आजाद-कथा का यह अंश मुहर्रम के दौरान लखनऊ में हो रहे मातम की जीवंत तस्वीर पेश करता है। आजाद, जो नवाब साहब के दरबार से लौट चुके हैं, अपने दोस्त के साथ लखनऊ की गलियों में निकलते हैं। पूरे शहर में हुसेन का मातम मनाया जा रहा है, जहाँ हर घर में कुहराम मचा हुआ है। मजलिसों, ताजिया-खानों और इमामबाड़ों में भारी भीड़ है, जो इस पर्व की महत्ता को दर्शाती है। लोगों की सज-धज, मातमी पोशाक और उत्साह भरी भीड़ को देखकर आजाद और उनके दोस्त लखनऊ के मुहर्रम की भव्यता को महसूस करते हैं। उन्हें याद आता है कि पहले के दिन किस प्रकार की चहल-पहल होती थी, लेकिन अब यह सब कुछ बदल गया है। शहर की ताजियादारी का वर्णन करते हुए, लेखक ने उस समय की सांस्कृतिक समृद्धि और मौजूदा स्थिति के बीच के अंतर को उजागर किया है। राजनीतिक और सामाजिक बदलावों के कारण, आज की ताजियादारी पहले जैसी नहीं रही। यह कहानी आजाद के अनुभव और लखनऊ के मुहर्रम के भव्य उत्सव को दर्शाती है, जो अब केवल यादों में रह गया है। आजाद-कथा - खंड 1 - 9 Munshi Premchand द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी 2.2k Downloads 6.1k Views Writen by Munshi Premchand Category फिक्शन कहानी पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण आजाद को नवाब साहब के दरबार से चले महीनों गुजर गए, यहाँ तक कि मुहर्रम आ गया। घर से निकले, तो देखते क्या हैं, घर-घर कुहराम मचा हुआ है, सारा शहर हुसेन का मातम मना रहा है। जिधर देखिए, तमाशाइयों की भीड़, मजलिसों की धूम, ताजिया-खानों में चहल-पहल और इमामबाड़ों में भीड़-भाड़ है। लखनऊ की मजलिसों का क्या कहना! यहाँ के मर्सिये पढ़नेवाले रूम और शाम तक मशहूर हैं। हुसेनाबाद का इमामबाड़ा चौदहवीं रात का चाँद बना हुआ था। उनके साथ एक दोस्त भी हो लिए थे। उनकी बेकरारी का हाल न पूछिए। वह लखनऊ से वाकिफ न थे, लोटे जाते थे कि हमें लखनऊ का मुहर्रम दिखा दो मगर कोई जगह छूटने न पाए। एक आदमी ने ठंडी साँस खींच कर कहा - मियाँ अब वह लखनऊ कहाँ? वे लोग कहाँ? वे दिन कहाँ? लखनऊ का मुहर्रम रंगीले पिया जान आलम के वक्त में अलबत्ता देखने काबिल था। Novels आजाद-कथा - खंड 1 मियाँ आजाद के बारे में, हम इतना ही जानते हैं कि वह आजाद थे। उनके खानदान का पता नहीं, गाँव-घर का पता नहीं खयाल आजाद, रंग-ढंग आजाद, लिबास आजाद दिल आजाद... More Likes This गड़बड़ - चैप्टर 2 द्वारा Maya Hanchate इश्क़ बेनाम - 1 द्वारा अशोक असफल शोहरत की कीमत - 1 द्वारा बैरागी दिलीप दास रंग है रवाभाई ! द्वारा Chaudhary Viral बाजी किस ने प्यार की जीती या हारी - 1 द्वारा S Sinha समुंद्र के उस पार - 1 द्वारा Neha kariyaal जग्या लॉस्ट हिज़ वीरा - भाग 2 द्वारा Jagmal Dhanda अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी