जीवेश एक साधारण परिवार की विरासत में पैदा हुआ था जीवेश के पिता जन्मेजय बहुत साधारण और सांस्कारिक व्यक्तित्व थे धर्म परायण और सच्चे इंसान जनमेजय की विनम्रता के किस्से जवार में मशहूर थे जन्मेजय मूल रुप से गुजरात के व्यवसायी थे उनके पुरखे व्यवसाय
और रोजी रोटी की तलाश में बेतिया आ बसे व्यवसास अच्छा चला और सब मनचाहा चलता रहा ।।गुजरात कि पैतृक और पुश्तेनी पहचान छोड़ने के बाद बेतिया में शुरू में बहुत संघर्ष करना पड़ा लेकिन व्यवसाय जम गया और सब कुछ विकासोन्मुख रहा गुजराती पृष्टभूमि बिहार की संस्कृति में मिश्रित हो चुकी थी लगभग सौ वर्ष पहले जन्मेजय के दादा सेठ जसराज बेतिया आये थे सौ वर्षों बाद भी बेतिया बसे गुजराती परिवार का मातृ भूमि राज कोट से लगाव खत्म नही हुआ था जसराज के भाई और परिवार के लोग राजकोट में अच्छी खासी रसूख रखतें थे और जसराज जब तक जीवित थे तब भी साल में दो चार बार राजकोट अवश्य जाते जनमेजय ने यही शिलशिला जारी रखा और अपने परिवार से मिलने राज कोट अपने पिता की तरह अवश्य जाते और बिहार की संस्कृति को बिखेरते तो वहाँ से लौटने के बाद बेतिया में गुजरात की संस्कृति की गमक फैलाते जन्मेजय का परिवार बिहार और गुजरात के सयुक्तता का जीवंत उदाहरण और भारतियता का प्रतिनिधित्व करता एक आदर्श कुनबा था ।।कहते है गुजराती विकास और वैभव में विकास को चुनता है बैभव के साथ एक निश्चिन्त भाव मे नही बैठता जबकि बिहार इसके ठीक बिपरीत बैभव का उपभोग करने में विश्वास रखता है जब बैभव समाप्त हो जाता है तो उसे एकत्रित करने में अपना प्रायास करता है गुजराती बैभव को अक़्क्षुण बनाये रखने के लिये नित नए प्रयत्न करता है।।जसराज के जमाने से जन्मेजय तक गंगा जमुना में बहुत पानी बह चुका था बहुत परिवर्तन हो चुके थे परिवर्तन गुजरात और बिहार दोनों जगह अपनी अपनी
वास्तविकताओ में आत्म साथ किये हुये थे जीवेश जनमेजय का बड़ा बेटा था पांच भाईयों में जायेश दूसरे जयकृष्ण तीसरे जय भारत चौथे जयशील पांचवा बेटा था।। जय कृष्ण मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ था और राजकोट में अपना नर्सिंग होम खोल रखा था उसकी पत्नी अपर्णा भी स्त्री रोग विशेषज्ञ थी दोनों का रुतबा रसुख राजकोट में था और पुरुखों के राजकोट छोड़ने की पुनरावृत्ति पुनः मातृभूमि लौट कर स्थापित कर रहे था चौथा भाई जय भारत इंजीनियरिंग करने के बाद अपनी फैक्टरी स्थापित कर ली थी जिसमे दोपहिया चार पहिया वहान के फुएल इंजेक्टर बनाता उसने भी अपनी फैक्टरी मुम्बई में लगा रखी थी और उसकी पत्नी वैदेही बिजनेस मैनेजमेंट की उच्च डिग्री हावर्ड से प्राप्त की थी वह अपने पति के फैक्टरी का प्रबंधन कार्य संभालती पांचवा भाई जय शील गुजरात मे हीरे का अच्छा खासा व्यवसायी था और उसकी पत्नी साधारण गुजराती गृहणी थी
पिता जन्मेजय के साथ बेतिया बिहार में जीवेश और जायेश ही रहते जीवेश का मन व्यवसाय में नही लगता उसका विवाह नही हुआ था क्योंकि वह विवाह यह कहकर नही करता कि वह जीवन भर कुंआरा रहेगा और देश की सेवा करेगा जब भी वह देश सेवा की बात करता पिता जन्मेजय क्रोधित हो जाते और कहते पहले अपने धंधे की सेवा कर बरक्कत होगी जीवेश सुनता और भूल जाता और अपने धुन में रम जाता जायेश का विवाह सविता जो गुजराती वैश्य परिवार से थी हो चुका था जायेश पिता जन्मेजय के साथ व्यवसाय करता और व्यवसास को बढ़ाने की हर जुगत करता गुजराती आपसी संबंधों में मदद तो करता है रुपये पैसे अनुभव से स्वालम्बी आत्म निर्भर बनाने के लिये लेकिन वह किसी को परजीवी आश्रित नही बनाता ना ही चाहता है जय कृष्ण और अपर्णा और जय भारत और वैदेही जायेश को व्यवसाय में तरक्की के लिये हर सम्भव सहायता करते और कहते कि गुजरात या मुम्बई में हीरे का व्यवसास शुरू करे लेकिन जायेश पिता जन्मेजय बेतिया छोड़ने को तैयार नही थे जीवेश
पांच भाईयों में जीवेश कि कोई अपनी पहचान और आर्थीक सामाजिक स्तर पर नही थी अक्सर उसके पिता जन्मेजय कहते थे कि तुम्हे बड़े होने के नाते अपने कर्तव्यों से अपने भाईयों का आदर्श बनकर उनका मार्ग दर्शन करना चाहिये मगर तुम तो पूरे परिवार में एक ऐसे व्यक्ति हो जो पुरुखों की कीर्ति को मिट्टी में मिला रहे हो तुम कुछ अनुकरणीय आचरण अपने कनिष्ठ भाईयों के लिये नही प्रस्तुत सकते तो कम से कम उनसे ही कुछ सीखने का प्रयत्न करो ।।जायेश अपने पिता का अधिक दुलारा था क्योंकि उनकी विचार धारा विरासत को आत्म साथ करके उनकी सेवा में निष्ठा के साथ जुटा रहता पूरे बेतिया में शोर था कि जायेश कलयुग का श्रवण कुमार है ठीक विपरीत जीवेश पिता की सेवा तो उतनी ही ईमानदारी से करता जितना जायेश करता मगर वह पिता के भौतिक वादी विचारों से इत्तेफाक नही रखता जब भी उंसे कही से कोई आमदनी या पैसा मिलता वह सीधे भूखे नगों के पास जाता और उन्हें खाना खिलाता कपड़े देता उसके इस स्वभाव से भी पिता जन्मेजय बहुत दुःखी रहते और कोशिश करते कि जीवेश के पास व्यवसाय का कार्यभार ना आये समय अपने रफ़्तार से चलता जा रहा था जन्मेजय मोदी का कुनबा बरक्कत और विकास के नए नए कीर्तिमान स्थापित करता जा रहा था चाहे जय कृष्ण हो या जय भारत या जय शील जायेश भी व्यवसास में अपनी लगन मेहनत से आश्चर्य जनक बृद्धि करते हुये उनके स्वाभिमान को ऊंचा कर था बड़ा बेटा जीवेश उनकी चिंता का कारण बना हुआ था जो करता कुछ नही जो मिलता वह भी गंवा देता जयभारत जय शील और जय किशन सभी दिवाली में पूरे परिवार के साथ पिता जन्मेजय के साथ दिवाली मनाने बेतिया आए थे पूरे परिवार में उत्सव जैसा माहौल था सभी खुश थे परिवार के सभी सदस्य पिता जन्मेजय के साथ बैठे थे जीवेश को छोड़कर परिवार के वर्तमान और अतीत कि बाते चल रही थीं जय भारत ने कहा बाबूजी भीईया कुछ करते नही है कब तक जायेश और आप उनके बेवह के नखरे उठाएंगे क्यो नही उनसे कहते कि कुछ व्यवसाय अपना कारोबार शुरू करे नही तो कब तक बोझ बने रहेगे यदि वह कुछ नही करते तो उन्हें अपने साथ रख कर क्यो ढोये जा रहे है क्यो नही स्पष्ठ कहते कि या तो तुम उद्यम करो या उद्गम करो अपने गुजरात की शाश्वत संस्कृति यही है और यदि गुजरात की संस्कृति ना भी हो तो उम्र के इस पड़ाव में जायेश आपकी बात मानकर जीवेश भाईया की आवश्यकता पूर्ति खान पान रहन सहन का करते है यदि वे इनकार कर दे तो आपको भी कष्ट होगा जब सब मिल बैठकर अपनी पारिवारिक बाते कर रहे थे तभी अचानक जीवेश वहां दिवाल की ओट में पहुंचकर परिवार जनों की बातों को ध्यान से सुन रहा था उसने अपने विषय मे अपने सभी भाईयों के विचार सुने भाईयों की बाते अपने विषय मे सुनकर उसकी आत्मा ने उसे धिक्कारा और वह अपनी ही नज़रों से गिर गया उंसे समझ नही आ रहा था कि क्या करे क्या ना करे भाइयों एव पिता के सामने जाए कि ना जाये लेकिन वह क्या कर सकता था जाना तो उसकी मजबूरी थी उसने बेशर्मी की हिम्मत जुटाई और सीधे जहाँ पारिवारिक बाते चल रही थी वहां पहुँचा और बड़े संयत होकर बोला भाई क्या बात हो रही है अपने कुनबे में निश्चित रुप से मेरी चर्चा हो रही होगी क्योंकि पिता जी के बाद सबसे बड़ा हूँ और बोझ पिता जन्मेजय सारे भाई अवाक रह गए और बोले नही भईया ऐसी बात नही है जीवेश ने किसी की बात पर ध्यान दिये बैगर पिता जन्मेजय के पास गया और बोला पिता जी दिवाली का उत्सव लक्ष्मी पूजन और राम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है आप आज शुभ दिन पर बड़े बेटे को आशीर्वाद दे और पिता के पैर छुये और बाहर निकल गया इधर परिवार के लोंगो भाईयों ने समझा कि भईया आजके शुभ अवसर पर पिता का आशीर्वाद लेकर कही गये होंगे सभी अपने अपने कार्यो में व्यस्त हो गए शाम ढली और दीपोत्सव की शुभ घड़ी आ गयी जीवेश को सभी खोजने लगे लेकिन बहुत प्रायास के बाद भी जब कुछ पता नही चला तब परिवार एव भाईयों ने मान लिया कि भीईया का नया शिगूफा होगा और सभी निश्चिन्त हो गए रात भर दिवाली का घर मे उत्सव मनाया गया मगर जीवेश का कही पता नही चला एक दिन दो दिन चार दिन दस दिन सारे भाई अपने अपने जगह वापस लौट चुके थे अब सिर्फ जायेश और जन्मेजय ही बेतिया में बच गए जीवेश की खोज जहाँ तक संभव हुई किया मगर पता नही चला पिता जन्मेजय को लगा जो भी हो था तो बड़ा बेटा बार बार उन्हें दिवाली मनाये जाने और राम वापसी के द्वारा पूछे गए प्रश्न को जोड़कर किसी निष्कर्ष पर पहुचने की कोशिश करते मगर सफलता नही मिलती धीरे धीरे दिन बिताता रहा और पिता जन्मेजय के मानस पटल पर बड़े बेटे की छवि और यादें रह गयी उधर जीवेश चलता चलता किसन गंज होते हुये कोलकाता फिर घूमते फिरते गुजरात के जाम नगर एक गाँव जैसर पहुंचा और जहाँ गांव के बाहर एक शिव मंदिर था वहाँ कुछ देर विश्राम करने के लिये रुका तो उसे नींद आ गयी और उसे भगवान शंकर ने स्वप्न में बताया कि तुम्हारे जीवन के पराक्रम की शुरुआत यही से होनी है
तुम निश्चिन्त होकर अपने उद्देश्य पर आगे बढ़ते जाओ जीवेश पुनः भगवान के दर्शन पूजन के बाद निकल पड़ा और पुनः बिहार अब झारखंड धनबाद पहुँचा कोयले की खदानों का गढ़ है जब वह घर छोड़ने के बाद दिवाली को निकला तो उसके पास फूटी कौड़ी नही थी वह छोटी मोटी मजदूरी करता और जब दो चार दिन के लिये पैसे हो जाते आगे बढ़ जाता कोई दीन दुखी मिल जाता तो उसे भी मदद करता धनबाद पहुंचकर वह कोयले खदानो के मजदूरों के बीच रह कर मजदूरी करता और उनकी समस्याएं जानने की कोशिश करता और अपने सिर्फ भोजन के पैसों के अतिरिक बचे पैसे से जरूरत मन्दो की मदद करता जीवेश को लगा कि कोयले खदानो के मजदूर प्रतिदिन अपनी जान जोखिम में डाल खदानो से कोयला निकलते खदान मालिक मोटे मोटे मुनाफा कमाते और मजदूरों का खून चूसते जीवेश ने मजदूरों को संगठित किया और उनके हक के लिये संघर्ष शुरू कर दिया सबसे पहले खदान मजदूरों के बेतन की कठिन लड़ाई लड़ी धरना प्रदर्शन अंत आमरण अनशन आमरण अनशन लग्भग चार वर्षों की चुनौतीपूर्ण एव कठिन लड़ाई के बाद कोयले मजदूरों के वेतन में सुधार करवाने में सफलता पाई अब सबसे बड़ी समस्या थीं कोयले मजदूरों का कर्ज के जंजाल में फंसना कारण मजदूर देश के विभिन्न क्षेत्रों जातियों संप्रदायों से समन्धित थे भारत की समग्रता को दर्शाते लेकिन शिक्षित नही थे दूसरा कारण था मजदूरों की आमदनी का अधिक हिस्सा शराब में जाना जीवेश ने मजदूरों की पत्नियों को जागरूक किया बच्चों में नशे शराब के विरुद्ध जन जागरण चलाया और मजदूरों के लिये सेवाश्रम की स्थापना किया जहां मजदूर कार्य से खाली होने के बाद शारीरिक व्यायाम या यूं कहें कि आंशिक योग केंद्र था जहाँ मजदूर अपने को नशा मुक्त करने हेतु जाते जीवेश के मेहनत रंग लाई और अधिकतर मजदूरो ने शराब छोड़ दिया जीवेश को दोहरी सफलता मिली एक तो मजदूरों का वेतन बढ़ा और उनमें नशे की प्रवृत्ति कम हुई अब जीवेश का तीसरा मिशन था मजदूरों को शाहूकरो के कर्ज मकड़जाल से मुक्त कराना लेकिन यह बहुत कठिन कार्य था जीवेश ने सभी मजदूरों को मिलाकर एक सहकारिता बनाया और सदस्यता से जो पैसा इकठ्ठा हुआ उससे मजदूरों की औरतों को एकत्र करके सिलाई बुनाई आदि के प्रशिक्षण देने के उपरांत रेडीमेड वस्त्र का निर्माण शुरू कराया जिसे स्थानीय लोंगो द्वारा बहुत सराहा गया लगभग पांच वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद जेवेश द्वारा स्थापित मजदूरों की सहकारी समिति आर्थिक रूप से मजबूत हो चुकी थी और मजदूरों की घरेलू आय भी अच्छी हो गयी थी मर्द खदानो में कार्य करते औरते सहकारी समिति में रेडीमेड वस्त्रों का निर्माण करती आमदनी दूनी हो चुकी थी और मजदूरों में नशे की प्रवृत्ति भी लगभग समाप्त हो चुकी थी जीवेश को लगा कि मजदूरों के स्वास्थ और शिक्षा के लिये स्कूल और अस्पताल अच्छे स्तर का होना आवश्यक है जीवेश मजदूरों के सशक्त नेतृव के रूप में उनके मशीहा के रुप में प्रसिद्धि पा चुके था उसने अपने पिता जन्मेजय के नाम शिक्षा समिति की स्थापना की और प्राइमरी से स्नातकोत्तर तक के अध्ययन के लिये विद्यालय की स्थापना की साथ ही साथ उसने खदान मालिको से सामंजस्य बनाकर अच्छे अस्पताल बनवाये जीवेश को घर छोड़े लगभग पंद्रह वर्ष हो चुके थे पिता जन्मेजय और भाईयों ने मान लिया कि जीवेश शायद दुनियां में नही है तभी एक एक एक दिन जायेश की निगाह समाचार पत्र पर पड़ी जिसकी मुख्य हेडिंग थी पत्थरों का मसीहा एक इंसान अनजान लोंगो और समय का महानायक और जीवेश की फ़ोटो लगी थी जायेश तुरंत समाचार पत्र लेकर पिता जन्मेजय के पास गए पिता ने जब समाचार पत्र देखा और जीवेश की फ़ोटो देखी उनके मानस पटल पर दिवाली के दिन जीवेश द्वारा पूछे प्रश्न जैसे जोर जोर से दस्तक दे रहे हों दीपावली लक्ष्मी पूजन और राम के अयोध्या लौटने खुशी में मनाई जाती है जन्मेजय के मुंह से बरबस निकल पड़ा राम तो चौदह वर्ष बाद अयोध्या लौट आये थे जायेश को लगा पिता जी को भीईया के पास ले जाना चाहिये।।दूसरे दिन जायेश और जनमेजय धनबाद के लिये निकल पड़े और धनबाद पहुचकर जीवेश से मिले और घर लौटने के लिये कहा जीवेश ने कहा कि घर वही होता है जहां व्यक्ति को चैन सम्मान और जीवन का अनुराग मिले घर तो मैंने दिवाली के दिन ही छोड़ा था कभी ना लौटने के लिये जब मजदूरों को पता चला कि जीवेश के छोटे भाई और पिता जीवेश को घर सदा के लिये के जाने आये है तो पहले तो उनको विश्वास नही हुआ क्योकि जीवेश सदा यही कहते कि उनका दुनिया मे गरीबी बेवसी मजबूरी भूखमरी से लड़ने के अकावा ना कोई लालच लोभ है ना ही रिश्ता सारे मजदूर एकत्र हुये और जीवेश के पिता और छोटे भाई को जितना उनके बस में था सम्भव हो सकता था सम्मान दिया और हाथ जोड़कर याचक तरह बोले बाबूजी आपके पास तो हमारे महानायक भगवान भाग्य विधाता के अतिरिक्त चार और बेटे है लेकिन हमारे माँ बाप के पास एक ही बढ़ा बेटा है जो हमारे भाग्य विधाता है और जीवन मे सब कुछ है इन्हें आप लेकर चले जाओगे तो हम कैसे जिएंगे हमारी औलादे हमसे सवाल करेंगी की ईश्वर ने एक जीवेश तुम्हारे उत्थान के लिये अपने राम रूप में भेजा था वह भी नही संभाल सके जीवेश के पिता जन्मेजय को अन्तर्मन से जीवेश का पिता होने का अभिमान हो रहा था और उन्हने साथ ले जाने की जिद छोड़कर जीवेश से कहा बेटे तू तो वास्तव में श्रेष्ठ पुरुष बन गया लेकिन पिता को मुखग्नि देने का हक बड़े बेटे को होता है मैं चाहूँग की मुझे मुखग्नि मेरा जीवेश सुपर हीरो जनता मजदूरों के विश्वास का नायक दे अतः मैं तुम्हारे साथ रहूंगा तुमने पुरुखों की माटी की खुशबू से पूरे देश को एक सकारात्मक संदेश दिया है मुझे नही मालूम कि किसी बाप ने अपने बेटे को महानायक सुपर हीरो के रूप में अभिनंन्दन किया हो यह मेरा सैभाग्य है बेटे तुम महानायक हो ।।
कहानीकार --नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।