काज़ी वाजिद की कहानी- प्रेम कथा
मेरा इस हाई प्रोफाइल नौकरी में चयन हुआ, तभी मुझे लगा था, यह नौकरी मुझे अपनी योग्यता से नहीं मिली थी। दरअसल कंपनी की मालिक मैडम परमीत मेरे आकर्षक चेहरे-मोहरे, लहराते भूरे बालों व ग्रे आंखें देखकर आकर्षित हो गई थी।
वह पंजाब की रहने वाली थी। गोरा रंग और लंबे कद वाली परमीत के चेहरे पर कशिश के साथ एक अजीब सी कशमकश भी होती थी, जैसे कि उसका चेहरा पत्थर से तराश कर बनाया गया हो। उसकी आंखों में बसी हुई चमक, टैक्सी ड्राइवर वाला रवैया और उसकी शख्सियत में नज़र आती मर्दानगी, यह सब बातें मेरे अंदर एक डर पैदा करती थी। कभी-कभी उससे सामना हो जाता, तो उसके होठों पर मुस्कान आ जाती थी। पर न जाने क्यों मुझे उसकी यह मुस्कान व्यंग्यात्मक लगती। दो-तीन बार वह मुझे नशे की हालत में भी लगीं। उसके बाल खुले हुआ करते थे,आंखों में उदासी और वीरानी और होठों पर वही मुस्कान। ऐसे मौकों पर वह मुझसे कुछ-न-कुछ ज़रूर कहा करती थी। 'सब ठीक चल रहा है, कोई दिक्कत तो नहीं?' और फिर उसकी असभ्य हंसी गूंजने लगती थी, जो उसके लिए मेरे दिल में बसी नफरत में और इज़ाफा कर देती। इस तरह की बदसलूकी और वाक्यों से बचने के लिए मैं अपनी नौकरी भी बदलने को तैयार था। पर दिक्कत यह थी कि दूसरी नौकरी मिल नहीं रही थी। इसलिए मैं दिल में 'व्यथित' होते हुए भी बस खामोशी से उसे बर्दाश्त करता रहता था। एक दिन उसने मुझसे कहा, 'रोहित, सनडे को बैंगलोर के बाहर घूमने चलते है।' मैंने कहा, 'मैडम फिर कभी, 'कल मुझे गर्ल फ्रेंड के साथ डेट पर जाना है।
दरअसल मैं जिस लड़की से प्यार करता जो, वह थी रागिनी। वह एक सेवानिवृत कर्नल की बेटी थी। मैंने उसे बताया तो चिंतित होकर कहा, 'कहीं आपकी नौकरी न चली जाए?' मैंने मज़ाकिया लहजे में कहा, 'नौकरी तो दूसरी मिल जाएगी, पर चांदनी से बदन वाली रागिनी नहीं मिलेगी।
एक दिन मैडम परमीत ऑफिस नहीं आई। उन्होंने मुझसे फाइल लेकर घर आने को कहा। वह एक विशालकाय भवन में अपने लगभग चार वर्षीय बेटे लवी के साथ रहती थी। उन्होंने मुझे बताया, 'यह कंपनी और संपत्ति उनके पापा की थी। पापा की मृत्यु और पति से तलाक़ के बाद, मैं कंपनी का कामकाज देख रही हूं।
मुझे लगा परमीत मुझसे शादी में इंट्रेस्टेड है, पर मैं रागिनी के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहता था। अत: मैने रिज़ाइन कर दिया। परमीत ने मुझ से कहा, 'लगता है, आप अपनी प्रेमिका के प्रति समर्पित है इसलिए नौकरी छोड़ दी। कंपनी के दरवाज़े आपके लिए सदैव खुले रहेंगे।' इस व्यवहार से उसके प्रति मेरी नफरत दूर हो गई।
कर्नल को मैं पसंद तो बहुत था लेकिन वह रागिनी की शादी मेजर राणा से करना चाहता था। वह कहता था, 'मेरे बच्चे,अधूरे सपने देखना छोड़ो, कुछ कर दिखाओ।'
आधुनिक जीवन के यह कुछ महान सत्य हैं।' जिहें मैंने कभी अनुभव ही नहीं किया। धंनार्जन के अतिरिक्त सभी उपलब्धियां मेरे पास थी। हर काम में हाथ आज़माया था मैने। छह महीने के लिए मैं स्टाक एक्सचेंज में भी गया था, लेकिन 'बुल' और 'बीयर' के बीच एक तितली की बिसात ही क्या थी? कुछ अरसे के लिए मै चाय का व्यापारी भी रहा पर बात नहीं बनी। जीविका के लिए मुझे डिलीवरी ब्वॉय की नौकरी करनी पड़ी।
मैं जिस होटल में डिलीवरी ब्वॉय था, वहां का वाईन तड़का नॉनवेज अधिकतर गुंडे बदमाशों का फेवरेट था। ऐसे लोगों का पेट भरना ही मेरे जीवन का लक्ष्य बन गया था। होटल से अच्छी-ख़ासी दूर बीहड़ों में एक बदमाशो का अड्डा था। वहां से अक्सर ऑर्डर आता था। वहां जाना रिस्की था। अत: अधिकांश डिलीवरी ब्वॉय वहां जाने से कतराते थे, परंतु मैं बेख़ौफ चला जाता था। वे मुझे अच्छी खासी टिप देते थे, जो मैं लेता नहीं था। इसलिए वे मुझ पर भरोसा करने लगे थे और आर्डर करते समय कहते थे, 'भूरी आंखों वाले लड़के को भेजना।'
आज की ब्रेकिंग न्यूज़ थी, 'आई टी कम्पनी की मालकिन मैडम परमीत के बेटे लवी का अपहरण।' इस न्यूज़ ने मुझे व्यथित कर दिया।नौकरी के दौरान, लवी मुझसे काफी घुल-मिल गया था। तभी होटल मालिक ने मुझसे कहा, 'बीहड़ों में चार नानवैज, आइस क्रीम, चॉकलेट और पिज़्ज़ा पहुंचाना है। मैं चौक गया, यह सब तो लवी की फेवरेट खाना है। मुझे संदेह हुआ, गुंडों ने लवी को बीहड़ों में छिपा रखा है।' मैंने पुलिस कमिश्नर को सूचित किया। उन्होंने कहा, 'आपका अंदाजा सही लगता है पर बीहड़ों में ऑपरेशन संभव नहीं है।'... मैंने कमिश्नर को एक उपाय सुझाया, 'मैं गुंडों का विश्वास पात्र हूं। आप मेरी मोटरसाइकिल पर एक कमांडो भेज दीजिए। हाथ मैं खाना देखकर अपहरणकर्ता उसे डिलिवरी ब्याय समझकर निश्चिंत होंगे। खाना देते ही मैं लवी को शील्ड कर लूंगा। इस बीच कमांडो गुंडों से निबट लेगा। ... कमिश्नर ने कहा, 'आपका प्रस्ताव विचार योग्य है, पर इस कार्रवाई में आपकी मृत्यु भी हो सकती है।' मैने उत्तर दिया, 'मैं अपनी मुहब्बत को पाने के लिए कुछ कर दिखाना चाहता हूं।' उन्होंने कहा, 'गुड लक!' और ऑपरेशन की कमान संभाल ली।
मैं खाने की डिलीवरी दे रहा था। एक गुंडे ने लवी को पुकारा, 'क्या खाओगे, आइसक्रीम, पिज़्ज़ा या चॉकलेट ?' लवी दौड़ता हुआ आया। उसने मुझे पहचान लिया था, कुछ कहता, इससे पहले मैंने उसे बाहों में लेकर, ज़मीन पर उल्टा लेट गया। इस बीच कमांडो ने तीन गुंडों को ढेर कर दिया था। चौथे गुंडे ने पोज़ीशन ले ली। उसके और कमांडो के बीच फायरिंग होती रही जिसमें मेरे गोली लग गई। उसी समय हेलीकॉप्टर से पुलिस और मेडिकल टीम पहुंच गई। उन्होंने चौथे गुंडे को मार दिया। फर्स्ट एड देने के बाद वे मुझे अस्पताल ले गए।
लम्बे अर्से के बाद मुझे होश आया। पुलिस कमिश्नर मुझ से मिलने अस्पताल आए। उन्होंने मुझे पुलिस में नौकरी का नियुक्ति पत्र दिया। फिर हंसकर बोले, 'अब तो तुम्हें अपनी मुहब्बत मिल जाएगी।' मैंने दुखी हृदय से कहा, 'सर, देर हो गई, मेरे सपने अधूरे रह गए, वो किसी और की हो चुकी।' मुझे गमगीन देखकर वह भी उदास हो गए।
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