अंश, कार्तिक, आर्यन - 1 Renu Chaurasiya द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अंश, कार्तिक, आर्यन - 1

पुलिस स्टेशन के सामने, धूप में झुलसता हुआ एक बूढ़ा आदमी घुटनों के बल पड़ा था।

उसकी आँखों के आंसू कब के सूख चुके थे, पर चेहरा अब भी रो रहा था।

उसकी कांपती उंगलियाँ जमीन पर ऐसे चल रही थीं जैसे हर कण से अपने बेटे का निशान तलाश रही हों।


उसके झुके कंधे… मानो पूरी दुनिया का बोझ ढो रहे हों।उसका शरीर थका हुआ था,


लेकिन दिल अब भी उम्मीद से भरा हुआ—कि शायद आज… कोई तो उसकी पुकार सुन ले।

दरवाज़ा अचानक चरमराया।

एक पुलिसवाला बाहर निकला। उसकी आँखों में झुंझलाहट और आवाज़ में ज़हर टपक रहा था।


“अरे बुड्ढे! फिर आ गया तू?”उसने धक्का देते हुए कहा—“कितनी बार कहा है, यहाँ से भाग जा।

तेरे बेटे की लाश तक नहीं मिलेगी तुझे!”

बूढ़ा काँपती आवाज़ में बोला—“साहब… बस एक बार… मेरे बच्चे की ख़बर…”

“ख़बर?” पुलिस वाला ठहाका मारकर हंसा।“तेरा बेटा… उसने बड़े लोगों से पंगा लिया।

औक़ात से ऊपर सपने देखे।अब भुगत… यही अंजाम है।”

उसकी आँखें सिकुड़ गईं, और उसने ज़हर उगलते हुए कहा—“मुर्दाघरों में ढूंढ, हो सकता है सड़ी-गली लाश मिल जाए।

या नदी के मगरमच्छों ने खा लिया हो।”

इतना कहकर उसने जोर से धक्का दिया।बेचारा बूढ़ा पत्थरों पर जा गिरा।

उसके होंठ फट गए, खून रिसने लगा।लेकिन उसने आवाज़ तक नहीं निकाली—मानो दर्द सहना अब उसकी आदत बन चुका हो।


वह अपनी लकड़ी टटोल रहा था, कांपते हाथों से उठने की कोशिश कर रहा था।

ठोकर खाकर गिरने ही वाला था कि तभी…

दो मजबूत हाथों ने उसे थाम लिया।

“सर… सावधान!”

बूढ़े ने ऊपर देखा।सामने खड़ा एक जवान लड़का उसे गहरी नज़रों से देख रहा था।

“आपको… याद नहीं आया?” उसकी आवाज़ धीमी थी, पर दिल में कसमसाहट थी।


“मैं कार्तिक… कार्तिक रॉय। आपका पुराना छात्र।”

बूढ़े की आँखों में धुंधली चमक कौंध गई।“कार्तिक… तू?”

“हाँ सर।

आपने मुझे पढ़ाया था।

मैं विदेश चला गया था पढ़ाई के लिए।

अभी लौटा हूँ… और आपसे मिलने की सोची थी।

लेकिन आपको इस हालत में देखकर…”

उसकी आवाज़ रुक गई।

“और आपका बेटा…? वो कहाँ है सर? अब तो बड़ा हो गया होगा न?”

बस इतना सुनते ही बूढ़ा टूट गया।

उसने कांपते हुए कार्तिक के गले में सिर छुपा लिया और फूट पड़ा।

“मार डाला… उन्होंने मेरे बेटे को मार डाला!”उसकी चीख पूरे थाने के बाहर गूँज उठी।

“क्या कसूर था उसका?सिर्फ इतना कि उसने सच बोला… और बड़े लोगों के खिलाफ खड़ा हुआ।”


उसका शरीर कांप रहा था, सांसें हिचकियों में टूट रही थीं।“दो साल… दो साल से मैं इस थाने के चक्कर लगा रहा हूँ।


लेकिन मुझे बस धक्के मिले, अपमान मिला।न्याय… किसी ने नहीं दिया।”

उसने अपने बेटे का नाम लेकर आकाश की तरफ हाथ उठाए और चीख पड़ा—

“वो मेरा बच्चा था… मेरा सबकुछ…किस जुर्म की सजा मिली उसे?”

कार्तिक वहीं खड़ा रह गया।उसकी आँखों में सन्नाटा था… और दिल में गुस्से की आग भड़क रही थी।


________________________

"सन 1999, दोपहर 12 बजे"

ऑपरेशन थिएटर के बाहर गौतम सर बेचैन खड़े थे।

वह लगातार टहल रहे थे—मानो हर कदम उनके दिल की धड़कन के साथ गिर रहा हो।

अंदर से उनकी पत्नी की चीखें सुनाई दे रही थीं।

उनकी आँखें लाल बत्ती पर टिकी थीं—जो लगातार जल-बुझ रही थी।

हर सेकंड उन्हें पहाड़ जैसा भारी लग रहा था।

अचानक…एक नन्ही-सी किलकारी गूँजी।गौतम सर की आँखें चमक उठीं।

दरवाज़ा खुला।एक नर्स उनके हाथों में गुलाबी-सा नवजात लेकर बाहर आई।

“बधाई हो, सर।”

गौतम सर के चेहरे पर राहत आई, लेकिन अगले ही पल डॉक्टर की आवाज़ ने सब तोड़ दिया—


“सॉरी गौतम सर… हम आपकी पत्नी को नहीं बचा पाए।”

डॉक्टर ने रुककर कहा—

“यह बच्चा… आपकी पत्नी की आख़िरी निशानी है।

इसे अपना सबकुछ समझकर संभालिए।”

गौतम सर के हाथ काँप रहे थे।

उन्होंने बच्चे को उठाया, उसके नन्हे चेहरे को देखा और उसी पल उनकी आँखों से अश्रुधार बह निकली।


उन्होंने बच्चे को सीने से चिपका लिया और टूटे स्वर में बोले—

“मेरी पत्नी कहीं नहीं गई…वो मेरे बेटे के रूप में लौट आई है।”

“मेरा बेटा मेरी पत्नी का अंश है।

इसका नाम होगा अंश।”

उस दिन से अंश ही उनकी दुनिया बन गया।

वो पिता भी थे और माँ भी।

हर रात बच्चे को सीने से लगाकर सुलाते, हर सुबह उसकी मुस्कान में अपनी पत्नी का चेहरा ढूंढते।

धीरे-धीरे वक्त बीतने लगा।

अंश बड़ा हुआ।वह हर चीज़ में नंबर वन था—

पढ़ाई हो या खेल।गौतम सर उसे देखकर गर्व से भर जाते। 


क्या है अंश का सच जानना चाहते हो तो मेरे साथ मेरी यात्रा के साथी बनो  

धन्यवाद