मर्डर (A Murder Mystery) - 2 Atul Kumar Sharma ” Kumar ” द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मर्डर (A Murder Mystery) - 2

मर्डर ( भाग - 2 )

वो थोड़ा अंदर जाते हैं तभी 3-4 लोग बेसुध से एक पेड़ के आसपास पड़े हुए मिलते हैं। उनको हिलाने पर भी वो कोई खास रिस्पॉन्स नही देते। बस चढ़ी चढ़ी आंखों से एक बार देखकर फिर गर्दन लटकाकर सो जाते हैं।


"" अरे सर ये लोग नशेड़ी है। इस सुनसान जगह पर गांजा खींचकर यूँ ही पड़े रहते हैं। ताकि यहाँ किसी की नज़र ना पड़े इनपर।"" साठे डंडे तो ऊनको हिलाने लगता है।

"" ले चलो सालों को, थाने में ही इनका सारा नशा उतारेंगे। हो सकता है इन लोगो ने जरूर कुछ देखा हो। देखो इनके आसपास ये खून भी पड़ा हुआ है। कही इन्ही लोगो ने मौके का फायदा उठाकर उस घायल गाड़ी वाले के साथ कुछ कर तो नही दिया। नशे के लिए पैसे की जरूरत होती है , और इन्होंने उस घायल व्यक्ति से पैसे छीनकर उसे कही मार ना दिया हो। ले चलो सालों को।"" इंस्पेक्टर विजय साठे से बोले।

"" अरे सर कोई फायदा नही, इन लोगो के हाथ पाँव मे इतनी भी जान नही होती कि ये खड़े हो सकें। क्या किसी को मारेंगे।"" साठे मुंह बनाते हुए बोला।

उसकी बात सुनकर इंस्पेक्टर विजय बोलते हैं।

"" किसी को भी कभी कम मत आंका करो साठे। जिनसे उम्मीद नही होती वही बड़े बड़े कांड कर जाते हैं। मेने अबतक कि अपनी पुलिस की नॉकरी में बहुत देखा है ये सब।""..

बाहर आते ही उनको सड़क पर एक और गाड़ी के पहियों के हल्के निशान मिलते हैं। इंस्पेक्टर विजय बड़े गौर से उन निशानों का अवलोकन करने लगते हैं।


( थाने का दृश्य )


थाने में विजय और साठे बैठकर मामले पर चर्चा कर रहे होते हैं।

"" सर दोनो खून के सेंपल लेब भिजवा दिए हैं। गाड़ी वाला भी और वो नशेड़ियों के पास पड़ा था वो वाला भी। ""

"" और वो तीनो गंजेड़ियो के ???...उनके नही भेजे। साठे साठे कितनी बार कहा कुछ भी छोटी से छोटी बात भी चूका मत करो। कभी कभी वो बड़े काम की साबित होती है पूरे केस में। उन तीनों में सेंपल भी लो और उन्हें भी भिजवाओ। जल्दी। और वो गाड़ी नम्बर से पूरी डिटेल पता करो किसकी गाड़ी है। उस गन के नम्बर से उसके मालिक का भी पता करो। हो ना हो उसी कार के मालिक की होगी। पता नही क्या कांड करके भाग रहा था। "" इंस्पेक्टर विजय कड़क स्वर में साठे से बोले।

वो अभी बातें ही कर रहे थे कि तभी एक हवलदार अंदर केबिन में आता है।

"" सर आसपास के सभी थानों में पता किया पर कोई मिसिंग कम्पलेंड फ़ाइल नही हुई है। ना ही किसी के किडनैप की ।"" वो हवलदार इंस्पेक्टर विजय की और मुखातिब होते हुए बोला।

"" हो सकता है अभी किसी से कोई रिपोर्ट ना कि हो, क्योंकि वाक़या कल रात ही हुआ है। नज़र रखते रहो। सबसे बोलो की जो भी ऐसी रिपोर्ट लिखाता है तो फौरन हमे इत्तला करें।"" विजय उस हवलदार को आदेश देकर फिर से उसी केस के बारे में सोचने लग जाते हैं।

"" साठे जैसे ही लैब से उस गाड़ी की पूरी जांच रिपोर्ट आती है मुझे फ़ौरन मेरी टेबिल पर चाहिए। ""

"" जी सर, और परिवहन विभाग से भी उस गाड़ी की पूरी जानकारी जल्द ही आती होगी। "" साठे , विजय की बात का उत्तर देते हुए बोले।

"" आखिर वो गाड़ी वाला गया तो गया कहां। ज़मीन खा गई या आसमान निकल गया। अरे साठे उन तीनों को होश आया क्या। उनसे पूछताछ करो। आसानी से नही बताएं तो थोड़ा सख्ती से पूछो। साले सब उल्टी करेंगे। "" इंस्पेक्टर विजय बोले।

हवलदार साठे उनकी बात सुनकर केबिन से बाहर चले जाते हैं।


(अगले दिन )


हवलदार साठे तेज़ी से इंस्पेक्टर विजय के केबिन में दाखिल होते हुए।

"" सर सर, उस गाड़ी मालिक का पता चल गया है। शहर के ही एक व्यवसायी रमन हिंदुजा के नाम है। ""

साठे के मुंह से नाम सुनते ही विजय दिमाग पर जोर देते हुए उससे बोले।

"" ये रमन हिंदुजा वही ना जो हिंदुजा टेक्सटाइल के मालिक हैं। और जिनका बहुत बड़ा अनाथाश्रम भी चलता है। में गया हूँ वहां एक बार। पर उनसे मुलाकात नही हुई , बस नाम ही सुना है। जितना सुना उस हिसाब से तो एक अच्छे भले अपनी मेहनत से नीचे से ऊपर उठे इंसान लगे। ""

"" हाँ सर वही हैं। पर अधिकतर जैसा ये लोग बाहर से दिखते हैं ना वैसे होते नही। "" हवलदार साठे आंखे नचाते हुए बोले।

"" चलो इन हिंदुजा जी को भी देख परख लेते हैं। "" कहते हुए दोनो जीप में निकल जाते हैं।

कुछ देर में इंस्पेक्टर विजय और हवलदार साठे हिंदुजा विला में रमनलाल के सामने बैठे हुए थे। इंस्पेक्टर विजय रात वाला वाला वाक़या बताते हुए उनसे उनकी कार का पूछते हैं।उनकी बात सुनकर रमनलाल बोले।

"" इंस्पेक्टर साहब ये कार मेरी ही है। मेने अपने बेटे पुनीत को उसके बर्थडे पर गिफ्ट की थी। पर मेरी कार वहाँ कैसे आई। ""..रमनलाल आश्चर्य जताते हुए बोले।

"" कहाँ है आपके बेटे पुनीत???"" विजय रमनलाल से उनके बेटे पुनीत को बुलाने का बोलते हैं।

थोड़ी देर में पुनीत आकर सामने खड़ा हो जाता है।उसे देखकर विजय आश्चर्य से रमनलाल के मुंह की तरफ देखने लगते हैं।

"" रमनलाल जी ये तो देखने मे बहुत छोटा 16-17 साल का ही लगता है। आपने अभी से इसे कार खरीदकर दे दी!!!!!""

रमनलाल थोड़ा झिझकते सकपकाते हुए बोले।

"" जी सर अभी 17 का है। पर ड्राइव बहुत शानदार करता है मुझसे भी अच्छी। और आज़कल के बच्चों को तो आप जानते ही हो। माता पिता की सुनते ही कहाँ है । बस जो धुन सवार वो चाहिए ही चाहिए।""

उनकी बात सुनकर विजय को गुस्सा तो बहुत आई पर अपना गुस्सा दबाते हुए बोले।

"" रमनलाल जी आप एक इज़्ज़तदार शहरी हैं पढ़े लिखे। जो मेनहत से अपना मकाम बनाये हैं। आपके मुंह से ऐसी बचकानी बाते शोभा नही देती। अच्छी ड्राइविंग करना जानता है मतलब आप स्वयम ही उसे लाइसेंस दे देंगे। कानून वगेरह की कोई अहमियत है या नही आपकी नज़रों में। और किन बच्चों की बात कर रहे हो आप!!!!! ये इसके जैसे बिगड़े अमीरज़ादों की ( विजय पुनीत को गुस्से से देखते हुए बोले।) ये सब आज़कल की औलादें आपजेसो के परिवार में ही पैदा होतीं हैं । किसी आम इंसान के बच्चे आज भी बचपन से ही अपनी जिम्मेदारी उठाते हैं। संस्कार आपलोग खुद नही देते और सारा दोष ज़माने पर उड़ेलते हैं। ये ज़माना भी आप ही कि देन है। में आपके इस महान काम ले लिए आपको बाद में सम्मानित करूँगा, अभी में एक केस के सिलसिले में आया हूँ। ""

वो पुनीत को सामने बैठने का इशारा करते हैं। पुनीत डरते हुए बार बार अपने पिता की तरफ देखते हुए उनके सामने बैठ जाता है। विजय उजसे सवाल करते हैं।

"" देखो पुनीत में घूमी फिरी बात नही करूँगा। सच सच बताओ कल रात तुम अपनी कार लेकर कहाँ गए थे?????"""

विजय की बात सुनकर पुनीत रमनलाल की तरफ देखने लगता है।

"" पिताजी की तरफ नही मेरी तरफ देखकर बात करो। बोलो कहाँ थे कल रात। उस जंगल वाले रोड पर क्या करने गए थे।"" इस बार इंस्पेक्टर विजय की आंखों और जुबान पर एक सख्त लहज़ा था। वो बड़े गौर से पुनीत की खामोशी को नोटिस कर रहे थे।



तभी रमनलाल फ़ौरन बोल पड़ते हैं।

"" इंस्पेक्टर साहब , ये तो कल रात यहीं घर मे था। कहीं नही गया। हमलोगों की आंखों के सामने ही है कल सुबह से।

"" नही गया तो फिर वो आपकी कार उस जंगल मे कैसे पहुंची। मुझसे कुछ भी छिपाने की कोशिश मत कीजिये रमनलाल जी। जो सच है वही बोलिये। बात छिपाकर आप खुद की और अपने बेटे की मुश्किल ही बढ़ाएंगे। "" विजय सख्ती से बोले।

"" पापा सच कह रहे हैं इंस्पेक्टर अंकल, में कल सुबह से कही गया ही नही। घर मे अपने कमरे में ही हूँ। आप चाहे तो घर मे किसी से भी पूछ सकते हो। और वो कार तो मैने अपने एक दोस्त को दी थी। उसे अपनी फैमिली के साथ उसकी किसी रिश्तेदारी में जाना था। वो परसो शाम को ही आकर मेरी गाड़ी ले गया था। अंकित नामदेव नाम है उसका। अम्बिका नगर में रहता है। आप चाहें तो उससे भी पता कर लीजिए। "" पुनीत डरते हुए धीरे से बोला।

उसकी बात सुनकर विजय कुछ देर खामोश होकर उसे ही देखते रहते हैं। फिर अचानक से उठकर पुनीत को उसका कमरा दिखाने को बोलते हैं। पुनीत उन्हें अपने कमरे में ले जाता है। विजय और साठे बड़े गौर से उसके कमरे को देखते हैं।

"" हम्ममम्म , और ये तुम लँगड़ा कर क्यो चल रहे हो। क्या हुआ पाँव में।"" इंस्पेक्टर विजय उसकी चाल देखते हुए उससे पूछते हैं।

पुनीत और भी डरकर सहम जाता है। वो फिर रमनलाल की और देखने लगता है। रमनलाल सकपकाते हुए इंस्पेक्टर विजय से बोले।

"" जी वो बात ये है कि, इसकी अपने स्कूल के एक लड़के से हाथापाई हो गई थी। उसी में घुटने में चोट आ गई। पर मैने बहुत डांटा इसे। स्कूल के प्रिंसिपल ने भी डाँटा इसको। उसी वजह से तो कल से स्कूल तक नही गया। यही घर मे आराम कर रहा है। ""

पुनीत पेंट उपरकर वो घुटने की चोट दिखाता है। उसपर पट्टी बंधी हुई थी। इंस्पेक्टर विजय उसकी चोट देखकर वापस बाहर कमरे में आ जाते हैं। वो रमनलाल ने उनकी कोई लाइसेंसी गन के बारे में भी पूछते हैं। जिसका वो मना कर देते हैं। वो बताते हैं कि उन्हें गन रखने की जरूरत ही नही पड़ी। कोई दुश्मन नही उनका। । उस समय तो इंस्पेक्टर विजय वहां से चले जाते हैं पर रमनलाल और पुनीत को सख्त हिदायत देकर जाते हैं कि वो थाने आकर अपने फिंगर प्रिंट और ब्लड सेंपल देकर आएं , और कही भी बाहर जाने से पहले उन्हें सूचित अवश्य करें। वो विजय को आश्वासन देते हैं। विजय और साठे जीप में बैठकर पुनीत के दोस्त के घर की तरफ चलने को होते हैं।तभी सामने से रमनलाल की पत्नि लीला हिंदुजा किसी के साथ गाड़ी में से उतरती हुई घर मे दाखिल होतीं हैं। उनके पहनावे से ही इंस्पेक्टर विजय ,पुनीत को मिले संस्कारो के कद का अंदाज़ा लगा लेते हैं। जब माँ को खुद संस्कारो की जरूरत हो तो वो सन्तान को क्या देगी। रमनलाल अपनी पत्नि से इंस्पेक्टर विजय का इंट्रोडक्शन कराते हैं। विजय बड़े गौर से उनको देखते हुए वहाँ से अंकित के घर की और चल देते हैं।जिसका पुनीत ने बताया था।


To be continued...


Atul Kumar Sharma