दो प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिकों प्लेटों और अरस्तु ने ब्रह्मांड की प्रकृति से सम्बन्धित ऐसे विचार रखें जो 2000 से भी अधिक वर्षों तक कायम रहें। अरस्तु ने यह सिद्धांत दिया था कि पृथ्वी विश्व (ब्रह्मांड) के केंद्र में स्थिर है तथा सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह और तारे वृत्ताकार कक्षाओं में पृथ्वी के चारों ओर घूमते हैं। अरस्तु के इसी विचार को आधार बनाकर दूसरी शताब्दी में टॉलेमी द्वारा ब्रह्मांड का भूकेंद्री मॉडल प्रस्तुत किया गया। हालाँकि प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक आर्यभट ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और खगोल स्थिर है।
उनकी यह मान्यता पौराणिक धारणा के विपरीत थी। इसलिए बाद के खगोलशास्त्रियों ने उनकी इस सही मान्यता को स्वीकार नहीं किया। वैसे दिलचस्प बात यह है कि जब दुराग्रही वेदान्तियों द्वारा आर्यभट की इस मान्यता का विरोध किया जा रहा था, तब यूरोप में निकोलस कोपरनिकस सूर्यकेंद्री मॉडल प्रस्तुत कर रहे थे। कोपरनिकस द्वारा एक आसान मॉडल प्रस्तुत किया गया जिसमे यह बताया गया था कि पृथ्वी व अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। वैसे आर्यभट ने यह जरुर बताया था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, परंतु वे यह नहीं बता पाए थे कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।
जिस समय कोपरनिकस ने सूर्यकेंद्री मॉडल प्रस्तुत किया था, उस समय पूरे विश्व में टॉलेमी के मॉडल का ही बोलबाला था। चूँकि टॉलेमी और अरस्तु के मॉडल को धार्मिक रूप से भी अपना लिया गया था, इसलिए चर्च ने कोपरनिकस के सिद्धांत को प्रचारित तथा प्रसारित करने पर रोक लगा दिया। बाद में किसी तरह एक रोमन प्रचारक ज्योदार्न ब्रूनो को कोपरनिकस के सिद्धांत के बारे में पता चला। उसने कोपरनिकस के मॉडल का अध्ययन किया तथा समर्थन भी। ब्रूनो द्वारा कोपरनिकस के सिद्धांत का समर्थन रोमन धर्म न्यायाधिकरण को धर्म विरुद्ध नज़र आया, इसलिए उन्होंने ब्रूनो को रोम में जिन्दा जला दिया!
कोपरनिकस और ब्रूनों के बाद दुनिया के अलग-अलग कोनों में खगोलिकी के क्षेत्र में अनेक खोजे हुईं। जर्मनी के जोहांस केप्लर ने ग्रहों के गतियों का सही स्पष्टीकरण अपने तीन नियमों के आधार पर प्रस्तुत किया। इटली के वैज्ञानिक गैलिलियो ने दूरबीन का उपयोग खगोलविज्ञान के क्षेत्र में किया तथा कई महत्वपूर्ण खोजें की। इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत तथा गति के तीन नियमों की खोज की।
किसने विश्व को बनाया और कहाँ रहता है, इसे कौन जानता है? सबका अध्यक्ष परमाकाश में है। वह शायद इसे जानता है। अथवा वह भी नहीं जानता।'
ऋग्वेद के नासदीय सूक्त से यह प्रतीत होता है कि एक नियत समय पर ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई थी। मगर हिन्दू धर्म में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की विचारधाराएं विरोधाभासी हैं क्योंकि वेदों, पुराणों में जो आख्यान मिलते हैं, उनमे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पहले के भी आख्यान हैं, इसके खत्म होने के बाद के भी। इसलिए हिन्दू धर्म में मानते हैं कि ब्रह्माण्ड अनादि-अनंत है, इसका न कोई शुरुवात है और न ही अंत। इसमें सृष्टि सृजन से पहले की भी कहानी होगी और अंत होने के बाद भी, इसलिए कोई एक समय नहीं है - सृष्टि सृजन का!
दूसरी तरफ यहूदी, इस्लाम, ईसाई एवं अन्य कई धर्मों के लोगों का मानना है कि ब्रह्मांड की आवश्यक रूप से एक शुरुवात होनी चाहिए। इनका मानना है कि दुनिया एक दिन शुरू हुई थी और एक दिन खत्म हो जाएगी ; इसे बाइबिल में एपोकलिप्स कहा गया है। वहीं अरस्तु एवं अन्य यूनानी दार्शनिकों की धारणा थी कि यह संसार सदैव से अस्तित्व में था तथा सदैव ही अस्तित्व में रहेगा।