Ravi ki Laharen - 17 book and story is written by Sureshbabu Mishra in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ravi ki Laharen - 17 is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
रावी की लहरें - भाग 17
Sureshbabu Mishra
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
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विवरण
बाबा सन्ता सिंह सतलज नदी धीमी चाल से बह रही थी । उसके दोनों किनारों पर दूर-दूर तक रेत फैली हुई थी। वैसाख की तेज दोपहरी में रेत के कण चांदी के समान चमक रहे थे। चारों ओर तेज धूप फैली हुई थी, इसलिए दूर-दूर तक कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा था। झुलसा देने वाली गर्म लू चल रही थी । तभी दूर कहीं से किसी गाने की आवाज सुनाई पड़ी | आवाज़ धीरे - धीरे पास आती गई। यह आवाज़ सन्तासिंह की थी । सन्तासिंह तन्मय होकर भजन गा रहे थे। सन्तासिंह को आस-पास के गाँवों का
‘जीवन संघर्ष और उत्कट जिजीविषा से जुडी हैं संग्रह की कहानियां’
मानव जीवन और उसके कार्य व्यवहार सदा ही अनंत कौतुक - कौतूहलों व जिज्ञासाओं का केंद्र...
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