किंबहुना - 4 अशोक असफल द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

श्रेणी
शेयर करे

किंबहुना - 4

4

सुबह वह जल्दी जल्दी तैयार होकर निकल ही रही थी कि भरत जी का फोन आ गया। उन्होंने बताया कि मुम्बई से सिंधुजा रवान में जो विजिटिंग अफसर दौरे पर आया है, वो मेरे ब्रदर राम का फ्रेंड है। उसने फोन कर दिया है। तुम सिर्फ परिचय दे देना कि- सर हम राम मेश्राम जी के रिश्तेदार हैं!

विजिटिंग अफसर के दौरे के नाम पर फूले आरती के हाथ-पाँव यकायक सामान्य हो गए। उसके मुँह से यही निकला कि- हम आपका ये एहसान कैसे चुकाएँगे!

इसमें एहसान की क्या बात, आप रिश्तेदार हैं, अपना समझें और हमेशा अपनी बात हक से कहें! भरत ने फिर एक जबरदस्त आश्वासन दे दिया।

आरती का दिल उसके एहसान से और भारी हो गया। बच्चों को विदा कर, मकान में ताला डाल वह ऑफिस आ गई। थोड़ी देर में एजीएम ने अपने केबिन में बुला कर कह दिया कि आप स्पॉट पर पहुँचे। नीलिमा वहीं बैठी मुस्करा रही थी। शायद, पहली बार जवाब में वह भी मुस्कराई और स्कूटी की डिग्गी में रिकार्ड ठूँस फील्ड के लिए चल पड़ी।

आश्वासन तो मिल गया था, फिर भी सीने में धुक्धुक् तो मची थी। रास्ते में एक सहेली पुष्पा का घर पड़ता था, जो उसका वीर हनुमान थी। वैसी ही मजबूत, निर्भय और हर काम के लिए आतुर, साथ ही उसे कुशलता से निबटा देने में माहिर। वह उसके घर पहुँची जो घर का काम समेट चुकी थी। वह भी अकेली रहती और परित्यक्ता थी। गनीमत यही कि उसके कोई बच्चा न था। तो इतनी जिम्मेदारी न थी। आरती जब भी ट्रेनिंग वगैरह के लिए बाहर जाती, पुष्पा ही बच्चों के साथ उसके क्वार्टर पर जाकर रहती। कहती, दीदी, हमारा और आपका भाग्य एक ही कलम से लिखा गया है। आरती उसकी आवाज का दर्द महसूस करती और कहती, किसी दिन मैं तुम्हारी कहानी लिखूँगी, पुष्पा!

दोपहर तक दोनों ने भाग-दौड़ कर छह-सात गाँवों को सूचित कर दिया कि- बड़ा साहब का दौरा निकला है, सब लोग अपने यहाँ सभाएँ जोड़कर रखो। काम बताने में हिचकना नहीं और अपनी-अपनी माँग भी रखती जाना।

दोपहर होते-होते गर्म हवा चलने लगी थी और उसने नाश्ता भी नहीं किया था। पुष्पा को एक गाँव में छोड़ वह मुख्य सड़क से एक खेत के फासले पर सूखे तालाब के किनारे खड़ी बरगदिया की जड़ पर बैठ गई। उस दिन उसने ग्रे कलर की ड्रेस पहन रखी थी जो जल्दी मैली नहीं दिखती और धुली हुई भी धुली हुई नहीं। क्योंकि वह रफटफ ही दिखना चाहती थी। जिससे अधिकारी को ये न लगे कि टिपटॉप बनी घूमती है, करती धरती कुछ नहीं! निगाहें सड़क पर टिकी थीं कि साहब की गाड़ी आए तो उनके पीछे चल पड़े। वे जिस गाँव जाएँ, उसी गाँव। अपनी ओर से कोई स्थान न बताए नहीं तो शक करेंगे कि- यहाँ तो तुम मजबूत होगी ही!

दिल में तरह तरह के खयाल आ रहे थे। पर दुर्दशा का खयाल कभी पीछा न छोड़ता था।

आलम को उसने बताया कि- मम्मी कभी राजी न होंगी इस रिश्ते के लिए।

उसने कहा, तुम चिंता मत करो, मैं उन्हें मना लूँगा। मैं सब से बात करूँगा, सब को समझाऊँगा, सब हो जाएगा तुम बिल्कुल चिंता मत करो।

आरती आश्वस्त हो गई। सोचा ठीक ही है! समझाने से सब समझ जाएँगे। फिर कितना सहारा होगा हम सबको। यही सोच कर उसने आलम का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

प्रस्ताव स्वीकारने के बाद मन कुछ हल्का-सा हो गया कि चलो अब सब परेशानियाँ दूर हो जाएँगी। पर प्रस्ताव स्वीकार किए अभी कुछ दिन ही हुए थे कि आलम शादी के लिए जल्दी करने लगा। वो उसे घर में बात करने को कहता। पर उसकी हिम्मत न पड़ती। उसने आलम से कहा कि- मुझे मम्मी को बताते डर लग रहा है, पता नहीं उनका क्या जवाब हो। मम्मी मुझे बहुत प्यार करती हैं, पर इस बात के लिए वे राजी नहीं होंगी।

आलम उस पर दवाब डालता कि- बात करो, बात करो! और वो उसे टालती रहती।

पर अब आलम का उस पर बहुत दबाव था।

वो हर दिन एक ही बात कहती कि- शादी कैसे होगी?

और वो कहता कि- शादी जल्दी होने से जल्दी ही तुम मेरा घर और माँ को सँभाल लोगी और मैं तुम्हारा परिवार।

पर उसे कुछ समझ नहीं आता।

प्रस्ताव स्वीकार किए अभी कुल पंद्रह से बीस दिन ही हुए थे कि आलम ने कहा- आरती! हम एक काम करते हैं, कि कोर्ट में शादी कर लेते हैं! फिर तुम घर में बात कर लेना तब कोई मना भी नहीं कर पाएगा। मैं सब सँभाल लूँगा, तुम परेशान मत होना। तुम्हें सिर्फ एक बार कोर्ट जाना होगा।

इस पर वह घबरा गई, बोली- ऐसे कोर्ट में शादी करना ठीक नहीं!

पर वो रोज समझाता- यही रास्ता सही होगा...फिर कोई रोक नहीं पाएगा। तुम्हारी मम्मी भी जल्दी ही मान जाएँगी।

प्रेम का कोई नशा नहीं चढ़ा, बस तनाव रहता कि यह सब कैसे होगा!

इस बीच आलम ने कोर्ट मैरिज के कागज बनवा लिए। आवेदन दे दिया गया। उसका कहना था कि- कोर्ट मैरिज के बारे में किसी को पता नहीं चलेगा। तुम्हारे घर एक नोटिस जाएगा, उसे मैं पोस्टमेन से ले लूँगा, नोटिस तुम्हारे घर नहीं पहुँचेगा।

आलम और उसके दोस्तों ने नोटिस किसी तरह घर नहीं पहुँचने दिया।

उन दिनों अजीब बात ये हुई कि उसकी जान से प्यारी सखी सोनम जो उसके हर पल की साथी थी, उसे अपने से दूर सी लगने लगी। वो साथ होकर भी साथ नहीं लगती। पहले सा प्रेम न झलकता। साथ होती, पर साथ नहीं तो यही लगता कि शायद, वो किसी चिंता में है। कुछ परेशान-सी रहती है। पूछने पर कहती, तुम्हारी समस्या से परेशान हूँ कि क्या होगा! पर आरती को बड़ा अजीब लगता कि वो ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है?

काश, वह समझ पाती कि, वह मेरे दुखद भविष्य का एक संकेत था!

आरती ने एक उसाँस भरी और बोतल का ढक्कन खोल खाली पेट में चंद घूँट पानी उंड़ेल लिया।

आलम ने अपना प्रस्ताव फरवरी में रखा था। जिसे स्वीकारते मार्च आ गया और दो ही महीनों में कोर्ट मैरिज की तारीख आ गई। कुछ सोचने समझने का अवसर नहीं मिला। आलम से न खुल कर बात हो पाई न अधिक मिलना-जुलना। हाँ एक दो बार उसकी माँ से मिलने जरूर उसके घर जाना हुआ। पर तब भी कुछ खास समझ नहीं आया। एक तो यह भी उम्मीद कि सब ठीक ही होगा।

फिर कोर्ट की तारीख आ गई मैरिज के लिए। सोनम को साथ चलना था, पर उसने मना कर दिया। वह अकेली ही कोर्ट गई, आलम और उसके कुछ दोस्त थे वहाँ। और कोर्ट में शादी हो गई। वहाँ से सब लोग मिल कर आलम के घर गए, उसकी माँ का आशीर्वाद लिया फिर सही समय पर आरती अपने घर आ गई।

घर आई तो सब कुछ वैसा ही था जैसा उसने कुछ घण्टों पहले छोड़ा था। तब उसे ये समझ नहीं आया था कि मेरा पूरा जीवन बदल चुका है। पता नहीं किस दाँव पर जीवन हार चुकी हूँ। चिंता और बढ़ गई कि घर पर बताया कैसे जाएगा ये सब। यही सोच कर रह जाती कि देखा जाएगा समय आने पर।

लेकिन कोर्ट मैरिज के बाद हालत अजीब हो गई।

आलम से दुकान में आकर मिलती तो वो उसे अपने घर जाने को कह देता।

और वह चुपचाप उसके घर चली जाती। उसके घर को अपना घर समझ कर उसकी माँ की सेवा करती। घर के सारे काम करती- झाड़ू पोंछा, कपड़े, बर्तन, खाना! और काम निबटा कर अपने घर आ जाती। अब नौकरी का काम नहीं हो पाता और वह परेशान हो जाती।

उस घर की, जिसकी बहू बन गई थी, हालत बहुत खराब थी। घर में कोई ढंग का सामान नहीं था। रसोई में सब डब्बे खाली ही रहते। आलम की माँ ने बताया कि घर में रोज थोड़ा-थोड़ा सामान आता है, बनाते हैं, खाते हैं, फिर दूसरे दिन और लाते हैं।

उसे अजीब लगता कि, ऐसा भी कोई करता है!

कभी-कभी आलम भी घर आ जाता। वह काम में लगी रहती। वह अपनी माँ से अक्सर लड़ता रहता, चिल्लाता और गाली भी देता। कभी सामान खत्म होने पर, कभी दवा खत्म होने पर, कभी खाने के लिए किसी चीज की माँग पर।

शुरू में धीमी आवाज में चिल्लाता पर कुछ दिनों में वह उसके सामने जोर से गालियाँ देने लगा। एक बार आरती ने उसकी माँ के शरीर पर चोट के निशान देखे तो पूछा- क्या हो गया?

उन्होंने बताया कि- गिर गईं।

उसे लगा हो सकता है, तबीयत खराब है, गिर गई होंगी! वह नादान यह नहीं समझी कि बेटा जल्लाद है जो अपनी माँ को ही मारता-पीटता है!

हालाँकि, आलम ने उसे कभी नहीं डाँटा, पर जब वो अपनी माँ को डाँटता तो ऐसा लगता जैसे वो, कोर्ट मैरिज से पहले वाला आलम नहीं, कोई और ही शख्स है! उसकी ऐसी हरकतें देख आलम अब उसे अच्छा नहीं लगता। उसे उससे डर-सा लगने लगा। एक-डेढ़ महीने में उसे पता चल गया कि आलम अपनी माँ को मारता पीटता भी है। घर की जरूरतें पूरी न कर पाने पर हीन भावना का शिकार हो गुस्से में चिल्लाता है, गालियाँ बकता है।

आलम का प्रस्ताव स्वीकार करने के दो माह में कोर्ट-मैरिज और कोर्ट-मैरिज को अभी दो महीने भी पूरे नहीं हुए कि उसका अजीब चेहरा सामने आ गया!

तब एक दिन उसकी माँ ने बताया कि- उसका अपने एक दोस्त की बीबी के साथ सम्बंध है। तुम्हें जल्दी ही इस घर में आ जाना चाहिए। जिससे आलम का उसके पास जाना बंद हो!

उसे काटो तो खून न रहा।

उन्होंने झिंझोड़ कर कहा, तुम ये बात आलम को न बताना, नहीं तो वो मुझे कच्चा चबा जाएगा!

पुष्पा दौड़ती हुई आई, दीदी, वो दूसरे रस्ते से पौरासी पहुँच गे!

आरती ने स्कूटी उठाई और उसे बिठा कर उल्टी दिशा में दौड़ पड़ी। जब तक वहाँ पहुँची, वे काफी कुछ देख चुके थे। लेकिन पौरासी में वह सुबह बोल कर गई थी तो कार्यकर्ता अलर्ट थी। आशा, आँगनबाड़ी, और सिंधुजा की स्वयं सेविकाएँ मैदान में डटी थीं। विजिटिंग अफसर गोराचिट्टा, मृदुभाषी और काफी लिबरल लगा। उसने इज्जत से बात की, कायदे से रिकार्ड माँगा।

आरती ने बताया कि- सर, यहाँ आते ही मैंने वोकेशनल टेªनिग के कैंप गाँव-गाँव लगाने शुरू कर दिए थे। अब तक दर्जनों महिलाओं को ट्रेंड कर उनका जीवन बदला जा चुका है।

हाँ, ये तो मुझे बताया, इन लोगों ने! डाक्यूमेंटेशन कराया आपने?

जी! उसने फोटो एमबम और पेपर कटिंग फाइल पकड़ा दी।

तब उसने देखा कि- पंचायतों को स्मार्ट बनाने के लिए कचरा प्रबंधन की टेªनिंग भी दिलाई उसने। और पंचायतों के जरिये ही दिव्यांगों को आवासीय योजनाओं का लाभ भी दिलवा रही है...

गुड! यह तो अच्छा है, उसने खुश होकर कहा।

आरती को उसका प्रतिफल मिल गया और धूप से कुम्हलाए चेहरे पर मुस्कान आ गई। अफसर उसकी एलबम और कटिंग फाइल देखता, पढ़ता हुआ पलटता जा रहा था। तभी उसने कहा कि- सर, मैंने गरीब और बेसहारा बच्चियों को रोजगार दिलाने की योजना बनाई हुई है। मैं और मेरी स्वयं-सेविकाएँ घर-घर जाकर बेटियों को बेटों के समान समझने के लिए प्रेरित करती हैं। पहले तो कई लोग अपनी बच्चियों को घर की चैखट से बाहर जाने देने के लिए तैयार ही नहीं हुए। पर हम लोगों ने हार नहीं मानी, इसका नतीजा ये हुआ कि परिवार को अपनी रजामंदी देना ही पड़ी। महज पाँच बच्चियों से शुरू हुआ सफर अब छह सौ तक पहुँच चुका है। हम इन बच्चियों को वोकेशनल टेªनिग दिला चुके हैं। इनमें से कई बच्चियाँ अब स्वरोजगार अपना कर अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा रही हैं।

अच्छा है, आपको एक काम और करना चाहिए, वह बोला, अभिभावकों को प्रेरित कर न सिर्फ बच्चों को स्कूल पहुँचवाना चाहिए, बल्कि वहाँ बच्चों से उनकी जरूरत पूछना चाहिए।

ये भी करते हैं, सर! वह बोली, स्कूल ड्रेस और किताबें बँटवाने स्कूलों को प्रेरित करते हैं! साथ ही नेत्र-शिविर लगवा कर मरीजों की काफी मदद कर चुके हैं!

फोर फ्यूचर? उसने पूछा।

सर! समूह बना कर महिलाओं को जोड़ना शुरू किया है। अब तक पचास समूहों में पाँचसौ से ज्यादा महिलाओं को जोड़ चुके हैं। अब कई महिलाएँ तो खुद हमारे पास आकर समूह से जुड़ने के लिए कहती हैं। भविष्य में और भी समूह बना कर शासन की योजनओं के प्रति उन्हें जागरूक करेंगे और लाभ दिलवाएँगे। उन्हें बालिका शिक्षा और परिवार के दायित्बों के बारे में भी बताते हैं। बच्चों को पुनस्र्थापित करने के लिए क्षेत्र में बालगृह भी संचालित कराने का प्रस्ताव शासन को भिजवाया गया है।

ओके! बहुत अच्छा, उसने खुशी से गर्दन झुलाई, आपके बारे में राम जी ने सही बताया कि आप बहुत लेबोरियस और समर्पित पर्सनेलिटी हैं!

सुन कर उसकी आँखों में आँसू आ गए। पुष्पा के कंधे पर हाथ रख उसने भरे गले से कहा, सर जी, मैं जो कुछ थोड़ा बहुत कर पाई उसमें मेरी स्वयं-सेविकाओं और क्षेत्र की आँगनबाड़ी, आशा, एएनएम सिस्टर्स का बड़ा हाथ है। सर जी, बस, आप लोग की मेहरबानी बनी रहे!

संकेत से वह समझ गया कि उसे क्या कठिनाई आ रही है।

मैं कोशिश करता रहूँगा! उसने संकेत में ही कहा।

रास्ते में पुष्पा को छोड़ कर आरती ऑफिस आई तब तक अँधेरा घिर आया। लेकिन उसके मन में उत्साह का नया सूरज चमक उठा था। वह घर पहुँची तब तक आठ बज गए। बच्चे टीवी देख रहे थे। उसने रुकू से पूछा, (जिसका नाम आलम ने रुखसाना रखा था, मगर आरती ने बदल कर स्कूल में रेश्मा कर लिया और घर में रुकू!) तुम लोगों ने कुछ खा लिया! उसने कहा, पोहा! बेटा उसके गले से लिपट गया, माँ, आपके लिए भी रखा है!

अले-अले! बड़ा लाजा बेटा है मेला हर्च तो! उसने लाड़ लड़ाते उसे और कस कर चिपटा लिया। तब तक बेटी पोहे की प्लेट ले आई, पूछा, चाय बना दूँ माँ?

दूध रखा है?

होगा ना, हम लोगों ने नहीं बनाई ना!

बना ले बेटा, आज तो चाय भी नहीं मिली। उसने कहा।

मगर जब तक उसने पोहा निबटाया, रुकू ने आकर बताया कि- दूध फट गया माँ!

ओह! उसने माथा पकड़ लिया। बीच में आकर दुबारा उवाल देती तो बच जाता, मगर आज तो मरने की फुरसत नहीं मिली। पोहे और पानी से संतुष्ट हो वह कपड़े बदलने चली गई। जी में आया कि भरत जी को फोन कर धन्यवाद दे दे। फिर सोचा, खाना बना दूँ तब तसल्ली से करूँगी। नहीं तो बैठ गई तो हाथ-पैर जवाब दे देंगे, शरीर नौ मन का हो जाएगा, उठाए न उठेगा। बच्चे भूखे सो जाएँगे। हिम्मत बाँध वह रसोई में जुट गई। मगर इस सब में साढ़े नौ बज गए और हर्ष सो गया। जिसका नाम आलम ने सब्बीर रख दिया था मगर उसने स्कूल में लिखाते वक्त बदलवा लिया। बच्चे को उठा कर उसने मुश्किल से एक गस्सा खिलाया, मगर खाते ही वह चैतन्य हो गया और आँखें मूँदे-मूँदे उसके हाथ से लगातार खाने लगा। इस बीच उसने भी एक-एक कौर कर दो तीन रोटियाँ खा लीं और बच्चे को लिटा कर बर्तन सिंक पर डाल आई। रुकू भैया के बगल में लेटती बोली, माँ, सुबह जल्दी उठा देना, कल टेस्ट है!

उसने हामी भरी और बत्ती बंद कर खुद भी लेट गई। फिर जैसे कुछ याद आया तो उठ कर मोबाइल चार्जर से निकाल फोन बुक से भरत जी का नम्बर निकाल डाइल कर दिया। लगाते ही फोन उठ गया, जी कहिए!

तो उसने धीमी हँसी के साथ पूछा, फोन हाथ मे लिए बैठे थे!

जी, बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा थी, परिणाम जानने की!

इतनी केयर क्यों करते हैं! उसने पूछा।

पता नहीं, किसी जनम का संस्कार होगा! वह बोला।

अरे!

हाँ!

आपको ऐसा लगता है!

जी! आपको नहीं लगता?

पता नहीं, हमें तो अब कुछ नहीं लगता। उसने निराशा से कहा।

भूलिए विगत को बताइए क्या हुआ? तनिक चुप्पी के बाद उसने पूछा।

तो सुनिए, आरती उत्साह से भर गई, आज तो पाँसा ही पलट गया। जिसके लिए षड़यंत्र पूर्वक भेजा था, दुर्रानी न नीलिमा का वो दाँव फेल हो गया। हमें तो उम्मीद न थी पर ये सब हुआ आपकी मेहरबानी से... ये एहसान हम कभी न चुका पाएंँगे! वह भावुक हो आई।

क्यों? भरत ने खिलवाड़ सी करते पूछा।

कैसे चुका पाएँगे! उसने रुंधे स्वर में पूछा।

एक मीठे बोल से, एक मुस्कान से...

आप सचमुच बहुत अच्छे हैं, वह सुबकने लगी।

क्यों, ऐसा क्या किया हमने! भरत ने पूछा, जो आप रोने लगीं?

आपने कुछ नहीं किया, उसने और सुबकते हुए कहा, आपकी अच्छाई से हमें अपना पिछला नर्क याद आ गया।

उसे भी भुलाने का एक उपाय है हमारे पास।

क्या?

सारा दुखड़ा कह सुनाओ हमें। खाली हो जाओ और फिर से जियो जिंदगी। बार-बार नहीं मिलती जीने को...बच्चे हैं, उनका मुख देख कर जियो!

बच्चों के लिए ही जी रहे हैं, वरना कब की ये लीला समाप्त कर देते।

उन्हीं की खातिर हम कह रहे, वह बोला, सुना दो अपना सारा दुखड़ा और निकल जाओ उससे बाहर।

जी।

सुनाइए न।

क्या-क्या सुनाएँ, बहुत दर्द भरी कहानी है, इतनी कि आप रो देंगे।

रो लेंगे, आदत है, अब तक रो ही तो रहे हैं, तनिक आपके गम में भी शरीक हो लें।

अरे, आप भी... कह कर तनिक चुप्पी के बाद अकस्मात् वह गुनगुनाने लगी, तुमको भी गम ने मारा, हमको भी गम ने मारा, इस गम को मार डालें!

सुन कर भरत उत्साहित हो गया, सुनाइए, सुनाइए! मार ही डालें आज इस गम को!

तो उसने गाना रोक कर कहा, पर फोन पर नहीं, मिलने पर... पूरी रामायण है, रात बीत जाएगी बाँचते बाँचते, पूरी न होगी।

ठीक है, मिलते हैं! देखते हैं, कैसे न होगी पूरी!

जी! कह कर फोन बंद कर दिया। पर खूब थकान के बावजूद नींद नहीं आ रही थी।

पता नहीं, वो कैसा सम्बंध था, कैसी शादी कि उसके करीब जाने का अवसर तो नहीं मिला, उससे नफरत और हो गई। उससे डर लगने लगा, जिसे हमराह बनाया। उसका सामना करने का मन न करता। इधर आलम की माँ का दबाव बढ़ने लगा कि- जो करना है, घर पर बता कर करो। और अब जल्दी से इस घर में आओ!

वह जितनी देर उनके घर पर होती वे बड़बड़ाती रहतीं। आलम के आगे वे एकदम चुप रहतीं, पर उसके न रहने पर आरती को बहुत सुनातीं कि तुम अपने आदमी को वश में नहीं रख सकती, कैसी औरत हो!

उनकी दिमागी हालत भी ठीक नहीं रहती। उसे उन पर दया आती।

इधर आलम समझाता, जब तुम यहाँ आ जाओगी, सब ठीक हो जाएगा।

वह आलम को उसकी माँ की कोई बात इसलिए न बताती कि वो उन्हें मारेगा। उसने कभी नहीं कहा कि तुम्हारा अपने दोस्त की बीबी से नाजायज

सम्बंध है। पर वह भीतर ही भीतर घुटती रहती।

नौकरी का काम न कर पाने के कारण उसकी नौकरी भी छूट गई।

आलम ने कहा, घर पर मत बताओ कि नौकरी छूट गई, वरना घर से निकलना बंद हो जाएगा! फिर तुम यहाँ कैसे आया करोगी?

वह सोचती, यहाँ मेरी हैसियत ही क्या! फकत एक नौकरानी! उससे भी गई गुजरी, जो तुम्हारे जुल्म देखे और तुम्हारी माँ की जली-कटी बातें सुने।

मुसीबत यही नहीं, आलम दुकान भी ठीक से न चलाता। दोस्तों के साथ घूमता, उन पर पैसे खर्च करता, शराब पीता और कमाए हुए पैसे उड़ा देता। घर खर्च के लिए पैसे गिन-गिन कर देता। घर पर अक्सर खाना बनवाता, कभी अपने दोस्तों को खिलाता कभी रिश्तेदारों को बुलाता। ऐसे ही दुकान से कमाए पैसे खत्म हो जाते और अंत में बिजली, फोन, मकान-किराया आदि भरने को पैसे न बचते तो उधार माँगता।

तब धीरे-धीरे उसने आलम से मिलना और उसके घर जाना भी कम कर दिया।

उसका मन न करता कि उससे मिलूँ या उसके घर जाऊँ।

कभी-कभी सोनम के साथ जाती, वरना नहीं जाती।

सोनम ने उससे पूछा कि- आजकल तुम बहुत सहमी सी रहती हो, न पहले की तरह हँसती हो न बात करती हो। उदास-सी दिखती हो, क्यों?

उसने उसे कुछ खास नहीं बताया, बस यही कहा कि- मुझे लगता है, कुछ गलती हो गई! मैं शायद, आलम को पहचान नहीं पाई!

उसने कहा, मुझे भी लगता है, तभी मुझे आलम के साथ तुम्हारा शादी करना अच्छा नहीं लगा। सच कहूँ, इसीलिए मैं कोर्ट नहीं आई थी। मैं यही सोच रही थी कि ये क्या करने जा रही हो!

ओह! तुमने कहा क्यों नहीं, उसकी आँखें डबडबा आईं, एक तुम्ही तो थी जो सब जानती थीं और कोई नहीं! एक बार समझातीं तो, शायद ये नहीं होता!

इस सब से बे-खबर उसकी माँ अभी भी उसके लिए लड़का देखने में व्यस्त थी। उसे अपने हालात पर दुख होता, और लगता कि अब क्या होगा। पहले तो शायद, बता भी देती पर आलम का ये चेहरा देख कर क्या बताती, सो उसने कुछ बताया नहीं।

उन्हीं दिनों उसकी एक बुआ ने एक लड़का बताया जो बुआ का कोई रिश्तेदार था। उन्होंने कहा कि- लड़के की कोई माँग नहीं है और लड़का भी बहुत अच्छा है!

मम्मी को भी लगा की जान पहचान का लड़का है तो ठीक रहेगा। अंजान लोगों में शादी करने पर पता नहीं कैसा परिवार मिले? यही सोच कर मम्मी ने लड़का देखा। उन्हें वो ठीक लगा।

तब इसी आस के सहारे उसने आलम से मिलना बंद कर दिया।

करीब पंद्रह-बीस दिन हो गए, वह आलम की दुकान नहीं गई और न उसके घर। आलम परेशान हो गया कि क्या हुआ? पर वह अब उससे मिलना नहीं चाहती थी। उसने सोनम के हाथों खबर लेना चाही तो उसे पता चल गया कि उसकी शादी की बात चल रही है। एक दिन अचानक सामना हो गया और आलम ने भरे बाजार हाथ पकड़ कर कहा, ये तुम क्या कर रही हो?

कुछ भी तो नहीं, उसने कहा।

मिलना-जुलना, आना-जाना बिल्कुल बंद कर दिया!

नहीं मिल सकती। उसने कहा।

क्यों?

मैं अपने परिवार वालों की मर्जी से शादी करना चाहती हूँ! उसने दो टूक कह दिया। और हाथ छुड़ा कर भाग आई।

तब उसने कई चिट्ठियाँ लिखीं। उनमें कहा कि- घर का दबाव है तो चलो घर से भाग जाते हैं। मेरे घर आ जाओ कोई कुछ नहीं कर पाएगा।

जवाब उसने लिखा कि- अब तुम मुझसे कोई सम्पर्क करने की कोशिश मत करो।

तब उसने सोनम से कहलवाया, तो उसने भी कहलवा दिया कि- नहीं, अब और नहीं!

सोनम से फिर कहलवाया।

लेकिन जब उसका खुद का ही मन नहीं था तो सोनम क्या कहती!

पर उसकी चिट्टियाँ बंद न हुईं और वो उनमें धौंस देता कि- हमारी कोर्ट में शादी हुई है, इसे ऐसे तोड़ नहीं सकतीं, तुम!

लेकिन उस पर कोई असर न हुआ। वो उससे नहीं मिली।

मम्मी का देखा हुआ लड़का जिसका नाम राकेश था, उसने उससे शादी करने के लिए हाँ कह दी। राकेश घर आया, उसने उसे पसंद भी कर लिया। आरती की पसंद, ना पसन्द का सवाल ही नहीं था। उसने सोच लिया था, जो भी हो, जैसा भी हो, मैं शादी कर लूँगी।

राकेश आ कर चला गया। घर में शादी की बात चलने लगी। सब भाई बहन बहुत खुश थे। घर की पहली शादी होने वाली थी।

पर आलम को ये बात पता चल गई। उसने फिर चिट्ठी लिखी। जिसका आरती ने कोई जवाब नहीं दिया।

घर का माहौल बड़ा खुशनुमा हो गया था। मम्मी और सब भाई बहन बहुत खुश थे। वह भी खुश थी कि चलो आलम से जान छूट गई!

00