Shakunpankhi - 5 book and story is written by Dr. Suryapal Singh in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Shakunpankhi - 5 is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
शाकुनपाॅंखी - 5 - शाकुनपाँखी नहीं हूँ मैं
Dr. Suryapal Singh
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
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विवरण
7. शाकुनपाँखी नहीं हूँ मैं 'महाराज की दृष्टि बचाकर कार्य करना कितना दुष्कर है?' महिषी शुभा टहलती हुई सोच रही हैं। अलिन्द के सामने पाटल पुष्प एक दूसरे को धकिया रहे हैं । 'फूलों की तरह सूचनाओं में गन्ध होती है क्या? सूचनाओं के लिए गुप्तचर न जाने किन वेषों एवं कठिनाइयों के बीच कार्य करते हैं?' वे एक पुष्प तोड़ती रह गईं। महिषी का सौन्दर्य चर्चा में रहता ही था, अब संयुक्ता की चर्चा अपनी पेंगें बढ़ा रही है । गली- वीथिकाओं में लोग माँ-बेटी के सौन्दर्य की गर्मागरम किंवदन्तियाँ परोसते । अकलुष सौन्दर्य की अबूझ पहेलियाँ कही जातीं
यह इक्कीसवीं शती का प्रारंभ है। पूर्व और पश्चिम की विकास यात्रा में नव उदारीकरण की लहलहाती फसल के बीच इंच इंच घिसटती मानवता । उद्यमिता के नए प्रारूपों...
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