अकबर — बीरबल
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भाई जैसा
बादशाह अकबर तब बहुत छोटे थे, जब उनकी मां का देहांत हुआ था। चूंकि वह बहुत छोटे थे, इसलिए उन्हें मां के दूध की दरकार थी।
महल में तब एक दासी रहती थी, जिसका शिशु भी दुधमुंहा था। वह नन्हें बादशाह अकबर को दूध पिलाने को राजी हो गई। दासी का वह पुत्र व बादशाह अकबर दोनों साथ—साथ दासी का दूध पीने लगे।
दासी के पुत्र का नाम हुसिफ था। चूंकि हुसिफ व बादशाह अकबर ने एक ही स्त्री का दुग्धपान किया था, इसलिए वे दूध—भाई हो गए थे। बादशाह अकबर को भी लगाव था हुसिफ से।
समय बीतता रहा। बादशाह अकबर बादशाह बन गए और देश के सर्वाधिक शक्तिशाली सम्राट बने। लेकिन हुसिफ एक मामूली दरबारी तक न बन पाया। उसकी मित्रता जुआरियों के साथ थी और कुछ ऐसे लोग भी उसके साथी थे, जो पैसा फिजूल बहाया करते थे।
एक समय ऐसा आया जब हुसिफ के पास दो समय के भोजन के लिए भी पैसा पास न था। लोगों ने तब उसे बादशाह के पास जाने को कहा।
हुसिफ ने बादशाह अकबर के पास जाने की तैयारी शुरू कर दी।
हुसिफ के दरबार में पहुंचते ही बादशाह ने उसे ऐसे गले लगाया जैसे उसका सगा भाई ही हो। लंबे अर्से के बाद हुसिफ को देख बादशाह बेहद खुश थे। उन्होंने उसकी हर संभव सहायता करनी चाही।
हुसिफ को बादशाह अकबर ने दरबार में नौकरी दे दी। रहने के लिए बड़ा मकान, नौकर—चाकर, घोड़ागाड़ी भी दी। निजी खर्च के लिए एक मोटी रकम हर महीने उसको मिलती थी।
अब हुसिफ की जिन्दगी अमन—चौन से गुजर रही थी। उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं थी।
यदि तुम्हारी कुछ और जरूरतें हों, तो बेहिचक कह डालो। सब पूरी की जाएंगी। बादशाह ने हुसिफ से कहा।
तब हुसिफ ने जवाब दिया, आपने अब तक जितना दिया है वह काफी है शाही जीवन बिताने को, बादशाह सलामत। आपने मुझे इज्जत बख्शी, सर उठाकर चलने की हैसियत दी। मुझसे ज्यादा खुश और कौन होगा। मेरे लिए यह भी फक्र की बात है कि देश का सम्राट मुझे अपना भाई मानता है। और क्या चाहिए हो सकता है मुझे।
कहते हुए उसने सिर खुजाया, होंठों पर अहसान भरी मुस्कान थी। लेकिन लगता था उसे कुछ और भी चाहिए था। वह बोला, मैं महसूस करता हूं कि बीरबल जैसे बुद्धिमान व योग्य व्यक्ति के साथ रहूं।
मेरी ख्वाहिश है कि जैसे बीरबल आपका सलाहकार है, वैसा ही मुझे भी कोई सलाह देने वाला हो।'
बादशाह अकबर ने हुसिफ की यह इच्छा भी पूरी करने का फैसला किया।
उन्होंने बीरबल को बुलाकर कहा, हुसिफ मेरे भाई जैसा है। मैंने उसे जीवन के सभी ऐशो—आराम उपलब्ध करा दिए हैं, लेकिन अब वह तुम्हारे जैसा योग्य सलाहकार चाहता है।
तुम अपने जैसा बल्कि यह समझो अपने भाई जैसा कोई व्यक्ति लेकर आओ जो हुसिफ का मन बहला सके। वह बातूनी न हो, पर जो भी बोले, नपा—तुला बोले। उसकी बात का कोई मतलब होना चाहिए। समझ गए न कि मैं क्या चाहता हूं।'
पहले तो बीरबल समझ ही न पाया कि बादशाह ऐसा क्यों चाहते हैं। उसे हुसिफ में ऐसी कोई खूबी दिखाई न देती थी।
जी हुजूर! बीरबल बोला, आप चाहते हैं कि मैं ऐसा आदमी खोजकर लाऊं जो मेरे भाई जैसा हो।'
ठीक समझे हो। बादशाह ने कहा।
अब बीरबल सोचने लगा कि ऐसा कौन हो सकता है, जो उसके भाई जैसा हो। हुसिफ भाग्यशाली है जो बादशाह उसे अपना भाई मानते हैं और उसे सारे ऐशो—आराम उपलब्ध करा दिए हैं। लेकिन बीरबल को हुसिफ की यह मांग जंची नहीं कि उसके पास भी बीरबल जैसा सलाहकार हो।
बादशाह बेहद सम्मान करते थे बीरबल का और बीरबल भी बादशाह पर जान छिड़कता था। लेकिन हुसिफ तो इस लायक कतई नहीं था। अब बीरबल सोच ही रहा था कि समस्या को हल कैसे किया जाए, तभी पास की पशु शाला से सांड़ के रंभाने की आवाज आई। बीरबल तुरंत खड़ा हो गया। आखिरकार उसे अपने भाई जैसा कोई मिल ही गया था।
अगले दिन उस सांड़ के साथ बीरबल महल में जाकर बादशाह अकबर के सामने खड़ा हो गया।
तुम अपने साथ इस सांड़ को लेकर यहां क्यों आए हो, बीरबल?' बादशाह अकबर ने पूछा।
यह मेरा भाई है, बादशाह सलामत। बीरबल बोला, श्हम दोनों एक ही मां का दूध पीकर बड़े हुए हैं। गऊ माता का दूध पीकर। इसलिए यह सांड़ मेरे भाई जैसा है दूध—भाई। यह बोलता भी बहुत कम है। जो इसकी भाषा समझ लेता है, उसे यह कीमती सलाह भी देता है। इसे हुसिफ को दे दें, मेरे जैसा सलाहकार पाने की उसकी इच्छा पूरी हो जाएगी।'
बीरबल का यह उत्तर सुनकर बादशाह अकबर को अपनी गलती का अहसास हुआ। तब उन्हें लगा कि जैसे उन जैसा कोई दूसरा नहीं, वैसे ही बीरबल भी एक ही है।
ऊंट की गर्दन
बादशाह अकबर बीरबल की हाजिर जवाबी के बडे कायल थे। एक दिन दरबार में खुश होकर उन्होंने बीरबल को कुछ पुरस्कार देने की घोषणा की, लेकिन बहुत दिन गुजरने के बाद भी बीरबल को धन राशि (पुरस्कार) प्राप्त नहीं हुई। बीरबल बड़ी ही उलझन में थे कि महाराज को याद दिलाएं तो कैसे?
एक दिन महाराजा अकबर यमुना नदी के किनारे शाम की सैर पर निकले। बीरबल उनके साथ था। बादशाह अकबर ने वहां एक ऊंट को घूमते देखा।
बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा— बीरबल बताओ, ऊंट की गर्दन मुड़ी क्यों होती है?
उन्होंने जवाब दिया— महाराज यह ऊंट किसी से वादा करके भूल गया है, जिसके कारण ऊंट की गर्दन मुड गई है।
महाराज, कहते हैं कि जो भी अपना वादा भूल जाता है तो भगवान उनकी गर्दन ऊंट की तरह मोड़ देता है। यह एक तरह की सजा है।
तभी बादशाह अकबर को ध्यान आता है कि वो भी तो बीरबल से किया अपना एक वादा भूल गए हैं। उन्होंने बीरबल से जल्दी से महल में चलने के लिए कहा और महल में पहुंचते ही सबसे पहले बीरबल को पुरस्कार की धनराशी उसे सौंप दी और बोले मेरी गर्दन तो ऊंट की तरह नहीं मुडेगी बीरबल।
...और यह कहकर बादशाह अकबर अपनी हंसी नहीं रोक पाए। ...और इस तरह बीरबल ने अपनी चतुराई से बिना मांगे अपना पुरस्कार राजा से प्राप्त किया।
पैसे की थैली किसकी
दरबार लगा हुआ था। बादशाह अकबर राज—काज देख रहे थे। तभी दरबान ने सूचना दी कि दो व्यक्ति अपने झगड़े का निपटारा करवाने के लिए आना चाहते हैं।
बादशाह ने दोनों को बुलवा लिया। दोनों दरबार में आ गए और बादशाह के सामने झुककर खड़े हो गए।
कहो क्या समस्या है तुम्हारी? बादशाह ने पूछा।
हुजूर मेरा नाम काशी है, मैं तेली हूं और तेल बेचने का धंधा करता हूं और हुजूर यह कसाई है।
इसने मेरी दुकान पर आकर तेल खरीदा और साथ में मेरी पैसों की भरी थैली भी ले गया। जब मैंने इसे पकड़ा और अपनी थैली मांगी तो यह उसे अपनी बताने लगा, हुजूर अब आप ही न्याय करें।'
जरूर न्याय होगा, अब तुम कहो तुम्हें क्या कहना है? बादशाह ने कसाई से कहा। श्हुजूर मेरा नाम रमजान है और मैं कसाई हूं, हुजूर, जब मैंने अपनी दुकान पर आज मांस की बिक्री के पैसे गिनकर थैली जैसे ही उठाई, यह तेली आ गया और मुझसे यह थैली छीन ली। अब उस पर अपना हक जमा रहा है, हुजूर, मुझ गरीब के पैसे वापस दिला दीजिए।'
दोनों की बातें सुनकर बादशाह सोच में पड़ गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह किसके हाथ फैसला दें। उन्होंने बीरबल से फैसला करने को कहा।
बीरबल ने उससे पैसों की थैली ले ली और दोनों को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया। बीरबल ने सेवक से एक कटोरे में पानी मंगवाया और उस थैली में से कुछ सिक्के निकालकर पानी में डाले और पानी को गौर से देखा। फिर बादशाह से कहा—हुजूर, इस पानी में सिक्के डालने से तेल जरा—सा भी अंश पानी में नहीं उभार रहा है। यदि यह सिक्के तेली के होते तो यकीनन उन पर सिक्कों पर तेल लगा होता और वह तेल पानी में भी दिखाई देता।'
बादशाह ने भी पानी में सिक्के डाले, पानी को गौर से देखा और फिर बीरबल की बात से सहमत हो गए।
बीरबल ने उन दोनों को दरबार में बुलाया और कहा—मुझे पता चल गया है कि यह थैली किसकी है। काशी, तुम झूठ बोल रहे हो, यह थैली रमजान कसाई की है।'
हुजूर यह थैली मेरी है। काशी एक बार फिर बोला।
बीरबल ने सिक्के डले पानी वाला कटोरा उसे दिखाते हुए कहा— श्यदि यह थैली तुम्हारी है तो इन सिक्कों पर कुछ—न—कुछ तेल अवश्य होना चाहिए, पर तुम भी देख लो३ तेल तो अंश मात्र भी नजर नहीं आ रहा है।'
काशी चुप हो गया।
बीरबल ने रमजान कसाई को उसकी थैली दे दी और काशी को कारागार में डलवा दिया।
बीरबल की पैनी दृष्टि
बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वह सदैव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन—दुखियों में बांट देते थे, परंतु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ—साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें।
ऐसे ही बादशाह अकबर ने दरबारियों के साथ मिलकर एक योजना बनाई कि देखें कि सच्चे दीन दुखियों की पहचान बीरबल को हो पाती है या नहीं। बादशाह ने अपने एक सैनिक को वेश बदलवा कर दीन—हीन अवस्था में बीरबल के पास भेजा कि अगर वह आर्थिक सहायता के रूप में बीरबल से कुछ ले आएगा, तो बादशाह अकबर की ओर से उसे इनाम मिलेगा।
एक दिन जब बीरबल पूजा—पाठ करके मंदिर से आ रहे थे तो भेष बदले हुए सैनिक ने बीरबल के सामने आकर कहा, हुजूर दीवान! मैं और मेरे आठ छोटे बच्चे हैं, जो आठ दिनों से भूखे हैं३। भगवान का कहना है कि भूखों को खाना खिलाना बहुत पुण्य का कार्य है, मुझे आशा है कि आप मुझे कुछ दान देकर अवश्य ही पुण्य कमाएंगे।
बीरबल ने उस आदमी को सिर से पांव तक देखा और एक क्षण में ही पहचान लिया कि वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखावा कर रहा है।
बीरबल मन ही मन मुस्कराए और बिना कुछ बोले ही उस रास्ते पर चल पडे़ जहां से होकर एक नदी पार करनी पड़ती थी। वह व्यक्ति भी बीरबल के पीछे—पीछे चलता रहा। बीरबल ने नदी पार करने के लिए जूती उतारकर हाथ में ले ली। उस व्यक्ति ने भी अपने पैर की फटी पुरानी जूती हाथ में लेने का प्रयास किया।
बीरबल नदी पार कर कंकरीले मार्ग आते ही दो—चार कदम चलने के बाद ही जूती पहन लेता। बीरबल यह बात भी गौर कर चुके थे कि नदी पार करते समय उसका पैर धुलने के कारण वह व्यक्ति और भी साफ—सुथरा, चिकना, मुलायम गोरी चमड़ी का दिखने लगा था इसलिए वह मुलायम पैरों से कंकरीले मार्ग पर नहीं चल सकता था।
दीवानजी! दीन ट्टहीन की पुकार आपने सुनी नहीं? पीछे आ रहे व्यक्ति ने कहा।
बीरबल बोले, जो मुझे पापी बनाए मैं उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूं?
क्या कहा? क्या आप मेरी सहायता करके पापी बन जांएगे?
हां, वह इसलिए कि शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे का जन्म होने से पहले ही भगवान उसके भोजन का प्रबंध करते हुए उसकी मां के स्तनों में दूध दे देता है, उसके लिए भोजन की व्यवस्था भी कर देता है। यह भी कहा जाता है कि भगवान इंसान को भूखा उठाता है पर भूखा सुलाता नहीं है।
इन सब बातों के बाद भी तुम अपने आपको आठ दिन से भूखा कह रहे हो। इन सब स्थितियों को देखते हुए यहीं समझना चाहिए कि भगवान तुमसे रूष्ट हैं और वह तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भूखा रखना चाहते हैं लेकिन मैं उसका सेवक हूं, अगर मैं तुम्हारा पेट भर दूं तो ईश्वर मुझ पर रूष्ट होगा ही। मैं ईश्वर के विरूद्ध नहीं जा सकता, न बाबा ना! मैं तुम्हें भोजन नहीं करा सकता, क्योंकि यह सब कोई पापी ही कर सकता है।
बीरबल का यह जबाब सुनकर वह चला गया।
उसने इस बात की बादशाह और दरबारियों को सूचना दी।
बादशाह अब यह समझ गए कि बीरबल ने उसकी चालाकी पकड़ ली है।
अगले दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा, बीरबल तुम्हारे धर्म—कर्म की बड़ी चर्चा है, पर तुमने कल एक भूखे को निराश ही लौटा दिया, क्यों?
आलमपनाह! मैंने किसी भूखे को नहीं, बल्कि एक ढोंगी को लौटा दिया था और मैं यह बात भी जान गया हूं कि वह ढोंगी आपके कहने पर मुझे बेवकूफ बनाने आया था।
बादशाह अकबर ने कहा, बीरबल! तुमने कैसे जाना कि यह वाकई भूखा न होकर, ढोंगी है?
उसके पैरों और पैरों की चप्पल देखकर। यह सच है कि उसने अच्छा भेष बनाया था, मगर उसके पैरों की चप्पल कीमती थी।
बीरबल ने आगे कहा, माना कि चप्पल उसे भीख में मिल सकती थी, पर उसके कोमल, मुलायम पैर तो भीख में नहीं मिले थे, इसलिए कंकड की गड़न सहन न कर सकें।
इतना कहकर बीरबल ने बताया कि किस प्रकार उसने उस मनुष्य की परीक्षा लेकर जान लिया कि उसे नंगे पैर चलने की भी आदत नहीं, वह दरिद्र नहीं बल्कि किसी अच्छे कुल का खाता कमाता पुरुष है।
बादशाह बोले, क्यों न हो, वह मेरा खास सैनिक है। फिर बहुत प्रसन्न होकर बोले, श्सचमुच बीरबल! माबदौलत तुमसे बहुत खुश हुए! तुम्हें धोखा देना आसान काम नहीं है।
बादशाह के साथ साजिश में शामिल हुए सभी दरबारियों के चेहरे बुझ गए।
बादशाह की पहेली
बादशाह अकबर को पहेली सुनाने और सुनने का काफी शौक था। कहने का मतलब यह कि पक्के पहेलीबाज थे।
वे दूसरों से पहेली सुनते और समय—समय पर अपनी पहेली भी लोगों को सुनाया करते थे। एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल को एक नई पहेली सुनाई, ऊपर ढक्कन नीचे ढक्कन, मध्य—मध्य खरबूजा। मौं छुरी से काटे आपहिं, अर्थ तासु नाहिं दूजा।
बीरबल ने ऐसी पहेली कभी नहीं सुनी थी। इसलिए वह चकरा गया। उस पहेली का अर्थ उसकी समझ में नहीं आ रहा था। अतरू प्रार्थना करते हुए बादशाह से बोला, जहांपनाह! अगर मुझे कुछ दिनों की मोहलत दी जाए तो मैं इसका अर्थ अच्छी तरह समझकर आपको बता सकूंगा। बादशाह ने उसका प्रस्ताव मंजूर कर लिया।
बीरबल अर्थ समझने के लिए वहां से चल पड़ा। वह एक गांव में पहुंचा। एक तो गर्मी के दिन, दूसरे रास्ते की थकन से परेशान व विवश होकर वह एक घर में घुस गया। घर के भीतर एक लड़की भोजन बना रही थी।
बेटी! क्या कर रही हो? उसने पूछा। लडकी ने उत्तर दिया, आप देख नहीं रहे हैं। मैं बेटी को पकाती और मां को जलाती हूं।
अच्छा, दो का हाल तो तुमने बता दिया, तीसरा तेरा बापू क्या कर रहा है और कहां है? बीरबल ने पूछा।
वह मिट्टी में मिट्टी मिला रहे हैं। लड़की ने जवाब दिया। इस जवाब को सुनकर बीरबल ने फिर पूछा, तेरी मां क्या कर रही है? एक को दो कर रही है। लड़की ने कहा।
बीरबल को लड़की से ऐसी आशा नहीं थी। परंतु वह ऐसी पंडित निकली कि उसके उत्तर से वह एकदम आश्चर्यचकित रह गया। इसी बीच उसके माता—पिता भी आ पहुंचे। बीरबल ने उनसे सारा समाचार कह सुनाया।
लडकी का पिता बोला, मेरी लड़की ने आपको ठीक उत्तर दिया है। अरहर की दाल अरहर की सूखी लकड़ी से पक रही है। मैं अपनी बिरादरी का एक मुर्दा जलाने गया था और मेरी पत्नी पडोस में मसूर की दाल दल रही थी।श् बीरबल लड़की की पहेली—भरी बातों से बड़ा खुश हुआ। उसने सोचा, शायद यहां बादशाह की पहेली का भेद खुल जाए, इसलिए लड़की के पिता से उपरोक्त पहेली का अर्थ पूछा।
यह तो बड़ी ही सरल पहेली है। इसका अर्थ मैं आपको बतलाता हूं— धरती और आकाश दो ढक्कन हैं। उनके अंदर निवास करने वाला मनुष्य खरबूजा है। वह उसी प्रकार मृत्यु आने पर मर जाता है, जैसे गर्मी से मोम पिघल जाती है। उस किसान ने कहा।
बीरबल उसकी ऐसी बुद्धिमानी देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे पुरस्कार देकर दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। वहां पहुंचकर बीरबल ने सभी के सामने बादशाह की पहेली का अर्थ बताया। बादशाह ने प्रसन्न होकर बीरबल को ढेर सारे इनाम दिए।
तोता ना खाता है ना पीता है...
एक बहेलिए को तोते में बडी ही दिलचस्पी थी। वह उन्हें पकड़ता, सिखाता और तोते के शौकीन लोगों को ऊंचे दामों में बेच देता था।
एक बार एक बहुत ही सुंदर तोता उसके हाथ लगा।
उसने उस तोते को अच्छी—अच्छी बातें सिखाईं, उसे तरह—तरह से बोलना सिखाया और उसे लेकर बादशाह अकबर के दरबार में पहुंच गया।
दरबार में बहेलिए ने तोते से पूछा— बताओ, यह किसका दरबार है?
तोता बोला— श्यह जहांपनाह बादशाह अकबर का दरबार है। सुनकर बादशाह अकबर बडे ही खुश हुए।
वह बहेलिए से बोले, श्हमें यह तोता चाहिए, बोलो इसकी क्या कीमत मांगते हो।
बहेलिया बोला— जहांपनाह, सबकुछ आपका है आप जो दें वही मुझे मंजूर है।
बादशाह अकबर को जवाब पसंद आया और उन्होंने बहेलिए को अच्छी कीमत देकर उससे तोते को खरीद लिया।
महाराजा बादशाह अकबर ने तोते के रहने के लिए बहुत खास इंतजाम किए। उन्होंने उस तोते को बहुत ही खास सुरक्षा के बीच रखा और रखवालों को हिदायत दी कि इस तोते को कुछ नहीं होना चाहिए।
यदि किसी ने भी मुझे इसकी मौत की खबर दी तो उसे फांसी पर लटका दिया जाएगा।
अब उस तोते का बडी ही ख्याल रखा जाने लगा। मगर विडंबना देखिए कि वह तोता कुछ ही दिनों बाद मर गया। अब उसकी सूचना महाराज को कौन दें?
रखवाले बडे परेशान थे। तभी उनमें से एक बोला कि बीरबल हमारी मदद कर सकता है और यह कहकर उसने बीरबल को सारा वृतांत सुनाया तथा उससे मदद मांगी।
बीरबल ने एक क्षण कुछ सोचा और फिर रखवाले से बोला— ठीक है! तुम घर जाओ, महाराज को सूचना मैं दूंगा।
बीरबल अगले दिन दरबार में पहुंचे और बादशाह अकबर से कहा, हुजूर आपका तोता
बादशाह अकबर ने पूछा— हां—हां क्या हुआ मेरे तोते को?
बीरबल ने फिर डरते—डरते कहा— आपका तोता जहांपनाह
हां—हां बोलो बीरबल क्या हुआ तोते को?
महाराज आपका तोता। बीरबल बोला।
अरे खुदा के लिए कुछ तो कहो बीरबल मेरे तोते को क्या हुआ, बादशाह अकबर ने खीजते हुए कहा।
जहांपनाह, आपका तोता ना तो कुछ खाता है ना कुछ पीता है, ना कुछ बोलता है ना अपने पंख फडफडाता है, ना आंखें खोलता है और ना ही३श् राजा ने गुस्से में कहा— अरे सीधा—सीधा क्यों नहीं बोलते की वो मर गया है।
बीरबल तपाक से बोला— श्हुजूर, मैंने मौत की खबर नहीं दी बल्कि ऐसा आपने कहा है, मेरी जान बख्शी जाए।
...और महाराज निरूत्तर हो गए।
मैं आपका नौकर हूं, बैंगन का नही
एक दिन बादशाह अकबर और बीरबल महल के बागों में सैर कर रहे थे। फले—फूले बाग को देखकर बादशाह अकबर बहुत खुश थे। वे बीरबल से बोले, श्बीरबल, देखो यह बैंगन, कितनी सुंदर लग रहे हैं!श् इनकी सब्जी कितनी स्वादिष्ट लगती है!
बीरबल, मुझे बैंगन बहुत पसंद हैं।
हां! महाराज, आप सत्य कहते हैं। यह बैंगन है ही ऐसी सब्जी, जो ना सिर्फ देखने में ब्लकि खाने में भी इसका कोई मुकाबला नहीं है। और देखिए महाराज भगवान ने भी इसीलिए इसके सिर पर ताज बनाया है। बादशाह अकबर यह सुनकर बहुत खुश हुआ।
कुछ हफ्तों बाद बादशाह अकबर और बीरबल उसी बाग में घूम रहे थे। बादशाह अकबर को कुछ याद आया और मुस्कुराते हुए बोले, श्बीरबल देखो यह बैंगन कितना भद्दा और बदसूरत है और यह खाने में भी बहुत बेस्वाद है।
हां हुजूर! आप सही कह रहे हैं बीरबल बोला। इसीलिए इसका नाम बे—गुण है बीरबल ने चतुराई से नाम को बदलते हुए कहा।
यह सुनकर बादशाह अकबर को गुस्सा आ गया। उन्होंने झल्लाते हुए कहा, क्या मतलब है बीरबल?
मैं जो भी बात कहता हूं तुम उसे ही ठीक बताते हो। बैंगन के बारे में तुम्हारी दोनों ही बातें सच कैसे हो सकती हैं, क्या तुम मुझे समझाओगे?
बीरबल ने हाथ जोडते हुए कहा, हुजूर, मैं आपका नौकर हूं बैंगन का नहीं।
बादशाह अकबर यह जवाब सुनकर बहुत खुश हुए और बीरबल की तरफ पीठ करके मुस्कुराने लगे।
हरा घोड़ा
एक दिन बादशाह अकबर घोड़े पर बैठकर शाही बाग में घूमने गए। साथ में बीरबल भी था।
चारों ओर हरे—भरे वृक्ष और हरी—हरी घास देखकर बादशाह अकबर को बहुत आनंद आया।
उन्हें लगा कि बगीचे में सैर करने के लिए तो घोड़ा भी हरे रंग का ही होना चाहिए।
उन्होंने बीरबल से कहा, श्बीरबल मुझे हरे रंग का घोड़ा चाहिए। तुम मुझे सात दिन में हरे रंग का घोड़ा ला दो। यदि तुम हरे रंग का घोड़ा न ला सके तो हमें अपनी शक्ल मत दिखाना।
हरे रंग का घोड़ा तो होता ही नहीं है। बादशाह अकबर और बीरबल दोनों को यह मालूम था। लेकिन बादशाह अकबर को तो बीरबल की परीक्षा लेनी थी।
दरअसल, इस प्रकार के अटपटे सवाल करके वे चाहते थे कि बीरबल अपनी हार स्वीकार कर लें और कहें कि जहांपनाह मैं हार गया, मगर बीरबल भी अपने जैसे एक ही थे। बीरबल के हर सवाल का सटीक उत्तर देते थे कि बादशाह अकबर को मुंह की खानी पड़ती थी।
बीरबल हरे रंग के छोड़ की खोज के बहाने सात दिन तक इधर—उधर घूमते रहे। आठवें दिन वे दरबार में हाजिर हुए और बादशाह से बोले, श्जहांपनाह! मुझे हरे रंग का घोड़ा मिल गया है।
बादशाह को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, श्जल्दी बताओ, कहां है हरा घोड़ा?
दरबार में उपस्थित होकर बीरबल ने बादशाह के सामने क्या शर्त रखी...
बीरबल ने कहा, श्जहांपनाह! घोड़ा तो आपको मिल जाएगा, मैंने बड़ी मुश्किल से उसे खोजा है, मगर उसके मालिक ने दो शर्त रखी हैं।
पहली शर्त तो यह है कि घोड़ा लेने के लिए आपको स्वयं जाना होगा।
यह तो बड़ी आसान शर्त है। दूसरी शर्त क्या है ?
घोड़ा खास रंग का है, इसलिए उसे लाने का दिन भी खास ही होगा। उसका मालिक कहता है कि सप्ताह के सात दिनों के अलावा किसी भी दिन आकर उसे ले जाओ।
बादशाह अकबर बीरबल का मुंह देखते रह गए।
बीरबल ने हंसते हुए कहा, श्जहांपनाह! हरे रंग का घोड़ा लाना हो, तो उसकी शतेर्ं भी माननी ही पड़ेगी।
बादशाह अकबर खिलखिला कर हंस पड़े। बीरबल की चतुराई से वह खुश हुए। समझ गए कि बीरबल को मूर्ख बनाना सरल नहीं है।
रेत और चीनी
बादशाह अकबर के दरबार की कार्यवाही चल रही थे, तभी एक दरबारी हाथ में शीशे का एक मर्तबान लिए वहां आया। बादशाह ने पूछा— क्या है इस मर्तबान में?
दरबारी बोला— इसमें रेत और चीनी का मिश्रण है।
वह किसलिए — फिर पूछा बादशाह अकबर ने।
माफी चाहता हूं हुजूर — दरबारी बोला। हम बीरबल की काबिलियत को परखना चाहते हैं, हम चाहते हैं की वह रेत से चीनी का दाना—दाना अलग कर दे।
बादशाह अब बीरबल से मुखातिब हुए, — देख लो बीरबल, रोज ही तुम्हारे सामने एक नई समस्या रख दी जाती है, अब तुम्हे बिना पानी में घोले इस रेत में से चीनी को अलग करना है।
कोई समस्या नहीं जहांपनाह — बीरबल बोले। यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है, कहकर बीरबल ने मर्तबान उठाया और चल दिया दरबार से बाहर!
बीरबल बाग में पहुंचकर रुका और मर्तबान में भरा सारा मिश्रण आम के एक बड़े पेड़ के चारों और बिखेर दिया— यह तुम क्या कर रहे हो? — एक दरबारी ने पूछा
बीरबल बोले, — यह तुम्हे कल पता चलेगा।
अगले दिन फिर वे सभी उस आम के पेड़ के नीचे जा पहुंचे, वहां अब केवल रेत पड़ी थी, चीनी के सारे दाने चीटियां बटोर कर अपने बिलों में पहुंचा चुकी थीं, कुछ चीटियां तो अभी भी चीनी के दाने घसीट कर ले जाती दिखाई दे रही थीं!
लेकिन सारी चीनी कहां चली गई? दरबारी ने पूछा
श्रेत से अलग हो गईश् — बीरबल ने कहा।
सभी जोर से हंस पड़ें,
बादशाह ने दरबारी से कहा कि अब तुम्हें चीनी चाहिए तो चीटियों के बिल में घुसों।
सभी ने जोर का ठहाका लगाया और बीरबल की अक्ल की दाद दी।
सबसे बड़ी चीज
एक दिन बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं थे। ऐसे में बीरबल से जलने वाले सभी सभासद बीरबल के खिलाफ बादशाह अकबर के कान भर रहे थे। अक्सर ऐसा ही होता था, जब भी बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं होते थे, तभी दरबारियों को मौका मिल जाता था। आज भी ऐसा ही मौका था।
बादशाह के साले मुल्ला दो प्याजा की शह पाए कुछ सभासदों ने कहा —जहांपनाह! आप वास्तव में बीरबल को आवश्यकता से अधिक मान देते हैं, हम लोगों से ज्यादा उन्हें चाहते हैं। आपने उन्हें बहुत सिर चढ़ा रखा है। जबकि जो काम वे करते हैं, वह हम भी कर सकते हैं। मगर आप हमें मौका ही नहीं देते।'
बादशाह को बीरबल की बुराई अच्छी नहीं लगती थी, अतः उन्होंने उन चारों की परीक्षा ली— श्देखो, आज बीरबल तो यहां हैं नहीं और मुझे अपने एक सवाल का जवाब चाहिए। यदि तुम लोगों ने मेरे प्रश्न का सही—सही जवाब नहीं दिया तो मैं तुम चारों को फांसी पर चढ़वा दूंगा।श् बादशाह की बात सुनकर वे चारों घबरा गए।
उनमें से एक ने हिम्मत करके कहा— प्रश्न बताइए बादशाह सलामत? संसार में सबसे बड़ी चीज क्या है?.... और अच्छी तरह सोच—समझ कर जवाब देना वरना मैं कह चुका हूं कि तुम लोगों को फांसी पर चढ़वा दिया जाएगा। बादशाह अकबर ने कहा—अटपटे जवाब हरगिज नहीं चलेंगे। जवाब एक हो और बिलकुल सही हो। बादशाह सलामत? हमें कुछ दिनों की मोहलत दी जाए। उन्होंने सलाह करके कहा। श्ठीक है, तुम लोगों को एक सप्ताह का समय देता हूं। बादशाह ने कहा।
चारों दरबारी चले गए और दरबार से बाहर आकर सोचने लगे कि सबसे बड़ी चीज क्या हो सकती है? एक दरबारी बोला— श्मेरी राय में तो अल्लाह से बड़ा कोई नहीं।' अल्लाह कोई चीज नहीं है। कोई दूसरा उत्तर सोचो। — दूसरा बोला। श्सबसे बड़ी चीज है भूख जो आदमी से कुछ भी करवा देती है। — तीसरे ने कहा। नहीं नहीं, भूख भी बर्दाश्त की जा सकती है।' फिर क्या है सबसे बड़ी चीज? छः दिन बीत गए लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं सूझा।
हार कर वे चारों बीरबल के पास पहुंचे और उसे पूरी घटना कह सुनाई, साथ ही हाथ जोड़कर विनती की कि प्रश्न का उत्तर बता दें।
बीरबल ने मुस्कराकर कहा— मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है।
हमें आपकी हजार शतेर्ं मंजूर हैं। चारों ने एक स्वर में कहा— श्बस आप हमें इस प्रश्न का उत्तर बताकर हमारी जान बख्शी करवाएं।
श्बताइए आपकी क्या शर्त है? तुममें से दो अपने कंधों पर मेरी चारपाई रखकर दरबार तक ले चलोगे। एक मेरा हुक्का पकड़ेगा, एक मेरे जूते लेकर चलेगा। बीरबल ने अपनी शर्त बताते हुए कहा। यह सुनते ही वे चारों सन्नाटे में आ गए। उन्हें लगा मानो बीरबल ने उनके गाल पर कस कर तमाचा मार दिया हो। मगर वे कुछ बोले नहीं। अगर मौत का खौफ न होता तो वे बीरबल को मुंहतोड़ जवाब देते, मगर इस समय मजबूर थे, अतः तुरंत राजी हो गए।
दो ने अपने कंधों पर बीरबल की चारपाई उठाई, तीसरे ने उनका हुक्का और चौथा जूते लेकर चल दिया। रास्ते में लोग आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे। दरबार में बादशाह ने भी यह मंजर देखा और वह मौजूद दरबारियों ने भी। कोई कुछ न समझ सका। तभी बीरबल बोले— महाराज? दुनिया में सबसे बड़ी चीज है — गरज। अपनी गरज से यह पालकी यहां तक उठाकर लाए हैं। बादशाह मुस्कराकर रह गए। वे चारों सिर झुकाकर एक ओर खड़े हो गए।