रावी की लहरें - भाग 7 Sureshbabu Mishra द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रावी की लहरें - भाग 7

कार्यशैली

 

क्या? उन्होंने दस लाख रुपए लेने से मना कर दिया", मंत्री जी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था । "हाँ मैं सच कह रहा हूँ मंत्री जी । मैं कल खुद ब्रीफकेस में दस लाख रुपए लेकर डी. एम. साहब के पास गया था। मगर डी.एम. साहब ने ब्रीफकेस को हाथ तक नहीं लगाया।” ठेकेदार आर. पी. चड्ढा बोले । 

मंत्री जी खामोशी से सारी बातें सुन रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि कोई अफसर इतनी बड़ी रकम लेने से कैसे इनकार कर सकता है।" 

“मंत्री जी कुछ करिए, अगर यह ठेका मुझे नहीं मिला तो मेरा करोड़ों का नुकसान हो जायेगा ।" ठेकेदार चड्ढा ने कहा । उनके स्वर से निराशा साफ झलक रही थी । 

मंत्री जी कुछ देर तक सोचते रहे फिर गम्भीर स्वर में बोले, फिक्र मत करो चड्ढा साहब, इस दौर में हर आदमी बिकाऊ है बस उसे उचित कीमत मिलनी चाहिए। हो सकता है डी. एम. साहब को करोड़ों का ठेका देने के एवज में दस लाख की रकम कम लगी हो । " 

“मैं ब्रीफकेस में बीस लाख रुपया लेकर आया हूँ। " ठेकेदार चड्ढा बोले । 

"ठीक है चलो हम लोग डी. एम. एस. के. सिंह के बंगले पर चलते हैं।" मंत्री बोले। 

ठीक साढ़े दस बजे मंत्री जी की गाड़ी डी. एम. साहब के बंगले में पहुंची। मंत्री जी को गाड़ी से उतरता देख डी. एम. साहब के अर्दली ने डी. एम. साहब को मंत्री जी के आने की सूचना दी। 

शिष्टाचार के नाते डी. एम. साहब खुद मंत्री जी की अगवानी के लिए बाहर आए और आदरपूर्वक उन्हें अन्दर ले गए। यह देख मंत्री जी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा। उन्हें पूरा यकीन हो गया कि अब ठेकेदार चड्ढा का काम हो जाएगा। 

सोफे पर मंत्री जी को बैठाने के बाद डी. एम. साहब खुद भी उनके पास बैठ गए और उनसे पूछा, "कहिए माननीय मंत्री जी आपने कैसे कष्ट किया? मुझे फोन कर दिया हाता, मैं स्वयं आपके पास सर्किट हाउस आ जाता । 

मंत्री जी डी.एम. साहब के और नजदीक खिसकते हुए बोले, "डी. एम. साहब यह चड्ढा जी मेरे बहुत खास आदमी हैं । इन्हीं की बदौलत मैं चुनाव जीतता हूँ। मैं आपसे यह निवेदन करने आया हूँ कि आपने जिले की सड़कों के निर्माण के सम्बन्ध में जो टेण्डर निकाला है वह ठेका चड्ढा साहब को दे दीजिए। फिर ब्रिफकेस डी.एम. साहब की ओर खिसकाते हुए उन्होंने फुसफुसा कर कहा- “ इसमें बीस लाख रुपए हैं। " 

 “क्षमा करना मंत्री जी मैं अपने वेतन के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार के पैसों को हाथ तक नहीं लगाता हूँ । रही बात ठेके की तो यह जिले की सड़कों का सवाल है। सड़कों की गुणवत्ता से मैं कोई समझौता नहीं कर सकता। मैं जिले के ठेकेदारों द्वारा पिछले तीन सालों में कराये गए कामों की स्वयं स्थलीय जाँच करूँगा और उसके आधार पर ही तय करूंगा कि सड़कें बनाने का ठेका किसे दिया जाए। " अगर चड्ढा साहब पिछला कार्य निरीक्षण के दौरान ठीक पाया गया तो इन्हें यह ठेका दे दिया जायेगा। डी.एम. साहब ने शान्त किन्तु दृढ़ स्वर में कहा । 

यह सुनकर मंत्री जी के हाथों के तोते उड़ गए थे और ठेकेदार चड्ढा के चेहरे का रंग उतर गया था। मंत्री जी अपने को बहुत अपमानित अनुभव कर रहे थे। वे बिना कुछ कहे बाहर निकल आए। गुस्से में उनका चेहरा तमतमा रहा था। 

गाड़ी में बैठने के बाद वे ठेकेदार चड्ढा से बोले, "यह तो ईमानदारों की विलुप्त होती प्रजाति का जीव मालूम पड़ता है। समझ में ही नहीं आ रहा है कि इससे कैसे निपटा जाए?" इसे रास्ते पर लाने का कोई और तरीका ढूढ़ना पड़ेगा। उनके चेहरे पर चिन्ता की अनगिनत लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। 

डी. एम. एस. के. सिंह आम जनता के कामों में गहरी रुचि लेते थे। वे आम आदमी के न्याय संगत कामों का निपटारा तत्काल करते। जिससे जिले की जनता में उनकी छवि एक लोकप्रिय एवं कर्मठ अधिकारी की बनी हुई थी । 

डी. एम. एस. के. सिंह की कार्यशैली की यह विशेषता थी कि वे किसी के दबाव में कभी कोई नियम विरुद्ध काम नहीं करते थे। इसके लिए वे किसी भी राजनेता की सिफारिश नहीं मानते थे। इससे धीरे-धीरे जिले के कई प्रभावशाली नेता अन्दर ही अन्दर उनसे नाराज थे। नाराज होने वालों की इस लिस्ट में अब मंत्री जी का नाम भी जुड़ गया था। मगर इस सबसे निश्चिंत एस. के. सिंह जन कल्याण से जुड़े कामों को करने में दिन-रात लगे रहते थे। वे युवा अधिकारी थे और उनमें काम करने का जोश और जज्बा था । 

बरसात के दिन थे। गंगा नदी में बाढ़ आई हुई थी। इसी बीच खबर आई कि जिले में गंगा पर बने हरि बाबा बाँध में दरार पड़ गई है जिससे आस-पास के गाँवों के डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया है। 

यह खबर मिलते ही एस. के. सिंह तत्काल जनपद के अपने अधीनस्थ अधिकारियों के साथ हरि बाबा बाँध पहुंच गए। स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए उन्होंने जनपद के पुलिस बल सिविल डिफेन्स तथा एन.सी.सी. के कैडेट्स और पी.डब्ल्यू.डी. के इन्जीनियर्स आदि को हरि बाबा बाँध बुला लिया। सब लोग बाँध में आई दरार को बन्द करने के कार्य में जुट गए। डी. एम. साहब के अनुरोध पर आस-पास के गाँवों के हजारों लोग भी श्रमदान में लग गए। 

डी. एम. साहब स्वयं स्थल पर खड़े होकर कार्य की देखरेख कर रहे थे। दो दिन और एक रात तक बचाव दल द्वारा लगातार कोशिश के बाद बाँध में आई दरार की पूरी तरह से मरम्मत कर दी गई। 

इन बहत्तर घंटों में डी. एम. साहब एक मिनट के लिए भी ना तो वहां से हटे और न ही कुछ खाया पिया। उनके अधीनस्थ अधिकारियों ने कई बार उनसे कुछ देर आराम कर लेने या कुछ खा लेने का अनुरोध किया मगर डी. एम. साहब को लाखों ग्रामीणों के बेघर होने की चिन्ता सता रही थी इसलिए वे पूरी मुस्तैदी के साथ वहां डटे रहे। 

डी. एम. साहब की इस मुहिम के लिए गाँवों की जनता उनकी जय जय कार कर रही थी। मीडिया में उनकी प्रशंसा में खबरें छप रही थी। मगर जिले के राजनेताओं की एक ऐसी लॉबी थी जो इनके विरोध में एकजुट हो गयी थी। 

जब बाँध की दरार से पानी आना बन्द हो गया तो डी.एम. साहब सभी को धन्यवाद देकर अपने कार्यालय जाने के लिए अपनी गाड़ी की ओर बढ़े। मगर गाड़ी तक पहुँचने से पहले ही वे चक्कर खाकर गिर पड़े और बेहोश हो गये थे। 

अधिकारी उन्हें लेकर जिला हस्पताल आ गए। जाँच में पता चला कि शरीर पर लगातार स्ट्रेस पड़ने और भूखे रहने के कारण वे बेहोश हुए थे । डॉक्टरों के निरन्तर किये जा रहे प्रयास के फलस्वरूप डी. एम. साहब को बारह घंटे बाद होश आ गया। मगर डॉक्टरों के अनुरोध पर उन्हें दो दिन और अस्पताल में रहना पड़ा, तीसरे दिन जब वे पूरी तरह स्वस्थ हो गये तो उन्हें अस्पताल से रिलीव किया गया। 

अस्पताल से रिलीव होने के बाद डी. एम. एस. के. सिंह अपने ऑफिस पहुँचे । सर! यह पत्र आज ही मुख्यालय से आया है, उनके स्टैनो ने एक लिफाफा उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा । 

डी. एम. साहब ने लिफाफा खोलकर देखा । सहसा उन्हें आँखों पर विश्वास नहीं हुआ, यह उनका स्थानांतरण आदेश था। यह शायद जनपद में उनके द्वारा निःस्वार्थ भाव से किये गए कार्यों का पारितोषक था। उन्हें जिलाधिकारी के पद से स्थानांतरित कर प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया था। आदेश में लिखा था कि आप प्रतिस्थानी की प्रतीक्षा किये बिना तत्काल जिलाधिकारी का प्रभार किसी वरिष्ठ एडीएम को सौंपकर मुख्यालय में आकर ज्वाइन करें।