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निम्की के जीवन में उतार-चढ़ाव की कोई कमी न थी। कहने को उसके पास रहने को अपनी जमीन, नौकर (भीकू और उसकी पत्नी) और उड़ाने को नोट भी थे। पर गांव ने उसका मानो बहिष्कार कर रखा हो। उसका छुआ पानी तो दूर उसके गए रास्ते भर से जाने से बदनामी हो जाती थी। गांव वाले उसके लिए भद्दी गालियां इस्तेमाल करते। निम्की को गांव भर की कुलटाओ का नेता कहा जाने लगा पर निम्की स्वभाव इन सब को ठेंगा दिखा आगे निकल चुका था।
एक अकेली लड़की जिसके आगे-पीछे कोई न हो, जो गलत को गलत कहने भर का साहस रखती हो, हाथ में नोट दबाए हो ऐसी का तो लोग सम्मान कहा ही करेंगे। राम के पीछे सर झुका कर चलने वाली सीता पर भी लोगो ने लांछन नही लादे थे क्या? पर सच तो फिर भी यही था कि निम्की को अकेले करने में गांव वालो ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। निम्की की गांव के जमीदारो से जानकारी ना होती तो उसे निकाल गांव का दामन साफ कर लेते पर जमीदारो के सामने पंचायत भी पानी पीती हैं।
- धन्मी जो पंचायत का मुखिया था बताता है कि गांव में सबको बराबर का हक मिलना चाहिए अगर कोई...
- अबे छोड़ भी भीमा (भीमा की बात काटता
हुआ नीरव कहता है) हम नही जानते क्या धन्मी जमीदारो का बिठाया हुआ एक मोहरा ही है। उसकी लड़की की शादी में सरकारी लोगो को भी वो भोज नही मिला जो मिलाई जमीदारो ने चाटी है।
उस कुलटा को जमीदारो की ऐश के लिए गांव में रख भरने का ढोंग जताते है।
- बात तो ठीक है वर्ना वो इतने नोट कहा से पिटती हैं भला, नीरव के समर्थन मे एक आवाज बिन्नी की आई।
- जमीदारो को तो कभी आता-जाता नही देखा उसके?
- नीरव छिड़ते हुए बोला ऐसा कोन सा सुख पा लिया जो रात को चैन से सोने की आदत डाल ली? रात-भर उसके यहां पालकी आते-जाते नही देखी। ये सब काम खुले थोड़े ना होते है। नीरव किस्सा सांझा करते बताता है।
याद है पिछले बरस जब धन्ना जमीदार के दो पहलवान मार दिए थे उसका कारण भी ये कुलटा इस गांव का अभिशाप ही थी। बताते है की धन्ना और रामसुख दोनो की पालकी एक रात मै आ गई और झगड़ा सिर चढ़ गया बस फिर क्या पहले जहर कोन पिएगा इस बात पर धन्ना जमीदार ने बूंदीपुर के दो पहलवान मरवा दिए।
- पुलिस चौकी पर कोई सरपट नही गया क्या?
- धन्ना के पास रुपयों की कमी है क्या? पहलवानों के घर पर साल भर का घी दिया होगा?
- हद करते हो भाई अपनो को मौत कोई चांदी-रुपयों से थोड़े ना भूली जाती है।
- नीरव समझाते हुए बोला, क्या करते दरोगा के घर के बाहर धरना देते क्या? पंचायत थाना जिसकी बगल में सोए हुए हो उससे बैर लेने से अच्छा की बाकियों की चिन्ता की जाए। जो पहलवान मरे सो मरे उनके परिवार भी तो खाने को रोटी ही चाहेंगे इंसाफ की भूख अब किसी को नहीं सताती है।