स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी... (19) Anandvardhan Ojha द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें बाल कथाएँ किताबें स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी... (19) स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी... (19) Anandvardhan Ojha द्वारा हिंदी बाल कथाएँ 186 863 स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी (19)'शब्द-सहयोग की अनवरत कथा...'पूज्य पिताजी को दिन-रात लिखते-पढ़ते देखकर मैं बड़ा हुआ। मन में आता था कि उन्हीं की तरह कवि-लेखक बनूंगा। बाल्यकाल में इतना खिलंदड़ था कि लिखने-पढ़ने की राह पर ...और पढ़ेधरता ही नहीं था। पिताजी पढ़ने-सिखाने को बुलाते तो जाना तो पड़ता, लेकिन थोड़ी ही देर में मेरे पूरे शरीर पर लाल चींटियाँ रेंगने लगतीं। पिताजी मेरी ऐंठन देखते तो मुझे मुक्ति दे देते। मैं बड़ी प्रसन्नता से भाग खड़ा होता। लेकिन किशोरावस्था तक आते-आते वृत्तियों ने राह बदली। जब आठवीं कक्षा में था, विद्यालय पत्रिका के लिए पहली छंदोबद्ध कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें स्वप्न हो गये बचपन के दिन भी... - उपन्यास Anandvardhan Ojha द्वारा हिंदी - बाल कथाएँ (90) 10.3k 22k Free Novels by Anandvardhan Ojha अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ Anandvardhan Ojha फॉलो