अल्हड़ Mukteshwar Prasad Singh द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें कविता किताबें अल्हड़ अल्हड़ Mukteshwar Prasad Singh द्वारा हिंदी कविता 408 1.2k तेज छिटकती बिजलीबादलों की गडगडाहटहवा के झूले पर डोलतीवारिस की बूंदें आ बैठती हैचेहरे पर।जलकणों से भीगता रोम रोम और सांसेंउतावली।बार बार तेज चमक से चौंकचुंधियाती आंखें मूंद जाती हैं बरबसमूंदी आंखों के झरोखों में सज गयी हैंवरषों की ...और पढ़ेजो ढंकी थी अरसों सेजलबूंदों से सिंचित सजीव हो गयी हैं।फैलने लगे हैं हाथछूने को बिछरे हाथ।भींगी रात की गहराई से झांकतीउमंगों भरी हंसीमचल जाता है बाहों में समाने कोबावली।2जीवन जागरणनित पूरब से पश्चिम तक आता जाता सूरज,मानव को जगा जगा कर उर्जा देता सूरज ,सदियों से प्रभात जागरण दुहराता है।जीवन में भरने उल्लास निस दिन आता है ।रे मनुष्य कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी सुनो मोबाईल पर डाऊनलोड करें अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ Mukteshwar Prasad Singh फॉलो