क्षमा करना वृंदा - 16 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्षमा करना वृंदा - 16

भाग -16

मैंने स्पष्ट देखा कि लियो के चेहरे पर हतप्रभ होने की रेखाएँ साफ़ दिख रही हैं। वह एकदम सन्नाटे में दिख रहा था।

उसकी यह हालत देखकर सोचा कि यह कहीं किसी और टेंशन में न पड़ जाए, इसलिए हमेशा की तरह उसके होंठों के दोनों कोनों को अंगूठे, उँगली से फैला दिया कि अब हँसो। इसका प्रभाव भी दिखा। कुछ ही सेकेण्ड में वह करवट लेकर मुझसे लिपट गया।

हम-दोनों ने एक दूसरे को अपनी पूरी शक्ति से जकड़ लिया और बड़ी जल्दी ही गहरी नींद में सो गए। लेकिन मुझे सुबह जल्दी ही जाग जाना पड़ा। मोबाइल में अर्ली मॉर्निंग एलार्म बराबर बजे जा रहा था। मैंने हाथ बढ़ाकर मोबाइल एलार्म रिंग ऑफ़ की।

तभी मेरा ध्यान अपनी और लियो की तरफ़ गया। कुछ घंटे पहले अदृश्य शक्ति से प्रेरित हो, लियो को दिए गए ट्रीटमेंट के जैसे तरह-तरह के स्कल्पचर उसके आसपास ही पड़े थे। लियो बेसुध चैन की नींद सो रहा था।

मैंने सोचा क्या इसे सही ट्रीटमेंट मिल गया है? अब यह ठीक हो जाएगा? इसे अब किसी डॉक्टर या मनोचिकित्सक के पास नहीं ले जाना पड़ेगा? क्या इसकी जीवन-रेखा अब पहले की तरह स्पष्ट ख़ूब चमकदार हो गई है? सवेरे-सवेरे मैं इन्हीं बातों को समझने में लग गई।

मेरी आँखों में जो नींद थी, उसकी जो कड़वाहट थी, वह सब ख़त्म हो गई। पहले आस-पास के सारे स्कल्पचर को ख़त्म किया। लियो पर चादर डाली। फ़्रेश होकर ब्लैक कॉफ़ी बनाई, टेबलेट पर ई-पेपर देखती हुई पीने लगी।

मैं उन न्यूज़ पेपर रीडर्स में से हूँ जो पेपर्स देखते हैं, पढ़ते नहीं। मैं पेपर देख ज़रूर रही थी, लेकिन दिमाग़ में ख़ुद से संघर्ष भी चल रहा था कि लियो को जो ट्रीटमेंट दिया वह सही था या ग़लत?

 

कहीं लियो इस ट्रीटमेंट की बार-बार डिमांड न करने लगे, ऐसा हुआ तब-तो एक बहुत बड़ी, असहनीय समस्या खड़ी हो जाएगी। कहीं मैंने एक समस्या को ख़त्म करने के लिए उससे बड़ी समस्या तो नहीं पैदा कर दी है। ऐसी समस्या जो पैदा ही हुई है अपने समाधान के सारे रास्ते बंद करती हुई।

इस ट्रीटमेंट को काम-क्रिया कहूँ या इस दृष्टि से देखूँ कि एक क्रूर माँ-बाप द्वारा मासूम, विवश, मरने के लिए फेंके गए बच्चे, पेशेंट की जान बचाने के लिए, अंतिम प्रयास के रूप में किया गया एक ट्रीटमेंट। इस ट्रीटमेंट को पाप कहूँ या पुण्य। या एक महान काम?

यदि दुनिया इसे जानेगी तो मुझ पर फूल बरसाएगी या थूकेगी कि एक पेशेंट की जान बचाने के लिए तुमने वह घोर अनैतिक काम किया, जिसके बारे में सोचा ही नहीं जा सकता, करने की तो बात ही नहीं है। या मुझे भी फ़हमीना की कैटेगरी में रखकर रेपिस्ट ही कहा जाएगा।

एक विवश बालक का रेप करने के अपराध में फाँसी दे दी जाएगी। या इस महामारी के कठिन, जानलेवा दौर में अपनी मान मर्यादा, आत्म-सम्मान का बलिदान कर, किसी का जीवन बचाने का, महान कार्य करने का श्रेय देते हुए सम्मानित किया जाएगा। फ़्लोरेंस नाइटिंगेल से भी बड़ी और महान कहा जाएगा।

ऐसे अंतर्द्वंद्व से गुज़रती हुई मैं पेपर का आख़िरी पन्ना देखने के बाद एक फ़ैशन मैग्ज़ीन देखने लगी। तरह-तरह की ड्रेस, पोज़ में मॉडलों को देखकर मेरा पुराना सपना एक सक्सेसफुल मॉडल, सेलिब्रिटी बनने का आँखों में फिर तैर गया।

मुझे वह पल भी याद आये, जब नर्सिंग की पढ़ाई के दौरान हर वर्ष होने वाले वार्षिक समारोह के फ़ैशन शो में मैं लगातार दो बार विनर रही। दूसरी बार के फ़ैशन शो में दुनिया की जो नामचीन हस्तियाँ जज बन कर आईं थीं, उनमें से एक ने पहले तो कई बार ग़लत ढंग से टच किया, जिसे मैंने अवॉइड कर दिया।

आख़िरी क्षणों में उसने एक इंटरनेशनल लेवल की मैग्ज़ीन में काम दिलाने का लालच देकर अकेले में एक रात बिताने का दबाव भी बनाया। मुझे बड़ी निराशा, आश्चर्य तब हुई, जब मैंने मैनेजमेंट को यह सब बताया। लेकिन उसने उलटा मुझे ही डाँट कर चुप रहने के लिए कहा।

इससे मैं इतनी दुखी हुई कि फिर कभी मॉडलिंग के बारे में सोचा ही नहीं। इसी के साथ मेरा यह ग्लैमरस सपना हमेशा के लिए टूट गया, बिखर गया, खो गया। कई साल लग गए थे इस सदमे उबरने में। मुझे लियो को दिया ट्रीटमेंट इस सदमें से भी बड़ा सदमा लगने लगा। सोचा इस सदमें से जीवन में कभी उबर भी पाऊँगी?

इसी समय पेपर में देखा एक हेडिंग रह-रह कर मुझे डराने-सताने लगा कि चीन और पाकिस्तान बॉर्डर पर जिस तरह की हरकतें कर रहे हैं, उससे कहीं युद्ध न शुरू हो जाए। अमेरिका भी हिंद महासागर, ताइवान मामले पर चीन से भिड़े जा रहा है।

विश्लेषक की यह बात दिमाग़ में हथौड़े सी पड़ रही थी कि ‘हालत बिगड़ी तो दुनिया महामारी और युद्ध दोनों में पिस कर रह जाएगी।’ परेशान होकर मैं बुदबुदाई, ‘ओह गॉड, हम सब का क्या होगा?’ सोचा कि वृंदा को फ़ोन करूँ कि यार इसी लिए मैं न्यूज़ की ओर ध्यान ही नहीं देना चाहती।

सवेरे-सवेरे इन सब बातों से अजीब सी उलझन होने लगी, तो इससे बचने के लिए मैं पूरे घर की सफ़ाई में लग गई। उसके बाद नाश्ता वग़ैरह बना कर नौ बजे लियो को उठाया। मैं उसकी एक-एक गतिविधि पर बड़ी तीक्ष्ण दृष्टि डाल रही थी कि उसको दिए ट्रीटमेंट का कितना, कैसा प्रभाव पड़ा है।

उसके नहाने-धोने, कपड़े पहनने से लेकर नाश्ता करने तक की गतिविधियों को देख कर मैं जो निष्कर्ष निकाल पाई, उससे मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि स्थितियाँ एकदम बदली हुई हैं।

उसकी हर गतिविधि में बिल्कुल वैसी ही तेज़ी, खुलापन दिख रहा था, जैसा फ़हमीना के साथ दिन बिताने वाले समय में था। मैंने दोपहर के खाने तक उसकी हर गतिविधि पर पूरी दृष्टि बनाए रखी। यहाँ तक कि वह मुझे किस तरह छू रहा है, पकड़ रहा है, इस पर भी।

मुझे क्रांतिकारी परिवर्तन स्पष्ट महसूस हो रहा था। लियो घर में फ़हमीना के आने से पहले जैसा बिल्कुल नहीं था। उसके स्पर्श में रात को मिले ट्रीटमेंट को पाने की लालसा का संकेत स्पष्ट मिल रहा था। यह संकेत मुझे गहरी चिंता में डुबोता जा रहा था।

सारे काम-धाम करके, मैं तीन बजे आराम करने की गरज से, ‘गहरी चिंता’ में ही डूबी हुई लेट गई। बाक़ी बातों की उलझन बहुत हद तक कम हो गई थी। रात में नींद भी पूरी नहीं हुई थी, थकान भी बहुत थी, अब लियो के दौरों की तरफ़ से थोड़ी निश्चिन्त भी हो गई थी, इसलिए आँखें बंद करते ही सो गई।

लेकिन कुछ ही देर में एक चिर-परिचित स्पर्श ने मुझे जगा दिया। मैंने लियो को अपनी ही बग़ल में सटा लेटा देखा। उस समय भी लियो का स्पर्श मुझे अपने लियो जैसा बिलकुल भी नहीं महसूस हुआ। जो फ़हमीना के आने से पहले हुआ करता था।

उसके स्पर्श का आशय समझते ही मैं हैरान-परेशान, पसीना-पसीना हो गई कि यह इतना मैच्योर हो चुका है। मेरा मासूम प्यारा लियो तो बिल्कुल ग़ायब हो गया है। मुझे जहाँ इस बात का संतोष था कि रात के बाद उसे दौरा नहीं पड़ा, तो उसकी इस चाहत ने मुझे बड़ी मुसीबत में डाल दिया।

बहुत ही मुश्किल से उसे समझा-बुझाकर सुला पाई कि ‘रात में खेलेंगे, अभी थोड़ा आराम कर लो, उसके बाद तुम्हारे बिज़नेस का काम करेंगे। ‘ बिज़नेस का काम तो क्या करना था। वह सब पहले ही बंद हो चुका था।

मेरी समस्या यह थी कि आख़िर उसे किस काम में, किस तरह व्यस्त रखूँ। ब्लॉक से बिल्डिंग बनाने, थरथराहट पैदा करने वाले खिलौनों आदि, इन सब से वह बहुत पहले ही ऊपर उठ चुका था। अब वह इन्हें हाथ भी नहीं लगाता था।

अब उसे व्यस्त रखने का उपाय ढूँढ़ना, मुझे कोविड-१९ की वैक्सीन ढूँढ़ने जितना जटिल और अँधेरे में भूसे से भरे कमरे में सूई ढूँढ़ना उससे कहीं हज़ार गुना ज़्यादा आसान लग रहा था।

लियो को मैं दिन की तरह रात में समझा-बुझाकर सुला नहीं पाई। वह अपनी ज़िद पूरी करके ही माना। उसकी ज़िद के आगे मेरे इस डर ने मुझे टिकने नहीं दिया कि मना करने पर कहीं इस पर दौरों का अटैक फिर न शुरू हो जाए। दुबारा शुरू होना पहले से कहीं ज़्यादा घातक हो सकता है।

मैं बड़ी देर तक निश्चेष्ट सी बेड पर सीधी लेटी रही। पथराई आँखों से एकटक छत को देखती रही। मेरी आँखों की कोरों से आँसू निकल-निकल कर कान तक पहुँचने लगे थे। मैं सोच रही थी कि मैंने यह सब क्या कर डाला।

कहीं अतिशय भावुकता, भावना में बहकर मैं जीवन की सबसे बड़ी ग़लती तो नहीं कर बैठी, कहीं मैं फ़हमीना की श्रेणी में ही तो नहीं शामिल हो गई हूँ। एक समस्या को ख़ुद ही पहाड़ जैसी तो नहीं बना बैठी हूँ।

यह जो कुछ हो रहा है, यह सही है या कि ग़लत, यह सब आख़िर हो ही क्यों रहा है। एक समस्या सुलझी तो उससे बड़ी यह दूसरी समस्या खड़ी हो गई। क्या यह सब मेरी महा-मूर्खता का ही परिणाम है।

इसी कारण सब-कुछ सही हो जाने की तरफ़ नहीं, बल्कि बिगड़ते जाने की ओर बढ़ता दिख रहा है। कहीं यह हम-दोनों के सामने किसी बहुत बड़ी समस्या के आने की शुरूआत तो नहीं है। जीवन में यह सब होने, करने की तो मैंने कल्पना तक नहीं की थी।

मैंने तो जीवन-भर लोगों की सेवा करने का सपना तब देखा था, जब फ़ैशन शो प्रतियोगिता में उस जज ने एक रात होटल में साथ बिताने का दबाव डाला था। उसी समय से मर्दों से घृणा और गाढ़ी हो गई थी।

शादी या किसी को लाइफ़ पार्टनर बनाने की सोच कर ही ग़ुस्सा आ जाता है। मर्दों की जिस नज़र और नज़रिए के कारण मैंने जीवन की राह ही बदल दी कि कभी उनके सामने सरेंडर नहीं करूँगी, कभी किसी मर्द के साथ शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाऊँगी।

जीवन में यह जो प्रतिज्ञा करके बढ़ी थी, इसको पूरी करने के लिए सेक्स शब्द से घृणा की, कितनी अफ़ीम खा ली थी, क्या हुआ उन सब का?

मुझसे यह क्या हो गया? हुआ ही नहीं, होता ही जा रहा है। एक समस्या का समाधान करने के लिए जिसे साधन बनाया, वह साधन ही जीवन की सबसे बड़ी समस्या बन गया है। इतनी बदतर है मेरी क़िस्मत कि एक किशोर मेरे साथ . . .

मेरे आँसू कानों के बग़ल से होते हुए नीचे बेड-शीट को भी भिगोना शुरू कर चुके थे। लियो करवट लेकर फिर मेरे साथ लिपट गया था। प्यार जताने लगा था। उसकी मासूमियत की पराकाष्ठा यह थी कि छोटे बच्चे की तरह उसकी उँगुलियाँ मेरे निपल, नाभि से खेल रही थीं।

लेकिन मेरी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर वह सशंकित हुआ कि मैं ग़ुस्सा हो गई हूँ क्या? उसने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को टटोलना शुरू किया।

उसकी बड़ी-बड़ी हथेलियों में मेरा पूरा चेहरा आ गया। मैं अब भी निश्चेष्ट पड़ी रही। उसे मेरे कानों के पास जैसे ही गीलापन महसूस हुआ, वैसे ही जल्दी-जल्दी मेरा पूरा चेहरा टटोलना शुरू कर दिया।

आँखों को विशेष रूप से टटोला। मैं रो रही हूँ, यह समझते ही वह अपनी ख़ास आवाज़ में जैसे पूछने लगा कि क्या हुआ? हाथों से जल्दी-जल्दी चेहरा हिला-हिला कर अपनी टच लिपि में ही बार-बार पूछने लगा।

वह इतना व्याकुल हो गया कि काँपने लगा। उसकी व्याकुलता से मैं एकदम भाव-विह्वल हो उठी। जैसे कोई माँ अपने छोटे से बच्चे को चिपका लेती है, मैंने वैसे ही उसे अपने से फिर चिपका लिया। लियो की आँखों से उस समय मुझसे भी ज़्यादा आँसू निकल रहे थे।

मैं इतनी भावुक हो उठी कि ख़ुद को रोक नहीं पाई और हिचकियाँ ले लेकर रोने लगी। हम दोनों ही काफ़ी देर तक रोते रहे। वह इसलिए रो रहा था, कि मैं क्यों रो रही थी। और मैं इसलिए रो रही थी, कि मैं यह सब क्या कर बैठी, लियो मेरे कारण रो रहा है।