तृषा और तृप्ति की गहरी दोस्ती की कहानी है। तृषा के फोन पर तृप्ति जल्दी से मिलने के लिए निकल पड़ती है। कॉलेज में उनकी पहली मुलाकात से लेकर उनके बीच की दोस्ती का सफर, सागर के आने से और भी गहरा हो जाता है। सागर के प्रति तृप्ति की आकर्षण और तृषा की चिंता के बीच का संतुलन कहानी को आगे बढ़ाता है। तृषा तृप्ति को सलाह देती है कि वह अपने रिश्ते को सोच-समझकर आगे बढ़ाए, लेकिन तृप्ति अपनी भावनाओं में खोई रहती है और तृषा की बातों को नजरअंदाज कर देती है। कहानी दोस्ती, प्यार और रिश्तों की जटिलताओं को दर्शाती है।
मीत न मिला रे मन का
Dr. Vandana Gupta
द्वारा
हिंदी मनोविज्ञान
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विवरण
"सुन जल्दी से आजा, कोई खास मेहमान आए हैं.." तृषा का फोन आया और मैं दस मिनट में गाड़ी में थी. मुझे तैयार होने में कम से कम बीस मिनट लगते हैं, किन्तु तृषा के शब्दों से झाँकती खुशी मुझे मेकअप का समय भी नहीं दे रही थी. मेरे और उसके घर में आधे घण्टे की दूरी है... किन्तु दिल में सेकंड के हजारवें हिस्से जितनी भी नहीं. इस आधे घण्टे के सफर में मेरा दिल कितने ही बीते सालों की यात्रा पर चल पड़ा...."हेलो! आई एम तृषा..." कॉलेज के पहले दिन उसने परिचय के
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