रावी की लहरें - भाग 12 Sureshbabu Mishra द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रावी की लहरें - भाग 12

बचपन की होली

 

उस समय मैं बदायूँ नगर के एस. के. इण्टर कालेज में फस्ट ईयर में पढ़ रहा था। कालेज में होली की छुट्टियाँ हो गई थी, और मैं होली मनाने गाँव आ गया था। उन दिनों होली का त्योहार कम से कम एक सप्ताह तक चलता था। मेरा गाँव चंदोखा दातागंज तहसील में रामगंगा नदी के किनारे बसा हुआ था। शिक्षा और विकास की दृष्टि से उन दिनों हमारा गाँव बहुत पिछड़ा हुआ था । दातागंज से गाँव तक आने-जाने का कोई साधन नहीं था। आठ किलोमीटर की दूरी पैदल, साइकिल या बैलगाड़ी से तय करनी पड़ती थी। मगर इस सबके बावजूद गाँव में खूब खुशहाली थी और लोगों में आपस में बड़ा मेल-जोल था । होली का त्योहार गाँव में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता था। गाँव के जो लोग बाहर काम करते थे या जो बच्चे शहर में पढ़ते थे वे सब होली पर गाँव आ जाते थे। मेरे भी दो बड़े भाई शहर में सर्विस करते थे। मगर हर बार होली पर वे लोग अपने बच्चों सहित गाँव आ जाते थे। गाँव में आठ दिन पहले से ही होली की गहमा-गहमी शुरू हो जाती थी। गाँव में एक थे लम्बे चौधरी । उनका असली नाम क्या था किसी को नहीं मालूम, सब उन्हें लम्बे चौधरी के नाम से ही जानते थे। लम्बी चौड़ी कद काठी, गठा हुआ शरीर और रूआबदार चेहरा | निपट अनपढ़ थे। मगर उनकी स्मरण शक्ति बड़ी गजब की थी। रामचरित मानस की कई चौपाइयां और गीता के कई श्लोक उन्हें बड़ी अच्छी तरह कंठस्थ थे। बातचीत में जब वे चौपाई या श्लोक सुनाते थे तो किसी को सहज ही यह अनुमान नहीं हो पाता था कि वे अनपढ़ हैं | लम्बे चौधरी आल्हा, सुनने के बड़े शौकीन थे। बरसात के दिनों में वे अक्सर मुझे बुला लेते और घंटों मुझसे आल्हा पढ़वाकर सुनते। लम्बे चौधरी स्वभाव के बड़े रसिया थे। गाँव की अपनी हम उम्र औरतों से घंटों बतियाना उनकी फितरत थी। सबके साथ हंसी-ठिठोली करना उनका स्वभाव था। अपने पाँच भाइयों में वे सबसे बड़े थे। उन्होंने शादी नहीं की थी और बाल ब्रह्मचारी थे। उनके बीस - बाइस भतीजे थे। एक से एक लुंगाड़े जवान। इसीलिए गाँव में किसी की क्या मजाल भी कि कोई उनकी शान में गुस्ताखी कर सके। हम लोग गाँव के रिश्ते से उन्हें बाबा कहते थे, मगर लम्बे चौधरी हम लोगों से भी हंसी मजाक और ठिठोली करने से नहीं चूकते थे। 

इस बार हम लोगों ने होली पर लम्बे चौधरी को उनकी हंसी मजाक का जवाब उन्हीं के अन्दाज में देने की योजना बनाई । लम्बे चौधरी को छेड़ने का मतलब था, सांप के बिल में हाथ डालना। मगर हम लोग अपने निर्णय पर अंडिंग थे। हमारी योजना तब और आसान हो गई। जब लम्बे चौधरी के हम उम्र चार-पाँच भतीजे हमारी योजना में शामिल हो गए। 

होली के चार-पाँच दिन बाकी रह गये थे। गाँव में होली का उल्लास पूरे जोरों पर था। रात को काफी देर तक बड़ी चौपाल पर ढोल-नगाड़े के साथ होली के गीत होते रहते और आधी रात के बाद शुरू होता गाँव की होली को ऊँचा और बड़ा करने का अभियान । दो समूह बनाये जाते । पहले समूह में गाँव के प्रौढ़ लोग शामिल रहते और दूसरे में नौजवान और किशोर । सब दूर-दूर से सूखी लकड़ी पेड़ों की टहनी, पुराने ठूंठ लेकर आते और होली पर डालते। 

एक रात जब सब लोग होली बढ़ाने के अभियान के लिए चले गए तो योजना के अनुसार हम लोग लम्बे चौधरी की चौपाल पर पहुँचे मगर हम लोग यह देखकर हैरान रह गए कि लम्बे चौधरी जाग रहे थे। लगातार तीन दिन तक हम लोग आधी रात के बाद लम्बे चौधरी की चौपाल पर जाते रहे मगर हमें सफलता हाथ नहीं लगी। 

अगली रात को जब हम लोग लम्बे चौधरी की चौपाल पर पहुँचे तो हम सब की बांछे खिल गई। वे गहरी नींद में सो रहे थे और उनके खर्राटे दूर-दूर तक गूंज रहे थे। ईश्वर शायद आज हम लोगों पर कुछ अधिक ही मेहरवान था। लम्बे चौधरी चौपाल पर बिल्कुल अकेले थे। 

अपनी योजना के अनुसार हम लोगों ने रस्सी से लम्बे चौधरी को चारपाई से अच्छी तरह बांध दिया और फिर हममें से चार लड़के लाठियां डालकर चारपाई को कंधों पर रखकर होली की तरफ चल दिए। किसी खतरे की सूचना देने के लिए दो-तीन लड़के हमसे कुछ दूरी पर आगे-आगे चल रहे थे और दो-तीन पीछे-पीछे। यह एक संयोग ही था कि हमें किसी ने नहीं देखा और बिना किसी रुकावट के हम लोग होली के पास पहुँच गये। हमने लम्बे चौधरी को चारपाई सहित होली पर रख दिया और फिर चुपचाप अपने-अपने घरों को लौट गये। 

सुबह जब गाँव के लोग जागे तो सबने होली पर एक अजब नजारा देखा । होली के ढेर पर चारपाई से बंधे लम्बे चौधरी खर्राटे भर कर सो रहे थे। धीरे-धीरे होली के आसपास लोगों की भीड़ जमा हो गई। लोग आपस में कानाफूसी कर रहे थे। लोगों की आवाजें सुनकर लम्बे चौधरी जाग गये। उन्होंने चारपाई से उठने की कोशिश की मगर चारपाई से अच्छी तरह से बंधे होने के कारण वे उठ नहीं पाये। 

गाँव में यह मान्यता थी कि होली के ढेर पर एक बार जो चीज रख दी गई उसे वापस नहीं उठाया जा सकता। अब लम्बे चौधरी के साथ क्या किया जाये, सब इसी के बारे में बातचीत कर रहे थे। धीरे-धीरे पूरा गाँव वहां जमा हो गया था। हम लोग भी एक तरफ खड़े यह नजारा देख रहे थे। 

इस समस्या पर विचार करने के लिए गाँव के कुछ बुजुर्गों की एक पंचायत बैठी। काफी देर के विचार-विमर्श के बाद उन लोगों ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि लम्बे चौधरी के भाई लम्बे चौधरी के वजन से दोगुनी लकड़ी होली के ढेर पर रखें तभी लम्बे चौधरी को होली के ढेर से उतारा जा सकता है। 

अब इतनी सूखी लकड़ी कहां से आए यह समस्या चौधरी के भाईयों के सामने मुँह बाए खड़ी थी। उन लोगों ने अपनी एक पुरानी बैलगाड़ी को कई घन्टे की मेहनत के बाद कुल्हाड़ियों से चीरकर होली के ढेर पर रखा तब कहीं जाकर लम्बे चौधरी को होली के ढेर से उतारा जा सका। 

लम्बे चौधरी की यह हालत देखकर लोग मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। औरतें घूंघट मुँह में दबा कर हंस रही थी । लम्बे चौधरी किसी नाग की तरह फुफकार रहे थे, और धाराप्रवाह गालियाँ दे रहे। उनकी गालियाँ भी हम लोगों को होली के प्रसाद की तरह लग रही थी । उस साल हमारे गाँव की होली आस-पास के गाँवों में सबसे ऊँची रही थी। 

आज भी जब बचपन की उस होली को याद करता हूँ तो मन रोमांच से भर जाता है।