चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 36 Jayshankar Prasad द्वारा उपन्यास प्रकरण में हिंदी पीडीएफ होम किताबें हिंदी किताबें उपन्यास प्रकरण किताबें चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 36 चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 36 Jayshankar Prasad द्वारा हिंदी उपन्यास प्रकरण 645 2.3k चाणक्यने हंस कर कहा, कात्यायन तुम सच्चे ब्राह्मण हो! यह करुणा और सौहार्द का उद्रेक ऐसे ही ह्रदयों में होता है परन्तु मैं निष्ठुर, ह्रदयहिन् मुझे तो केवल अपने हाथों खड़ा किये हुए एक सामराज्य का द्रश्य ...और पढ़ेलेना है कात्यायनने जवाब देते हुए कहा की फिर भी चाणक्य उसका सरस मुख मंडल! उस लक्ष्मी का अमंगल! चाणक्य फिर हंसे और बोले, तुम पागल तो नहीं हो गये हो? कात्यायनने कहा तुम हंसो मत चाणक्य! तुम्हारा हंसना तुम्हारे क्रोध से भी भयानक है प्रतिज्ञा करो की तुम उसका अनिष्ट नहीं करोगे! बोलो चाणक्यने कहा कात्यायन! अलक्षेन्द्र कितने विकट परिश्रम से भारतवर्ष से बहार हुए थे क्या तुम यह बात भूल गये? कम पढ़ें पढ़ें पूरी कहानी सुनो मोबाईल पर डाऊनलोड करें चंद्रगुप्त - उपन्यास Jayshankar Prasad द्वारा हिंदी - उपन्यास प्रकरण (398) 36.4k 96k Free Novels by Jayshankar Prasad अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी उपन्यास प्रकरण हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी કંઈપણ Jayshankar Prasad फॉलो