प्रेम की दास्तान
जबलपुर शहर में राकेश और गौरव नाम के दो मित्र रहते थे। गौरव एक दिन नर्मदा के किनारे बैठकर चिंतन कर रहा था तभी अचानक किसी ने उसका नाम पुकारा। अपना नाम सुनकर गौरव ने पीछे मुडकर देखा तो राकेश केा देखकर अंचभित हो गया। गौरव ने उससे पूछा कि अरे भाई तुम यहाँ कैसे ? राकेश ने कहा कि मैं प्रतिदिन नियम पूर्वक नर्मदा जी के दर्शन के लिये आता हूँ परंतु तुम यहाँ कैसे ? गौरव ने कहा मैं अचानक ही नर्मदा दर्शन हेतु आया था और यहाँ बैठकर अपने प्रारंभिक जीवन के चिंतन में खो गया था। यह सुनकर राकेश बोला जीवन में कुछ ऐसी घटनायें घटित होती है जिसे भुलाया नही जा सकता है और वे व्यक्ति के जीवन में बहुत गंभीर प्रभाव डालती है। गौरव राकेश से कहता है कि ऐसी क्या घटना जीवन में घटित हुयी है जरा मुझे भी तो बताओ। राकेश बताता है कि मेरे पिताजी ने बताया था कि मेरा जन्म बहुत कठिन परिस्थितियों में हुआ था। मेरी माँ बहुत बीमार थी और चिकित्सकों का कहना था प्रसव बहुत जटिल है और हो सकता है कि माँ और बच्चे में से किसी एक को ही हम बचा पाये। उस दिन पिताजी बहुत दुखी होकर इसी स्थान पर आकर बैठ गये और माँ नर्मदा से प्रार्थना करने लगे कि मैं माँ और बच्चे दोनो को जीवित चाहता हूँ। अस्पताल पहुँचकर व्यथित हृदय से उन्होंने सारी औपचारिकतायें पूरी कर डॉक्टर से निवेदन किया कि आप दोनो को बचाने का भरसक प्रयास करें परंतु यदि यह संभव ना हो सके तो ऐसी कठिन परिस्थितियों में माँ का जीवन बचाना ज्यादा आवश्यक है। इतना कहकर उनकी आंखों से आंसू टपकने लगे। सभी उपस्थित परिजनों ने उन्हें समझाया कि ईश्वर पर भरोसा रखिये जो भी होगा अच्छा ही होगा। लगभग आधे घंटे के पश्चात नर्स ने बाहर आकर सभी को बधाई दी कि आपको बेटा हुआ है और माँ और बच्चा दोनों सकुशल है। यह सुनते ही मेरी दादी ने कहा कि यह सब ईश्वर की कृपा ही है कि दोनों सकुशल है।
गौरव बोला कि मेरा परिवार तुम्हारे समान संपन्न नही था। मेरे पिताजी ने कड़ी मेहनत, परिश्रम करके किसी समय अपनी प्रारंभिक अवस्था में अपने घर का सभी सामान बेचकर चाय का कार्य शुरू किया था। उनकी किस्मत अच्छी थी कि उन्हें चार पाँच बडें चाय उत्पादकों ने उनके स्वभाव को देखते हुए उनकी ईमानदारी पर विश्वास करते हुए उन्हें उधार पर अपना माल दे दिया। उन्होंने चार पाँच प्रकार की चाय को मिलाकर अपना अलग ब्रांड बनाया और उसे बेचने के लिय ठेले पर रखकर गली गली जाकर बेचने का कठिन कार्य किया। उनके भाग्य ने उनका साथ दिया और कुछ ही समय में उनके ब्रांड ने बाजार ने में अपना स्थान बना लिया। धीरे धीरे वे स्वयं माल न बेचकर अपने अधीनस्थ कुछ कर्मचारियों से माल बिकवाने लगे और वे स्वयं एक किराये के दुकान से इस कार्य का संचालन करने लगे। उन्होंने अपने व्यवसाय में मुनाफा आते ही सबसे पहले सभी चाय उत्पादकों का कर्ज समय से पहले ही चुका दिया जिससे उनकी साख और बढ गई। धीरे धीरे मेरे पिताजी का चाय का व्यापार सफलता की सीढ़िया चढ़ने लगा और आज हम पूरे प्रदेश में सबसे बडे चाय के वितरक है। आज हमारा परिवार भी तुम्हारे परिवार के समान शहर के संभ्रांत परिवारों में गिना जाता है। राकेश ने कहा कि हाँ यह बात तो माननी पडेगी कि तुम्हारे पिताजी ने बहुत संघर्ष किया और माँ नर्मदा की कृपा से तुम्हें उसका सुखद परिणाम भी देखने मिल रहा है। गौरव ने कहा कि माँ नर्मदा की कृपा सदैव बनी रहे इसलिये मैं प्रतिदिन आराधना हेतु यहाँ आता हूँ।
दोनो वहाँ से साथ साथ घर के लिये निकल पडते है। रास्ते में गौरव कहता है कि आगे एक बड़ा ही सुंदर उद्यान आने वाला है क्यों ना कुछ देर वहाँ टहल लिया जाए और वे दोनो उद्यान में चहलकदमी के लिये निकल जाते है। कुछ समय बाद अचानक ही मौसम का मिजाज बदलने लगता है और आसमान में घने बादल छाने लगते है और तेज हवाएं चलने लगती है। मौसम बदलता देख गौरव और राकेश भी किसी सुरक्षित स्थान को तलाशने लगते है। वे कुछ ही दूरी पर स्थित एक घने पेड की नीचे पहुँच जाते है। उसी पेड के नीचे दो लडकियाँ भी आंधी पानी से बचाव के लिये खडी हुयी थी। अचानक तेज आंधी के कारण पास के पेड की एक शाखा टूट कर गिरने लगती है राकेश और गौरव तेजी से दौडकर दोनो लडकियों को वहाँ से खीचकर घायल होने से बचा लेते है। वे दोनो लडकियाँ यह देखकर दंग रह जाती है और अपनी जान बचाने के लिये उनका आभार व्यक्त करती है। तभी राकेश कहता है कि लगता है बहुत तेज बारिश आने वाली है हमें तुरंत यहाँ चलना चाहिये। यह सुनकर गौरव भी हाँ कहते हुए उन लडकियों से पूछता है कि क्या आप लोगों को कही जाना तो हम आपको गंतव्य तक छोड सकते है ? वे भी थोडे संकोच बाद हाँ कह देती है। सभी लोग उद्यान से बाहर निकलकर गाडी में बैठ जाते है। रास्ते में गौरव अपना और राकेश का परिचय देते हुये कहता है कि हम लोग व्यवसायी है और क्या हम आपका परिचय जान सकते है। उनमें से एक लडकी कहती है कि मेरा नाम मानसी है और यह मेरी मित्र पल्लवी हैं। हम दोनो एमबीए के स्टूडेंट्स है और मूलतः जबलपुर के पास नरसिंहपुर नामक शहर से है। आज हमारे कॉलेज की छुट्टी थी इसलिये हम लोग यहाँ पर घूमने के लिये आये हुये थे। राकेश कहता है यदि आप बुरा ना माने तो एक बात कहूँ। मानसी ने कहा कि बेझिझक कहिये। राकेश कहता है कि यदि आपके समय है तो क्यों ना हम पास ही स्थित कॉफी हाऊस में चलकर एक एक कॉफी पी सकते हैं। मानसी और पल्लवी ने कुछ देर एक दूसरे को देखा और हाँ कर दी। मानसी ने कहा बारिश की वजह से मौसम ठंडा हो गया है और हमारे पास समय भी है। कुछ ही देर बाद वे कॉफी हाऊस में पहुँच जाते है। वहाँ पर कॉफी पीने के दौरान आपस में वार्तालाप होता है और वे सभी एक दूसरे के अच्छे मित्र बनकर पुनः मिलने का वादा करके अपने अपने घर की ओर निकल जाते है।
राकेश अपने घर पहुँचता है। आज उसके चेहरे से खुशी छिपाए नही छिप रही थी तभी उसकी माँ उसे अपने पास बुलाती है और एक फोटो दिखाते हुए राकेश से पूछती है कि यह लडकी कैसी है ? राकेश भी फोटो देखकर कहता है बहुत संुदर लडकी है। राकेश की माँ कहती है कि यह सोहन लाल जी की लडकी है और वर्तमान में लंदन में पढ़ रही है इसी का रिश्ता तेरे लिए आया हुआ है तो क्या मैं तेरी ओर से हाँ समझूँ ? यह सुनकर राकेश चौंककर कहता है कि नही माँ अभी इतनी भी क्या जल्दी है ? अभी मुझे अपने व्यापार को आगे बढाना है ? माँ ने कहा कि शादी के बाद भी तुम अपना व्यापार आगे बढा सकते हो तुम्हें किसने रोका है। यह सुनकर राकेश कुछ सोचने लगा और बोला कि अभी मुझे इस विषय सोचने के लिये कुछ समय चाहिये क्योंकि यह मेरे जीवन का बहुत महत्वपूर्ण निर्णय है। माँ ने कहा कि मैं तुझे एक हफ्ते का समय देती हूँ। तेरे पिताजी भी इस रिश्ते के लिये सहमत है। यह सुनकर राकेश चुपचाप अपने कमरे में चला जाता है।
समय धीरे धीरे बीत रहा था और हीलाहवाली करते हुए एक माह का समय निकल गया था। सोहनलाल जी का भी बहुत दबाव राकेश के परिवार पर पड़ रहा था और वे स्पष्ट जवाब चाहते थे। एक दिन शाम को राकेश के पिताजी ने राकेश को बुलाया और उससे स्पष्ट पूछा कि तुम सही सही बताओ कि क्या तुम्हें यह रिश्ता मंजूर नही है या तुम्हारी नजर में कोई और लडकी है जिस कारण तुम इतनी हीला हवाली कर रहे हो। राकेश ने धीरे से स्वीकार कर लिया कि वह एक दूसरी लडकी से प्रेम करता है। यह सुनकर माता पिता भौंचक्के रह गए। वे अभी तक यही समझते थे कि राकेश एक सीधा सादा अत्यंत आज्ञाकारी पुत्र हैं। पिताजी ने राकेश को काफी समझाने का प्रयास किया परंतु राकेश अपने निर्णय से टस से मस नही हुआ। अंततः उसके माता पिता ने उससे पूछा कि वह लडकी कौन है और उसके माता पिता क्या करते हैं। राकेश ने कहा कि उसका मानसी है और वह ईसाई धर्म को मानने वाले परिवार से है उसके पिताजी शासकीय सेवा में है। यह सुनकर राकेश के पिताजी बोले हम शुद्ध वैष्णव धर्म का पालन करने वाले परिवार से हैं और ईसाई धर्म को मानने वाली लडकी क्या अपने आप को इस माहौल ढाल पाएगी ? यह सुनकर राकेश ने कहा कि शादी के बाद भी वह अपना धर्म नही बदलेगी उसका कहना है वह तुम अपने धर्म का पालन करो और मैं अपने धर्म का अनुसरण करती रहूँगी। यह सुनकर राकेश के पिताजी अत्यंत नाराज होकर बोले अब तो किसी भी कीमत पर यह शादी संभव नही हो सकती है। अब तुम्हें निर्णय लेना है कि अगर तुम मेरी बात नही मानोगे तो मैं तुम्हें सारी संपत्ति से बेदखल कर दूंगा। यह सुनकर राकेश भी तैश में आकर कह देता है कि ठीक है मुझे अपनी क्षमताओं पर पूरा विश्वास है और एक दिन मैं अपने आपको स्थापित करके दिखाऊँगा। इतना कहकर वह तुरंत अपने घर से निकल जाता है।
घर छोडने के बाद वह मानसी के पास जाता है और उसे संपत्ति से बेदखल हो जाने के संबंध में बताता है और मानसी से कहता है कि अब हम कोर्ट मैरिज कर सकते है। मानसी कहती है कि इस प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में मुझे मेरे पिताजी से सलाह लेनी पडेगी। राकेश के बहुत आग्रह करने के बाद मानसी राकेश को अपने पिताजी से मिलवाती है। मानसी के पिताजी बातचीत के दौरान राकेश से कहते हैं कि अब तुम्हारे पास कुछ भी नही है यहाँ तक कि तुम्हारे पास अभी सर छुपाने के लिये कोई जगह भी नही है ऐसी परिस्थितियों में मैं कैसे तुम्हारे साथ मानसी से विवाह के लिए सहमति दे दूँ। पहले तुम कुछ बन कर दिखाओ, अभी तक तो तुम अपने माता पिता की दौलत पर ही निर्भर थे अब तुम्हें आत्मसम्मान के साथ साथ आत्मनिर्भर भी बनना पडेगा और यह बहुत कठिन कार्य है जिसमें कितना समय लगेगा यह कोई भी नही जानता। मानसी के लिये और भी अच्छे रिश्ते आ रहे हैं और हम बहुत समय तक इंतजार नही कर सकते है। यह सुनकर राकेश बहुत आहत होकर मानसी के घर से चला जाता है। रास्ते भर राकेश अपने किए पर पछता रहा था। इसी उधेडबुन में परेशान होकर वह गौरव के पास पहुँचकर उसे इन परिस्थितियों से अवगत कराता है। गौरव सब बातें सुनकर उसको कहता है कि तुमने बहुत बडी गलती की है मानसी के लिये तुमने घर परिवार छोडा और मानसी ने अपने परिवार के कहने पर तुम्हें छोड दिया अब अगर तुम घर जाओगे तो आत्मसम्मान खो बैठोगे और दूसरा विकल्प है कि कठिन परिश्रम, लगन और समर्पण से तुम स्वयं को स्थापित करके सम्मान पूर्वक जियो। राकेश कहता है कि कोई भी व्यापार करने के लिये धन की आवश्यकता होती है और मेरे पास इस समय समुचित धन का अभाव है। यह जानकर गौरव कहता है कि तुम चिंता मत करो। तुम्हें जितने धन की आवश्यकता होगी मैं तुम्हें दे दूँगा। सच्चा मित्र वही है जो समय पर काम आये। राकेश, गौरव को धन्यवाद देते हुये कहता है कि कल से ही मैं अपना कपडे का व्यवसाय शुरू करूँगा क्योंकि मैं इसमें पारंगत भी हूँ और मेरी पहचान भी है परंतु यह व्यापार मैं किसी नजदीकी शहर में जाकर करूँगा।
राकेश, गौरव से कर्ज लेकर दूसरे शहर में अपने व्यापार में जुट जाता है और कडी मेहनत एवं ईमानदारी से धीरे धीरे कुछ ही दिनों अपने व्यापार को स्थापित कर लेता है। एक दिन राकेश को विचार आता है कि बहुत समय हो गया है मुझे गौरव का कर्ज वापस कर देना चाहिए। यह विचार आते ही वह तुरंत ही गौरव से फोन पर बात करके अपने आने का प्रयोजन बताकर उससे मिलने के लिये निकल पड़ता है। रास्ते में एक जगह पर भीड देखकर वह अपनी गाडी रोककर एक व्यक्ति से पूछता है कि क्या बात है तब उसे पता चलता है कि यहाँ कोेई दुर्घटना हो गई है और एक महिला अचेत पडी हुई है और सभी एंबुलेंस के आने का इंतजार कर रहे हैं। यह सुनकर राकेश तुरंत कार से उतरकर उस महिला की ओर देखकर भौचक्का रह जाता है। यह तो मानसी है। यह देखकर राकेश तुरंत उसे उठाकर बिना देर किए नजदीकी अस्पताल ले जाता है। चिकित्सक तुरंत मानसी को गहन चिकित्सा कक्ष में ले जाकर उसका इलाज शुरू कर देते है। तभी एक डॉक्टर राकेश से कहता है कि आपने एंबुलेंस का इंतजार किये बगैर जल्द से जल्द इन्हें यहाँ लाकर बहुत अच्छा कार्य किया है इसी वजह से हम इनकी जान बचा सके अन्यथा यदि थोडी देर और हो जाती तो इनकी मृत्यु निश्चित थी। इसी दौरान राकेश मानसी के माता पिता को इस दुर्घटना की सूचना देता है। यह सूचना पाकर वे तुरंत ही अस्पताल के लिये रवाना हो जाते है। अस्पताल पहुँचकर मानसी के माता पिता को डॉक्टर से यह जानकारी मिलने पर कि राकेश द्वारा बिना समय गंवाए अस्पताल लाकर भर्ती कर देने के कारण ही मानसी की जान बच सकी है तो वे राकेश के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करते है। राकेश कहता है कि यह तो उसका नैतिक कर्तव्य एवं दायित्व था जिसका निर्वहन उसने किया है। मानसी के साथ हुई दुर्घटना की जानकारी राकेश, गौरव को भी देता है। इसी समय मानसी को होश आ जाता है और जब उसे पता होता है कि उसकी जान स्वयं राकेश ने बचाई है तो वह भी उसे धन्यवाद देती है।
एक सप्ताह बाद मानसी की अस्पताल से छुट्टी कर दी जाती है। जिस समय मानसी के माता पिता अस्पताल से डिस्चार्ज की औपचारिकताएँ कर रहे होते हैं, उसी समय राकेश के माता पिता भी वहाँ पहुँच जाते हैं। वे बताते हैं कि उन्हें इस संपूर्ण घटना की जानकारी गौरव से मिली थी और यह जानकर मुझे बहुत गर्व हुआ कि राकेश ने मानसी की जान बचाकर अपने कर्तव्य का निर्वहन भली भांति किया है। मानसी के माता पिता भी राकेश की सहृदयता की बहुत तारीफ करते हैं। राकेश के माता पिता कहतें हैं कि राकेश अब घर लौट चलो तभी गौरव भी वहाँ पहुँच जाता है। गौरव को देखकर राकेश उसके द्वारा दिये गये कर्ज को वहीं लौटा देता अब गौरव कहता यह रूपये लो मैंने तुम्हें कोई कर्ज नही दिया था यह रकम तो तुम्हारे माता पिता ने मेरे द्वारा यह बताने पर कि तुम स्वयं को स्थापित करके अपने पैरों पर खडा होना चाहते हो तब तुम्हारे पिताजी ने तुम्हें देने के लिये यह रकम भिजवाई थी और मुझे कहा था कि राकेश को इस बात का बिल्कुल भी पता नही चलना चाहिये। यह जानकर राकेश आश्चर्यचकित हो जाता है तभी उसके पिता मुस्कुराते हुए कहते हैं कि कोई बाप इतना अहंकारी नही हो सकता कि अपने बेटे को आवश्यकता होने पर उसकी मदद ने करे। मैंने तुम्हें इसलिये इस बात से अवगत नही होने दिया कि तुम अपनी पूरी मेहनत करते हुए सफलता की सीढी चढते जाओ और परिवार का नाम रोशन करो और हम मानसी को अपनी पुत्रवधु बनाने हेतु तैयार है। यह सुनकर मानसी के माता पिता कहतें हैं कि हमारे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है ? सभी लोग अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में अस्पताल से अपने घर की ओर रवाना हो जाते है।