पराभव
मधुदीप
भाग - छह
पास के गाँव में प्रतिवर्ष चैत्र की अष्टमी को देवी का मेला लगता था | तीन-चार दिन पूर्व से ही मेले की तैयारियाँ प्रारम्भ हो जाती थीं | गाँव के लोगों के लिए यह मेला पशुओं के क्रय-विक्रय का भी अच्छा केन्द्र था | श्रद्धालु लोग नवरात्रों में प्रतिदिन ही देवी के दर्शन करने वहाँ पहुँचते थे और अष्टमी के दिन तो उस गाँव में चारों ओर आदमियों की भीड़ ही भीड़ दिखाई देती थी |
प्रतिवर्ष की भाँती इस वर्ष भी मेले की तैयारियाँ प्रारम्भ हो गई थीं | दो दिन से लगातार श्रद्धालु जन दूर-दूर से उस गाँव में आकर ठहर रहे थे | आज अष्टमी होने के कारण मेला पूरी तरह भर चुका था | दूर-दूर तक एक विशाल जन-समूह फैला हुआ था | मेले को जाने वाली राह पर बैलगाड़ियों, टैम्पो और साइकिलों की लाइन लगी थी | पैदल जन-समूह भी उस धुल-भरी पगडण्डी पर आगे बढ़ा जा रहा था |
श्रद्धा बाबू भी मनोरमा को साथ लिए मेले को जाने वाली पगडण्डी पर जा रहा था | माँ ने जोर देकर उससे कहा था-"जा बेटा, बहू को देवी मैया के दर्शन करा ला | देवी मैया की कृपा होगी तो इसकी गोद भर जाएगी |"
‘देवी मैया के दर्शन से गोद भर जाएगी | ’ ऐसा विश्वास न तो श्रद्धा बाबू को था और न ही मनोरमा को | दोनों इस भावना से मेले में न जा रहे थे अपितु सुबह-सुबह माँ की बात को मना करके विवाद में पड़ने की अपेक्षा थोड़ी देर मेले में घूम आना दोनों को अधिक उपयुक्त लगा था |
दूर से ही मेले में बह रहे ग्रामोफोनों की आवाज सुनाई देने लगी थी | राह चलते लोगों के पैरों में तीव्रता आ गई थी | मंजिल समीप देखकर जैसे थके पैरों में फिर से जान पड़ गई थी | श्रद्धा बाबू और मनोरमा के पैरों की गति भी तीव्र हो गई थी |
तभी श्रद्धा बाबू को पास ही किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी | एक पल को तो उसने सोचा कि अपने माता-पिता के साथ जा रहा कोई बच्चा रो रहा होगा मगर बच्चे के लगातार जोर-जोर से रोने की आवाज ने उसका ध्यान अपनी ओर खींच लिया | रुकते हुए उसने उस दिशा में मुड़कर देखा | पगडण्डी की एक ओर बरगद के पेड़ के नीचे लगभग तीन वर्ष का एक बच्चा जोर-जोर से माँ...माँ चिल्लाता हुआ रो रहा था |
पति को वहाँ रुका देखकर मनोरमा का ध्यान भी उधर ही चला गया | मातृ-प्रेम से विकल हो मनोरमा, एक पल रुके बिना ही उधर बढ़ गई | श्रद्धा बाबू भी अपनी पत्नी के पीछे उसे बालक तक जा पहुँचा |
बिखरे हुए बाल, आँसुओं से भीगा हुआ चेहरा, नाक से लटकती गन्दगी और धुल में सना शरीर! बच्चा हाथ-पाँव पटक-पटक कर माँ-माँ चिल्ला रहा था |
"किसका बच्चा है यह?" मनोरमा ने पीछे खड़े अपने पति से पूछा |
"क्या मालुम | लगता है अपने माँ-बाप से बिछड़ गया है | वैसे भी बच्चा गाँव का तो नहीं लगता |" श्रद्धा बाबू ने कहा |
मनोरमा ने आगे बढ़कर उसे बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया | उसे यह भी परवाह न थी कि बच्चा बुरी तरह घुल में लिपटा हुआ है और उसे गोद में लेने से उसकी साड़ी खराब हो जाएगी | बच्चे को गोद में उठाकर उसने दृष्टि इधर-उधर दौड़ाई | आस-पास कोई भी न था |
"क्या नाम है बेटे तुम्हारा?" मनोरमा ने उसके आँसू पोंछते हुए पूछा |
बच्चा बिना कोई जवाब दिए यूँ ही माँ-माँ चिल्ला रहा था | श्रद्धा बाबू की दृष्टि भी इधर-उधर बच्चे के संरक्षक को खोज रही थी |
"कहाँ है तुम्हारी माँ...?" मनोरमा ने उसे पुचकारते हुए पूछा मगर बच्चे ने ध्यान भी न दिया कि मनोरमा ने क्या कहा है?
मनोरमा हर तरह से बच्चे को बहलाने का प्रयास करने लगी | उसने अपने पर्स में से चाबी का गुच्छा निकालकर उसके सामने बजाते हुए उसे देना चाहा |
"नहीं, मैं तो अपनी मम्मी के पास जाउँगा |" बच्चे ने रोते हुए गुच्छे को फेंक दिया | श्रद्धा बाबू ने आगे बढ़कर वह गुच्छा उठा लिया |
लगभग आधा घंटा दोनों वहाँ प्रतीक्षा करते रहे कि कोई बच्चे को ढूँढ़ता हुआ वहाँ आ जाए मगर कोई न आया तो मनोरमा ने अपने पति से कहा-"चलो |"
श्रद्धा बाबू चुपचाप उसके साथ चल दिया | पगडण्डी पर आकर जब उसने पत्नी को मेले की ओर जाने के स्थान पर घर जाते हुए देखा तो टोका, "कहाँ जा रही हो?"
"घर |" मनोरमा ने कहा |
"मेले मैं नहीं चलोगी?"
"नहीं, देवी मैया ने मुझे आशीर्वाद दे दिया |"
"इस बच्चे का क्या करोगी?"
"माँ अपने बच्चे का क्या करती है?"
"नहीं मनोरमा, नहीं! यह उचित नहीं है | हम मेले में जाकर बच्चे को सूचना केन्द्र में दे देंगे | इसके माँ-बाप इसे खोज रहे होंगे | अपने बच्चे के लिए वे कितना परेशान होंगे |"
‘मैं जो पाँच वार्षों से परेशान हूँ, उसकी आपको कोई चिन्ता नहीं है | ’ मन में आए विचार को मनोरमा ने दबा लिया था | सिर्फ इतना ही कहा, "देवी मैया ने यह बच्चा मेरे पास भेजा है |"
"पागल न बनो मनोरमा | अपनी भूख मिटाने के लिए दुसरे के हाथ से रोटी छीन लेना उचित नहीं है |" गम्भीरता से श्रद्धा बाबू ने कहा |
बात उचित थी, मनोरमा भी नकार न सकी |
"जैसी आपकी इच्छा |" बुझे मन से मनोरमा ने कहा और पाँव उल्टे मेले की ओर मुड़ गए |
मेले में पहुँचकर श्रद्धा बाबू बच्चे को सुचना केन्द्र में देते हुए सोच रहे थे कि उसकी पत्नी की बच्चे के प्रति इच्छा बहुत अधिक बढ़ गई है | यदि एक पढ़ी-लिखी स्त्री खोए हुए बच्चे को इतनी शीघ्र अपना मानने को और अपनाने को तैयार हो सकती है तो स्पष्ट है कि उसके मन में माँ बनने की तीव्र लालसा है | उसे माँ बनना ही चाहिए...मगर कैसे? मेले में घूमते हुए यही प्रश्न उसके मस्तिष्क में कौंधता रहा था |