समाज ने स्त्रियों के लिए कुछ ढांचे बना रखे हैं उनमें फिट न होने वाली स्त्रियों को बागी स्त्रियाँ कह दिया जाता है।ऐसी स्त्रियों को पारंपरिक समाज एक खतरे की तरह देखता है और उन्हें तोड़ने की हर कोशिश करता है। सभी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।छोटी- बड़ी, जरूरी- गैरजरूरी, जायज -नाजायज़ हर तरह की लड़ाइयाँ हैं।सबको अपनी लड़ाई ही महत्वपूर्ण लगती है।सभी चाहते हैं कि दुनिया का ध्यान उनकी लड़ाई की तरफ जाए। सभी उनकी तरफ़ से लड़ें ।कम से कम सहयोग तो करें ही।सहयोग नहीं तो सहानुभूति ही रखें ।उनकी लड़ाई को जायज ही ठहराएं।जब ऐसा नहीं होता तो वे दुःखी हो जाते हैं।उनको सारा समाज ...सारा संसार अपना दुश्मन नज़र आने लगता है।वे एक बार भी नहीं सोचते कि वे भी तो वही कर रहे हैं।एक बार तो वे खुद से बाहर निकलकर देखें ।अपने से ऊपर उठकर देखेंगे तो उन्हें हँसी आएगी कि वे किस तरह तिल को ताड़ बनाते रहे हैं।किस तरह गैरजरूरी मुद्दे उनके लिए जीवन- मरण के मुद्दे हो गए हैं।तब उन्हें औरों से सहानुभूति होगी। उन पर दया आएगी।उनसे ईर्ष्या,घृणा,शत्रुता या शिकायत नहीं होगी।

Full Novel

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बागी स्त्रियाँ - (भाग एक)

समाज ने स्त्रियों के लिए कुछ ढांचे बना रखे हैं उनमें फिट न होने वाली स्त्रियों को बागी स्त्रियाँ दिया जाता है।ऐसी स्त्रियों को पारंपरिक समाज एक खतरे की तरह देखता है और उन्हें तोड़ने की हर कोशिश करता है।सभी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।छोटी- बड़ी, जरूरी- गैरजरूरी, जायज -नाजायज़ हर तरह की लड़ाइयाँ हैं।सबको अपनी लड़ाई ही महत्वपूर्ण लगती है।सभी चाहते हैं कि दुनिया का ध्यान उनकी लड़ाई की तरफ जाए। सभी उनकी तरफ़ से लड़ें ।कम से कम सहयोग तो करें ही।सहयोग नहीं तो सहानुभूति ही रखें ।उनकी लड़ाई को जायज ही ठहराएं।जब ऐसा नहीं होता तो ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग दो)

औरत की गरिमा बचाने की जद्दोजहद में तू पूरी औरत नहीं बन पाई" --मीता ने एक दिन अपूर्वा से हुए कहा। 'क्या मतलब है तेरा?क्या मैं पूर्ण स्त्री नहीं?' मीता--मेरे हिसाब से तो नहीं।अरे मेमसाब,बिना पुरूष के स्त्री कैसे पूर्ण हो सकती है?अर्धनारीश्वर के बारे में नहीं सुना क्या!जब ईश्वर तक स्त्री और पुरूष दोनों का मिला हुआ रूप है, तो साधारण स्त्री अकेले कैसे पूर्ण हो सकती है?तू ही बता क्या तेरा दिल कहीं कसकता कि तुम्हें किसी पुरुष का प्रेम मिले? अपूर्वा--'जरूर कसकता है....प्रेम की कहानियां,प्रेम के दृश्य मुझे आज भी तड़पा जाते हैं पर प्रेम किसी ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग तीन)

उम्र बीत जाने से बचपन और यौवन नहीं बीत जाता |ये भावनाएँ तृप्त होकर ही मरती हैं |वरना और शक्तिशाली हो जाती हैं | जो अपनी जिंदगी से बहुत कुछ पाता है उसके ही व्यवहार में एक थिरता आती है |अपूर्वा भी थिर नहीं थी|यह थिरता तब आई होती ,जब कोई सच्चा प्यार उसकी ज़िंदगी में आया होता |अपनी मेहनत और हौसले से वह एक ऊंचाई पर जरूर पहुँच गयी है पर खुश नहीं है | कभी –कभी उसे लगता है कि स्त्री कितनी भी ऊँचाई पर पहुँच जाए पुरूष का साथ उसके लिए जरूरी है ।मगर वह साथ ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग चार)

मीता को ग्रीष्म ऋतु की तपती दुपहरी के बाद शाम को छत पर टहलना बहुत अच्छा लग रहा है|दूर-दूर फैले वृक्षों की कतारें जैसे सिर हिला-हिलाकर उससे कुछ कह रही हों |आकाश में कई रंग हैं |पक्षी उड़ रहे हैं |आस-पास के छतों पर भी कोलाहल है |बच्चे-बूढ़े-जवान सबके चेहरों पर नाना प्रकार के भाव दीप्त हैं |दूर-दूर तक खेत नजर आ रहे हैं, जिनमें कुछ पर पके फसलों की उदासी तो कुछ पर हरे फसलों का उल्लास है –सब कुछ बड़ा सम्मोहक! दिन-भर की थकी-थमी हवा भी गुनगुनाती हुई बह रही है |सड़क पर बाहनों का शोर है ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग पांच)

मीता का रोग बढ़ता जा रहा है निदान पवन उपचार भी पवन|फिर वह क्यों उसका तमाशा देख रहा है?वह उससे अलग होने की कल्पना से भी परेशान हो जाती है| क्या उसने पवन को समझने में भूल की है ?क्या पवन वह है ही नहीं जिसे उसने उसमें देखा ,जाना और समझा था | उसकी रातें खत्म होती हैं पर उसके मन के अंधेरे.. धुंधलके शेष नहीं होते |बैठे-बैठे अचानक उसका मन उचाट हो जाता है |पर जब वह पवन के साथ होती है तब उसे ऐसा लगता है जैसे कोई बहुत बड़ी निधि उसके हाथ लग गयी हो |वह ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग छह)

अमर से पहले भी अपूर्वा ने अपने जीवन में प्रेम की धड़क महसूस की है पर हर बार वह जगह फंस जाती है।उसे ऐसा व्यक्ति अच्छा लगने लगता है,जिसे वह पा नहीं सकती,इसलिए हर बार उसके हिस्से दर्द ही आता है। उसे याद है जब उसे एक प्रिस्ट फादर बो से लगाव हो गया था।जब भी वह उनके तेजस्वी, सुंदर, शांत चेहरे को देखती थी,अजीब- सा सुकून महसूस करती थी। स्कूल आते ही वह शीशे वाले उनके केबिन की ओर जरूर देखती थी और उन्हें देखते ही ऊर्जा से भर जाती थी। जिस दिन वे स्कूल में नहीं होते ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग सात)

पुरुष सुदर्शन,आकर्षक और भव्य व्यक्तित्व के साथ उच्च पद पर आसीन भी हो तो न चाहते हुए भी उसमें आ जाता है।वैसे भी लक्ष्मी,सरस्वती और शक्ति तीनों देवियाँ जिसके सिर पर एक साथ विराजमान हो जाएं, वह सामान्य नहीं रह सकता। वह बाहर ही नहीं भीतर से भी कठोर होता चला जाता है।इतना ही नहीं वह अधिक से अधिक हृदयों पर अपनी छाप भी देखना चाहता है।अपने रूप- यौवन,पद -रूतबे की आजमाइश में न जाने कितने दिलों से खेलता है और उन दिलों के टूटने का उसे जरा -सा भी अफसोस नहीं होता।अपने पौरूष की किताब में अधिकतम स्त्री- आंकड़े ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग आठ

अपूर्वा देख रही थी कि फादर बो की आँखों में उम्रदराज़ लोगों के प्रति हिकारत का भाव है।वे हमेशा के साथ रहते हैं।प्रार्थना के बाद अक्सर वे अपने सफेद चोंगे को उतार कर पैंट- शर्ट पहन लेते हैं।कई बार तो उन्हें पहचानने में धोखा हो जाता है।दूर से वे कोई युवक ही नज़र आते हैं। वैसे भी उनकी उम्र अभी पचास से कम ही है।ऊपर से रख- रखाव, खान- पान, खेल- कूद के साथ निरन्तर जिम जाकर खुद को चुस्त -दुरुस्त रखते हैं।चेहरा- मोहरा भी खासा आकर्षक है।बड़ी -बड़ी आंखें ,सुतवां नाक,साफ रंग के साथ क्लीन शेव चेहरा।हालांकि सिर ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग नौ

जल्द ही अपूर्वा को पता चल गया कि कि वे कोई समदर्शी,आदर्शवादी,त्यागी,विरागी संन्यासी नहीं बल्कि किसी भी साधारण पुरूष तरह ही हैं,जिसका अपने मनोभावों पर नियंत्रण नहीं होता, अंतर बस यही है कि वे जल्द ही उन मनोभावों पर नियंत्रण कर लेते हैं।हालांकि क्रोध उनमें ज्यादा देर तक टिका रहता है ।बाकी काम,लोभ,मोह क्षणिक भाव है।वैसे वे पूरी तरह बिजनेस माइंडेड हैं ।घाटे का सौदा नहीं करते।यही कारण है उन्होंने स्कूल को आधुनिकतम सुविधाओं वाला कर दिया है।जिसका लाभ भी उन्हें खूब मिला है।बिना किसी प्रचार के भी स्कूल में एडमिशन के लिए लाइन बड़ी होती जा रही है।उनके ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग दस

कोविड 19 की अफ़रातफ़री।बाहरी दुनिया में हलचल बंद हो गई है और भीतरी दुनिया में हलचल बढ़ गई है। घरों में कैद हैं। सड़कों पर सन्नाटा है। स्कूल कॉलेज,ऑफिस,दुकानें सब बंद हैं।बसें नहीं चल रही ।ट्रेन बंद है।जाने कितनों की रोजी- रोटी छीन गयी है।जाने कितनों की नौकरी चली गई है।कितने लोगों के प्रिय -जन बिछड़ गए हैं । कोई किसी से मिलता नहीं।प्रेमी -प्रेमिका,पति- पत्नी तक एक -दूसरे को छूते नहीं।सभी को अपने प्राणों का संकट है।कितने अस्पताल से घर नहीं सीधे श्मसान ले जाए गए,वह भी कफ़न की जगह प्लास्टिक में लपेटकर।कितने हिंदुओं को अंतिम अग्नि नसीब ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग ग्यारह

रात का घना अन्धकार!रह-रहकर बादल तेज स्वरों में गरज रहे हैं |बिजली भी चमक रही है |कभी आड़ी-तिरछी,कभी सीधी उज्ज्वल तन्वंगी बिजली!मीता देर से खिड़की के पास खड़ी बिजली की कीड़ा देख रही है |अद्भुत दृश्य !आकाश की कालिमा को चीरती बिजली कभी यहाँ तो कभी वहाँ चमक कर लुप्त हो जाती है |क्षण भर के लिए अन्धेरा कम होता है,फिर वही अन्धेरा!उदास अँधेरा !अकेलेपन को सघन करता अँधेरा !पर इसके पहले कि आकाश निराशा से काला पड़े,फिर बिजली चमक उठती है |यह बिजली कभी हब्शी पिता के सीने पर उत्पात करती नन्ही गोरी बिटिया लगती है,कभी शिव की ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग बारह

मीता जब अपने कस्बे से रिसर्च के लिए इस शहर आई थी,तो बेहद भोली थी।शहर की चकाचौध से वह गई थी।उसके गाइड का घर विश्वविद्यालय से काफी दूर था।पर उसे काम के सिलसिले में अक्सर वहाँ जाना पड़ता था।एक दिन उनके ही घर उसे आनंद मिला।बड़ी -बड़ी बोलती आंखों,लम्बी नाक वाले आनंद ने उसे प्रशंसक नजरों से देखा।वह अचकचा गई।गाइड ने दोनों का परिचय कराया तो पता चला कि वह भी उसी के कस्बे का है और उसी के कॉलेज में पढ़ा है पर कस्बे में कभी दोनों की मुलाकात नहीं हुई थी क्योंकि वह उससे पहले ही कॉलेज ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग तेरह

मीता ने आनन्द को इनकार क्या किया कि वह मन ही मन उससे चिढ़ गया।उसकी चिढ़ तब और बढ़ जब उसने मीता और पवन की बढ़ती नजदीकियों के बारे में जाना। फिर वह उन दोनों के बीच गलतफहमियाँ बोने लगा।मीता उसके नीयत को जानती थी इसलिए उस पर उसकी बातों का कोई असर नहीं होता था पर पवन कमजोर था।कमजोर ही नहीं वह तो उसके प्रति ईमानदार ही नहीं था।इससे भी बड़ा सच ये था कि वह उससे प्यार नहीं करता था।वह सिर्फ उसे पाना चाहता था।उसे भोगना चाहता था पर उसके प्रति कोई जिम्मेदारी महसूस नहीं करता था।आनंद ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग चौदह

आनन्द की बात झूठ नहीं थी पर पवन ने मीता को कभी इतना एकांत और अधिकार नहीं दिया था वह उससे इस बारे में पूछ सके। हालाँकि आनन्द ने उसे भड़काया भी था कि ऐसे कैसे वह कहीं और शादी कर सकता है?उसे विरोध करना चाहिए ।आखिर इतने वर्षों से वह उसकी अंतरंग प्रेमिका रही है।पर मीता ने कभी किसी से भी अपने अधिकार के लिए संघर्ष नहीं किया था फिर पवन से क्यों करती?जो उसका था ही नहीं ,उसे बांधने का यत्न क्यों करती?उसने खुद ही पवन से दूर जाने का फैसला कर लिया था।पर जब पवन उससे ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग पन्द्रह

ज्यों ही पहाड़ दिखने शुरू हुए अपूर्वा खुशी से चीख पड़ी |घने जंगलों से भरे पहाड़,ऊबड़-खाबड़ ,मजबूत ,सुंदर पहाड़!प्रकृति अद्भुत कारीगरी|चारों तरफ हरियाली ही हरियाली|वह किसी बच्ची की तरह विस्फारित नजरों से उसे निहारे जा रही थी |वातानुकूलित बस अपने पूरे रफ्तार से भागी जा रही थी|दिल्ली से शिमला तक कि यह बस -यात्रा ख़ासी लंबी थी|उसने कल्पना भी न की थी कि उसे इतनी लंबी बस -यात्रा करनी पड़ेगी|बस से यात्रा करने से वह हमेशा बचती थी क्योंकि लंबी बस यात्रा से उसे चक्कर आने लगता था |पर साथ सत्येश थे तो उसे कोई परेशानी नहीं थी |वे दोनों ही किसी साहित्यिक कार्यक्रम ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग सोलह

शहर लौटने के बाद फोन पर सत्येश से बातों का सिलसिला शुरू हो गया |जब भी दोनों बातें करते हँसते |अपूर्वा को अच्छा लगता कि जिस हंसी को वह कब का दफन कर चुकी थी ,वह फिर से उसके जीवन में लौट आई है|वह सत्येश से खूब बातें करना चाहती, पर वे ज्यादा काम न होने पर भी व्यस्त रहते थे और वह काम के बोझ से लदी होने पर भी जैसे खाली थी |शायद यह उसके भीतर का खालीपन था जो उस पर हावी हो जाता था|जीवन में किसी का न होना भी शायद ऐसे ही खालीपन से ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग सत्रह

अपूर्वा जितनी खुशी से दिल्ली पहुँची ,उतनी ही निराश हुई ,जब उसे पता चला कि किसी कारण से वह कैसिल हो गई है ,जिससे दिल्ली के साहित्यकार शिमला जाने वाले थे |अब तो एसी बस ही शिमला जाने का एक मात्र विकल्प बची थी |फ्लाइट कैंसिल होते ही दिल्ली के नामी साहित्यकारों ने यह कह दिया कि वे कार्यक्रम में नहीं जाएंगे पर वह तो छुट्टियाँ लेकर इतनी दूर से आई थी |सत्येश कार्यक्रम के अहम हिस्सा थे ,इसलिए उन्हें जाना ही था |उसने भी जाने के लिए हामी भर दी |अब वह एक लंबी यात्रा में उनके साथ ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग अट्ठारह

रिलायन्स के उस पार्क में अपूर्वा को एक लड़की मिली |वह भी मार्निंग वाक करने आई हुई थी |उसकी को व्यायाम और योगा करते देख उसने भी साथ व्यायाम करने की इजाजत मांगी |सबने खुशी से हामी भर दी |उसकी टीम में ज़्यादातर लोग 50 से ऊपर थे |कोई किसी से पूर्व परिचित नहीं था |सभी इसी पार्क में आकर मिले थे और फिर उनकी एक टीम बन गयी थी |पार्क में बच्चे,किशोर ,युवा ,स्त्री पुरूष सभी आते थे |वहाँ टहलने के लिए भी पर्याप्त जगह थी और बैठने के लिए जगह -जगह पत्थरों के ऊंचे -ऊंचे बेंच थे ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग उन्नीस

उस लड़की ,जिसका नाम राखी था,ने अपूर्वा को बताया कि पिता द्वारा घर से निकाले जाने के बाद इस में उसने कई घरों में घरेलू नौकरानी का काम किया।झाड़ू,पोंछा,बर्तन से खाना बनाने तक का काम ,पर हर जगह से यह कहकर उसे निकाल दिया गया कि उसने उस घर के किसी पुरुष सदस्य को फंसा लिया है।कई- कई महीनों का उसका वेतन भी नहीं दिया गया। फिर उसने छोटे -बड़े कई रेस्टोरेंट,होटल और दूकानों पर रिसेप्शनिस्ट से लेकर सामान पहुंचाने का कार्य किया।बार -गर्ल का भी काम किया ।ज्यादातर जगह उसको दूसरों के साथ सोने के लिए कहा गया ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग बीस

शशांक के चेहरे पर उदासी थी। राखी उसकी शिकायत किए जा रही थी। --मैम,इसने अपना सारा पैसा अय्याशी में दिया।मुझे मिला,तब तक कंगाल हो चुका था।पहले रोज पार्टियाँ देता था।,नानवेज,शराब,सिगरेट ,लड़की इसको रोज चाहिए था। मुझसे मिलने के बाद भी यह अपनी प्रेमिकाओं से मिलता रहता था।जबकि सबने इसको लूटा था।वह तो मैं जाकर सबसे लड़ी,तब उन लोगों ने इसका पीछा छोड़ा।वरना थोड़ा- बहुत जो कमाता है वह भी उन्हें दे आता था। "अब तो नहीं मिलता किसी से..।" शशांक शर्मिंदा था। --अब क्या मिलोगे?जेब में कुछ होना भी तो चाहिए।मैं कमाकर घर चला रही हूँ,नहीं तो पता चलता। ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग इक्कीस

एक दिन उसने खुद नगमा को एक लड़के के साथ घूमते देख लिया। पूछने पर वह उससे ही बहस उतर आई। --आप मेरी आजादी में दखल नहीं दे सकतीं। 'तुम मेरी जिम्मेदारी हो।कोई घटना हो गई तो मैं भी फंसूंगी।मेरी बदनामी होगी।' --वैसे भी आप बहुत नेकनाम नहीं हैं ।अच्छी होतीं तो यूँ अकेली नहीं होतीं। 'अब तुम मेरे घर नहीं रह सकती।अपने अब्बू को फोन मिलाओ।उन्हें बता दूं।' --उसकी जरूरत नहीं।मैंने उन्हें समझा दिया है। वह अपना सामान लेकर चली गई।पता लगा कि किसी लड़के के साथ किराए के घर में रह रही है। इधर गांव -कस्बों से ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग बाइस

कोई एक दुःख है कोई अभाव... कोई व्यथा ,जो बचपन से ही मीता के मन को मथती रही है।इस ,दुःख और व्यथा से बचने के लिए वह जिंदगी भर भागती रही है.... भागती ही रही है।कहीं चैन न मिला।किसी से वह उस दुःख के बारे में न कह सकी है।कोई उस अभाव को न भर सका है।कोई उस व्यथा को कम नहैं कर सका है।किसी को पता भी तो नहीं है उस दुःख का,उस अभाव का, उस व्यथा का।वह खुद भी तो नहीं जानती है।कभी वह उसे प्रेम का अभाव मानती है तो कभी अपनेपन की कमी ।कभी खुद ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग तेईस

विवाह के बाद पवन ने मीता से मिलने की बहुत कोशिश की।कई बार उसके रास्ते को रोककर खड़ा हो पर आई लव यू कहा ।क्षमा मांगी।वह नहीं चाहता था कि वह आनन्द या उसके किसी अन्य मित्र से रिश्ता जोड़ ले।यह उसकी मर्दानगी को बर्दाश्त नहीं था पर दूसरी स्त्री की देह- गन्ध से सराबोर पवन को वह दुबारा स्वीकार करने को तैयार नहीं थी।वह उससे दूर तो हो गई पर क्या सच ही! रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं अपनी इच्छा से आते हैं चले जाते हैं पर इंसानी मन पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं। मीता रिश्ते ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - भाग चौबीस

भीख की तरह मिला प्यार बहुत तकलीफ देता है|ऐसा प्यार सीमाओं में बांध देता है |अपनी शर्तों पर जीने विवश कर देता है।अपूर्वा की सोसाइटी में रहने वाली सीमा एक ऐसे ही प्यार में गिरफ्त है। उसका प्रेमी अनिकेत पहले उसे बहुत प्यार करता था ,पर बाद में उसकी जिंदगी में वह लड़की लौट आई ,जो उसका पहला प्यार थी ।वह लड़की बहुत पहले अनिकेत को छोड़कर चली गई थी,पर अधिक समय उससे दूर न रह सकी |जब वह उसे छोड़कर चली गई थी तो वह बहुत फ्रस्टेड हो गया था।वह सीमा की ही कम्पनी में काम करता था।इसलिए ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग पच्चीस)

अपूर्वा सोचती है कि कैसा विचित्र है उसका भारतीय समाज !इसमें स्त्री और पुरूष के लिए दुहरे मानदंड हैं।स्त्री -विधवा भी हो तो उसे संन्यासिनी हो जाना चाहिए।मात्र ईश्वर ही उसके जीवन का दूसरा पुरूष हो सकता है।पर विधुर अस्सी की उम्र में भी दूसरा या तीसरा विवाह करे तो सहानुभूति में कहा जाता है--बेचारा अकेला था। पुरूष को हर हाल में स्त्री चाहिए।जवानी में यौन सम्बन्धी जरूरतों के लिए तो बुढापे में हारी -बीमारी में देखभाल और सेवा के लिए।पर स्त्री को उसकी किस्मत से आंका जाता है और उसी के भरोसे उसे छोड़ दिया जाता है।आज भी ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग छब्बीस)

मीता ने जब अर्जुन के आकर्षक व्यक्तित्व में छिपे कुरूप आदमी को देखा , उसका मन उससे विरक्त हो क्योंकि वह देह की कुरूपता को बर्दास्त कर सकती थी पर मन की कुरूपता उसे असह्य थी |जब उसने उस दूसरी स्त्री के बारे में जाना तो विश्वास ही नहीं कर सकी थी कि अर्जुन ऐसा कुछ भी कर सकता है वह तो उससे प्यार का दावा करता था।उसने उसे पसन्द करने के बाद विवाह किया था। उसके लिए वह अभाव दुःख और परेशानियों से जूझती रही थी। कोई इतना दंभी और घिनौना कैसे हो सकता है ?वह उससे प्यार ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग सत्ताईस)

मीता आजकल आत्ममनन के दौर से गुजर रही है।अपने पूरे अतीत को उसने खँगाल डाला है।आखिर वह है कौन,चाहती है?वह साक्षी भाव से खुद को देख रही है ।मानो वह अपनी किसी कहानी की नायिका को देख रही हो कि आखिर वह कौन सा मनोविज्ञान है जो उसे संचालित कर रहा है?उसका व्यक्तित्व कैसे निर्मित हुआ?वह सामाजिक जीवन में असफल क्यों रही है?क्यों उसे सच्चा प्यार नहीं मिला?उसने क्यों सही निर्णय में देर की? एकाएक उसकी आँखों के सामने एक दूसरी ही मीता आ खड़ी हुई और अपनी कहानी कहने लगी। मैं मीता हूँ।सहज, सरल ,सुंदर,पर मुझे कोई प्यार ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग अट्ठाइस)

मैं (नन्हीं मीता)परेशान थी कि मुझे गोली बनाना कैसे आएगा?गोली से बहुत कुछ बन जाता हैं। उसको दाएं -बाएं, नीचे से मिटाने से ,उस पर आड़ी -तिरछी रेखाएं खींचने से,उसकी संख्या बढ़ाने से बहुत से अलग नाम वाले अक्षर बन जाते हैं पर कमबख़्त गोली ही नहीं बनती।मैंने माँ के कहने से विद्या माई की पूजा की।कोयला बुककर मेरी पटरी को चमकाया गया।दूधिया घोलकर गाढ़ी पेस्ट बनाई गई।उसमें मोटा धागा डालकर पटरी पर दीदी ने लाइनें खींच दीं।भाई ने नरकट की कलम गढ़ दी। अब उस कलम को दूधिया के घोल में डूबो कर लाइन के बीच गोलियां बनानी ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग उनतीस)

न तो विवाह योग्य मेरी उम्र थी न ही मैं विवाह के सपने देखती थी।पर पिताजी की बीमारी और भाई -बहनों की जिम्मेदारी ने माँ को मजबूर कर दिया।मैं पढ़ना चाहती थी।माँ ने कहा शादी के बाद भी पढ़ सकती हो।जब तक लड़का कोई काम-काज न करने लगे,तुम्हें यही तो रहना है।इस तरह अर्जुन मेरे जीवन में आया जो मेरी प्रकृति से बिल्कुल विपरीत था।न पढ़ने -लिखने में रूचि ,न साहित्य -संस्कृति में झूठ ,दिखावा फरेब और मर्द होने का अहंकार उसमें कूट -कूटकर भरा था।जाने वह मुझसे क्या चाहता था।मैंने उसके अनुरूप ढलने की बहुत कोशिश की पर ...और पढ़े

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बागी स्त्रियाँ - (भाग तीस) - अंतिम भाग

मीता ने तो कृष्ण -भक्ति में अपना सकून ढूंढ लिया था पर अपूर्वा बेचैन थी।अपने अनुभवों से वह इतना समझ गई थी कि प्रेम -प्यार का रास्ता उसके लिए नहीं बना है।शायद इसके लिए जिस काबिलियत की जरूरत होती है ,वह उसमें नहीं है।वह सीधी -सच्ची है ।प्रेम में पूर्ण समर्पण चाहती है शायद तभी उसे पूर्णता का आभास होगा,पर उसके जीवन के सारे पुरुष आधे- अधूरे पर चतुर -चालाक थे।समर्पण उनकी फितरत नहीं थी।इसलिए वे उसके लिए गिनती -संख्या बनकर रह गए।एक -दो तीन -चार -पांच।वे सब मिलकर एक हो जाते तो एक पूरा पुरूष बनता,जिसकी चाह थी ...और पढ़े

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