कविता "जो मेरा पता जानते" में सुशील यादव अपने अस्तित्व और पहचान की खोज करते हैं। वे अपने आस-पास के लोगों की मनोवृत्तियों का जिक्र करते हैं, जो उन्हें समझने और पहचानने की कोशिश करते हैं। कवि जीवन की जटिलताओं और संघर्षों को बयां करते हैं, यह बताते हुए कि वे किस तरह से अपने अनुभवों से सीखते हैं और अपनी पहचान को बनाए रखते हैं। दूसरी कविता "हिल गई दीवार" में भी कवि अपने अनुभवों का जिक्र करते हैं, जिसमें वे समाज की सीमाओं और बंधनों को चुनौती देते हैं। यह कविता उनके आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता के विचारों को उजागर करती है। कुल मिलाकर, दोनों कविताएँ पहचान, संघर्ष और आत्म-समर्पण के विषयों पर आधारित हैं। खून के घूट sushil yadav द्वारा हिंदी कविता 2.5k Downloads 7.8k Views Writen by sushil yadav Category कविता पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण नीद में ,ख्वाब में जो समाया रहा बरसो एक अजनबी, दिल- दिमाग छाया रहा बरसो लोग घर को सजाने नही क्या-क्या करते वो मुस्कान लिए घर को सजाया रहा बरसो खामुशी का सबब था यकीनन यही इतना एक मर्ज समझ उसको , छुपाया रहा बरसों More Likes This जिंदगी संघर्ष से सुकून तक कविताएं - 1 द्वारा Kuldeep Singh पर्यावरण पर गीत – हरा-भरा रखो ये जग सारा द्वारा Poonam Kumari My Shayari Book - 2 द्वारा Roshan baiplawat मेरे शब्द ( संग्रह ) द्वारा Apurv Adarsh स्याही के शब्द - 1 द्वारा Deepak Bundela Arymoulik अदृश्य त्याग अर्धांगिनी - 1 द्वारा archana ग़ज़ल - सहारा में चल के देखते हैं - प्रस्तावना द्वारा alka agrwal raj अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी