अधूरे प्यार की एक अधूरी कहानी Raj King Bhalala द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

अधूरे प्यार की एक अधूरी कहानी

प्यार वो एहसास है, जो हर किसी को नहीं होता।

प्यार वो महसूस है। जिसके अंदर खो जाने का दिल करता है। यही एक एहसास मैं आपको बताना चाहता हूँ।

शाम का समय था। मैं अपने दोस्त का इंतजार कर रहा था। स्टेशन के बाहर।

हमलोग का बाहर कही घूमने जाने का प्लान था और मैं जल्दी पहुँच गया था।

कुछ समझ नही आ रहा था की मैं क्या करूँ। मैं स्टेशन के पास जा के बैठ गया, तभी कुछ ऐसा हुआ कि मेरी जिन्दगी एक अलग मोड़ लेने वाली थी।

स्टेशन की तरफ मैं देख रहा था की मेरा दोस्त आया की नहीं तभी अचानक से मेरी नज़र एक लड़की पर पड़ी।

वो जो वक़्त था मैं पूरी तरह कुछ देर के लिए थम सा गया था। मैं सब भूल गया था की मैं कहा हूँ क्यों हूँ ?

बस मेरी आँखे उस लड़की की तरफ से हट ही नहीं रही थी और इस तरह से मैं उसे देखता ही जा रहा था ।

उसकी मासूम चेहरा, उसकी छोटी-छोटी आंखी, उसके मासूम सा चेहरे पे वो मासूम सी उसकी हंसी जैसे मानो कोई परी हो वो..उसे देख पहली नज़र मे मानो दिल को कुछ होने लगा था।

क्या वो प्यार था??

मुझे नहीं पता बस दिल बोल रहा था कि मेरा दोस्त कुछ देर बाद आये या ये वक़्त रुक जाए।

मुझे उसका नाम जानना था। उसके बारे में बहुत कुछ पता करने को दिल कर रहा था लेकिन कैसे करूँ ये समझ ही नहीं आ रहा था।

जब कुछ समझ नहीं आया तब मैंने बस भगवान से प्रार्थना किया की मुझे ये लड़की मेरी जिन्दगी में चाहिए।

वो जा रही थी। मेरी आँखों से दूर मुझे रोकना था उसे। उससे बातें करना था। उससे दोस्ती करनी थी और उसे अपने दिल की बात बतानी थी।

लेकिन कैसे ???

यही सवाल बस बार-बार मेरे मन में आ रहा था और मुझे बैचैन किये जा रहा था।

मैंने फिर सोच लिया कि मेरी आँखों से दूर होने से पहले मुझे इसका नाम पता चल जाये तो मैं इससे अपना बनूँगा और शायद भगवान् ने ही उसे भेजा होगा मेरे लिए ये मैं समझूंगा तभी भगवन ने चमत्कार कर दिया..पीछे से आवाज आया प्रिया मैं यहां हूँ।

फिर वो पीछे देखि तो मैंने देखा वहां से एक लड़की आवाज दी और वो उस क पास चली गयी..तभी मैं समझा उस लड़की का नाम प्रिया था।

मैं खुश हो गया और उस लड़की को मन किया जा के धन्यवाद बोल दू क्योंकि उसी के वजह से मुझे उस का नाम पता चला।

बस तभी मैंने ठान ली अब उसे अपना बनाना है, उसे अपनी जिन्दगी में लाना है।

फिर तभी मै उसके पिछे जाने लगा कि अचानक ही पीछे से एक हाथ आया।

पीछे देखा तो दोस्त आ गया था। अब मैं क्या करूँ समझ नहीं आ रहा था..मैं क्या बोलूँ उससे..कैसे मना करूँ उससे?..कैसे जाऊ मैं उस के पीछे ?

मैं इसी सोच में लगा रहा रहा तब तक वो मेरी आँखों से दूर जा चुकी थी दिल मानो रोने लगा था और तभी मानो ऐसा लगा कि जैसे सब कुछ एक सपना सा था बस और आँखे खुल गया तो सपना टूट गया।

मैं वहा से चला तो गया अपने दोस्त के साथ लेकिन पूरी रास्ते बस उसी के बारे में सोचता रहा।

मानो मेरा दिल अब उसके ख्याल से निकलने को तैयार ही नहीं था।

दूसरे दिन मैं कॉलेज लिए तैयार हो गया और मैं कॉलेज पंहुचा।

और बेंच पे जा क बैठ गया..तभी दोस्त ने बुलाया और कहा देख अपने कॉलेज में एक नई लड़की आयी है।

मेरा मन अभी भी बस उसी के ख्यालों मे डूबा हुआ था। आँखों से उस का चेहरा मनो हट ही नही रहा था...वो बार बार मुझे आवाज दिये जा रही था।

तभी मुझे गुस्सा आया और पीछे उससे बोलने जा ही रहा था कि मैं रुक सा गया।

मेरी नजर मानो फिर से एक बार सपनों मे चला गया। मैंने देखा की वही थी।

मानो जैसे मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा मैं खुद को रोक ही नहीं पा रहा था और मेरे समझ में ही नहीं आ रहा था की मैं क्या करू ?

क्या बोलता मैं, बस जा के अपने दोस्त के गले लग गया..और हंसने लगा...तभी पता चला वही वह नई लड़की थी जो कॉलेज में आज पहला दिन आयी थी।

मैं तो मानो हवा मे उड़ने लगा..फिर मैंने एक दिन अपने दोस्त को बताया की ऐसा ऐसा है..उसने कहा जा के बोल दे उसे अपने दिल की बात..

लेकिन मैं डरता था। कि वो क्या कहेगी..क्या लगेगा उसे..यही सोच के मैं हमेशा रुक जाता था।

मैं सोचने लगता था कि कही वो मेरी बातें सुन के मुझसे दूर न हो जाए।

मैं उससे दूर नहीं होना चाहता था।

मुझे ये एहसास हो गया था कि शायद वो भी मुझे पसंद करती थी। लेकिन वो कभी कुछ नहीं कहती थी। उससे लगता कि मेरे मन

मै उस क लिए कुछ नहीं है। लेकिन वो क्या जाने कि उसे पहली नजर में देख के ही मैंने उसे अपना दिल दे चुका था।

दिन बीतते गए हमलोग एक अच्छे दोस्त की तरह साथ रहते और बाते करते थे..लेकिन न कभी मुझे हिम्मत हुआ उससे कुछ भी कहने का ना और ही उसे ....वक़्त बीत गया और इस तरह हमलोग की पढ़ाई पूरी हो गयी।

लेकिन मेरे दिल मे उसके के लिए अभी भी पहला और आखरी प्यार था और शायद उस के लिए भी। और इस तरह से

हमे सबको अलग अलग कंपनी मे जॉब लग गई थी तभी बस एक दिन मैंने सोच लिया कि अब बस.. मैं उससे कल जा के दिल की बात बता ।

दूंगा.... मैं अगले दिन सुबह उठा और मैंने उसे फ़ोन किया और उससे कहा की मुझे मिलना है उससे ..उसने मिलने क लिए हां कर दिया और इस बात से मुझे बहुत ख़ुशी मिला।

हमलोग ने एक समय निर्धारित किया था और मैं समय से पहले वहां उसका इंतजार कर रहा था ....तभी मेरी नजर उस पे पड़ी.. वही कपडे..वही बैग..

वही छोटी-छोटी आँखे और चेहरे पे वही प्यारी से मुस्कान, मानो ऐसा लग रहा था..की वही पहला दिन हो..जब मैंने उसे पहली बार देखा था..वो धीरे धीरे आ रही थी।

मैं तो बस उसे देखता ही जा रहा था..फिर वो पास आती है..फिर वो मेरे सामने बैठ जाती है..तभी बस..मैंने उससे कहा की मुझे कुछ कहना है उससे।

फिर तभी उसने भी कह दिया की मुझे भी कुछ कहना है तुम्हें ...मैं खुश हो गया.. मुझे लगा की आज वो भी अपने दिल की बात बोल देगी...फिर मैंने उससे कहा

दिया कि तुम पहले बोल दो...उसने तो पहले मना किया पहले बोलने से..लेकिन मैंने ही जिद कर दिया... कि पहले तुम बोले और वो बोलने जा रही थी।

मानो मेरी सांस रुक गए थे..उसकी बाते सुनने क लिये...सब कुछ थम सा गया...बस ऐसा लगा मैं और वो..और कुछ नही है आस-पास...फिर

उसने अपने बैग से एक कार्ड निकाला..और दिया मुझे...वो जो पल था।

वही पहला पल..जब मुझे लगा कि मेरा सपना था..और सपना टूट

गया...उस कार्ड मैं उसकी शादी का आमंत्रण था...बस..फिर क्या..सब कुछ वहीं रुक गया.... शायद मैंने बहुत देर कर दी उससे अपनी दिल की बात बताने मे..श्याद बहोत-बहोत देर... फिर उसने मुझसे पूछा.. कि तुम क्या कहना चाहते थे ?

मैं क्या कहता तब..बात बदल दी..और वो चली गयी...और मैं वही बैठे रह गया....मुझे उसे अपना बनाने का बस एक सपना ही था शायद.......जो एक समय पे आ क टूट गया....वो आज का दिन और

पहला दिन...मानो क्यों आया था मेरी जिन्दगी मैं अब तक ये बात समझ नही आया....

पहला दिन भी एक सपने की तरह आई और कुछ देर बाद टूट गयी...और ये आज का पल..जो फिर से एक सपना बनकर पल मै टूट गया........

 

अंजलि और वीर का सच्चा प्यार

वो कहते है ना अगर किसी चीज को शिद्ददात से चाहो तो पूरी कायनाथ तुम्हे उससे मिलने में लग जाती है।

तो ऐसी ही कुछ कहानी है अंजलि और वीर की।

आज 4 साल बाद फिर वही आवाज़ सुनाई दी, हवा में फिर वही खुशबू थी, लेकिन सब कुछ बदल चुका था। उससे देख के ऐसा लगा मानो ज़िन्दगी मुझसे बोल रही है तू अभी जिंदा है, तू अब भी ख्वाब देख सकता है, तू अकेला नहीं है अब, लेकिन फिर भी मन में कहीं डर था कि कहीं ये सपना तो नहीं है जो आंख खुलते ही टूट जाएगा, मन में हजार सवाल चल रहे थे।

की तभी वो सामने आक बोली "हाय कैसे हो" मै तो उससे बस देखता ही रह गया वो फिर बोली "हेल्लो कैसे हो कुछ बोलो" मै हड़बड़ाहट में बोला "मैं ठीक ही हूं " तुम जैसी हो, वो बोलि "ठीक हूं। तुम इस कंपनी में जॉब करते हो? मैंने कहा "हां" उसके चहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी और बोली मै आज ही ज्वाइन हुई हूं यह आज मेरा पहेला दिन है जॉब का। ये सुन कर मानो मेरे अंदर कहीं खुशी की लहर चल पड़ी लेकिन मै उससे वो खुशी बाट नहीं सकता था ।

मै आज 4 साल बाद उससे मिला था। वो मेरी पहेली मोहहबत थी । हम दोनों साथ में बहोत खुश थे लेकिन फिर एक दिन आया जब वो मुझसे जुदा हो गई। आखिरकार गलाती भी मेरी ही थी। असल में वो मुझे छोड़ के नहीं गई थी मैंने ही कुछ ग़लत कर दिया था उसके साथ, मै ही बेहक गया था किसी और के लिए और, लेकिन वो कहते है ना प्यार अगर सच्चा हो तो बुरे से बुरा इंसान को बदल देता है।

ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ।

मै अंजलि को भूल के भी नहीं भुला पाया था और फिर आज 4 साल बाद वो मेरे सामने है क्या बोलूं उससे मै किस मुंह से बात करू कुछ नहीं समझ आरहा था मुझे। वो मेरे ही ऑफिस में अभी नई नई ज्वाइन हुई है और मै उसका सीनियर हूं । हम रोज़ ऑफिस आते है काम करते है और घर जाते है 1 महीना हो गया था हुए लेकिन अंजलि ने मुझसे एक बार भी हमारे बिती हुई ज़िन्दगी में बारे में बात नहीं की कभी भी ना ही वो मुझे पूछी की मै अब उसी के साथ ही या ब्रेकअप हो गया है मेरा।

एक दिन जब शाम ऑफिस से निकलने का टाइम हुआ तो बहोत बारिश हो रही थीं और मेरे पास छता नहीं था कि मै बस स्टैंड तक भी जा सकूं थी मै ऑफिस में ही वेट कर रहा था बारिश रुकने के लिए,तभी अंजलि ऑफिस से निकल रही थी और मुझे बैठा देख कर पूछी "तुम्हे घर नहीं जाना" तो मैंने कहा घर तो जाना है लेकिन मै आज छता नहीं लाया और बाहर बहोत बारिश हो रही है इसलिए वेट कर रहा हूं रुकने के लिए।

वो बोली ठीक है फिर थोड़ा रुक के बोली मेरे पास छाता है चाहो तो मै तुम्हे बस स्टैंड तक छोड़ सकती हूं। मैंने बिना कोई सोच विचार किए जा केह दिया और जल्दी से सब सामान रख के उसके साथ ऑफिस से निकला। बारिश इतनी तेज़ थीं की हम दोनों भिग गए थे बस स्टैंड आते आते और बारिश के वजह से बस भी काफी लेट थी। हम दोनों के बीच शांति थी ना मै कुछ बात कर पा रहा था ना वो कुछ बोल रही थी। फिर मैंने ही हिम्मत जुटा के पूछा की "क्या तुम्हारे शादी हो गई?" वो हस पड़ी और बोली नहीं ये सुन कर मेरे दिल को जो खुशी हुई मै उससे बता भी नहीं सकता था। फिर कुछ देर बाद वो मुझसे पूछी "तुम्हारी हो गई?" मैंने कहा नहीं, फिर थोड़ा रुक कर मुस्कुराते हुए पूछी प्रीती का क्या हुआ।

मै थोड़ा शांत हो गया और बोला हम साथ नहीं है। वो कुछ नहीं बोली बस चुप चाप खड़ी थी। फिर मैंने बहोत हिम्मत जुटा के कहा कि अंजलि मुझे माफ़ कर देना मैंने तुम्हरे साथ बहोत गलत किया था। वो चुप ही थी कुछ नहीं बोली, मै भी चुप खड़ा था फिर थोड़ी ही देर में बस आ गई और हम दोनों बस में गए। अगले दिन जब मैंने ऑफिस में अंजलि को देखा तो मुझे उससे पूछना था क्या सोचा उसने, मुझे माफ़ किया कि नहीं, कैसे बात करु उससे यही सब सोच रहा था कि वो मेरे केबिन में मुझे एक फाइल देने आई, मैंने बिना कुछ सोचे उसे बोल दिया कि ऑफिस के बाद साथ में चलना मुझे कुछ बात करनी है, वो बोली क्या? हम अभी भी इधर बात के सकते है, मैंने कहा नहीं ऑफिस के बाद मिलना वो बोली ठीक है और चली गई।

मै बस इंतजार कर रहा था कि कब 6 बजेंगे की मै उससे बात कर पाऊंगा।

टाइम जैसे थाम ही गया था।

6 बज गया सब एक एक कर के निकाल रहे थे ऑफ़िस से फिर आखिर में मै निकला और साथ में अंजलि भी थी वो रुकी थी मेरे लिए। आज फिर हम साथ चल के गए बस स्टैण्ड और रास्ते में मैंने उससे पूछा कि कल का जवाब नहीं दिया तुमने। वो शांत ही थी कुछ देर फिर बोली किस बात का जवाब क्या जवाब दूं मै गए तुम थे छोड़ के और अब मुझे फिर से वो सब कुछ नहीं चाहिए तो कोई माफ़ी सवाल जवाब की बात ही नहीं बनती।

मैंने उससे बहोत मानने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी। 5 महीने हो गए थे हमें एक ही ऑफिस में काम करते हुए लेकिन हम दोनों ही अब एक दूसरे से बात नहीं करते थे उस दिन के बाद। "मैंने बहोत बार कोशिश किया की अंजलि को मै माना लू उससे ये कह सकु की हा मुझसे गलती हो गई थी लेकिन मै तुम्हारे बिना नहीं रह पा रहा हूं तुम इस ऑफिस में ज्वाइन हुई उससे पहले से मैंने तुम्हे कॉन्टैक्ट करने की कोशिश किया था लेकिन नहीं हुआ और जब तुम इस ऑफिस में आई तो मेरी खौशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा लेकिन मुझेमे तुमसे बात करने की हिम्मत नहीं होती थी मुझे पता था कि तुम अब भी मुझे प्यार करती हूं लेकिन कहती नहीं हो। "

एक दिन मैंने ही कुछ सोचा और ऑफिस में आक सबको अपनी शादी की खबरें देदी की अगले महीने मेरी शादी होने वाली है।

ये सुन कर ऑफिस में सब मुझे बधाई देने के लिए आए लेकिन अंजलि नहीं आई।

शाम को मैं खुद उसके पास गया और पूछा की क्या तुम्हे खुशी नहीं हो रही कि मेरी शादी होने वाली है। वो बोली क्यों नहीं मै बहोत खुश हूं कि तुम शादी करने जा रहे हो एक नई ज़िंदगी की शुरुवात लेने जा रहे हो। फिर मैंने पूछा कि तुम मुझे बधाई देने की नहीं आयी जब सब लोग आए थे ऑफिस के तो बोली मुझे बहुत काम था मै बस्सी थी, मैंने कहा ठीक है और मै वहां से चला गया। 2 दिन बाद रात को अंजलि का मेसेज आया कि क्या तुम सच में शादी कर रहे हो अगले महीने।

मैंने कहा हां।

अगले दिन अंजलि ऑफिस ही नहीं आई थी, मै सोच में सब गया की क्या हो गया वो आई क्यू नही फिर मैंने अपने कलिग को कहा कि अंजलि को फोन कर के पूछे की वो ऑफिस क्यों नहीं आई, उसने फोन किया तो पता चला कि उससे बहोत तेज भुखर है और वो घर पर अकेला है।

मै तभी ऑफिस से निकाल गया उसके घर जाने के लिए रास्ते में मैंने फोन कर के उसके घर का पता पूछा और जितनी जल्दी हो सके वह पौहुचा, वाहा जाक देखा तो वो अकेले थी और उससे बहोत ठंडी लग रही थी कम्बल में सोई थी।

मै जल्दी से उस उठा के अस्पताल लेक गया। शाम तक उसका भुखर ठीक हुआ तो डॉक्टर ने उससे मिलने की इजाजत दी। मै उसके पास बैठा था।

वो सो रही थी, मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया फिर धीरे से उसकी आंख खुली वो मुझे ही बस देखे जा रही थी।

मैंने धीरे से बोला कि नहीं है मेरी शादी अगले महीने मई शादी नहीं कर रहा हूं, ये सुनते ही वो रोने लगी, मेरे भी आंख में आंसू आ गए मैंने उससे गले लगा लिया और हम दोनों एक दूसरे को पकड़ के बहोत रोइए।