दिव्या की क्लास में ज्यादा शोर हो रहा था सो मैं बच्चों को चुप कराने में दिव्या की मदद करने के लिए उसकी क्लास में गया पर क्लास का नज़ारा कुछ ओर ही था दिव्या बच्चों से अन्तराक्षरी प्रतियोगिता करवा रही थी इसलिए उनके शोर से क्लास गूंज रही थी. मैंने चुपचाप क्लास के भीतर प्रवेश किया तभी दिव्या ने मुझे आते हुए देख लिया और उसके चेहरे पर मुसकुराहट फेल गयी..मैंने उसकी आँखों मे देखने की नाकाम कोशिश की पर उसने अपनी आँखें चुरा ली और बच्चों से बोली
"शांत हो जाओ बच्चों..अब अर्पित सर आपको एक गीत सुनाएँगे.."
उसने मेरी और चेहरा करके कहा "अर्पित प्लीज़ एक गीत गा दीजिये ना..मुझे ओर बच्चों को अच्छा लगेगा"
मैंने पहले तो मना कर दिया पर दिव्या के 2 बार रिकवेस्ट करने पर कहा "चलो ठीक हैं, कौनसा गाऊँ ?"
"जो आपको गाना हो वो"
मैं सोच ही रहा था कि इतने में हमारे प्रिंसिपल सर भी क्लास में आ गए और पूछने लगे क्या चल रहा हैं?
"सर, अन्तराक्षरी..और अर्पित सर अब एक गाना गाएंगे" दिव्या एक्साइटेड होकर बोली।
"लग जा गले..गा लूं यह मेरा फेवरेट सोंग हैं" मुझे शर्म आ रही थी पर मैंने खुद को संभाल के कहा वीर पुरुष शर्माते नहीं..मैंने दिव्या की ओर देखा तो वह पलकें झुकाये खड़ी थी और उसके हाथ में चॉक थी..उसकी आंखों में अद्भुत चमक थी!
मुझे गाने में बड़ी ही झिझक लग रही थी तभी अचानक वह झिंझोड़ते हुए बोली 'देखो मिस्टर नाटक नही हाँ! वरना..वरना इसी डंडे से पिटाई होगी!'
मैंने बोला 'अच्छा गा लूँ, सच्ची।'
उसने मेरी तरफ बड़ी ही भावभरी नजर से देखा और बस एकटक देखती रही। मैंने उसकी आँखों में झांका तो उसमें मुझे मेरा सारा जहां दिखा और एक कसक भी।
अनन्त अथाह गहराई थी उन आंखों में, आह..!
मैं बस उसकी गहराई में खोता गया और वह एकटक मेरी आँखों में देखती रही। कुछ देर बाद तन्द्रा टूटी तो उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा दिया और मैने भी!
जिंदगी का यह सबसे खुबसूरत लम्हा था जिसके साक्षी नन्हे मुन्ने बच्चे थे!
मेरी झिझक ठीक नही हुई, मेरी स्थिति कुछ ऐसी थी कि गाना भी चाहता था और गाया भी नही जा था था। उसका सब्र टूट गया उसने रूठते हुए बोला' नही गाना जाओ।
"दिव्या! सुनो तो.." मैंने कहा।
बात मत करो मुझसे" कहकर वो बच्चों को टेबल बुलवाने लगी और मैं टुकुर टुकुर ताकता रह गया! उसने मेरी तरफ देखा तक नही। शायद मेरे नही गाने पर उसे बुरा लग गया लेकिन वो नाराजगी बड़ी अधिकार भरी थी।बड़े ही हक़ से रूठी हुई लग रही थी, उसे शायद पता था मै उसे मना लूंगा।
मैने बोला 'मैं गा रहा हूँ, तो वह बोली मुझे नही सुनना, उसके चेहरे पर अजीब तरीके से प्यार भरी नाराजगी के भाव प्रकट हो रहे थे।
"मुझे गाना हैं।" मैने बोला।
"मुझे नही सुनना बस" वह बोली।
मैंने कहा "गाऊंगा! लेकिन मेरी आवाज थोड़ी लड़की जैसी हैं तुम हँसना मत।"
"हाँ मेरी तो लड़के जैसी है।" वह मुस्कुराते हुए बोली 'सब शांत हो जाओ!"
सब शान्त हो जाते हैं।
मैं अपना गला ठीक करते हुए गाने का पहला मिसरा मुखरित करता हूँ..
लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो ना हो,
शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो ना हो,
हमको मिली हैं आज ये घड़िया नसीब से,
जी भर के देख लीजिए हमको करीब से,
फिर आपके नसीब में यह बात हो ना हो,
शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो ना हो.
लग जा गले से..से..।।।
पास आइये की हम नही आएंगे बार बार..
आगे मेरे से गया नही गया। शायद! मैं अंदर से भर चुका था गला भी भर्रा गया था।
मैं भूल गया आगे का! मैने छुपाते हुए कहा।
उसने मेरी तरफ देखा तो मैने उसकी आँखों मे अहसासों का गहरा समुन्दर पाया, वो गाने के एक एक शब्द को अन्तस में उतार रही थी और उसका कतरा कतरा भावनाओं से भीगा हुआ महसूस हुआ!
वह मेरे थोड़ा और करीब आ गयी और अंत मे इतना करीब आ गयी कि उसका का स्पर्श तक मुझे महसूस हो रहा था।
" यह आपके हाथों को क्या हुआ मेम" चौथी कक्षा की एक लड़की अचानक बोल उठी।
"कहाँ?" उसे झटका लगा।
मैने उसके हाथों को देखा तो पाया कि गाना सुनते हुए अपने हाथ मसल रही थी वह और चाक पूरी तरह से उसके हाथों पर घिस चुकी थी और उसके हाथ सफेद हो चुके थे।
उसे पता होते हुए भी मेरे से छुपाने की कोशिश कर रही थी।
मुझे महसूस हो गया था कि उसके अंदर बहुत कुछ चल रहा था जो आजतक उसने मुझे नही बताया और शायद बताना भी नही चाहती थी लेकिन हमेशा ही मैंने उसकी आँखों मे अपना संसार पाया और एक अद्भुत अखण्ड अपनेपन का अहसास पाया!
उसने बोला कि मैं कल आपका हाथ पकड़ कर थैंक यू बोलना चाहती हूँ आपको, आपने मेरी बहुत हेल्प की इसलिए!
मैने बोला आ जाना कल मेरी कक्षा में!
दूसरे दिन वो मेरी कक्षा में आई मैं बच्चो को कक्षा से निकाल कर मैदान में बिठा रहा था। एक-एक करके सब बच्चे बाहर चले गए अब कक्षा में सिर्फ हम दोनों थे।
"क्या कहना चाहती हो?" मै मुस्कुरा कर बोला।
उसकी मेरा हाथ पकड़ने की हिम्मत नही हुई और मैं यह बात भांप गया।
"थैंक यू अर्पित।" उसने कहा।
मैने बोला "ऐसे बोलने वाली थी! सिर्फ मुख से ही?"
"ऐसे मान लो ना प्लीज!" वह बोली।
"आई वांट हग यु" मेरे मुहँ से अनायास निकल गया।
"नही अर्पित प्लीज नही!" कहते हुए वह पिछे खिसक गई।
"प्लीज दिव्या!" मैंने बेसब्री से कहा और उसे गले लगा लिया!
उसकी चहचहाट चली गयी वह एकदम गदगद हो गयी औऱ उसने खुद को बहुत ही सुकून के साथ मेरी बाहों में एकदम ढीला छोड़ दिया, उसका सर मेरे कंधे और गर्दन पर था। उसने अपने हाथों से मुझे कसकर पकड़ लिया!
मुझे वह लम्हा जिंदगी का सबसे बेहतरीन लम्हा लग रहा था! मैं ऐसे ही उसे अपने आगोश में रखना चाहता था और उसे बस इसी तरह सीने में छुपा लेना चाहता था! उसे कहना चाहता था कभी मत जाना मुझसे दूर! कभी नही! उसे बता देना चाहता किस तरह से उसकी बातें याद करते हुए अकेले मार्किट में चलते हुए माहौल से बेखबर मुस्कुराता रहता था, मैं उसे बता देना चाहता था कि उसके बिना कैसे मैं अधूरा हूँ! उसे कहना चाहता था मैं चाँद हूँ तो वो पूर्णिमा, बिना उसे मिले कैसे पूर्ण हो सकता हूँ!
बस फिर भी अनजान सा डर था कि कही उसे बुरा लग या या खराब लग गया तो वो जो मेरी इतनी अच्छी दोस्त हैं वह भी खो दूँगा!
बस मैंने फिर अपने जज्बात दबा लिए और कुछ देर बाद उसे ढील दी लेकिन वह मेरे कंधे पर ऐसे ही निढाल रही, वह मुझसे अलग होना नही चाहती थी।
मैने उसे फिर से बाहों में भर दिया और कसकर सीने से लगा लिया! वह मेरे सीने से कसकर लगी हई ही रही दिल यही कह रहा था कि आज दुनिया की सारी घड़ियां रुक जाए! ये लम्हा जिंदगी भर ठहर जाएं या फिर इस लम्हे में जिंदगी ही ठहर जाएं!
-"आशीष महेंद्र"