Dwaraavati - 85 book and story is written by Vrajesh Shashikant Dave in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Dwaraavati - 85 is also popular in Classic Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
द्वारावती - 85
Vrajesh Shashikant Dave
द्वारा
हिंदी क्लासिक कहानियां
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विवरण
85“सब व्यर्थ। प्रकृति पर मानव का यह कैसा आक्रमण? हम उसे उसकी नैसर्गिक अवस्था में भी नहीं रहने देते हैं। ऐसा करने का अधिकार हमें किसने दिया?” केशव बोले जा रहा था।उत्सव ने उसे रोका, “कुछ कहोगे कि क्या हुआ? यूँ ही बोले जा रहे हो।”“प्रशासन अंधा, बहेरा होता है ऐसा सुना था। किंतु असंवेदनशील भी होता है यह देख लिया।”“अर्थात् वह समुद्र की मुक्ति हेतु सम्मत नहीं हैं। यही ना, केशव?”“हाँ, गुल। हाँ, उत्सव। समुद्र की निर्बाधता को बांध दिया है और उसके लिए उनके पास असंख्य कारण है।”“असंख्य? इन कारणों में कोई तथ्य, कोई तर्क भी है क्या?”“तर्क?”
उस क्षण जो उद्विग्न मन से भरे थे उस में एक था अरबी समुद्र, दूसरा था पिछली रात्रि का चन्द्र और तीसरा था एक युवक।
समुद्र इतना अशांत था कि वह अपने अस्...
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