कभी कभी इन्सान अपने जीवन से विरक्त होकर इस सांसारिक जीवन से सन्यास लेकर सन्यासी बन जाता है, लेकिन क्या वो सच में इस संसार के चक्रव्यूह से निकल पाता है,शायद नहीं! क्योंकि सांसारिक जीवन को त्यागकर उस ईश्वर की शरण में जाना,इतना भी आसान नहीं होता जैसा कि हमें दिखाई देता है,क्योंकि हमें उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में जाने के लिए आत्मिक परिपक्वता एवं अडिग विश्वास की जरूरत होती है और ये दोनों भाव हमारे भीतर यूँ ही प्रवेश नहीं करते,उसके लिए हमें कड़ी तपस्या और अपनी इन्द्रियों को वश में करना आना चाहिए..... क्या इस कहानी का नायक अपनी इन्द्रियों को वश में करके कड़ी तपस्या करने के बाद सन्यासी बन बन पाता है या नहीं आइए देखते हैं.... तो कहानी शुरू करते हैं....
सन्यासी -- भाग - 1
कभी कभी इन्सान अपने जीवन से विरक्त होकर इस सांसारिक जीवन से सन्यास लेकर सन्यासी बन जाता है, लेकिन वो सच में इस संसार के चक्रव्यूह से निकल पाता है,शायद नहीं! क्योंकि सांसारिक जीवन को त्यागकर उस ईश्वर की शरण में जाना,इतना भी आसान नहीं होता जैसा कि हमें दिखाई देता है,क्योंकि हमें उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में जाने के लिए आत्मिक परिपक्वता एवं अडिग विश्वास की जरूरत होती है और ये दोनों भाव हमारे भीतर यूँ ही प्रवेश नहीं करते,उसके लिए हमें कड़ी तपस्या और अपनी इन्द्रियों को वश में करना आना चाहिए..... क्या इस कहानी का ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 2
जयन्त अपनी साइकिल से जब काँलेज पहुँचा तो उसे बहुत भूख लगी थी,इसलिए कैन्टीन जाकर उसने कुछ खाने का कैन्टीन में कुछ भी उसके मतलब का कुछ भी नहीं था,इसलिए वो वहाँ से वापस चला आया और तभी उसका दोस्त वीरेन्द्र उसे दूर से दिखा और उसने उसे देखकर हाथ हिलाया, इसके बाद वीरेन्द्र उसके पास आकर बोला.... "भाई! तेरा मुँह क्यों लटका हुआ है"? "यार! मेरा तो वही रोज रोज का टन्टा है,बाबूजी से बहसबाजी फिर इसके बाद भूखे काँलेज चले आना, कैन्टीन गया था कुछ खाने के लिए लेकिन वहाँ मेरे मतलब का कुछ भी नहीं था,इसलिए ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 4
दिनभर यूँ ही काँलेज में वक्त गुजारने के बाद जयन्त घर पहुँचा,उसने साइकिल की घण्टी बजाकर चौकीदार से बंगले गेट खोलने को कहा,जैसे ही नलिनी ने साइकिल की घण्टी की आवाज़ सुनी तो वो फौरन ही समझ गई कि उसका बेटा जय काँलेज से वापस आ गया है,इससे पहले की जयन्त अपने कमरे में पहुँच पाता, तो वो जयन्त के कमरे में पहुँचने से पहले ही कुछ मूँग दाल के लड्डू और मठरियाँ लेकर वहाँ पहुँच गई और जैसे ही जयन्त अपने कमरे में घुसा तो नलिनी ने उससे पूछा... "आ गया तू! मैं कब से तेरा इन्तजार कर ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 5
इसके बाद सुरबाला मुस्कुराते हुए जयन्त के कमरे से चली गई,सुरबाला के जाने के बाद नलिनी ने जयन्त से "जय! क्या तू सच में एक दिन सन्यासी बन जाऐगा?" अपनी माँ की बात सुनकर जयन्त मुस्कुराते हुए उनसे बोला... "क्या पता...हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है,ये तो दुनिया वालों पर निर्भर करता है कि वो मुझे क्या बनाते हैं?" "बेटा! ये तेरी जिन्दगी है,इसका फैसला तो तेरे हाथ में होना चाहिए कि तू क्या बनना चाहता है",नलिनी बोली.... "लेकिन माँ! दुनियावालों का मिजाज़ देखकर भरोसा उठ है मेरा सब पर से,सब के मन में केवल ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 6
सुबह हुई तो घर में बवाल मचा हुआ था,क्योंकि प्रयागराज ने जयन्त की शिकायत शिवनन्दन जी से कर दी कि इस बारें में शिवनन्दन जी को भी सब पता था क्योंकि उन्होंने रात में सब सुन लिया था,लेकिन किसी से कुछ बोले नहीं थे,उन्होंने सोचा इस मसले पर सुबह ही बात होगी,इसके बाद शिवनन्दन जी ने इस बात को लेकर जयन्त से बात करने की सोची,फिर जयन्त को सबके सामने पेश किया गया और तब शिवनन्दन जी ने जयन्त से पूछा.... "तुम्हें किसने अधिकार दिया पति-पत्नी के बीच में बोलने का" "कोई किसी को जानवरों की तरह पीटे जाएँ ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 8
जब दोपहर के बाद जयन्त काँलेज से लौटा और उसने सुना कि माँ को चोट लग गई है तो फौरन भागा भागा अपनी माँ के कमरे में पहुँचा और अपनी माँ नलिनी से चोट लगने का कारण पूछा,तब नलिनी ने उसे सारा हाल कह सुनाया.... तब जयन्त ने नलिनी से कहा... "माँ! जब तक तुम्हारी चोट ठीक नहीं हो जाती तो तब तक तुम कुछ भी काम नहीं करोगी" "अरे! ऐसा तो लगता रहता है,तो क्या घर के सारे काम काज छोड़कर आराम करने बैठ जाऊँ",नलिनी बोली... "और क्या? अब तुम केवल आराम करोगी,जिन्दगी भर बहुत कर लिया तुमने ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 7
इसके बाद गोपाली आँगन में गीले कपड़े सुखाने पहुँची,जहाँ पर उसकी जेठानी सुरबाला पहले से ही मौजूद थी,जो धूप मसाले सूखने के लिए डाल रही थी,वो लाल साबुत मिर्चों पर हाथ फेरते हुए गोपाली से बोली... "गोपाली! सच सच बताना,क्या हुआ था कल रात को"? "जीजी! तुम्हें सब पता ही तो है,फिर क्यों पूछती हो",गोपाली ने सुरबाला से कहा.... "बता ना! मैं किसी से कुछ ना कहूँगीं",सुरबाला बोली... तब गोपाली बोली.... "कल रात मुन्नीबाई कहीं और किसी नवाब के यहाँ मुजरा करने चली गई थी,इसलिए तुम्हारे देवर उससे मिल नहीं पाएँ,मैं रात मुन्ने को सुलाने की कोशिश कर रही ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 10
और उधर घर पर आज नलिनी को उसकी बहूओं ने कोई भी काम नहीं करने दिया,इसलिए आज नलिनी का दिन बड़ा ही आलस भरा बीता,जब जयन्त काँलेज से घर आया तो सबसे पहले वो नलिनी का हाल चाल लेने उसके कमरे पहुँचा,तब नलिनी उससे बोली... "आज तो मैं बैठे बैठे ही थक गई,अगर मैं दो तीन दिन यूँ ही फुरसत से बैठी रही तो बिलकुल से पागल ही हो जाऊँगीं" "माँ! अब तुम्हारी उम्र काम करने की नहीं आराम करने की है,इसलिए तुम केवल आराम ही किया करो", जयन्त नलिनी से बोला... "बेटा! मुझे आराम करने की आदत नहीं ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 3
छात्रों के बीच क्लास रूम में हो रही मार कुटाई जब चपरासी ने देखी तो उसने फौरन ही प्रिन्सिपल जाकर उन सभी की शिकायत कर दी,इसके बाद प्रिन्सिपल ने फौरन ही उन सभी अपने रुम में बुलाया और लड़ाई का कारण पूछा... तब मदन प्रिन्सिपल साहब से बोला.... "सर! मैं और सुधीर तो आपस में बातें कर रहे थे,पता नहीं अचानक जयन्त को क्या हुआ,वो हमारी बातों के बीच बिना मतलब कूद पड़ा" "सर! मदन झूठ बोल रहा है,भला! मैं बेवजह क्यों उलझूँगा किसी से",जयन्त बोला... "तो फिर बताओ कि पूरी बात क्या है?",प्रिन्सिपल साहब ने जयन्त से पूछा.... ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 9
दूसरे दिन भोर होते ही जयन्त जाग गया,इसके लिए उसने अलार्म लगाकर रखा था,क्योंकि उसे अपनी माँ नलिनी पर रखनी थी,नलिनी भोर होते ही काम पर लग जाती थी,वो आँगन में आकर वहाँ का नल खोलकर पटले पर बैठ जाती थी और घर भर के गंदे कपड़े धोने लगती थी,इसके बाद वो स्नान करके पूजा करती थी और फिर रसोईघर में सबके लिए नाश्ता बनाने के लिए जुट जाती थी,क्योंकि सुबह सुबह सुरबाला और गोपाली अपने बच्चों को सम्भालती थी,इसलिए दोनों रसोई में समय नहीं दे पातीं थीं,लेकिन जयन्त ने उस दिन ऐसा नहीं होने दिया... आज उसने अपनी ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 11
जयन्त बुझे मन से अपने कमरे में आया,उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था,धनिया के मरने की खबर आहत कर गई थी,वो स्नान करने के लिए स्नानघर में घुस गया और तब तक स्नान करता रहा ,जब तक कि उसका मन शान्त ना हो गया,इसके बाद वो तैयार हुआ और किसी से बिना कुछ कहे अपनी साइकिल उठाकर वो घर के बाहर चला गया,वो कहीं नहीं मंदिर गया था और वहाँ वो वृद्ध पुजारी जी के पास पहुँचा,उसने उनके चरण स्पर्श किए और उनके पास जाकर शान्ति से बैठ गया,जब वृद्ध पुजारी जी ने जयन्त को आहत देखा ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 12
लखन लाल के साथ अन्याय होता देख जयन्त चुप ना रह सका और उसने कुछ दिन ठहरकर आखिरकार काँलेज बाबू सुमेरसिंह की शिकायत प्रिन्सिपल से कर ही दी,जयन्त के शिकायत करने से सुमेर सिंह के ऊपर कार्यवाही शुरू हो गई,जिससे सुमेर सिंह बौखला गया और वो एक दिन लखनलाल की झोपड़ी जा पहुँचा और उसे हड़काते हुए बोला.... "लखनलाल....ओ...लखनलाल बाहर निकल आया" लखनलाल जैसे ही बाहर निकला तो उसने सुमेर सिंह से पूछा... "क्या हुआ बाबूजी!" "बाबू जी के बच्चे,मेरी वहाँ शिकायत लगाता है और यहाँ बाबूजी...बाबूजी...कर रहा है",सुमेर सिंह ने लखन लाल से कहा... " नहीं बाबूजी! मैंने ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 13
उस रात शिवनन्दन जी ने जयन्त को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन जयन्त नहीं माना,जिससे सुमेर सिंह का सातवें आसमान पर चढ़ गया,वो तो वैसे भी गुण्डागर्दी करने वाला इन्सान था,वो ऐसे धान्धलियाँ कर करके ही रुपया कमा रहा था,कहा जाएँ तो बेईमानी करना ही उसका धन्धा था, वो काँलेज में बाबू किसी की सिफारिश पर बना था ,जिसके लिए उसने अँग्रेज अफसरों के मुँह में बहुत रुपया ठूँसा था, काँलेज के बाबू की नौकरी तो वो जमाने को दिखाने के लिए करता था,उसके और भी बहुत से दो नंबर के धन्धे थे,सुनने में तो ये भी आता ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 14
लच्छू को रोता हुआ देखकर लखनलाल घबरा गया और उसने उसके पास जाकर उसे झकझोरते हुए पूछा... "का हुआ फागुनिया को,तू कुछ बोलता काहे नहीं है", "अब मैं क्या बोलूँ लखन! तू खुद ही चलकर देख ले कि वो किस हालत में है",लच्छू रोते हुए बोला... "क्या बक रहा है तू!",लखनलाल जोर से चीखा... "मैं सच कहता हूँ लखन! हमारी फागुनिया अब इस दुनिया में नहीं रही"ऐसा कहकर लच्छू दोबारा दहाड़े मार मारक रोने लगा... लच्छू की बात सुनकर लखनलाल अवाक् रह गया,अब उसके होश गुम हो चुके थे,वो चक्कर खाकर गिरने को हुआ तो जयन्त ने उसे सम्भाल ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 15
जब जयन्त चक्कर खाकर धरती पर गिर पड़ा तो वीरेन्द्र भागकर उसके पास आया,उसे सम्भालने के लिए,साथ में उसने और लड़के की भी मदद ली,फिर दोनों जयन्त को सहारा देकर काँलेज तक ले गए और उसे एक पेड़ की छाँव में बैठाकर पानी पिलाया,तब वीरेन्द्र ने जयन्त से पूछा..."तू! ठीक तो है ना!""हाँ! मैं ठीक हूँ",जयन्त ने जवाब दिया..."लेकिन तू ऐसे अचानक चक्कर खाकर कैंसे गिर पड़ा मेरे भाई!",वीरेन्द्र ने जयन्त से पूछा...."वो मैंने परसों रात से खाना नहीं खाया,इसलिए शायद चक्कर आ गया होगा",जयन्त ने वीरेन्द्र से कहा..."तूने परसों रात से खाना नहीं खाया.....मगर क्यों?",वीरेन्द्र ने जयन्त से ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 16
जयन्त की बात सुनने पर पुजारी जी उससे बोले...."बेटा! तुम उन दोनों की मृत्यु के लिए स्वयं को दोषी ठहराओ,ऐसा समझ लो कि भगवान ने तुम्हारी परीक्षा ली है कि इतना सबकुछ होने के बाद भी तुम सत्य के मार्ग पर अब भी चलोगे या फिर उस मार्ग को त्याग दोगे, यदि तुम सत्य का मार्ग चुनते हो तो तुम्हारी विजय निश्चित है और यदि तुमने सत्य का मार्ग त्याग दिया तो तुम सभी की भाँति एक साधारण मानव बनकर रह जाओगें,क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वर ने तुम्हें किसी विशेष कार्य हेतु धरती पर भेजा,मेरा अनुभव तो ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 17
अब जयन्त ने सुमेर सिंह को सबक सिखाने का सोच ही लिया था और फिर वो उसके बारें में करने लगा,बहुत जगह पूछताछ के बाद पता चला कि सुमेर सिंह ने लखनलाल से बदला लेने के लिए वो घिनौना काम किया था,उसके लठैतों ने ही बेचारी निर्बोध फागुनी को उस दिन उसकी झोपड़ी से उठाया था,उसके बाद सुमेर सिंह ने एक मोटी रकम लेकर एक सेठ के पास फागुनी को भेज दिया था,फिर सेठ ने फागुनी की अस्मत के साथ खिलवाड़ किया,इसके बाद सुमेर सिंह के लठैतों ने फागुनी का खून करके उसे झाड़ियों में फेंक दिया था,जब जयन्त ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 18
अब जयन्त ने सुमेर सिंह को सबक सिखाने का सोच ही लिया था और फिर वो उसके बारें में करने लगा,बहुत जगह पूछताछ के बाद पता चला कि सुमेर सिंह ने लखनलाल से बदला लेने के लिए वो घिनौना काम किया था,उसके लठैतों ने ही बेचारी निर्बोध फागुनी को उस दिन उसकी झोपड़ी से उठाया था,उसके बाद सुमेर सिंह ने एक मोटी रकम लेकर एक सेठ के पास फागुनी को भेज दिया था,फिर सेठ ने फागुनी की अस्मत के साथ खिलवाड़ किया,इसके बाद सुमेर सिंह के लठैतों ने फागुनी का खून करके उसे झाड़ियों में फेंक दिया था,जब जयन्त ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 19
अब जयन्त ने सुमेर सिंह को सबक सिखाने का सोच ही लिया था और फिर वो उसके बारें में करने लगा,बहुत जगह पूछताछ के बाद पता चला कि सुमेर सिंह ने लखनलाल से बदला लेने के लिए वो घिनौना काम किया था,उसके लठैतों ने ही बेचारी निर्बोध फागुनी को उस दिन उसकी झोपड़ी से उठाया था,उसके बाद सुमेर सिंह ने एक मोटी रकम लेकर एक सेठ के पास फागुनी को भेज दिया था,फिर सेठ ने फागुनी की अस्मत के साथ खिलवाड़ किया,इसके बाद सुमेर सिंह के लठैतों ने फागुनी का खून करके उसे झाड़ियों में फेंक दिया था,जब जयन्त ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 20
हरदयाल बनारस पहुँच गया और जयन्त के दिए हुए पते को लेकर लोगों से उसके घर का पता पूछ उसके घर भी पहुँच गया,वो उसके घर पहुँचा तो इतना बड़ा मकान देखकर हरदयाल का सिर चकरा गया और उसने मन ही मन सोचा...."लगता है बहुतई ज्यादा अमीर आदमी हैं जयन्त बाबूजी! लेकिन उनके भीतर नाममात्र का भी घमण्ड नहीं है, मेरे घर में रहकर रुखी सूखी खाकर ही खुश रह रहे हैं,उन्होंने मेरे यहाँ के खाने को देखकर कभी मुँह नहीं बनाया" उसके बाद उसने घर के दरवाजे पर पहुँचकर जोर जोर से दरवाजे पर दस्तक देना शुरू कर ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 21
हरदयाल बनारस पहुँच गया और जयन्त के दिए हुए पते को लेकर लोगों से उसके घर का पता पूछ उसके घर भी पहुँच गया,वो उसके घर पहुँचा तो इतना बड़ा मकान देखकर हरदयाल का सिर चकरा गया और उसने मन ही मन सोचा...."लगता है बहुतई ज्यादा अमीर आदमी हैं जयन्त बाबूजी! लेकिन उनके भीतर नाममात्र का भी घमण्ड नहीं है, मेरे घर में रहकर रुखी सूखी खाकर ही खुश रह रहे हैं,उन्होंने मेरे यहाँ के खाने को देखकर कभी मुँह नहीं बनाया" उसके बाद उसने घर के दरवाजे पर पहुँचकर जोर जोर से दरवाजे पर दस्तक देना शुरू कर ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 22
अभी नलिनी और जयन्त आपस में बातें कर ही रहे थे कि तभी आँची बाहर से बरतन धोकर ले उसने नलिनी की चारपाई के बगल में धरती पर पुआल डालकर अपना बिस्तर बिछाया और उस पर लेट गई,तो नलिनी ने उससे कहा..."बेटी! तुम्हारी माँ नहीं है तो तुम्हें ही सारे काम सम्भालने पड़ते हैं""हाँ! माँ जी! लेकिन अब तो आदत सी हो गई है,मैं जब बहुत छोटी थी,तब माँ छोड़कर चली गई थी,तब से ही मैं घर के काम काज करने लगी थी",आँची बोली..."वैसे क्या हुआ था तुम्हारी माँ को?",नलिनी ने पूछा...तब जयन्त को लगा कहीं ऐसा ना हो ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 23
जब सबने नाश्ता कर लिया तो शिवनन्दन जी हरदयाल से बोले...."तो हरदयाल! अब हम सभी को निकालना चाहिए","जी! अब रोकूँगा साहब जी!,आपने मेरी बात का मान रखा और रात भर को यहाँ ठहरे,इतने में ही मुझे सन्तुष्टि हो गई",हरदयाल बोला..."तो ठीक है हरदयाल भइया! अब हम सभी को इजाज़त दीजिए,ईश्वर ने चाहा तो फिर कभी मुलाकात होगी" और ऐसा कहकर नलिनी ने आँची का माथा चूमकर उसे अपने गले से लगा लिया और उससे बोली..."बेटी! तूने बहुत सेवा की मेरे बच्चे की और हम सब की भी,मैं तुझे उपहार स्वरूप कुछ दे भी दूँ तो ये तेरा अपमान होगा,क्योंकि ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 24
जयन्त अपना चेकअप कराकर क्लीनिक से वापस घर लौट आया और उसने सभी को बताया कि मैं अब बिलकुल हूँ और डाक्टर साहब ने ये भी कहा है कि मैं अब काँलेज भी जा सकता हूँ और वो दो चार दिन बाद मेरा चेकअप करने खुद यहाँ आऐगें,मुझे उनकी क्लीनिक पर जाने की जरूरत नहीं है.... और फिर दूसरे दिन जयन्त को चैन ना पड़ा और वो अपनी साइकिल पर नहीं मोटर में बैठकर काँलेज की ओर निकल गया,काँलेज पहुँचा और जब वीरेन्द्र ने उसे देखा तो खुशी के मारे उसे गले लगाकर बोला...."यार! कहाँ चला गया था तू! ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 25
और वो उससे बोली...."क्या सोच रहा है रे! कहीं तुझे आँची की याद तो नहीं आ रही?"अपनी माँ नलिनी बात सुनकर जयन्त मुस्कुराते हुए बोला..."भला! मुझे आँची की याद क्यों आने लगी?""क्योंकि वो बहुत ही भली लड़की है,उसने तेरी इतनी सेवा की है तो तुझे उसकी याद आना एक सामान्य सी बात है",नलिनी जयन्त से बोली...."ऐसी कोई बात नहीं है माँ! मैं तो कुछ और ही सोच रहा था",जयन्त नलिनी से बोला...."अगर आँची के बारें में नहीं सोच रहा था तो फिर क्या सोच रहा था",नलिनी ने जयन्त से पूछा...."माँ! अभी कुछ देर पहले हमारे दरवाजे पर एक महिला ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 26
फिर नलिनी जयन्त से बोली...."लेकिन मुझे ये बात समझ नहीं आई कि ये अपने पति के खिलाफ जाकर तुम्हें करने क्यों आईं हैं, मुझे इन पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है,क्या पता ये यहाँ अपने पति के कहने पर आईं हो"?तब सुमेर सिंह की पत्नी वरदा नलिनी से बोली..."नहीं! जीजी! मैं उनके कहने पर यहाँ नहीं आई हूँ,बहुत साल हो गए है मेरे पति को बेईमानी करते हुए, दूसरों का हक़ छीनते हुए,दूसरों की बेटियों को पराएँ पुरूषों के पास भेजते हुए,सालों से ये सब देखते देखते मैं उकता गई हूँ,पहले मैं उनसे डरा करती थी कि अगर मैं ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 27
सुमेर सिंह की फाँसी की सजा माँफ होने पर वरदा ने जयन्त को धन्यवाद किया और उससे बोली...."जयन्त! आज की जीत हुई है,भले ही मैंने इस लड़ाई में बहुत कुछ खो दिया है लेकिन अब मेरी अन्तरात्मा को बहुत सुकून है""मैं आपके मन की बात भलीभाँति समझ सकता हूँ चाचीजी!",जयन्त बोला..."अब सोचती हूँ की बनारस छोड़कर गाँव चली जाऊँ,वहीं थोड़ी सी जमीन है तो खेतीबाड़ी करके अपना और अपने बच्चों का पेट पालूँगी",वरदा जयन्त से बोली..."नहीं! चाची जी! आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है,आप यहीं रहकर अपने पति का कारोबार सम्भालिएँ", जयन्त वरदा से बोली...."मुझे कुछ भी नहीं ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 28
और फिर उसने फौरन ही चूल्हा बालकर बैंगन और टमाटर भुनने को रख दिए और जयन्त से बोली...."आप थोड़ी रुकिए,मैं बगल वाले खेत से ताजा धनिया और ताजी हरी मिर्च लेकर आती हूँ,तभी तो हरी चटनी खाने का मज़ा आएगा" और फिर आँची जब तक धनिया और मिर्च लेकर आई तब तक बैंगन और टमाटर भुन चुके थे,फिर उसने सिलबट्टे पर ताजे धनिये,अदरक,लहसुन और ताजी मिर्च की चटनी पीसी,भुने हुए बैंगन और टमाटर के छिलकों को छीनकर भरता बनाया,इसके बाद एक छोटी सी मटकी में उसने ताजा छाछ लिया उसमें नमक मिर्च डाला और एक मिट्टी के दिए को ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 29
इधर जब शिवनन्दन सिंह जी घर लौटे तो उन्हें देवराज और प्रयागराज ने सुहासिनी के बारे में सब बता सुहासिनी के बारें में सुनकर शिवनन्दन सिंह जी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उन्होंने फौरन ही देवराज और प्रयागराज को आदेश दिया कि जितनी जल्दी हो सके,सुहासिनी के लिए रिश्ता ढूढ़ो उसका ब्याह करके ही अब सबको चैन मिलेगा,इस लड़की ने तो हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी,कहीं का नहीं छोड़ा हमें.... और फिर क्या था देवराज और प्रयागराज अपने पिता के कहने पर सुहासिनी के लिए वर और घर दोनों की तलाश करने लगे..... लेकिन ये ...और पढ़े
सन्यासी -- भाग - 30
जयन्त उस वक्त तो वहाँ से चला गया लेकिन उसके मन में कुछ और ही चल रहा था,वो सुहासिनी जिन्दगी ऐसे बरबाद नहीं होने दे सकता था,उसके मन में जो चल रहा था,उसके लिए वो योजना बना रहा था और फिर वो अपनी योजना को सफल बनाने के प्रयास में जुट गया.... और इसके लिए वो डाक्टर अरुण की क्लीनिक पहुँचा उनसे मिलने के लिए,जयन्त को अपने सामने खड़ा देखकर डाक्टर अरुण एक पल को घबरा गए,तब जयन्त ने उनके घबराए हुए चेहरे को देखकर उनसे कहा...."घबराए नहीं डाक्टर साहब! मैं आपकी क्लास लेने नहीं आया हूँ,मैं तो बस ...और पढ़े