इस कहानी में रमेश, जो ताई जी के घर से लौटता है, अपने गुस्से को खो देता है और गाँव की स्थिति के बारे में सोचने लगता है। वह महसूस करता है कि गाँव के लोग अपनी ignorance में एक-दूसरे से लड़ते हैं और अपने भले-बुरे की पहचान नहीं कर पाते। रमेश की उम्मीदें, जो उसने किताबों में पढ़ी थीं, गाँव में आकर टूट जाती हैं। उसे गाँव में आपसी द्वेष और वैमनस्य का सामना करना पड़ता है, जो शहरों में कम दिखाई देता है। वह सोचता है कि लोग अपने धर्म और समाज के विकृत स्वरूप को सुंदर मानते हैं और शहर के धर्म को निकृष्ट समझते हैं। जब वह अपने आँगन में प्रवेश करता है, तो वह एक अधेड़ महिला और एक छोटे लड़के को देखता है, जो सहमे हुए हैं। गोपाल सरकार उसे बताते हैं कि महिला विनती करने आई है, जिससे रमेश को लगता है कि यह भिक्षा मांगने का मामला है। इससे वह फिर से गुस्सा हो जाता है और सवाल करता है कि क्या गाँव में कोई और दानी नहीं है। कहानी गाँव के सामाजिक ढांचे और मानवीय संबंधों की जटिलताओं को उजागर करती है, जहाँ रमेश की धारणाएँ और वास्तविकता में बड़ा अंतर है। देहाती समाज - 9 Sarat Chandra Chattopadhyay द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी 4.8k 3.8k Downloads 13.4k Views Writen by Sarat Chandra Chattopadhyay Category फिक्शन कहानी पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण ताई जी के घर से लौटते-लौटते रमेश का सारा गुस्सा पानी हो गया। वह अपने मन में सोचने लगा - कितनी आसान बात थी! आखिर मैं गुस्सा करूँ भी, तो किस पर करूँ? जो अपनी जहालत में अपना-पराया, अपनी भलाई-बुराई का भी ज्ञान नहीं कर सकते, जो भलाई में बुराई का संशय करते हैं, जो अपने घरवाले, अपने पड़ोसी से ही लड़ने में अपनी बहादुरी समझते हैं, चाहे बाहरवाले के सामने भीगी बिल्ली ही बने रहें - और यह वे जान-बूझ कर नहीं करते, बल्कि उनका ऐसा स्वभाव ही बन गया है, तो फिर ऐसे लोगों पर भी क्या गुस्सा होना! किताबों में कितना गलत वर्णन होता है - गाँव की स्वच्छता का, आपसी भाईचारे का! पड़ोसी का दुख देख कर पड़ोसी दौड़ आता है, इस तरह से उसकी सहायता में तत्पर रहता है किसी के घर में खुशी होती है तो सारा गाँव खुशी में फूला नहीं समाता। पर उसने जो कुछ किताबों में पढ़ा था, उसका नितांत उलटा पाया इन गाँवों में! जितना आपसी द्वेष-वैमनस्य गाँवों में उसे मिला, उतना शहरों में नहीं। इन्हीं सारी बातों को सोच-सोच, उनका सारा शरीर अजीब सिहरन से भर उठा। Novels देहाती समाज बाबू वेणी घोषाल ने मुखर्जी बाबू के घर में पैर रखा ही था कि उन्हें एक स्त्री दीख पड़ी, पूजा में निमग्न। उसकी आयु थी, यही आधी के करीब। वेणी बाबू ने उन्ह... More Likes This उजाले की राह द्वारा Mayank Bhatnagar Operation Mirror - 3 द्वारा bhagwat singh naruka DARK RVENGE OF BODYGARD - 1 द्वारा Anipayadav वाह साहब ! - 1 द्वारा Yogesh patil मेनका - भाग 1 द्वारा Raj Phulware बेवफाई की सजा - 1 द्वारा S Sinha RAJA KI AATMA - 1 द्वारा NOMAN अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी