क्या तुझे भी इश्क है? (भाग-3) R.K.S. 'Guru' द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्या तुझे भी इश्क है? (भाग-3)


भाग-3. अनारकली का एक्सीडेंट
शिवाक्षी ने दुकान से अपने घर का सामान ले लिया था. जिसके बाद उसने एक बड़े से थेले में सामान को भरा और उसने दुकानदार से बिल माँगा- भैया, कितने हुए?
-मैम, चार हजार रूपये.
दूकानदार ने मुस्काते हुए कहा. जिसके बाद शिवाक्षी ने दो दौ हजार के नोट दुकानदार को दिए और फिर सामान को अपनी स्कूटी के पीछे रस्सी से कसकर बाँध दिया. उसने एक बार उसे हिलाकर देख लिया कि कहीं सामान गिर तो नहीं जाएगा.
-हूँ अब ठीक है. मुझे पता है अनारकली तुम्हारी कमर टूट जाएगी पर मैं क्या करूँ यार? मेरा बस चले तो मैं तुम्हें फूलों की सड़क पर चलाऊं.
उसने अपनी स्कूटी को इस तरह से कहा जैसे वो कोई इन्सान है.
-चल अब चलते हैं. आधे घंटे की ही तो बात है. घर पहुँचते ही तुमको आराम मिलेगा.
उसने स्कूटी को स्टार्ट किया और उसके बाद अपने घर की तरफ चल पड़ी. उसने अपने फ़ोन का रिचार्ज पहले ही करवा लिया था. शाम का वक्त था ऐसे में कानपुर की सड़कों पर भीड़ बहुत ज्यादा थी. उमस होने के चलते उसके चेहरे से पसीना भी बह रहा था. लेकिन फिर भी वो जैसे तैसे मैनेज करके अपने घर की तरफ बढ़ रही थी. वो जैसे ही शहर के मुख्य चौराहे पर पहुंची सामने का नजारा देखकर वो चौंक गई. वहां चीटियों की तरह वाहन दौड़ रहे थे.
-हे भगवान.. ये सारे लोग आज ही बाहर निकलें हैं क्या? समझ ही नहीं आ रहा है.
वो ट्रैफिक में बुरी तरह से फंस चुकी थी. चारों और से वाहनों के शोर और होर्न्स की आवाज सुनकर वो परेशान हो जाती है. ऊपर से उमस की वजह से उसकी और भी हालत खराब हो गई. वो धीरे-धीरे स्कूटी को आगे बढ़ा रही थी. करीब दस मिनट के बाद वो चौराहे से निकल पाई.
-आह. चलो यहाँ से तो निकल गई. अब थोड़ी स्पीड बधा लेती हूँ..
उसने बुदबुदाते हुए अपनी स्कूटी की स्पीड को बढ़ाया और उसके बाद वो जल्दी-जल्दी आगे बढ़ने लगी. उसकी बगल की लेन में एक स्कॉर्पियो चल रही थी.
-या.. अब जल्दी करनी होगी.
उसने थोड़ी सी गति बढानी चाही क्योंकि सामने वाली लेन में उसने देखा कुछ वाहन आ रहे हैं. ऐसे में वो फिर से ट्रैफिक में फंस सकती थी और यही वजह थी कि वो उस स्कॉर्पियो से आगे निकलने की फिराक में थी कि तभी स्कॉर्पियो वाले ने भी निर्णय लिया कि उसे आगे निकलना चाहिए जिसकी वजह से स्कॉर्पियो वाले ने अपनी गाड़ी पर नियन्त्रण खो दिया और उसने शिवाक्षी की स्कूटी को बगल से टक्कर मार दी. वो धड़ाम से स्कूटी सहित सड़क पर गिर पड़ी.
-आह... तेरी माँ की. मेरी अनारकली..
वो जोर से चीखी और उसके बाद खड़ी होकर अपनी स्कूटी की तरफ दौड़ी. जिसका साइड का मडगार्ड पिचक गया था.
-हे राम.... कमीने के कीड़े पड़े. मेरी अनारकली का मडगार्ड तोड़ दिया.
उसकी आँखों से आंसू बहने लगे. उसने जैसे तैसे करके अपनी स्कूटी को खड़ा किया. उसके घर के सामान का थेला खुलके जमीन पर गिर गया था. सभी वाहन वहां आसपास में रुक गये.
-अरे. देखो एक्सीडेंट हो गया है..
सभी जोर जोर से बोले. सब लोग अपने अपने वाहनों से निकलकर शिवाक्षी की तरफ दौड़े. स्कॉर्पियो वाले ने अपनी स्कॉर्पियो को रोक दिया था.
-तेरी माँ की.....दिखता नहीं क्या तुमको.
शिवाक्षी ने जोर से कहा.
-अरे.. बच.. बच गई.. लड़की बच गई..
सभी लोग दौड़कर शिवाक्षी का सामान उठाते हैं. शिवाक्षी के चेहरे पर गुस्सा भरा हुआ था. उसने अपने कपड़ों को झड़काया और फिर उसकी तरफ बढ़ी.
-मैं कुछ पूछ रही हूँ.. तुम्हें दिखाई नहीं देता. तुमने मुझे टक्कर क्यों मारी.
-ओह हेल्लो.. तुम मेरी तरफ आई थी समझी. मेरी गलती नहीं है इसमें.. why are you trying to overtake me? जब स्पेस ही नहीं था तो तू क्यों साइड से निकली.
स्कार्पियों के अंदर से एक काला चश्मा पहने लड़का बाहर आया जो करीब पच्चीस साल का यंग और डैशिंग लग रहा था.
-तो क्या.. तू अंधा है जो तुमने मिरर में देखा नहीं की मैं बगल से निकल रही हूँ. बकवास कर रहा है.. मेरी अनारकली का मडगार्ड टूट गया अब उसका क्या?
उसने मुंह बनाते हुए कहा.
-कौनसी अनारकली और कैसी अनारकली..
-अरे.. बेटा ले देके मामला शांत करो ना.. ना लड़की के ज्यादा लगी है और ना इसका ज्यादा नुक्सान हुआ है...
एक बूढ़े आदमी ने कहा.
-किस बात के पैसे दूं मैं. मेरी कार का दस हजार का नुक्सान हुआ उसका क्या? पैसे क्या तेरा बाप भरेगा. चल मेरे पैसे निकाल. एक्सीडेंट तुम्हारी वजह से हुआ है ना कि मेरी वजह से.
-ओये बाप पर मत जा समझे. ज्यादा टुनटुनाने की जरूरत ना है.. एक लाफा मारा तो अक्ल ठिकाने आ जाएगी. खामखा गरिया रहे हो.
-अच्छा तो तू मुझे मारेगी.. तू जानती नहीं मैं कौन हूँ. मारके दिखा तू.
उसने क्रोधित होकर जोर से कहा.
-देख मेरा दिमाग खराब है. मेरी अनारकली का मडगार्ड टूट गया है.
-तेरी अनारकली की ऐसी की तैसी. तू मारकर दिखा.
-तेरी तो.. मेरी अनारकली को बुरा बोला तूने..
शिवाक्षी ने गुस्से में जोर से उसके थप्पड़ जड़ दिया. जिसके बाद सभी लोग हक्के बक्के हो गये. थप्पड़ की वजह से उस लड़के का चश्मा जमीन पर गिर गया. सबके सामने थप्पड़ पड़ने के बाद उसका चेहरा गुस्से के मारे लाल हो गया. –तेरी तो..
वो लड़का क्रोधित होकर जैसे ही उसकी तरफ बढ़ा बीच में दो चार लोगों ने उसे पकड़ लिया.
-कब से टुनटुना रहा था. मारो.. मारो.... अब खा ली कान के नीचे.
-रुक तुझे तो अब मैं बताता हूँ.
-मामला शांत करो.. सब.. बेटा तू जा..
एक बुड्ढा आदमी उन दोनों के बीच में पड़ते हुए कहा.
-ऐ. बुड्ढे. अब तो ये लड़की यहाँ पुलिस के आने से पहले किसी हाल में नहीं जाएगी. मैं इसे देखता हूँ इसने मिस्टर वीरन्द्र सिंह राजपूत के बेटे को मारा है. इसे तो मैं देख लूँगा..
उसने गुस्से में अपने फ़ोन को निकाला.
-देख ले.. तेरे बाप को नहीं दादा को भी बुला ले. मैं किसी के बाप से डरती नहीं.
शिवाक्षी ने क्रोधित होकर कहा.
इधर जहाँ शिवाक्षी उस लड़के से उलझ चुकी थी तो वहीं दूसरी तरफ उसकी माँ शिवाक्षी के घर ना आने की वजह से चिंतित थी. उन्हें इस बारे में कोई पता नहीं था कि शिवाक्षी का एक्सीडेंट हो गया है.
-क्या बात है.. ये लड़की अब तक आई क्यों नहीं? हमेशा तो इतना टाइम नहीं लगता है. कहीं कुछ हो तो नहीं गया ना?
उसकी माँ बुदबुदाने लगी. इधर सड़क पर जो लोग इकठ्ठा थे वो मामले को बढ़ता देखकर वहां से चले गये थे. बस दो चार लोग ही बचे थे. वाहन वहां से निकलकर जा रहे थे. शिवाक्षी की परेशानी अब बढ़ने वाली थी क्योंकि उसे अपने सामने एक पुलिस की गाड़ी आती हुई दिखाई दे रही थी.
क्रमश:
©Rajendra Kumar Shastri "Guru"