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यह तो होना ही था  

अलग-अलग स्कूल से आए हुए अमित और अंजलि कॉलेज में एक ही क्लास में थे। धीरे-धीरे उनकी दोस्ती हो गई और उनका पाँच लोगों का ग्रुप भी बन गया। नई-नई कॉलेज की लाइफ का आनंद लेते हुए लगभग छः माह गुजर गए। एक दिन उनकी पूरी क्लास ने पिकनिक पर जाने का प्रोग्राम बनाया। सभी बहुत ख़ुश थे, अमित और अंजलि भी जाने के लिए तैयार थे।

दूसरे दिन सुबह जब सब पिकनिक पर जाने के लिए एकत्रित हुए तब अंजलि नहीं आई। बस में बैठ कर सब मस्ती कर रहे थे, किंतु अमित बार-बार बाहर की तरफ़ देख रहा था। वह अंजलि का इंतज़ार कर रहा था किंतु वह नहीं आई और बस रवाना हो गई।

बस में अंताक्षरी का दौर चल रहा था, सबकी मस्ती चरम सीमा पर थी, किंतु अमित गुमसुम था। वह ख़ुद हैरान था कि वह क्यों सबके साथ ख़ुश नहीं हो रहा है, वह क्यों उदास और परेशान है। अंजलि के नहीं आने से आख़िर उसे इतना फ़र्क क्यों पड़ रहा है। सोचते-सोचते उसे एहसास हुआ कि वह अंदर ही अंदर अनजाने में अंजली से प्यार करने लगा है।

उसने तुरंत ही अंजलि को फ़ोन किया, "अंजलि क्या हुआ तुम पिकनिक के लिए क्यों नहीं आईं?"

अंजलि ने जवाब दिया, "अमित मुझे रात से ही तेज़ बुखार है, इसलिए नहीं आई। कोई बात नहीं तुम सब हो ना, एन्जॉय करना।"

अमित का पिकनिक का पूरा मूड ही चौपट हो गया। वह पूरे समय अंजलि के ख़यालों में उलझा रहा।

दोस्तों ने कई बार पूछा, "अमित यार क्या हो गया, ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है? कुछ तकलीफ़ है क्या?"

"नहीं कुछ नहीं", कह कर अमित ने बात को टाल दिया और ऊपरी मन से सब के साथ हँसने बोलने लगा।

रात तक सब लोग वापस आ गए, दूसरे दिन सुबह भी अंजलि कॉलेज नहीं आई। अमित ने उसे फ़ोन करके हालचाल पूछा, किंतु जब तीन दिनों तक अंजलि कॉलेज नहीं आई तो उसकी सब्र का बाँध टूट गया और वह अंजलि के घर आ गया। आज पहली बार वह अंजलि के पापा-मम्मी से भी मिला।

अंजलि को देखते ही अमित बोला, "हाय अंजलि, अब तबीयत कैसी है?"

"मैं ठीक हूँ अमित, कल से कॉलेज भी आऊँगी।"

"अंजलि, मैं तुम्हारे लिए सारे लेक्चर्स के नोट्स की फोटो कॉपी करा कर लाया हूँ।"

"ओह थैंक यू अमित, तुम सबका कितना ख़्याल रखते हो", दोनों कुछ देर बात करते रहे, फिर अमित वापस लौट गया।

आज अंजलि से मिलकर, उसे देखने के बाद ही अमित का मन शांत हो पाया था। दूसरे दिन से अंजलि कॉलेज आने लगी, उनकी दोस्ती और अधिक घनिष्ठ होती जा रही थी। अंजलि के लिए अमित केवल एक अच्छा दोस्त ही था, वह उसके मन में चल रहे तूफ़ान से एकदम अनजान थी।

अब तक वे कॉलेज के द्वितीय वर्ष में आ चुके थे, अमित अभी तक अपने मन की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। वह अंजलि का पूरा-पूरा ध्यान रखता था, उसे हर काम में मदद करता था।

इस वर्ष जब वैलेंटाइन डे आया, तब पहली बार अमित ने दो गुलाब के फूल खरीदे, एक पीला और दूसरा लाल। उसे डर था कि लाल गुलाब देखकर कहीं अंजलि नाराज़ ना हो जाए। अंजलि से अकेले में मिलकर उसने कहा, "अंजलि मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ लेकिन पहले प्रॉमिस करो कि तुम नाराज़ नहीं होगी। हम जैसे दोस्त हैं, वैसे ही बने रहेंगे।"

"क्या हुआ अमित, ऐसा क्यों बोल रहे हो, आख़िर बात क्या है?"

"नहीं अंजलि, तुम पहले प्रॉमिस करो।"

अंजलि ने प्रॉमिस करते हुए कहा, "ठीक है अमित मैं नाराज़ नहीं होऊंगी, अब बोलो भी।"

तब अमित ने अपनी जेब से दो गुलाब के फूल निकाले और हाथों में दोनों फूल लेकर उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया।

अमित ने कहा, "अंजलि मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्हारे साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहता हूँ।"

अंजलि हैरान थी, वह कुछ बोले उससे पहले अमित फिर बोला, "अंजलि बुरा मत मानना, नाराज़ मत होना। यदि तुम ऐसा नहीं चाहती तो ये देखो, हमारी दोस्ती के लिए यह पीला गुलाब भी मैं लाया हूँ। अब तुम्हारे ऊपर है, तुम कौन-सा गुलाब चुनोगी।"

इतना कह कर अमित ने अपनी आँखें बंद कर लीं। अंजलि ने बिना कुछ सोचे सीधे पीला गुलाब अमित के हाथों से ले लिया।

"अमित तुम यह क्या कह रहे हो, हम दोनों दोस्त हैं और इससे आगे कुछ भी, कभी मत सोचना। मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि तुम ऐसा कहोगे।"

अंजलि अपना इतना अच्छा दोस्त खोना नहीं चाहती थी इसलिए इस बात पर उसने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। दोनों की दोस्ती वैसी ही बरकरार रही, अंजलि के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया। अमित तो उससे बेइंतहा प्यार करता था और अपने प्यार पर उसे पूरा विश्वास था कि एक ना एक दिन वह अंजलि को अवश्य ही मना लेगा। देखते-देखते पूरा वर्ष बीत गया और फिर से वैलेंटाइन डे आ गया।

इस वर्ष भी अमित गुलाब के दो फूल लेकर आया और प्यार के साथ बंद आँखों से अंजलि के सामने फूल लेकर खड़ा हो गया।

अंजलि ने पीला गुलाब लेते हुए कहा, "अमित तुम नहीं सुधरोगे, मैंने तुम्हें कहा था ना कि ऐसा कभी मत सोचना। तुम मेरे इतने अच्छे दोस्त हो कि मैं तुम्हें इस बात के लिए डांट भी तो नहीं सकती।"

"कोई बात नहीं अंजलि तुम्हें जितना डांटना हो डांट लो लेकिन मैं अपने दिल को कैसे समझाऊँ, तुम ही बताओ। मैं हर वर्ष दोनों गुलाब तुम्हारे सामने लेकर आऊँगा, एक तो तुम्हें उठाना ही होगा ताकि मेरी अंजलि मुझसे दूर ना हो जाए। लाल ना सही, पीला ही सही।"

पवित्र प्यार के अमृत रस में डूबा अमित अंजलि के हाँ कहने का इंतज़ार करता रहा। इंतज़ार कितना लंबा होगा वह नहीं जानता था। आख़िरकार जुदाई का समय नज़दीक आ गया। उनका ग्रेजुएशन पूरा हो गया और आगे की पढ़ाई के लिए अमित अहमदाबाद चला गया। अंजलि को बड़ौदा के उसी कॉलेज में पढ़ाई करने का अवसर मिल गया।

दोनों अलग हो गए, अब रोज़ का वह मिलना, जुलना, हँसना, हँसाना, लड़ना, झगड़ना सब बंद हो गया।

अंजलि को अमित की इतनी आदत पड़ चुकी थी कि उसके बिना उसका कोई काम पूरा नहीं होता था। हर क़दम पर उसे अमित की ज़रूरत होती थी। अमित हर वक़्त उसके लिए हाज़िर भी रहता था। उसके अहमदाबाद जाने के बाद हर क़दम पर अंजलि को अमित की कमी खलने लगी, फिर भी उसके दिल में प्यार का फूल अभी भी नहीं खिला था। उसके लिए तो आज भी अमित उसका सबसे अच्छा मित्र ही था।

हर शनिवार अमित अपने घर बड़ौदा आता था और आते ही अंजलि से मिलने के लिए उसके घर पहुँच जाता फिर दोनों कुछ समय साथ में बिताते। यूँ ही साथ चलते-चलते दो वर्ष होने को आए।

एक दिन अंजली की मम्मी ने उससे पूछा, "अंजलि बेटा अमित के साथ तुम्हारा इतना मिलना जुलना है, तुम दोनों के बीच कुछ चल रहा है क्या?"

"नहीं मम्मी बिल्कुल नहीं," अंजलि ने अपने मन की बात तो सच-सच अपनी मम्मी को बता दी लेकिन अमित के मन की बात वह छुपा गई। उसे डर था कि कहीं मम्मी अमित से मिलने के लिए मना ना कर दें। आख़िर उससे ज़्यादा अच्छा दोस्त और कोई हो ही नहीं सकता था।

अंजली की मम्मी ने उससे एक दिन फिर कहा, "बेटा पापा भी चिंता करते हैं, तुम्हें अमित के साथ इतना घूमते हुए देखेंगे तो समाज में लोग क्या समझेंगे?"

"मम्मी वह ग़लत समझते हैं, तो समझने दो ना," इतना कहते हुए अंजलि ने अपनी मम्मी को गले से लगा लिया।

धीरे-धीरे दो वर्ष पूरे हो गए, अमित अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका था। आज वही पुराने कॉलेज कैंपस में अंजली और अमित फिर मिले। वे दोनों बैठ कर बातें कर रहे थे, वैलेंटाइन डे का दिन था। अमित उठा और अपनी कार की सीट पर रखे हुए दो गुलाब के फूल लेकर आज फिर अंजलि के सामने आ गया। अंजलि के सामने दोनों गुलाब के फूल लेकर वह खड़ा हो गया लेकिन इस बार उसने अपनी आँखें बंद नहीं की खुली रखीं।

अंजलि ने अमित की आँखों में देखा तो उसकी आँखों की गहराई में समुद्र की गहराई की तरह प्यार ही प्यार छलकता हुआ दिखाई दिया। उसकी आँखों में पाँच वर्ष के लंबे इंतज़ार के बाद आज भी आशा की एक किरण झिलमिलाती हुई दिखाई दे रही थी। अपने सामने खड़ा हुआ अमित आज अंजलि को प्यार से भरा हुआ समंदर दिखाई दे रहा था। वह हैरान थी, कोई किसी को इतना प्यार कैसे कर सकता है? इतना लंबा इंतज़ार कैसे कर सकता है?

अंजलि की आँखें अमित की आँखों की प्यार की गहराई में ऐसी डूब गईं कि अपने आप उसके हाथ लाल गुलाब की तरफ़ बढ़ गए और आज उसने पीले गुलाब को छोड़कर लाल गुलाब ले लिया।

अमित की आँखों से ख़ुशी के आँसू छलक कर उस फूल के ऊपर गिर पड़े जिसे अभी-अभी अंजलि ने छुआ था। दोनों के हाथ अभी लाल गुलाब को पकड़े हुए थे। तभी अमित ने उसे कहा, "अंजलि आई लव यू।"

उसके कान जवाब में वही तीन शब्द सुनना चाह रहे थे जो आज अंजलि के मुँह से पहली बार स्वतः ही निकल गए। वह तीन शब्द अमित के कानों में स्वर्गीय सुख का मीठा-मीठा एहसास करवा रहे थे।
इस वैलेंटाइन अमित को अपनी ज़िंदगी का सबसे कीमती तोहफ़ा मिल गया।

लाल गुलाब लेने के बाद अंजलि ने दूसरे हाथ से पीला गुलाब भी लेते हुए कहा, "अमित हम जीवन साथी से पहले अच्छे दोस्त हैं और हमारा दोस्ती का रिश्ता कभी ख़त्म नहीं होना चाहिए।"

"हाँ अंजलि यह दोस्ती का रिश्ता इतना गहरा है, जिसने इस प्यार को जन्म दिया और मुकाम भी दिया। इस गहरी दोस्ती ने ही तुम्हारे दिल में विश्वास को जन्म दिया और इस लंबी दोस्ती और वैलेंटाइन डे पर दिए इन गुलाबों के कारण ही तुमने इस वैलेंटाइन पर मेरे प्यार को स्वीकार किया।"

अंजलि ने आज अमित के प्यार को स्वीकार कर लिया था और यह बात उसे अब अपने परिवार को बताना था। उसने सबसे पहले यह बात अपने छोटे भाई को बताई। यह सुनकर वह ख़ुशी से उछल पड़ा और बिना देर किए उसने यह बात अपने पापा मम्मी को बता दी।

दोनों के परिवार में जब यह पता चला तो दोनों परिवार बहुत ख़ुश हो गए। अब तक उनकी गहरी दोस्ती देखकर वे सब मन ही मन मान चुके थे कि यह तो होना ही था।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक








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