Darshinek Drashti - 8 book and story is written by आचार्य. जिज्ञासु चौहान in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Darshinek Drashti - 8 is also popular in Philosophy in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
दार्शनिक दृष्टि - भाग -8 - समुद्रमंथन भाग ३ (समुद्रमंथन का अंतिम भाग)
बिट्टू श्री दार्शनिक
द्वारा
हिंदी मनोविज्ञान
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विवरण
दोस्तों ! हमने आगे के भाग में देखा की संसाधनों का भी व्यय होता है। फिर चाहे वह मानव संसाधन हो, धन हो, समय हो अथवा किसी वस्तु विशेष का हो।दोस्तों,जब किसी कार्य के लिए लोग एक साथ इकठ्ठा हो जाते है, तब वे हमेशा ही अपने अपने मत रखते है और कार्य के अमल में देर होती है। फिर जब वे जुड़ने को तैयार हो जाते है तब अपने अपने फायदे का हमेशा ही पूछते है। यह स्वाभाविक भी है।कथा के अनुसार समुद्रमंथन के वक्त भी यह बात अवश्य हुई भी थी। कई सारे लोग दोस्तों ! हमने आगे
देखा ही है की, हर लड़का कितना भी ज्ञान प्राप्त करके सफलता को प्राप्त नहीं हो पाता। कितनी भी सावधानी बरतने के बाद भी वह सफल नहीं हो पाता। यहां तक की अत...
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