इस कहानी में संत और जनसेवक के बीच जाति और पहचान का संवाद है। जनसेवक एक साधु से मिलने जाता है और साधु से उसकी जाति जानना चाहता है। साधु का चेहरा अस्पष्ट है, लेकिन उसका तेज जनसेवक को प्रभावित करता है। जनसेवक कहता है कि साधु की पहचान उसकी जाति से होती है, जबकि साधु उसे कबीर के दोहे का संदर्भ देते हुए जाति न पूछने की सलाह देते हैं। जनसेवक बताता है कि आजकल चुनावी राजनीति में जाति की पहचान महत्वपूर्ण है, और वह साधु की जाति जानकर अपने चुनावी क्षेत्र में सफलता की उम्मीद करता है। साधु समझाते हैं कि जाति का बंधन महत्वपूर्ण होता है, और यदि जनसेवक उनकी जाति जान लेता है, तो उसकी राजनीतिक स्थिति में सुधार हो सकता है। कहानी जाति, पहचान और राजनीति के जटिल संबंधों को उजागर करती है।
Jati hi Puchho Sadhu ki
Prem Janmejay द्वारा हिंदी हास्य कथाएं
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Jati hi Puchho Sadhu ki
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