गजल - वतन पर मिटने का अरमान डॉ अनामिकासिन्हा द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें कविता किताबें गजल - वतन पर मिटने का अरमान गजल - वतन पर मिटने का अरमान डॉ अनामिकासिन्हा द्वारा हिंदी कविता (13) 433 2.5k " गरीब हूँ साहब" **************************"भीगे हुए अरमान आज रोने को है|मत रोको गरीबी को, पेट के बल भूखा मानव अब सोने को है"||"वक्त गुजर गए इंसान फरिश्ता न बन सका|रिश्ता खो गया कहीं, इंसानियत ताख पर ...और पढ़े आज भी हम चना चबेना खाकर, रात गुजार लेते हैंपलीते तो आजादी के बाद भी पीछा न छोड़ सके|| वतन पर मिटने का अरमान ************************हम देश के हैंशान, हमारी आन, हमारी बान,देश की माटी पर सब कुछ है कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी सुनो मोबाईल पर डाऊनलोड करें अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ डॉ अनामिकासिन्हा फॉलो