तन्हा सफ़र: जज़्बातों की छांव में भीगा इश्क़ - 16 Babul haq ansari द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तन्हा सफ़र: जज़्बातों की छांव में भीगा इश्क़ - 16

                       भाग 16

             रचना: बाबुल हक़ अंसारी


                  “उजाले की क़सम”





        [रौशनी की लहर…]

जैसे ही अयान और रिया ने एकसाथ छुरा उठाकर साए पर वार किया,
प्लेटफ़ॉर्म एक तेज़ रौशनी से भर गया।

   दीवारें काँप उठीं, हवा में बारूद और राख का गाढ़ा        धुआँ भर गया।
     साए की चीख़ दूर तक गूंजने लगी—

  “न-नहीं… इश्क़ की रौशनी… मुझे जला नहीं सकती!”



लेकिन रौशनी थमने का नाम नहीं ले रही थी।
रिया की आँखों से आँसू बहते रहे, अयान के माथे पर पसीना चमकने लगा,
फिर भी दोनों ने हाथ कसकर पकड़े रखे।



    [अंधेरे की आख़िरी जंग…]

रूद्र का साया अब भी पूरी ताक़त से झूम रहा था।
उसकी आकृति धुएँ से बनती और मिटती जा रही थी।

   आर्यन चिल्लाया—
   “अयान! रिया! हारना मत… ये साया तुम्हारे इश्क़ से     डरता है।
बस अपने दिल को मज़बूत रखो, यही तुम्हारा हथियार है।”

    अयान ने दाँत भींचकर कहा—
“रिया… क़सम खा, चाहे जान चली जाए… हम इस अंधेरे को मिटाए बिना नहीं रुकेंगे।”

रिया ने उसकी आँखों में देखा और फुसफुसाई—
“क़सम… जब तक साँस है, तेरा साथ मेरा उजाला रहेगा।”

     उनके शब्द जैसे मंत्र बनकर गूंज उठे।


    [साया टूटने लगा…]

   रूद्र की परछाई अचानक चीख़कर पीछे हटी।
   उसके चारों ओर से चिंगारियाँ फूटने लगीं।

      “नहीं… ये इश्क़… ये रौशनी… ये तो मेरी मौत है!”



  धुआँ बवंडर की तरह घूमकर आकाश में समाने लगा।
  प्लेटफ़ॉर्म की टूटी दीवारें धीरे-धीरे शांत हो गईं।

     लेकिन उसी सन्नाटे में एक और गूंज उठी—
“याद रखना… इश्क़ जितना मज़बूत होगा… उतनी ही बड़ी क़ीमत माँगेगा।”

  और साया अचानक धुंध बनकर ग़ायब हो गया।


   [खामोशी के बाद…]

  रिया थककर अयान के सीने से लग गई।
  उसके आँसू अब राहत में बह रहे थे।

अयान मुस्कुराया, मगर उसकी आँखों में थकान और दर्द साफ़ झलक रहा था।
“रिया… हमने जीत ली… लेकिन ये साया कुछ कह गया है।
मुझे लगता है… असली जंग अभी ख़त्म नहीं हुई।”

आर्यन ने दोनों को सहारा देते हुए कहा—
“सही कहा अयान। नफ़रत का साया मिटा है, मगर उसके पीछे जो राज़ छुपा है…
वो अभी सामने आना बाकी है।”




   [क्लिफहैंगर…]

दूर कहीं पटरी पर हल्की आहट गूंजी।
जैसे कोई छिपकर सब देख रहा हो।

रिया ने डरते हुए पूछा—
“क्या… कोई और भी था यहाँ?”

आर्यन ने कंधे पर हाथ रखकर कहा—
“हाँ, रिया। इस खेल का असली खिलाड़ी अभी सामने नहीं आया है।”

अयान ने आसमान की ओर देखते हुए बुदबुदाया—
“तो क़सम है इस उजाले की… अब चाहे जो हो,
हम अपनी मोहब्बत को अधूरा नहीं छोड़ेंगे।”




     “सच का छिपा  खिलाड़ी

 “सच का छिपा खिलाड़ी”


[अजनबी आहट…]

पटरी की गूँज और भी साफ़ होती जा रही थी।
अयान ने रिया को अपने पीछे कर लिया, जबकि आर्यन ने मुट्ठी कस ली।

अंधेरे से एक परछाई धीरे-धीरे बाहर आई—
काले कोट में, चेहरे पर नकाब, और हाथ में चमकता हुआ ब्रीफ़केस।

     उसकी आवाज़ ठंडी थी—

    “तुमने रूद्र को हरा तो दिया… लेकिन खेल अभी शुरू हुआ है।”



रिया काँप गई—
“तू कौन है?”

वो हँस पड़ा—
“मैं ही असली खिलाड़ी हूँ… रूद्र तो बस मोहरा था।
असल दांव अभी लगना बाकी है।”

अयान की आँखों में आग भर गई—
“तो अब साया नहीं… तेरा सामना हमारे इश्क़ से होगा।”


     अगले भाग में:
कौन है ये नकाबपोश खिलाड़ी?
क्या वो अयान और रिया की मोहब्बत को तोड़ने में कामयाब होगा?

    भाग 17: “खिलाड़ी का खुला पन्ना”
रचना: बाबुल हक़ अंसारी