आ क्यू की सच्ची कहानी - 8 Lu Xun द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 8

आ क्यू की सच्ची कहानी

लू शुन

अध्याय आठ : क्रांति से बहिष्कृत

वेइचवाङ को लोग दिन-ब-दिन आश्वस्त होते जा रहे थे। जो खबरें उनके पास पहुँच रही थीं उनके आधार पर वे यह बात समझ चुके थे कि क्रांतिकारियों के शहर में आने से कोई खास परिवर्तन नहीं आया। मजिस्ट्रेट अब भी सबसे बड़ा अफसर था, उसका मात्र पद बदल गया था, प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी को भी कोई पद - वेइचवाङ गाँव के लोगों के लिए इन पदों के नाम याद रखना संभव नहीं था - किसी तरह का कोई सरकारी पद दे दिया गया था।

सेना का प्रधान अब भी वही पुराना कप्तान था। खटकने की बात केवल यह थी कि कुछ बुरे क्रांतिकारियों ने शहर में पहुँचने के बाद लोगों की चोटी काट कर उन्हें परेशान करना आरंभ कर दिया था। सुनने में आया था कि पड़ोस के गाँव का साढ़ेतिसरा नाम का एक मल्लाह उनके चंगुल में फँस गया था और अब उसकी सूरत देखने काबिल नहीं रही थी। फिर भी यह खतरा इतना बड़ा नहीँ था, क्योंकि पहले तो वेइचवाङ के लोग वैसे ही शहर बहुत कम जाते थे, फिर जो लोग शहर जाने की बात सोच रहे थे, उन्होंने इस खतरे से बचने के लिए अपना कार्यक्रम तुरंत स्थगित कर दिया था। आ क्यू भी अपने पुराना दोस्तों से मिलने शहर जाने की योजना बना रहा था, लेकिन जैसे ही चोटी काटने की खबर सुनी, उसने अपना विचार बदल दिया।

यह कहना गलत है कि वेइचवाङ में कोई सुधार हुआ ही नहीं। आनेवाले दिनों में ऐसे लोगों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती गई, जिन्होंने अपनी चोटी लपेटकर सिर पर बाँध ली थी, और जैसा कि पहले कहा जा चुका है, इसकी शुरुआत सबसे पहले काउंटी की परीक्षा में सफल प्रत्याशी से हुई, इसके बाद चाओ स-छन और चाओ पाए-येन आगे आए और उनके बाद आ क्यू। अगर वह गर्मी का मौसम होता और सब लोग अपनी चोटी लपेटकर सिर बाँध लेते या गाँठ लगा लेते, तो किसी को आश्चर्य नहीं होता, लेकिन उन दिनों सर्दियाँ खत्म होने ही वाली थीं, इसलिए गर्मियों के रिवाज को सर्दी में अपनाकर जिन लोगों ने अपनी चोटी लपेटकर सिर पर बाँध ली थी, उनका यह फैसला कोई कम बहादुरी का काम नहीं था। जहाँ तक वेइचवाङ का संबंध है, यह नहीं कहा जा सकता कि इस बात का सुधारों से कोई संबंध ही न था।

जब चाओ स-छन अपनी बिना बालों की गर्दन लिए लोगों के सामने पहुँचा तो वे बोल पड़े, "वाह, यह है क्रांतिकारी।"

जब यह बात आ क्यू ने सुनी, तो वह बड़ा प्रभावित हुआ। जबकि वह बहुत पहले सुन चुका था कि काउंटी परीक्षा में सफल प्रत्याशी ने अपनी चोटी लपेटकर सिर पर बाँध ली है, फिर भी उसके मन में यह विचार कभी नहीं आया कि वह खुद भी ऐसा ही कर ले, पर जब उसने चाओ स-छन को भी उसके रास्ते पर चलते देखा, केवल तभी उसे खयाल आया कि वह भी ऐसा ही करेगा। उसने इन लोगों की देखा-देखी करने की ठान ली। बाँस की चापस्टिक की मदद से उसने अपनी चोटी सिर पर लपेट ली और कुछ संकोच के बावजूद अंत में हिम्मत करके बाहर निकल गया। जब वह गाँव की गलियों से गुजर रहा था, तो लोगों ने उसकी ओर देखा, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। आ क्यू पहले तो कुछ झुँझला गया। बाद में बहुत गुस्सा हो गया। कुछ समय से उसका पारा एकदम चढ़ जाता था। वास्तव में उसकी जिंदगी में कठिनाइयाँ क्रांति के पहले की तुलना में बढ़ी नहीं थीं और लोग नम्रता का व्यवहार करते थे तथा दुकानदार नकद पैसा देने का आग्रह नहीं करते थे। फिर भी आ क्यू असंतोष अनुभव करता था। वह सोचता, क्रांति हो चुकी है, उसका असर और अधिक व्यापक होना चाहिए। तभी उसकी दृष्टि युवक डी पर पड़ी और उसका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया।

युवक डी ने भी अपनी चोटी लपेटकर सिर पर बाँधी हुई थी और दिलचस्प यह कि उसने चोटी लपेटने में बाँस की चापस्टिक की ही सहायता ली थी। आ क्यू सोच भी नहीं सकता था कि युवक डी भी यह सब करने की हिम्मत कर सकता है, वह इसे कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता था। युवक डी है किस खेत की मूली? उसके मन में यह विचार जोरों से मचलने लगा कि उसे वहीं पक़ड़ ले और उसके सिर पर लगी बाँस की चापस्टिक तोड़ डाले, चोटी खोल दे और चेहरे पर कई चाँटे रसीद कर दे, जिससे उसे अपनी औकात भूलने और अपने को क्रांतिकारी समझने का दंड मिल जाए, लेकिन अंत में उसने युवक डी की ओर सिर्फ क्रोधित आँखों से देखा, तिरस्कार से थूका और छिह कहकर उसे जाने दिया।

पिछले कुछ दिनों में बस नकली विदेशी दरिंदा ही शहर गया था। चाओ परिवार के काउंटी परीक्षा में सफल प्रत्याशी ने सोचा था कि प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी द्वारा रखे गए संदूकों के बहाने उससे भेंट करने शहर जाएगा, मगर चोटी कटवा बैठने के डर से उसने अपना विचार बदल दिया। उसने बड़े तकल्लुफ के साथ चिठ्टी लिखी और नकली विदेसी दरिंदे के हाथ शहर भेज दी थी। नकली विदेशी दरिंदे से उसने यह भी अनुरोध किया था कि वह स्वाधीनता पार्टी से उसका परिचय करवा दे। जब नकली विदेशी दरिंदा वापस आया, तो उसने काउंटी परीक्षा में सफल प्रत्याशी से चार डॉलर लेकर उसके सीने पर चाँदी के आड़ूवाला एक बैज टाँक दिया। वेइच्वाङ के सभी निवासियों पर धाक जम गई। उन्होंने बताया कि यह 'परसिमन तेल पार्टी' का बैज है, जिसका दर्जा हान लिन के बराबर है। इससे चाओ साहब का सम्मान अचानक उस जमाने के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गया, जब उनके बेटे ने पहली बार सरकारी परीक्षा पास की थी। परिणाम यह हुआ कि उन्होंने शेष सबको घृणा की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया और जब कभी उनकी नजर आ क्यू पर पड़ती, तो थोड़ी उपेक्षा का रुख अनपा लेते।

आ क्यू भी निरंतर उपेक्षा के कारण बेहद असंतुष्ट था, पर जैसे ही उसने चाँदी के आड़ूवाले बैज की बात सुनी, तो तुरंत समझ गया कि उसे उपेक्षित क्यों किया जा रहा है। किसी के यह कहने भर से कि वह क्रांति के पक्ष में चला गया है, वह क्रांतिकारी नहीं बन जाता, और न अपनी चोटी लपेटकर सिर पर बाँध लेना मात्र क्रांतिकारी बनने के लिए पर्याप्त है। सबसे महत्वपूर्ण बात है क्रांतिकारी पार्टी से संपर्क साधना। अपनी सारी जिंदगी में उसका दो ही क्रांतिकारियों से साक्षात्कार हुआ था। उनमें से एक शहर में अपना सिर कटवा चुका था। दूसरा नकली विदेशी दरिंदा शेष रह गया था। जब तक आ क्यू तुरंत नकली विदेशी दरिंदे से बात नहीं कर लेता, तब तक उसके लिए कोई रास्ता नहीं था।

छ्येन परिवार के घर का फाटक खुला था। आ क्यू डरता हुआ अंदर पहुँचा। घुसते ही वह चौंक पड़ा, उसने देखा नकली विदेशी दरिदा आँगन के बीचोबीच ऊपर से नीच तक काले कपड़े पहने, जो नि:संदेह विदेशी कपड़े थे, और चाँदी के आड़ूवाला बैज लगाए खड़ा है। वह अपने हाथ में छड़ी थामे था, जिसका स्वाद आ क्यू पहले ही चख चुका था। करीब एक फुट लंबे बाल जो उसने फिर से बढा लिए थे, कंधों पर संत लयू के बालों की तरह लटक रहे थे। उसके सामने चाओ पाए-येन और अन्य तीन व्यक्ति सीधे तन कर खड़े थे। सभी नकली विदेशी दरिदें की बात बड़े आदर से सुन रहे थे।

आ क्यू पंजे के बल चलता अंदर पहुँचा और चाओ पाए-येन के पीछे जा खड़ा हुआ। वह नकली विदेशी दरिंदे का अभिवादन करना चाहता था, किंतु समझ में नहीं आ रहा था कि उसे किस नाम से पकारे। जाहिर था कि वह उसे नकली विदेशी दरिंदा कह कर नहीं पुकार सकता था, और न ही विदेशी या क्रांतिकारी शब्द ही ठीक जान पड़ता था। शायद इसलिए उसे लगा, संबोधन का सबसे अच्छा उपाय यह होगा कि उसे मिस्टर विदेशी कहा जाए।

लेकिन मिस्टर विदेशी की नजर अभी उस पर नहीं पड़ी थी। अपनी आँखें चढ़ा कर वह बड़े आवेश के साथ कह रहा था, "मैं इतना अधिक भावुक हूँ कि जब भेंट हमारी हुई, तो मैंने उनसे बार-बार कहा, "हुङ साहब, इससे हमारा काम चल जाना चाहिए," लेकिन उन्होंने हर बाj उत्तर दिया - 'नो' यह एक विदेशी शब्द है जिसका अर्थ तुम लोग नहीं समझ सकते। वरना हमें बहुत पहले ही सफलता मिल चुकी होती। यह इस बात का उदाहरण है कि वे कितना फूँक-फूँक कर पैर रखते हैं। उन्होंने मुझसे बार-बार हुपे प्रांत जाने को कहा, लेकिन मैं नहीं माना। जिले के छोटे-से कस्बे में कौन काम करना चाहेगा?

"अ र् र् र्... " आ क्यू ने कुछ देर तक उसके रुकने की प्रतीक्षा की और तब बोलने के लिए हिम्मत बटोरने की कोशिश की, लेकिन किसी कारण वह अब भी उसे मिस्टर विदेशी के नाम से नहीं बला सका।

जो चार आदमी उसकी बात सुन रहे थे, वे चौंक पड़े और आ क्यू की ओर घूरने लगे। मिस्टर विदेशी ने भी पहली बार उसकी ओर देखा।

"क्या है?"

"मैं... " "

"चले जाओ यहाँ से।"

"मैं साथ होना चाहता हूँ।"

"चले जाओ यहाँ से।" मिस्टर विदेशी ने मातमपुर्सी करने वाले की छड़ी उठाते हुए कहा।

तब चाओ पाए-येन और दूसरे लोग भी चिल्ला कर बोल पड़े, "छ्येन साहब तुम्हें बाहर जने को कह रहे हैं। तुमने सुना नहीं?"

आ क्यू ने अपना सिर बचाने के लिए दोनों हाथ उस पर रख लिए और बिना यह जाने कि वह क्या कर रहा है फाटक से बाहर चला गया। इस बार मिस्टर विदेशी ने उसका पीछा नहीं किया। कोई पचास-साठ कदम दौड़ने के बाद आ क्यू धीरे चलने लगा। यह बहुत परेशान था, क्योंकि अगर मिस्टर विदेशी ने उसे क्रांतिकारी न बनने दिया, तो उसके सामने और कोई रास्ता ही नहीं रह जाएगा। भविष्य में यह कतई आशा नहीं कर सकता था कि लोहे का सफेद टोप और सफेद कवच पहने सैनिक उसे बुलाने आएँ। उसकी सारी आकांक्षा, उद्देश्य, आशा और भविष्य एक झटके से तहस-नहस हो गए। इस बात से कि यह खबर कहीं फैल न जाए और वह युवक डी और मुछंदर वाङ जैसे लोगों के लिए उपहास का विषय न बन जाए, उसके मन में जो भय पैदा हो गया था, वह उसकी परेशानी का केवल मामूली कारण था।

इतना अधिक हतोत्साह वह पहले नहीं हुआ था। यहाँ तक कि चोटी लपेट कर सिर पर बाँधना उसे बेकार और हास्यास्पद मालूम हो रहा था। बदला लेने के लिए उसके मन में तीव्र विचार आया कि वह अपनी चोटी फौरन खोल दे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। शाम तक इधर-उधर घूमता रहा और जब उधार में दो प्याले शराब पी ली तब कहीं उसका मन कुछ हलका हुआ और वह एक बार फिर लोहे के सफेद टोपों और सफेद कवचों की झलक अपने कल्पना के नेत्रों से देखने लगा।

एक दिन वह काफी रात गए घूमता रहा। जब शरबखाना बंद होने का समय हो गया बस तभी कुल-देवता के मंदिर की ओर लौटने लगा।

" धायँ ! धायँ ! "

अचानक उसने एक अजीब -सी आवाज सुनी, जो निश्चत रुप से पटाखों की नहीं थी। आ क्यू जो हमेशा हंगामा पसंद करता था और जिसे दूसरों के मामलों में टाँग अड़ाने में मजा आता था, अँधेरे में उस आवाज को खोजने निकल पड़ा। उसे लगा उसके सामने किसी के पैरों की आहट आ रही है। वह सावधानी से कान लगाकर सुन रहा था कि एक आदमी उसके सामने से तेजी से भाग निकला। ज्यों ही आ क्यू ने उसे देखा, उसके पीछे पूरी तेजी से दौड़ पड़ा। जब वह आदमी मुड़ा, तो आ क्यू भी मुड़ गया और जब वह मुड़ने के बाद रुका, तो आ क्यू भी रुक गया। उसने देखा पीछे कोई नहीं है और उस आदमी को पहचान लिया। वह युवक डी था।

"क्या बात है?" आ क्यू ने क्रोध से पूछा।

"चाओ... चाओ परिवार के घर चोरी हो गई।" युवक डी ने हाँफते हुए कहा।

आ क्यू का दिल तेजी से धड़कने लगा। युवक डी इतना कहकर चला गया। आ क्यू दौड़ पड़ा। रास्ते में वह दो या तीन बार रुका, फिर आगे बढ़ गया, लेकिन वह किसी समय इस धंधे मे रह चुका था, इसलिए उसमें एक अनोखा साहस पैदा हो गया। एक गली के नुक्कड़ से गुजरते हुए उसने कान लगाकर सुनने की कोशिश की। कल्पना में उसे जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। ध्यान से देखा, तो उसे लगा कि बहुत-से सैनिक लोहे का सफेद टोप और सफेद कवच पहने संदूक ले जा रहे हैं, फर्नीचर ले जा रहे हैं, यहाँ तक कि काउंटी परीक्षा में सफल प्रत्याशी की पत्नी का निङपो पलंग भी ले जा रहे हैं, लेकिन वे लोग उसे ज्यादा साफ नजर नहीं आ रहे थे। वह पास जाना चाहता था, लेकिन उसे लगा, जैसे उसके पैर जमीन में गड़ गए हों।

उस रात आकाश में चन्द्रमा नहीं उगा था। वेइच्वाङ में गहरा अँधेरा था, चारों ओर सन्नाटा था। सम्राट फू शी के शांतिपूर्ण शासन-काल की तरह सारा वातावरण शांत था। आ क्यू वहाँ तब तक खड़ा रहा, जब तक वह उकता नहीं गया। फिर भी उसे हर वस्तु पहले की ही तरह मालूम हहो रही थी। दूर कहीं लोग तरह-तरह का सामान ले जाते हुए, संदूक ले जाते हुए, फर्नीचर ले जाते हुए, काउंटी परीक्षा के सफल प्रत्याशी की पत्नी का निङपो पलंग ले जाते हूए, ऐसा-ऐसा सामान ले जाते हुए, जिसे देखकर उसे स्वयं अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था, इधर-उधर आ -जा रहे थे, लेकिन आ क्यू ने उनके पास न जाने का फैसला कर लिया और मंदिर में लौट आया।

कुल-देवता के मंदिर में और भी अधिक अँधेरा था। बड़ा फाटक बंद करने के बाद वह टटोलता हआ अपने कमरे में जा पहुँचा। कुछ देर लेटने के बाद ही उसका मन शांत हुआ और वह सोच सका कि इस घटना का उस पर क्या असर पड़ सकता है। लोहे का सफेद टोप और सफेद कवच धारण किए सैनिक आ चुके थे, लेकिन वे उससे मिलने नहीं आए थे। वे बहुत-सी चीजें ले गए थे, लेकिन उसे अपना हिस्सा नहीं मिल सका था, यह सब नकली विदेशी दरिंदे का ही दोष था, जिसने उसे विद्रोह में शामिल नहीं होने दिया था अन्यथा यह कैसे हो सकता था कि इस बार उसे अपना हिस्सा नहीं मिलता?

आ क्यू इसके बारे में जितना अधिक सोचता, उसका गुस्सा भी उतना ही अधिक बढ़ता जाता। सोचते-सोचते उसका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, "तो यह विद्रोह मेरे लिए नहीं, सिर्फ तुम लोगों के लिए है?" बड़ी चिढ़न के साथ सिर हिलाते हुए वह बुदबुदाया, "सत्यानास हो तेरा ओर नकली विदेशी दरिंदे के बच्चे! अच्छा, तो तू बना रह विद्रोही। जानता है, विद्रोह की कीमत सिर कटा कर चुकानी पड़ती है। मैं मुखबिर बन जाऊँगा और तेरा सिर कटवाने के लिए, तेरा और तेरे पूरे कुनबे का सिर कटवाने के लिए, तुझे शहर भिजवा कर रहूँगा। मार डालो... मार डालो...।"

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