दिल का रिश्ता Jagriti Saini द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दिल का रिश्ता

दिल का रिश्ता

रोज सुबह की वही भाग दौड़, नीलेश के ऑफीस जाने की पूरी तैयारी, अंश का स्कूल बेग और टिफिन, मम्मी - पापा का ब्रेकफास्ट और सभी का डाइट स्पेशल लंच!

घर का सारा काम ख़तम करके शालिनी अब बस अपने ऑफीस जाने की तैयारी करने में जुट गयी. शालिनी ने अपनी पढ़ाई ख़तम करने के बाद शहर के ही एक कॉलेज में टीचिंग जॉब जाय्न कर ली थी. उसे हमेशा से पढ़ाने का शौक था और वो अपने इस काम को आज भी खूब लगान से कर रही थी|

नीलेश का शहर में अपना कन्स्ट्रक्षन बिज़्नेस था और ज़्यादातर बड़ी कंपनीज़ के प्रॉजेक्ट्स वही कंप्लीट किया करता था. अपनी सिविल इंजिनियरिंग की पढ़ाई ख़तम करने के बाद ही उसने अपने पापा के इस बिज़्नेस को संभाल लिया था और उसकी कंपनी अब शहर के सबसे बड़े कन्स्ट्रक्षन कॉंट्रॅक्टर्स की लिस्ट में शामिल हो गयी थी|

ऑफीस के लिए तैयार होने के बाद शालिनी जैसे ही आईने के सामने खड़ी हुई उसकी नज़र पास रखे एक गिफ्ट बॉक्स पे पड़ी. उसके उपर नीलेश की हेंड राइटिंग में लिखा था “विद लव”. शालिनी ने बड़ी उत्सुकता से गिफ्ट खोला और अंदर देखा तो एक अंगूठी और एक खत था. ये वही अंगूठी थी जो शालिनी को एक दिन यूँ ही चलते चलते एक ज्यूयेलर की दुकान पर पसंद आ गयी थी. अंगूठी देखते ही शालिनी के चेहरे पे एक बड़ी सी मुस्कान उभर आई, इसलिए नहीं के उसे वो अंगूठी गिफ्ट में मिल गई थी, बस ये सोचकर के नीलेश को इतने बिज़ी रहने के बाद भी उसकी पसंद का ख्याल रहा|

अब उसने खत पढ़ने के लिए खोला जिसमे नीलेश ने अपनी दिल की गहराई को कुछ लफ़्ज़ों में पिरोया था. “शालिनी.. हॅपी मॅरेज एनीवेरसरी”.

पहली लाइन पढ़ते ही शालिनी को ध्यान आया के वो आज फिर काम के चक्कर में अपनी मॅरेज एनीवेरसरी भूल गयी और उसने नीलेश के लिए कोई तोहफा भी नहीं लिया. गहरी साँस भरकर उसने आगे पढ़ना शुरू किया|

“जिस दिन से तुमने मेरा हाथ थामा है, ज़िंदगी क्या होती है इसका मुझे सही मायने में एहसास हुआ है. कितनी खूबसूरती से तुमने मेरे घर को सज़ा दिया और मेरे परिवार के हर सदस्य के चेहरे पे मुस्कुराहट बिखेर दी. आज तक हर दुख सुख में तुमने बड़ी सहजता से मेरा साथ निभाया है, शायद तुम ईश्वर का कोई वरदान ही हो मेरी ज़िंदगी में. लेकिन मुझे हुमेशा इस बात का दुख रहेगा के मैं तुम्हारे चेहरे पे वो खुशी नहीं ला पाया जिसकी तुम असल मे हक़दार हो. मुझे माफ़ करना..

शाम को ऑफीस से जल्दी आने की कोशिश करूँगा. तुम तैयार रहना

तुम्हारा- नीलेश”.

शालिनी की आँखो में आँसू भर आए.. एक तरफ नीलेश का बेपनाह प्यार जो हर दिन उसे नव जीवन देता था और एक तरफ कुछ बिछड़े रिश्तों का गम जिन्हे नीलेश भी अपनी बेबसी एनीवेरसरी अक्सर जाहिर कर देता था. हर बार की तरह, इस खुशी के मौके पर भी शालिनी को सबसे पहले अपने मम्मी- पापा की याद आ गयी और उसकी आँखे नम हो गयी|

शालिनी और नीलेश ने लव मॅरेज की थी, जिसको शादी के 7 साल बाद भी शालिनी के माता पिता से स्वीकृति नही मिली थी. और वो आज तक कभी उसे देखने या उसका हाल पूछने भी नहीं आए|

अपनी प्यार से भरी लेकिन अधूरी ज़िंदगी को भीगी पलकों मे समेट कर शालिनी ऑफीस के लिए निकल गयी. नीलेश को सालगिरह की बधाई देकर और उस से थोड़ी देर बात करके उसने अपने मन को हल्का किया|

रास्ते में शालिनी के बड़े भाई और भाभी का भी फोन आ गया और उन्होने उसे शादी की सातवीं सालगिरह पे ढेरों बधाइयाँ दी. लेकिन फोन रखने से पहले, हमेशा की तरह शालिनी ने आज भी उनसे एक ही सवाल किया. “मम्मी-पापा कहाँ हैं भाई? क्या वो आज भी बात नही करेंगे?” आकाश ने बड़े प्यार से शालिनी को समझाया, “भरोसा रख बहना, एक दिन सब ठीक हो जाएगा.”

लेकिन इतनी सी तस्सली एक बेटी के दिल के लिए कहाँ काफ़ी होती है. एक बेटी के लिए तो उसके माता-पिता उसके जीवन का आधार होते हैं, जिनके बिना वो एक पल भी नहीं जी सकती. और ये 7 साल शालिनी ने उनसे दूर रहकर कैसे बिताए थे ये तो बस उसका दिल ही जनता था|

शालिनी और नीलेश एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. जब उनके प्यार की कहानी शुरू हुई थी तब शालिनी कंप्यूटर इंजिनियरिंग की स्टूडेंट थी और नीलेश सिविल इंजिनियरिंग कर रहा था. शालिनी शुरू से ही पढ़ाई मे काफ़ी अच्छी थी, और उसने अपने हुनर से कॉलेज में भी सभी का दिल जीत लिया था. सिर्फ़ अपने डिपार्टमेंट के ही नही, कॉलेज के बाकी प्रोफेस्सर्स भी उसे बहुत अच्छी तरह जानते थे|

नीलेश को कीताबें पढ़ने का ज़्यादा शौक नहीं था लेकिन उसे हर चीज़ को प्रॅक्टिकली एक्सप्लोर करना बहुत अच्छा लगता था. शायद इसी लिए उसने सिविल इंजिनियरिंग में अड्मिशन लिया था जहाँ उसे हर दिन कुछ नये एक्सपेरिमेंट्स करने का मौका मिलता था. नीलेश ने कई बार अपने कॉलेज को बाहर कुछ कॉंपिटेशन्स में भी रेप्रेज़ेंट किया था|

यूँ तो उन दोनो की कॉलेज लाइफ में कोई लिंक नही था, दोनों के सपने अलग, राहें अलग और मंज़िलें भी अलग. शालिनी हमेशा से टीचर बनना चाहती थी और नीलेश को पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पापा का कन्स्ट्रक्षन बिज़्नेस ही संभालना था. उन दोनो के डिपार्ट्मेंट्स भी अलग अलग ही थे और पढ़ाई के पहले साल तो शायद ही उन्होने कभी एक दूसरे को देखा भी हो. लेकिन शायद वक्त को कुछ और ही मंजूर था|

कहते हैं जोड़ियाँ तो उपर से बनकर आती हैं, और उन्हें मिलाने के लिए भगवान बहाने भी पहले से चुनकर रखता है. शायद कुछ ऐसा ही शालिनी और नीलेश किस्मत में भी था. कॉलेज में वार्षिक उत्सव की तैयारियाँ शुरू हो रही थी और इस बार प्रोग्राम के दौरान स्टेज को संभालने की ज़िम्मेवारी शालिनी और नीलेश को मिली|

सुबह सुबह उन दोनो को कल्चरल कमिटी के हेड ने अपने कॅबिन में बुलाया और उन्हें प्रोग्राम की सारी लिस्ट ये कहते हुए थमा दी के इस बार स्टेज तुम दोनों मिलकर होस्ट करोगे. उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ अजीब सी सूरत बनाकर देखा और एक साथ दोनों बोल पड़े, “लेकिन हम एक दूसरे को जानते भी नहीं सर, फिर होस्ट कैसे करेंगे?”. प्रोफेसर ने उनकी तरह देख कर ठहाका लगाया, देखो तुम्हारे सुर भी एक दूसरे से कितने मिलते हैं.. दोनों ने एक समय पे एक ही बात कही. अच्छे होस्ट्स की यही तो क्वालिटी होती है के उन्हे एक दूसरे की बात में अपनी बात शामिल करना अच्छी तरह आता है|

शालिनी और नीलेश के पास अब साथ मिलकर फंक्षन की तैयारी करने के अलावा और कोई चारा नही था. अभी फंक्षन को 25 दिन बाकी थे और उन्हें हर रोज 3 से 5 बजे तक प्रॅक्टीस सेशन जाय्न करना था. सभी पर्फॉर्मर्स की लिस्ट बनाना, डीटेल्स फाइनलाइज़ करना और अपनी लाइन्स प्रिपेर करना, काफ़ी काम था उनके पास|

शालिनी का नेचर थोड़ा रिज़र्व सा था, वो किसी से जल्दी घुल-मिल नहीं पाती थी, इसलिए उसे समझ नहीं आ रहा था के ये काम कैसे पूरा किया जाए. दूसरी तरफ नीलेश को लड़कियों से बात करने में काफ़ी झीजक सी रहती थी. इसी वजह से वो हमेशा लड़कियों से दूरी बनाए रखता था. लेकिन इस बार प्रोफेसर की बात टालने की उन दोनों के ही पास कोई वजह नहीं थी|

अब रोजाना मिलने का दौर आगे बढ़ने लगा. रोज शाम को प्रॅक्टीस सेशन में काम के साथ साथ सब लोग मिलकर ढेर सारी मस्ती भी किया करते थे. और इसी बीच बाकी स्टूडेंट्स के साथ वक्त बीताते हुए, शालिनी और नीलेश भी आपस मे काफ़ी बातें करने लग गये थे. एक हफ्ते में ही उन दोनो में अच्छी दोस्ती हो गयी और अब साथ काम करने में कोई परेशानी भी नहीं आ रही थी|

25 दिन कैसे लम्हों की तरह बीत गये अब उन दोनों को पता ही नहीं चला| वार्षिक उत्सव का दिन आ गया. शालिनी जब नीली सारी में तैयार होकर स्टेज पे आई तो पल भर के लिए नीलेश बस उसे देखता ही रह गया. वो रंग उस पर खूब जच रहा था|

सहमी हुई सी शालिनी ने जल्दी से नीलेश के पास आकर कहा “कैसी लग रही हूँ मैं”?

पल भर के लिए नीलेश को कहने के लिए कोई शब्द ही नहीं मिले. वो जैसे शालिनी को देख कर कहीं खो सा गया था. तभी शालिनी ने फिर से उसे हिलाते हुए कहा “मुझे बहुत डर लग रहा है, पता नही क्या होगा”|

नीलेश ने अपनी चुप्पी तोड़ी और अपने ख्वाबों की दुनिया से हक़ीक़त मे लौट आया. उसने मुस्कुरा कर शालिनी को हिम्मत दी “सब अच्छा होगा..” और फिर धीरे से शालिनी की तरफ देखकर कहा “तुम बहुत सुन्दर लग रही हो.” शालिनी की हल्की सी मुस्कुराहट नीलेश के दिल में घर कर गयी|

थोड़ी ही देर में सभी गेस्ट आ गये. बड़ी धूम धाम से उत्सव मनाया गया और स्टेज पर शालिनी और नीलेश की भागीदारी को सभी ने बहुत सराहा. उन्होने ऐसा समा बाँधा के पूरा दिन दर्शकों का मन पूरी तरह उत्सव में मगन रहा|

अगले ही दिन से सब पहले की तरह शांत हो गया. कॉलेज की क्लासस, पढ़ाई की बातें और अपने अपने डिपार्टमेंट का रुख़|

अब नीलेश और शालिनी के पास मिलने की कोई वजह नहीं थी, लेकिन जब कभी एक दूसरे को कॅंपस में देख लेते तो दोनों के चेहरे पे एक अजीब सी मुस्कुराहट आ जाती. कभी कभी रुक कर एक दूसरे का हाल भी पूछ लेते|

इसी बीच, 25 अक्टोबर को शालिनी का जन्मदिन भी आ गया. नीलेश को ना जाने क्यूँ किस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था. बातों ही बातों में प्रॅक्टीस सेशन के दौरान शालिनी ने बताया था के उसका जनमदिन 25 अक्टोबर को आता है. पीछले दिन ही नीलेश ने गिफ्ट के तौर पर एक फोटो फ्रेम खरीद ली थी और उसमे शालिनी की फंक्षन वाले दिन की नीली सारी वाली फोटो लगा कर उसे पॅक कर दिया. वो सुबह घर से जल्दी निकल गया, क्यूंकी दोनों की क्लासस ठीक 9:30 बजे शुरू हो जाती थी और नीलेश उस से पहले ही शालिनी को विश करना चाहता था|

कॉलेज पहुँच कर अपने डिपार्टमेंट में जाने के बजाए आज नीलेश शालिनी के डिपार्टमेंट के बाहर खड़ा हो गया और 9 बजे से ही बेसब्री से शालिनी के आने का इंतज़ार करने ल्गा. 9:15 हो गये लेकिन शालिनी उसे कहीं दिखाई नहीं दी. अब धीरे धीरे उसके सब्र का बाँध टूटने लगा था. एक एक मिनिट के साथ सोचता के कहीं आज वो कॉलेज आएगी भी या नहीं. 9:24 हो गये थे, नीलेश के दोस्त उसे क्लास के लिए बुला रहे थे, लेकिन अभी भी उसकी नज़र गेट की तरफ थी के शायद शालिनी आ जाए|

तभी सामने से नीले सूट मे शालिनी गेट से अंदर आई, नीलेश की आँखे एक टक शालिनी को देखने लगी और वो तब तक उसे यूँ ही देखता रहा जब तक शालिनी उसके सामने आकर खड़ी हो गयी|

नीलेश क्या कहने आया था वो भूल गया. शालिनी ने उसे वहाँ खड़ा देखकर हैरानी से पूछा “नीलेश, तुम यहाँ क्या कर रहे हो? आज क्लास नहीं है क्या?”

नीलेश ने घड़ी की तरफ देखा तो क्लास का टाइम हो गया था.. उसने फिर शालिनी की तरफ देखकर कहा “हॅपी बिर्थडे शालिनी”

“बस ये कहने के लिए क्लास छोड़कर यहाँ खड़े हो.. थॅंक्स आ लॉट, लेकिन अब जाओ क्लास में”. दोनों अपने अपने क्लासरूम की तरफ निकल गये. क्लास मे पहुँच कर नीलेश को याद आया के वो गिफ्ट देना तो भूल ही गया|

लंच ब्रेक मे दोनों फिर अचानक कॅंटीन में मिल गये. अब शालिनी खुद नीलेश के पास बात करने के लिए आ गयी..

“हाँ तो अब बताओ, क्या कहना था तुम्हें सुबह”

नीलेश के चेहरे पर मुस्कुराहट बिखर आई और उसने अपने बेग से गिफ्ट निकल कर शालिनी की तरफ हाथ बढ़ाया. शालिनी को उम्मीद नहीं थी के नीलेश कोई गिफ्ट भी लाया होगा, उसने गिफ्ट खोला तो उसमे अपनी एक खूबसूरत सी तस्वीर को पाया. उसके चेहरे पे खुशी झलक छा गई|

“अरे वाह! ये तस्वीर कब ली. मुझे तो याद भी नही है. थॅंक यू सो मच. इट्स ब्यूटिफुल”

नीलेश ने बड़ी हिम्मत करके पूछा “तो अब पार्टी?”

“हाँ चलो.. मैं तो अभी फ्री हूँ.. तुम्हारी क्लासस नही हैं तो पार्टी भी कर लेते हैं.”

क्लासस तो थी ही लंच ब्रेक के बाद भी.. लेकिन आज नीलेश के लिए शालिनी के साथ थोड़ा वक्त बीताना शायद ज़यादा ज़रूरी था. दोनो कॉलेज के पास ही एक रेस्टोरेंट में खाना खाने निकल गये. कुछ देर बहुत सी बातें की और फिर अपने अपने घर की तरफ चल दिए|

आज का दिन नीलेश को शालिनी के और करीब ले आया, और अब शायद शालिनी भी उसके बारे में थोड़ा ज़्यादा सोचने लगी थी. अब लगभग हर दिन दोनों का मिलना होने लगा और वक्त के साथ वो दोनों एक दूसरे के काफ़ी करीब आ गये. जैसे जैसे उनकी पढ़ाई पूरी हो रही थी, उनके सपने और मंज़िलें भी एक दूसरे से जुड़ती जा रही थी|

इंजिनियरिंग ख़तम होने के बाद ही नीलेश ने अपने पापा का बिज़्नेस संभालना शुरू कर दिया. और शालिनी ने अपनी मास्टर्स की पढ़ाई की साथ ही टीचिंग जॉब भी जाय्न कर ली. लेकिन उन दोनों के दिल का रिश्ता अब तक काफ़ी गहरा हो चुका था और अब धीरे धीरे वो साथ ज़िंदगी बीताने के सपने देखने लगे थे|

एक दिन सही समय जानकर नीलेश ने अपने घरवालों से शालिनी के बारे में बात की. नीलेश उनका इक्लोत्ता बेटा था, उन्हे उसकी पसंद पर कोई एतराज़ नहीं था. लेकिन अब शालिनी को डर अपने माता-पिता की विचारधारा का था. वो कभी लव मॅरेजस को अच्छा नहीं समझते थे और उन्हें शादी किसी दूसरी बिरादरी में करना भी पसंद नही था.

घर वाले शालिनी के लिए रिश्ता तो ढूँढ ही रहे थे लेकिन शालिनी उनसे खुद ये बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई इसलिए एक दिन उसकी बड़ी बहन ने घर के बड़ों के सामने उसकी पसंद की बात रखी|

शालिनी के माता-पिता ये बात सुनते ही एक दम आग बाबूला हो उठे. और उन्होने इस शादी के लिए साफ इंकार कर दिया. शालिनी का बड़ा भाई आकाश चुप बैठा था. उसने इस बात पर अपनी कोई प्रितिक्रिया नहीं दी|

दरअसल, आकाश भी कभी किसी लड़की से प्यार करता था, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी घर वालों ने उसकी शादी उसकी पसंद से नहीं होने दी. बेशॅक जिस लड़की से आकाश की अब शादी हुई थी वो भी बहुत अच्छी थी लेकिन आकाश आज भी अपने प्यार को नहीं भुला पाया था और ये बात उसकी ज़िंदगी का एक कड़वा सच बनकर हमेशा उसके अभी के रिश्ते को कहीं ना कहीं कमज़ोर बना देती थी|

काफ़ी दिनो तक घर पे कशमकश का सा माहोल रहा. शालिनी के माता पिता किसी भी हाल में इस शादी के लिए हामी भरने को राज़ी नहीं थे. नीलेश और शालिनी दोनों ही बहुत परेशान थे. वो अब एक दूसरे के बिना भी नहीं जी सकते थे और घर वालों की मर्ज़ी के खिलाफ भी शादी नहीं करना चाहते थे.. नीलेश के घर वालों ने भी शालिनी के माता-पिता को समझाने की कई बार कोशिश की लेकिन उन्होने हर बार उनका दिल दुखा कर उन्हे वापिस भेज दिया|

परिस्थियाँ शालिनी और नीलेश के पक्ष मे बिल्कुल भी नहीं थी, और इसी बीच नीलेश की माँ काफ़ी बीमार रहने लगी. शायद उन्हें अपने इक्लोते बेटे की शादी की चिंता ही अंदर अंदर खाए जा रही थी. क्यूंकी वो जानती थी के नीलेश किसी और से शादी नहीं करेगा और शालिनी के घर वाले ये शादी होने नही देंगे|

अब नीलेश की माँ हर दिन उसे शादी के लिए कहने लगी. बीमार माँ को ऐसा कहता देख नीलेश भी बहुत बेबस सा हो जाता लेकिन उसके दिल में शालिनी की जगह कोई और नहीं ले सकता था. उधर शालिनी भी हर दिन बस आँसू बहाकर ही जी रही थी लेकिन उसके माता – पिता को उसके इस दुख की कोई परवाह नही थी|

शालिनी के लिए उन्हें ये समझाना बहुत मुश्किल हो गया था के वो ना तो उनके बिना जी सकती है ना तो नीलेश की बिना. आख़िर एक लड़की कैसे अपने प्यार के लिए अपने जन्मदाता को छोड़ सकती है. लेकिन जब उसने सच्चे दिल से किसी से प्यार किया है तो वो उसे भी कैसे छोड़ सकती है.

घर के बड़े इतनी सी बात भी नही समझ पा रहे थे के जब उनकी बेटी का दिल नीलेश से जुड़ा है तो वो किसी और घर में कैसे खुश रह पाएगी. वो तो बस हर दिन एक ऩया रिश्ता तलाश कर रहे थे शालिनी के लिए|

जब इस परिस्थिति को सुलझाने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था, तो आकाश ने अपने कदम आगे बढ़ाए और उसने शालिनी और नीलेश की शादी करवाने की ज़िम्मेवारी ली. क्यूंकी वो जानता था के अपने प्यार से अलग होकर जीना कितना मुश्किल होता है ज़िंदगी भर. जो सज़ा वो खुद भुगत रहा था, वो नहीं चाहता था शालिनी भी वैसी ज़िंदगी बिताए|

आकाश ने नीलेश के घर जाकर शादी की सारी बातें कर ली और पंडित से मुहूरत भी निकलवा लिया. शालिनी आख़िरी वक्त तक माता-पिता की हामी की उम्मीद में थी लेकिन उन्होने अब आकाश से भी बातचीत करना बंद कर दिया था. आकाश ने अकेले ही सारी परिस्थिति को स्मभाला और शालिनी की शादी नीलेश से करवा दी. आख़िरी वक्त तक शालिनी की निगाहें अपने माता-पिता को ही ढूंड रही थी, लेकिन उनके गुस्से ने शायद उनके दिल से शालिनी को बहुत दूर कर दिया था|

आज शालिनी अपने प्यार को पा कर भी अधूरी थी. उसने दिल का रिश्ता तो निभा लिया लेकिन आज वो अपना खून का रिश्ता निभाने की कोशिश में कहीं हार सी गयी थी|

शादी की सारी रस्मे पूरी हो गयी, नीलेश के घर वाले बहुत खुश थे. उन्होने शालिनी को बड़े प्यार से अपनाया. नीलेश जानता था के शालिनी इस तरह शादी नहीं करना चाहती थी, उसके दुख की सीमा से वो अच्छी तरह वाकिफ़ था. लेकिन फिर भी उसने शालिनी को खुशियाँ देने की अपनी कोशिशों में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी|

नीलेश के घर वाले शालिनी को अक्सर दिलासा दिया करते थे के जल्दी ही उसके माता पिता उसे फिर से अपना लेंगे लेकिन आज उनकी शादी को 7 साल हो गये थे और उनका गुस्सा आज भी ज्यों का त्यों बना था. यहाँ तक की अंश के पैदा होने पर भी उन्होने उसे देखने की इच्छा जाहिर नहीं की. बस भाई भाभी और बड़ी बहन का परिवार ही मिलने आया था|

ज़िंदगी मे हर खुशी होने के बावजूद भी शालिनी खुद को अधूरा सा महसूस करती थी. माता पिता की ये बेरूख़ी उसे हर दिन अंदर ही अंदर खाए जाती थी और वो खुद को हुमेशा उनको दुख देंने लिए कोस्ती रहती थी. लेकिन नीलेश का प्यार उसे हर दिन एक नई ज़िंदगी देता रहा..

शालिनी ने उस घर मे अपनी हर ज़िम्मेवारी बखूबी निभाई. पूरा परिवार उसे बहुत पसंद करता था और सब उसका बहुत ख्याल भी रखते थे. एक खुशहाल परिवार मे कमी थी तो बस शालिनी के माता-पिता के आशीर्वाद की|

आज शादी की वर्षगाँठ पे शालिनी फिर माता- पिता से मिलने की उम्मीद में थी. वो हर वक्त बस यही सोच रही थी के शायद वो उसे माफ़ कर पाएँ और उसे फिर से गले लगा लें|

पूरा दिन क्लासस मे बिज़ी रहने के बाद शालिनी फिर घर की तरफ चल पड़ी. जाते वक्त उसने नीलेश के लिए एक सुन्दर सी टाइ भी पेक करवा ली. घर पहुँचने से पहले ही नीलेश का फोन आ गया था के वो भी थोड़ी देर में ऑफीस से निकल रहा है और वो अंश को भी डांस क्लास से ले आएगा फिर डिन्नर करने बाहर चलेंगे|

शालिनी घर का सारा कम ख़तम करके तैयार होने अपने कमरे में चली गयी. थोड़ी देर में दरवाजे की घंटी बजी तो वो आकाश को आया समझकर दौड़कर दरवाजा खोलने गयी|

दरवाजा खोलते ही शालिनी के मानो होश ही उड़ गये. सामने उसके माता पिता खड़े थे. शालिनी ने इन सात सालों मे जीतने आँसू घुट घुट कर पिए थे आज वो सब पल भर में उसकी आँखो से बह चले. उसकी ज़ुबान से कोई लॅफ्ज़ निकल ही नहीं रहा था.. तभी नीलेश ने आगे आकर उसे संभाला और सबको अंदर ले आया|

कुछ पलों तक शालिनी बस रोती ही रही, उसने अपनी ज़िंदगी के सारे सुख जैसे एक पल में ही पा लिए. आज वो माता पिता के गले लगकर जी भर के रो ली और अब उनकी आँखो के आँसू भी नहीं रुक पा रहे थे. सब जैसे आँसुओं के समंदर मे ही डूब गये थे|

नीलेश ने भी शायद आज ही अपनी शालिनी को पूरी तरह पाया था..

आज तक नीलेश ने हमेशा उन्हे एक करने की हर कोशिश की. शालिनी ये बात नहीं जानती थी, लेकिन नीलेश हर साल शालिनी के जन्मदिन पर और अपनी शादी की सालगिरह पर उसके माता पिता से मिलने और उन्हे मनाने जाता था. लेकिन हर बार बस उनका गुस्सा देखकर ही वापिस लौट आता था. पिछले 7 सालों में हर बार हारकर भी उसने शालिनी को फिर से उसके माता पिता से मिलाने की हिम्मत नहीं छोड़ी|

आज फिर वो उनके घर गया, लेकिन इस बार वो अकेला नहीं गया था. अंश भी उसके साथ था. शालिनी के माता पिता ने जब अंश को देखा तो उन्होने अपने गुस्से को पल भर मे भूलकर उसे अपने गले से लगा लिया|

नीलेश ने आज फिर हमेशा की तरह उनसे अपने इस तरह किए हुए विवाह के लिए माफी माँगी और आज वो अपनी कोशिशों मे कामयाब भी हो गया. शालिनी को एनीवेरसरी का सबसे बड़ा तोहफा देने के लिए वो उन्हे अपने साथ घर ले आया था|

आज सबको साथ देखकर नीलेश और शालिनी ने अपनी ज़िंदगी की हर खुशी पा ली थी|

हाँ लड़कियाँ अधूरी होती हैं, अपने माता-पिता के बिना भी और अपने प्यार के बिना भी. दिल का रिश्ता निभाने के लिए वो इस खून के पवित्र रिश्ते को कभी नहीं छोड़ सकती|

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