वेश्या या तवायफ़ एक ऐसा शब्द है जिसे सुनने के नाम मात्र से ही घृणा होने लगती है,सभ्य समाज के लोंग इस शब्द को और ये शब्द जिससे जुड़ा है उसे अभद्र मानते हैं लेकिन कभी किसी ने ये सोचा है कि जो वेश्या बनती है वो स्वयं नहीं बनती ,बनाई जाती है और हमारा ये सभ्य समाज ही उसे ये कार्य करने पर विवश करता है, वो वेश्या भी एक साधारण जीवन जीने की इच्छा रखती है,वो भी अपने लिए सम्मान चाहती है,वो भी चाहती है कि उसका एक परिवार हो जिसका वो ध्यान रखें,परन्तु उसकी भावनाओं को कभी कोई नहीं समझता,उसका परिचय केवल अश्लिलता एवं अभद्रतापूर्ण ही दिया जाता है, समाज सदैव उसे कुदृष्टि से ही देखता है, उसका रूप-यौवन,गायन एवं नृत्य की प्रशंसा केवल रात्रि में होती है,जो पुरूष उसके पास जाता है लेकिन उस पुरूष को अपने घर की बहु-बेटियों का उस गली मुहल्ले से गुजरना भी गँवारा नहीं होता,वें स्त्रियाँ नहीं होतीं बल्कि पुरूष के मनोरंजन ,खेलने और रात बिताने का सामान होतीं हैं,जब जी भर गया तो नया खिलौना लेलो।।
Full Novel
वेश्या का भाई - भाग(१)
वेश्या या तवायफ़ एक ऐसा शब्द है जिसे सुनने के नाम मात्र से ही घृणा होने लगती है,सभ्य समाज लोंग इस शब्द को और ये शब्द जिससे जुड़ा है उसे अभद्र मानते हैं लेकिन कभी किसी ने ये सोचा है कि जो वेश्या बनती है वो स्वयं नहीं बनती ,बनाई जाती है और हमारा ये सभ्य समाज ही उसे ये कार्य करने पर विवश करता है, वो वेश्या भी एक साधारण जीवन जीने की इच्छा रखती है,वो भी अपने लिए सम्मान चाहती है,वो भी चाहती है कि उसका एक परिवार हो जिसका वो ध्यान रखें,परन्तु उसकी भावनाओं को ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(२)
कुछ वक्त के बाद केशर बाई की पालकी नवाबसाहब की हवेली के सामने जाकर रूकी,साथ में बब्बन और जग्गू पीछे पीछे आ पहुँचें,केशरबाई जैसे ही पालकी से उतरी और उसके कद़म जैसे ही हवेली के दरवाज़े पर पड़े तो उसने उसी शख्स को वहाँ पर देखा जो कल रात उसके कोठे पर आया था,उसे देखकर केशरबाई कुछ ठिठकी लेकिन कुछ सोचकर उसने आगें कद़म बढ़ा दिए।। वो अपनी मदहोश़ करने देने वाली अदाओं के साथ महफ़िल में दाखिल हुई,उसकी मस्तानी चाल ग़जब ढ़ा रही थी,उसका अनारकली गहरे हरे रंग का लिब़ास वहाँ मौज़ूद लोगों पर बिजलियाँ गिरा रहा ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(३)
केशरबाई मुज़रा करते हुए बहुत थक चुकी थी इसलिए वो रातभर बिना करवट बदले ही सोती रही,उसकी आँख सीधे जाकर ही खुली ,जब शकीला उसे जगाने आई और वो केशर को जगाते हुए बोली.... और मोहतरमा! कब तक सोतीं रहेंगीं?देखिए सूरज सिर पर चढ़ आया है..... अरे,तू आ गई करमजली! मेरी नींद में ख़लल डालने,केशर ने अपनी आँखें मस़लते हुए कहा।। बोल कैसा रहा कल रात का मुजरा और नवाबसाहब की मेहमानवाज़ी? रात मैं तो तेरे आने से पहले ही सो गई थी,कल कोई ख़रीदार ही नहीं आया,शकीला बोली।। बस,ऐसी ही रहीं,कुछ ख़ास नही,केशर बोली।। क्यों खास़ क्यों ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(४)
इन्द्रलेखा मजबूर थी या कि उसमें हिम्मत ना थी सही को सही या गलत को गलत कहने की,ये तो ही जान सकती थी,इतने सालों से उसने कभी भी इस जुल्म के ख़िलाफ़ कोई भी आवाज़ नहीं उठाई थी,क्या पता कि उसका ज़मीर सो चुका था या कि हमेशा के लिए मर चुका था,शायद जुल्म सहना उसकी आदत में शुमार हो गया था या कि वो इसलिए आवाज़ नहीं उठा रही थी कि उसकी गिरस्ती कहीं बरबाद ना हो जाए, इन्द्रलेखा की चुप्पी साधने की क्या वज़ह थी ये तो केवल वो ही बता सकती थी,वो सुबह से उठकर ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(५)
इन्द्रलेखा भीतर जाकर भगवान के मंदिर के सामने खड़ी होकर फूट फूटकर रो पड़ी और भगवान से प्रार्थना करते बोली.... हे!ईश्वर! ये कौन-कौन से दिन दिखा रहा है मुझको,वो नन्ही सी बच्ची है कुछ तो तरस खाओ उस पर,कितनी भोली और मासूम है बेचारी,मुझ में वो अपनी माँ का रूप देखती है,लेकिन मैं उसे अपनी बेटी भी तो नहीं कह सकती क्योकिं जमींदार साहब ने उसे अपनी रखैल बनाकर रखा है,मैं उससे कौन सा नाता जोड़ू कुछ समझ में नहीं आता, लेकिन मैं एक औरत हूँ और वो भी एक औरत है तो उससे हमदर्दी का नाता तो ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(६)
इन्द्रलेखा और कुशमा इस बात से बेख़बर थी कि उनके पीछे जमींदार गजेन्द्र लठैतों की फ़ौज लेकर आ रहा जिनके हाथों में मशालें भी थी और साथ में मुनीम भी था,दोनों इस ताक में थीं कि कब उन्हें पक्की सड़क मिल जाए जिससे किसी मदद मिल सकें,लेकिन इतनी दूर चलने के बावजूद भी उन्हें पक्की सड़क ना मिली और पीछे से गजेन्द्र और उसके लठैत दोनों को खोजते हुए पहुँच ही गए उनके पास और फिर जमींदार गजेन्द्र जोर से चिल्लाया..... इन्द्रलेखा....रूक जा....! लेकिन इन्द्रलेखा ना रूकी उसने अपनी रफ्तार और भी बढ़ा ली,कुशमा का हाथ थामें वो बस ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(७)
केशर नहाकर आई तो शकीला उसके और अपने लिए खाना परोस लाई,दोनों ने मिलकर खाना खाया और कुछ देर करने के बाद अपने अपने नृत्य का रियाज़ करने लगी तभी दोनों के पास गुलनार आकर बोली... नवाबसाहब ने ख़बर भेजी है कि केशरबाई को मीना बाज़ार भेज दीजिए,जो भी लिबास़ और जेवरात पसन्द आएं तो वें ले सकतीं हैं.... लेकिन ख़ालाजान !मेरा मन नहीं है,केशर बोली।। आप भी ग़जब करतीं हैं केशरबाईं!वें आपको इतनी इज्जत के साथ खरीदारी के लिए बुला रहें हैं और एक आप हैं कि उनकी तौहीन कर रहीं हैं,गुलनार ख़ालाजान बोलीं।। लेकिन ख़ालाजान!सच ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(८)
ताँगा रूका, दोनों ताँगेँ से उतरीं फिर केशर ने ताँगेवाले को पैसे दिए और दोनों ने खरीदारी वाला सामान कर दरवाजे के भीतर चलीं गईं,तभी गुलनार ने आकर पूछा।। आप दोनों आ गईं,बहुत वक्त लगा दिया,ऐसी क्या खरीदारी हो रही थी? जी!ख़ाला! ये रहा सामान आप खुद ही देख लिजिए,मेरे सिर में दर्द है,मैं आराम करने जा रही हूँ,केशर बोली।। अरे! अचानक कैसे सिरदर्द होने? बाज़ार जाते वक्त तो आप भली-चंगीं थीं,गुलनार बोली।। वो क्या है ना ख़ाला! धूप कड़क थी ना! इसलिए सिर में दर्द हो रहा है केशर के,शकीला बचाव करते हुए बोली।। तो ठीक ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(९)
मंगल के जाने के बाद फ़ौरन ही शकीला,केशर के पास पहुँची,उसे देखकर केशर बोली..... ऐसी क्या बातें हो रहीं तेरे और गुलनार ख़ाला के बीच जो तूने इतनी देर लगा दी,मैं कब से खाने के लिए तेरा इन्तज़ार कर रही हूँ और तू अब आ रही है।। मत पूछ कि क्या हुआ? शकीला बोली।। क्यों ऐसा कौन सा सितम हो गया तुझ पर,केशर बोली।। अरे ! सितम होते होते रह गया,शकीला बोली।। ये क्या पहेलियांँ बुझा रही है? साफ साफ क्यों नही कहती?केशर बोली।। अरे! वो आया था...,शकीला बोली।। कौन आया था?भूत...आया था...केशर ने पूछा।। नहीं! मंगल आया था,शकीला ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(१०)
मंगल को परेशान सा देखकर रामजस बोला.... मंगल भइया! इतना परेशान क्यों हो रहो ?मेरी माँ की भी अजीब़ है।। मुझे नहीं सुनाओगे अपनी माँ की दास्ताँ,मंगल बोला।। क्या करोगे सुनकर? रामजस बोला।। अभी थोड़ी देर पहले तुम ही तो कह रहे थें कि मन का दर्द बाँटने से मन हल्का होता है तो तुम भी मुझसे अपने दर्द बाँट सकते हो,मंगल बोला।। ठीक है तो आज तुमसे मैं भी अपने दर्द बाँट ही लेता हूँ,तो सुन लो तुम भी मेरी रामकहानी और इतना कहकर रामजस ने अपनी कहानी कहनी शुरू की..... मेरी माँ अनुसुइया एक प्रतिष्ठित परिवार ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(११)
मत रो मेरे भाई! अब से तू खुद को अकेला मत समझ,मैं हूँ ना ! तेरे दुःख बाँटने के बोला।। लेकिन मंगल भइया! कभी कभी जब माँ की हालत के बारें में सोचता हूँ तो रोना आ ही जाता है,जैसी बततर जिन्द़गी काटी है ना! मेरी माँ ने तो वो उनकी बदकिस्मती थी,हवेली में रहने वाली एक शरीफ़ घर की बेटी को तवायफ़ बनना पड़ा,इस समाज ने उन्हें ऐसा बनने पर मजबूर कर दिया,रामजस बोला।। सही कहते हो भाई! क्या सभी औरतों की किस्मत में ऐसी ही जिन्द़गी लिखी होती है या फिर हम जिन औरतों को जानते ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(१२)
फिर कुछ देर सोचने के बाद केशर बोली.... क्या कहा तुमने? तुम मंगल भइया के दोस्त हो और यहाँ कहने पर आएं हो।। जी!हाँ! आप उनसे बात करने को तैयार ना थीं,इसलिए उन्होनें मुझसे कहा कि मैं आपके पास जाकर आपसे बात करूँ,रामजस बोला।। लेकिन क्यो वो मुझ तक अपनी बात पहुँचाना चाहते हैं?जो वें चाहते हैं वो कभी नहीं हो सकता,केशर बोली।। क्यों नहीं हो सकता? आपके भाई आपको इस दलदल से निकालने के लिए एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगाने को तैयार हैं और आप कहतीं हैं कि ये हो नहीं सकता,रामजस बोला।। तुम्हारी अकल क्या ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(१३)
कोठे के बाहर मंगल ,रामजस का इन्तज़ार ही कर रहा था,जब रामजस मंगल के पास पहुँचा तो मंगल ने रामजस से पूछा.... क्या कहती थी कुशमा? कहती थी कि मंगल भइया से कहना कि मेरे लिए अपनी जान जोखिम में ना डालें,अपना ख्याल रखें,अगर उन्होंने मुझे इस दलदल से निकाल भी लिया तो क्या ये समाज हम दोनों को साथ में रहने देगा?लोंग मेरे भाई को तवायफ़ का भाई कहकर पुकारेगें और मुझे ये मंजूर नहीं,रामजस बोला।। ऐसा कहती थी,मंगल बोला।। हाँ! मंगल भइया! भीतर से बहुत दुखी थी,रामजस बोला।। तो तुमने उससे कुछ नहीं कहा,मंगल ने पूछा।। मैनें ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(१४)
बहु-बेग़म झरोखे पर अपने बीते हुए कल को याद करने लगी,उसके अब्बाहुजूर निहायती गरीब थे,उसकी अम्मी कैसे एक एक की बजत किया करती थी,अब्बा किसी जमींदार के यहाँ मुलाजिम थे,उसके खेतों में काम किया करते थे,बस दो वक्त की रोटी जुट जाती थी नसीब से, उस वक्त हमने जाना था कि ग़रीबी क्या होती है? जब पेट के लिए रोटी ना हो और बदन पर कपड़े ना हो तो वो ग़रीबी कहलाती है,सर्दियों में झोपड़े में आते ठण्डी हवा के झोंकें हड्डियाँ तक कँपा जाते थे और गर्मियों में गर्म हवा के थपेड़े बदन झुलसाने का काम करते ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(१५)
नवाबसाहब के जाते ही गुलनार ने केशर से पूछा... क्या हुआ केशर! नवाबसाहब ऐसे ख़फा होकर क्यों चले गए? उनसे ऐसा क्या कह दिया? जी! ख़ालाजान वें मुझे मेरी औकात बता रहे थे तो मैने भी उनको उनकी औकात बता दी,केशरबाई बोली।। लेकिन क्यों ऐसा क्या हुआ? हमें भी कुछ बताएं,गुलनार बोली।। जी! आपको वक्त आने पर पता चल ही जाएगा,केशर बोली।। आपको मालूम होना चाहिए कि वें आपके कद़रदानों में से एक हैं,गुलनार बोली.... कद़रदान.....हा....हा....सच में ख़ालाजान!आपको भी ऐसा लगता है,इस मतलबी दुनिया में तवायफ़ो के कद़रदान कबसे पैदा होने लगे?वे मेरे कद़रदान नहीं हैं, वे केवल अपनी ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(१६)
गुलनार और नवाबसाहब को ये मालूम नहीं चला कि उन दोनों की बातें परदे के पीछे से बहु-बेग़म सल्तनत रहीं थीं,दोनों की साजिश का पर्दाफाश करने के लिए सल्तनत फौरन ही सादे कपड़ो में बुर्का डालकर एक नौकर से मंगल की कोठरी का पता पूछते हुए वहाँ जा पहुँचीं,वहाँ मंगल तो मौजूद नहीं था लेकिन रामजस मौजूद था,वो शायद दोपहर का खाना खाने आया था,तभी सल्तनत ने रामजस से पूछा.... मंगल कहाँ हैं? जी! अभी वें कुछ देर पहले ही यहाँ से खाना खाकर गए हैं,रामजस बोला।। ओहो....तब तो देर हो गई हमें,सल्तनत बुर्के के भीतर से ही ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(१७)
दोनों का खाना बस खत्म ही हो चुका था कि तभी बुर्के में सल्तनत उनके पास आ पहुँची सल्तनत देखते ही मंगल बोला.... अरे,बहु-बेग़म! आप ! यहाँ और इस वक्त... हाँ! हमें आना ही पड़ा,हम ये कहने आए थे कि आप दोनों फौरन यहाँ से भाग जाइए और हो सके तो साथ में केशर को भी को कोठे से लिवा लीजिए क्योकिं अब नवाबसाहब के सिर पर ख़ून सवार है और वे अपनी बेइज्जती का बदला केशर से जुरूर लेकर रहेगें,उनका पूरा पूरा साथ गुलनार दे रही है,सल्तनत बोली।। आप परेशान ना हों,बहु-बेग़म! हम दोनों भी बस यही सोच रहे ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(१८)
घायल लठैत की बात सुनकर गुलनार बोली... जाने दीजिए उन्हें,जी लेने दीजिए अपनी जिन्द़गी,केशरबाई बड़े नसीबों वालीं निकलीं तभी उन्हें उनका भाई अपनी जान पर खेलकर उन्हें यहाँ से ले गया,हम जैसे बदनसीबों के तो भाई ही नहीं होते...... तो क्या आप ने केशर को बख्श दिया? घायल लठैत बोला।। कभी कभी कुछ भलाई के काम भी कर लेने चाहिए,गुलनार बोली।। और इतना सुनकर घायल लठैत भीतर चला गया और उसके जाते ही सल्तनत ने गुलनार से पूछा... तो क्या आपने उन सबको वाकई ब्ख्श दिया, कुछ इन्सानियत हमें भी दिखाने का मौका दीजिए,हमें भी तो ऊपर जाकर खुदा ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग(१९)
सबको दवाखाने से लौटते-लौटते दोपहर हो चुकी थी,सबके मन में हलचल भी मची थी कि माई अंग्रेजी में गोरे से क्या गिटर-पिटर कर रही थी ?क्योकिं चारों में से कोई भी पढ़ा लिखा नहीं था,किसी को ना तो हिन्दी पढ़नी और ना ही हिन्दी लिखनी आती थी अंग्रेजी तो दूर की बात थी,बस शकीला और कुशमा को ऊर्दू इसलिए आती थी कि उन्हें गुलनार ने ऊर्दू पढ़ना सिखवाया था एक मदरसे के मौलवी साहब से,चूँकि दोनों को गजलों की किताबें पढ़नी होतीं थी इसलिए.... सभी झोपड़ी में दाखि़ल हुए,सबसे पहले कुशमा ने सबको घड़े का ठण्डा पानी पिलाया ...और पढ़े
वेश्या का भाई - भाग (२०)
माई की कहानी सुनकर सबका मन द्रवित हो आया और तब रामजस बोला.... तो ये है आपके विजयलक्ष्मी से लगाने वाली माई तक के सफर की कहानी,महलों में रहने वाली ऐसे दर-दर की ठोकरें खाती रही और इस पापी समाज को जरा भी दया ना आई,वो पति जिसके सहारे एक औरत अपना सबकुछ छोड़कर उसके पास आती है और वो गैरों की बातों में आकर उसका निरादर करके घर से निकाल देता है,यहाँ तक जन्म देने वाले बाप से भी एक बार बेटी का दर्द पूछा ना गया,छी...घिन आती है ऐसे लोगों पर जो समाज की दुहाई देते रहते ...और पढ़े
वेश्या का भाई - (अन्तिम भाग)
जब रामजस चुप हो गया तो कुशमा ने उससे कहा... तुम चुप क्यों हो गए? जी! आपने ही तो रहने को कहा मुझसे,रामजस बोला।। अच्छा वो सब छोड़ो पहले ये बताओ तुमने अपनी दवा खाई,कुशमा ने पूछा।। जी! नहीं!मैं खाना खाकर बाहर ही आकर बैठ गया,रामजस बोला।। समय से दवा नहीं खाओगे तो ठीक कैसें होगें,कुशमा बोली।। भीतर जाते ही खा लेता हूँ,रामजस बोला।। मेरे बरतन धुल गए हैं ,मैं इन्हें रखने जा रही हूँ साथ में तुम्हारी दवा भी लेती आऊँगीं भीतर से और फिर कुशमा बरतन की डलिया उठाकर भीतर चली गई और रामजस की दवा और ...और पढ़े