चर्चित यात्राकथाएं - 3 MB (Official) द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

चर्चित यात्राकथाएं - 3

चर्चित यात्राकथाएं

(3)

हिन्दुस्तान पर मेरी नजर

तैमूर लंग

मैंने हिन्दुस्तान को जीतने के लिए अपने लश्कर के सेनापतियों से मशवरा किया, चुनांचे उन्होंने मुझे विभिन्न मशवरे दिये। अमीरजादा पीर मुहम्मद ने हिन्दुस्तान को फतह करने और वहाँ धन-दौलत को हासिल करने की तजवीजें पेश कीं। अमीरजादा मुहम्मद सुलतान ने वहाँ के मजबूत किलों का जिक्र किया और कहा कि हाथियों का भी बन्दोबस्त होना चाहिए। सुलतान हसीन ने कहा कि अगर हम हिन्दुस्तान पर कब्जा कर लें तो दुनिया का एक चौथाई हिस्सा हमारा हो जाएगा। कई सरदारों ने कहा कि अगर हमने हिन्दुस्तान फतह कर लिया और वहाँ स्थायी तौर पर रहने लगे तो हमारे बेटे और पोते अपनी फौजी तंजीम से खारिज हो जाएँगे और इस तरह हमारी नस्ल बरबाद हो जाएगी। लेकिन चूँकि मैं अपने दिल में हिन्दुस्तान को फतह करने का दृढ़ संकल्प कर चुका था, इसलिए मैंने यह कहकर उनका मुँह बन्द कर दिया कि मैं कुरान मजीद से फाल निकालता हूँ और जो फाल निकली, उसके अनुसार अमल किया जाएगा।

फाल मेरे पक्ष में निकली और मैंने हमला की तैयारियाँ शुरू कर दीं। सबसे पहले मैंने अमीरजादा जहाँगीर को, जो काबुल का हुक्मरान था, यह हुकुम दिया कि वह तीस हजार सवारों के साथ कोहे-सुलेमान के रास्ते से हिन्दुस्तान जाए और मुलतान सूबा को फतह कर ले। सुलतान मुहम्मद को मैंने हुक्म दिया कि वह कोहे-कश्मीर के दामन से लाहौर पर हमला करे। मैं स्वयं तीस हजार सवारों का लश्कर लेकर हिन्दुस्तान की ओर बढ़ा।

मेरे हिन्दुस्तान पहुँचने की खबर सुनकर सुलतान महमूद हाकिम-देहली पचास हजार फौज और एक सौ बीस जंगली हाथियों समेत दिल्ली के किले में हलका-बन्द हो गया। उसे किले से निकालकर खुले मैदान में लाने की तदबीर मैंने यह सोची कि एक छोटी-सी फौज दुश्मन के मुकाबले के लिए रवाना कर दी और उन्हें यह ताकीद कर दी कि वह दुश्मन के मुकाबले में स्वयं को कमजोर जाहिर करके पराजय अख्तियार करें, चुनांचे ऐसा ही किया गया। नतीजा यह हुआ कि दुश्मन ने यह सोचकर कि दुश्मन की संख्या उनके मुकाबले में बहुत कम है और उसको आसानी से शिकस्त दी जा सकती है, किला खाली कर दिया और मैदान में आ गया। मैं पहले ही से कैम्प लगाकर और उसके इर्द-गिर्द खन्दक खोदकर मौके के इन्तजार में था। जब मैंने दुश्मन को अपनी तरफ आते और जंग में पहल करते देखा तो अपनी फौज को आम हमला करने का हुक्म दे दिया। नतीजा यह हुआ कि दुश्मन गलतफहमी में ही मारा गया और शिकस्त खाकर पहाड़ों की ओर भाग निकला। इस जंग में बेशुमार माल और साजो-सामान मेरे सिपाहियों के हाथ आया। बाकी हिन्दुस्तान की फतह करने में मुझे एक साल लगा। उसके बाद मैं, समरकन्द वापस लौट आया...

***