इस कहानी में एक शादी की तैयारी चल रही है, जब अचानक शाहजादा हुमायूँ फर दरिया की सैर पर जाते हैं और एक तूफान में उनकी किश्ती डूब जाती है। उनकी माँ और बहनें इस दुखद घटना से गहरे सदमे में हैं, क्योंकि वे अभी कल की खुशियों को जश्न मना रहे थे। घर में मातम छा जाता है और सभी लोग हुमायूँ फर की मौत पर रोते हैं। इस बीच, बड़ी बेगम को जब इस घटना की खबर मिलती है, तो वे अपनी बेटियों को बाग में टहलने के लिए भेज देती हैं ताकि कोई और इस दुखद समाचार को न सुने। कहानी में भावनात्मक टकराव और मातम की गहराई को दर्शाया गया है।
आजाद-कथा - खंड 2 - 84
Munshi Premchand
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
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विवरण
इधर बड़ी बेगम के यहाँ शादी की तैयारियाँ हो रही थीं, डोमिनियों का गाना हो रहा था। उधर शाहजादा हुमायूँ फर एक दिन दरिया की सैर करने गए। घटा छाई हुई थी। हवा जोरों के साथ चल रही थी। शाम होते-होते आँधी आ गई और किश्ती दरिया में चक्कर खा कर डूब गई। मल्लाह ने किश्ती के बचाने की बहुत कोशिश की, मगर मौत से किसी का क्या बस चलता है। घर पर यह खबर आई तो कुहराम मच गया। अभी कल की बात है कि दरवाज पर भाँड़ मुबारकबाद गा रहे थे, आज बैन हो रहा है, कल हुमायूँ फर जामे में फूले नहीं समाते थे कि दूल्हा बनेंगे, आज दरिया में गोते खाते हैं। किसी तरफ से आवाज आती है - हाय मेरे बच्चे! कोई कहता है - हैं, मेरे लाला को क्या हुआ! रोने वाला घर भर और समझाने वाला कोई नहीं।
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