला। एक अज्ञात भाव से दोनों एक दूसरे को देखते रहे। जैसे समय स्थिर हो गया हो। युवक क्रोधित था। वफ़ाई लज्जित एवं भयभीत थी। वफ़ाई युवक के घर में चोरों की भांति घुस गई थी और रंगे हाथ पकड़े गई थी। उसके मन में अपराध भाव जन्मा। वह उस युवक की अपराधी थी अत: वह युवक के प्रतिभाव की प्रतीक्षा करने लगी, स्थिर सी। युवक अभी भी विस्मय में था कि यह लड़की यहाँ तक आ कैसे गई? और इतनी सुंदर लड़की? वह वफ़ाई के सौन्दर्य से भरे तथा लावण्यमय मुख के प्रभाव से ग्रस्त हो गया। अंतत: रोष से भरा वह युवक छत पर चढ़ने लगा। वफ़ाई कुछ कदम पीछे हटी, और छत की सामने वाली दीवार तक गई। वह अब आगे जा नहीं सकती थी। वह वहाँ से भाग जाना चाहती थी, कहीं दूर किसी स्थान पर दौड़ जाना चाहती थी जहां वह युवक पहुँच ही न सके। ऐसा कोई स्थान नहीं था। वह उस दीवार को पकड़े आँखें बांध कर स्थिर सी खड़ी रही। वह वफ़ाई के समीप आ गया। वफ़ाई ने गहरी सांस ली। उसका ह्रदय अधिक गतिमय था। कुछ क्षण व्यतीत हो गए। कुछ नहीं हुआ। वफ़ाई ने आँखें खोल दी। वह उसके ठीक सामने था, समीप था, अत्यंत समीप। वफ़ाई दो तीन सांसें लेना चूक गई। वह आगे बढ़ा, वफ़ाई के हाथ से केमरा खींच लिया और नीचे की तरफ भागा। वफ़ाई उन क्षणों के प्रभाव से बाहर आई, साहस जुटाया और युवक के पीछे भागी। वफ़ाई ने देखा कि वह एक कक्ष में ओझल हो गया था, वह उसके पीछे कक्ष में गई। युवक ने केमरा खोला, मेमरी कार्ड निकाला और वफ़ाई ने जितनी भी तस्वीरें ली थी उसे अपने लेपटॉप में डाल दिया। मेमरी कार्ड कंगाल हो गया, वफ़ाई भी। लेपटोप समृध्ध हो गया उन तसवीरों से। “ओ श्रीमान, आप ऐसा नहीं कर सकते” वफ़ाई चीखी। उसने वफ़ाई के शब्दों पर ध्यान नहीं दिया। उसने अपना काम पूरा किया और बिना वफ़ाई की आँखों में देखे, खाली कार्ड और केमरा सौंपने के लिए वफ़ाई की तरफ हाथ बढ़ा दिया। वफ़ाई ने उस पर ध्यान नहीं दिया, ना ही कोई प्रतिभाव दिया। वफ़ाई क्रोधित थी, वह युवक भी। बिना प्रतिभाव के खड़ी वफ़ाई के कारण उसका क्रोध और बढ़ गया। वह वफ़ाई के समीप गया। उसने वफ़ाई की आँखों में आँखें डालकर देखा। उसे वफ़ाई की आँखों में क्रोध से भरा ज्वालामुखी दिखाई दिया। उसक हाथ अभी भी वफ़ाई की तरफ था, केमरा लौटाने के लिए। किन्तु वफ़ाई अभी भी प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी, मूर्ति की भांति स्थिर खड़ी थी। “ए लड़की, अपना केमरा ले लो।“ उसने आदेश दिया। “वफ़ाई नाम है मेरा, श्रीमान....” अपने मुख के भावों को बदले बिना ही वफ़ाई ने अपना परिचय दिया। *** ‹ पिछला प्रकरणहिम स्पर्श - 10 › अगला प्रकरण हिम स्पर्श - 12 Download Our App रेट व् टिपण्णी करें टिपण्णी भेजें Hetal Thakor 6 महीना पहले Avirat Patel 6 महीना पहले Nikita 6 महीना पहले Nita Shah 7 महीना पहले Amita Saxena 10 महीना पहले अन्य रसप्रद विकल्प लघुकथा आध्यात्मिक कथा उपन्यास प्रकरण प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं Vrajesh Shashikant Dave फॉलो शेयर करें आपको पसंद आएंगी हिम स्पर्श - 1 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave हिम स्पर्श - 2 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave हिम स्पर्श - 3 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave हिम स्पर्श - 4 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave हिम स्पर्श - 5 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave हिम स्पर्श - 6 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave हिम स्पर्श - 7 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave हिम स्पर्श - 8 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave हिम स्पर्श - 9 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave हिम स्पर्श - 10 द्वारा Vrajesh Shashikant Dave