सिंहासन - 2 W.Brajendra द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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सिंहासन - 2

सिंहासन – अध्याय 2: नागों का द्वार

(एक शाप, एक खोज, और एक सिंहासन जिसे छूना मौत को न्योता देना है…)



स्थान: देवगढ़ किला – गुप्त सुरंग के अंतिम द्वार के पार
समय: रात – आधी रात के बाद का पहर

दरवाज़ा खुला तो एक गहरी सर्द हवा का झोंका आरव के चेहरे से टकराया।
उसके कानों में गूंजती आवाज़ अब भी हल्के स्वर में दोहराई जा रही थी –
“स्वागत है… जो लौटकर नहीं आते।”

आरव ने लालटेन को ऊँचा किया।
सामने एक विशाल गुफा थी – दीवारों पर उभरे नागों की मूर्तियाँ, जिनकी आंखों में जड़े पत्थर अंधेरे में चमक रहे थे।

हर कदम के साथ, आरव को लगता जैसे कोई उसे देख रहा हो। हवा में साँपों की फुफकार सी गूंज रही थी, पर वह जानता था – अब पीछे लौटना नामुमकिन था।



नागों का सभागार

गुफा का अंत एक गोल सभागार में हुआ। दीवारों पर 12 अलग-अलग द्वार – हर एक द्वार पर एक अलग प्रतीक।

एक पर त्रिशूल,

दूसरे पर चक्र,

एक पर नागफन – जो बाकी सभी से अधिक स्पष्ट और चमकदार था।


आरव ने डायरी का पन्ना निकाला।
चित्र में यही सभागार बना था – और एक संकेत:

 “जहाँ नाग जागते हैं, वहीं सिंहासन सोता है।
लेकिन केवल वही जा सकता है, जो अपने भीतर के डर को मार चुका हो।”



आरव ने साँस ली और नागफन वाले द्वार की ओर बढ़ा।
जैसे ही वह उसके करीब पहुँचा, ज़मीन कांप उठी।
दीवारों से एक के बाद एक जीवित नाग बाहर आने लगे — जैसे पत्थरों ने आकार ले लिया हो।

उसने तुरंत अपनी जेब से वह अंगूठी निकाली जिसमें त्रिशूल का चिह्न था।
अंगूठी को सामने लाते ही नागों ने पीछे हटना शुरू कर दिया — लेकिन एक नाग, सबसे बड़ा, आरव के सामने आ खड़ा हुआ।


---

मृत्यु का द्वार

उस विशाल नाग की आंखों में कुछ मानव जैसी पीड़ा थी।
फिर… उसकी देह धीरे-धीरे पिघलने लगी — और सामने एक स्त्री खड़ी हो गई।

लंबे बाल, सांवला चेहरा, माथे पर नाग की आकृति – वह किसी ऋषि की तरह प्रतीत होती थी।

"तुम आरव हो?" उसने पूछा।

आरव चौंका, "आप कौन हैं?"

"मैं नागविद्या की अंतिम रक्षक हूँ – वृन्दा। और ये सिंहासन… सिर्फ एक वस्तु नहीं, एक चेतना है।"

आरव धीरे-धीरे समझने लगा कि यह कोई साधारण ऐतिहासिक खोज नहीं थी।
वृन्दा ने आगे कहा:

"हर 108 वर्ष बाद कोई एक व्यक्ति आता है जो सिंहासन तक पहुँचने की योग्यता रखता है। पर योग्यता शक्ति से नहीं, आत्म-बलिदान से मिलती है।"

"बलिदान?" आरव ने पूछा।

"तुम्हें उस एक चीज़ को छोड़ना होगा, जिससे तुम सबसे अधिक जुड़े हो।
अगर तुम झूठ बोलो, तो सिंहासन तुम्हें जीवित निगल जाएगा।
अगर तुम्हारी नीयत अपवित्र हो, तो तुम समय में खो जाओगे – अतीत में फँसकर।"

आरव के होंठ सूखने लगे।
"और अगर मैं सफल हो जाऊँ?"

"तो तुम एक रहस्य बन जाओगे।
इस संसार का वह सत्य जान पाओगे जिसे जानकर कोई मनुष्य अब तक जीवित नहीं रहा।"


---

नाग द्वार का खुलना

वृन्दा ने नागफन द्वार की ओर हाथ बढ़ाया – और द्वार स्वयं खिसकने लगा।
सामने एक सीधी सुरंग थी, जिसमें प्रकाश की एक लहर गूंज रही थी।

"यह रास्ता तुम्हारा परीक्षण है," वृन्दा ने कहा।
"हर मोड़ पर तुम्हारे विचार तुम्हारे विरुद्ध होंगे।
तुम्हारा भय, तुम्हारी स्मृतियाँ, तुम्हारा पाप — सब एक-एक करके तुम्हें रोकने आएँगे।"

आरव ने सिर झुकाया और पहला कदम आगे बढ़ाया।

पीछे से वृन्दा की आवाज़ आई –
"आरव… जो अंदर गया है, वह वही नहीं रहता जो बाहर था।"




अंतिम दृश्य

जैसे ही आरव सुरंग में घुसा, द्वार अपने आप बंद हो गया।
अंदर अंधकार था… और एक हल्की सी सरसराहट — जैसे कोई उसके पीछे चल रहा हो…

और फिर…

एक गूंजती आवाज़…

 “क्या तुम अपने भीतर के नाग को पहचानते हो…?”



 जारी रहेगा…

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