फोकटिया - 3 DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फोकटिया - 3

 जब नक़ाब उतरता है

(पुस्तक: फोकटिया | लेखक: धीरेन्द्र सिंह बिष्ट)

“सच बोलने में ताक़त होती है,

मगर डर उससे होता है जो झूठ की आदत में जीता है।”

कमल को उम्मीद नहीं थी कि राजीव जवाब देगा।

वो अब भी राजीव को उसी रूप में देख रहा था—चुप रहने वाला, सब कुछ सहने वाला, “ना” न कहने वाला। लेकिन इस बार कहानी पलट गई थी।

जब राजीव ने सोशल मीडिया पर अपनी भावनाएँ खुलकर रखीं और लोगों का समर्थन मिलने लगा, तो कमल को पहली बार एहसास हुआ—अब खेल उसके हाथ से फिसल चुका है।

धीरे-धीरे सब कुछ साफ़ होता गया

राजीव ने कहीं भी कमल का नाम नहीं लिया था, मगर जो भी कहानी जानते थे, उन्हें समझ आ गया था कि बात किसकी हो रही है।

कमल को लग रहा था कि यह सब सिर्फ एक झोंक में किया गया इमोशनल डिस्प्ले है, जो थोड़े समय में शांत हो जाएगा।

लेकिन जब उसके अपने दोस्त—वो जो कभी उसके हर मज़ाक पर हँसते थे—अब सवाल पूछने लगे, तब कमल घबरा गया।

“भाई, तूने सच में कभी उसकी मदद नहीं की?”

“क्या तूने पीठ पीछे वाकई उसकी बुराई की?”

“राजीव इतना तो बुरा नहीं है जैसा तू बता रहा है…”

नक़ाब के पीछे का चेहरा

पहली बार कमल के चारों ओर शक की दीवारें खड़ी होने लगी थीं।

उसने सब संभालने की कोशिश की।

WhatsApp ग्रुप में एक पोस्ट लिखा:

“बात सिर्फ पैसों की नहीं, बात है ego की। राजीव को लगने लगा कि वो बहुत ऊपर उठ गया है। मगर बड़ा बनने के लिए दिल भी बड़ा होना चाहिए।”

राजीव तक यह पोस्ट भी पहुँच गई।

उसने सिर्फ इतना कहा:

“अब नक़ाब उतर चुका है। जो बचा है, वो बस तमाशा है।”

राजीव अब वही नहीं था जो चुप रहकर सब सहता था।

अब वो सच को छुपाता नहीं था—लेकिन उसे चीखकर नहीं, सादगी से सामने रखता था।

सच्चाई की ताक़त

राजीव ने अपने एक पत्रकार दोस्त से संपर्क किया।

उसका नाम था श्रुति।

राजीव ने कहा, “मुझे किसी का नाम लिए बिना एक असली कहानी पब्लिश करनी है। बस ये सच्चाई लोगों तक पहुँचे।”

श्रुति ने एक ब्लॉग लिखा:

“मित्रता या मुफ़्तखोरी? एक असली किस्सा”

उसमें राजीव की कहानी थी—एक ऐसा दोस्त जो हर मोड़ पर सिर्फ लेता गया, कभी लौटाया नहीं।

कोई नाम नहीं, कोई आरोप नहीं—सिर्फ अनुभव।

यह ब्लॉग आग की तरह फैला।

लोगों ने लिखा:

“मेरे साथ भी यही हुआ।”“मैंने भी एक toxic friend से रिश्ता तोड़ा।”“अब समझ आया कि ‘ना’ कहना ज़रूरी होता है।”

कमल के पास अब कुछ बचा नहीं था।

उसके मज़ाक अब मज़ेदार नहीं लगते थे।

वो ग्रुप्स में अकेला पड़ गया था।

ग्रुप का नाम बदल दिया गया:

“No More Fokatia Jokes”

कमल को ग्रुप से निकाल दिया गया।

अब वो अकेला था।

एक रात की कॉल

एक रात करीब 10:30 बजे, राजीव के मोबाइल पर कॉल आया—कमल का।

राजीव ने स्क्रीन देखा।

कुछ पल सोचा।

फिर कॉल उठा लिया।

“हेलो…”

राजीव की आवाज़ सधी हुई थी।

कमल की आवाज़ डरी हुई थी।

“भाई… बात तो कर… तू इतना बदल गया?”

राजीव शांत था।

“बदलना ग़लत है क्या?”

कमल चुप।

“मैंने कुछ नहीं किया, कमल। तूने जो किया, बस वो अब सबको दिखने लगा है।”

कमल ने फिर से दोस्ती की बात की। कहा:

“चल छोड़, एक बार मिलते हैं। बातें करते हैं।”

राजीव ने जवाब दिया:

“बैठने और बात करने के लिए रिश्ता बचा होना चाहिए। और जहाँ रिश्ता सिर्फ एक के फायदे के लिए हो, वहाँ बात का कोई मतलब नहीं।”

इतना कहकर उसने कॉल काट दिया।

अब कमल सिर्फ एक नाम था

राजीव ने फिर पीछे नहीं देखा।

उसने अपने करियर पर ध्यान देना शुरू किया।

नए दोस्त बनाए—वे जो सम्मान करते थे, समझते थे।

अब वह हर किसी से जुड़ता नहीं था—सिर्फ उन्हीं से जो बराबरी निभा सकें।

कमल अब सिर्फ एक सबक था।

एक चेहरा जो कभी हँसी देता था, अब सीख बन चुका था।

“दुनिया में ऐसे लोग बहुत मिलेंगे जो तुम्हें तब तक याद रखेंगे जब तक तुम उन्हें कुछ देते हो।

मगर सच्चे रिश्ते वो होते हैं, जो तुम्हारी ‘ना’ सुनने के बाद भी तुम्हारे साथ खड़े रहें।”