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रक्षाबंधन के विभिन्न रूप

संपूर्ण सृष्टि संवेदनाओ से भरपूर है। मानव एक संवेदनशील प्राणी है। इस संवेदना के कारण ही वह परस्पर एक दूसरे की भावनाओं को समझने और अनुभव करने में सक्षम होता है। अतः इस संवेदनशीलता के कारण ही मित्रता पति पत्नी तथा भाई बहन जैसे अनेकों रिश्ते मजबूत बने रहते हैं । रिश्तो की कड़ी बड़ी नाजुक होती है जीवन में सभी रिश्ते जब तक आपके इर्द-गिर्द होते हैं तब तक शायद उन रिश्तो की अहमियत आप ना समझ पाए परंतु जैसे ही उस व्यक्ति से आप दूर होते हैं या किसी रिश्ते का अभाव होता है उस समय उस रिश्ते की अहमियत आपके लिए पहले की अपेक्षा कहीं बहुत अधिक बढ़ जाती है
जी हां आज मैं अनामिका और लालिमा की ऐसे ही भावनाओं के साथ आप का साक्षात्कार कराने जा रही हूं। वर्षा ऋतु का आगमन हो चुका है श्रावण मास प्रारंभ हो गया है। अनामिका अपनी ससुराल में एक दिन वर्षा के सुहावने मौसम में बैठी अपने मायके की याद कर रही है। उसे याद आ रहा है वह अपना प्यारा और अनूठा बचपन जब वह अपने भाई के साथ दौड़ दौड़ कर खेला करती थी। वर्षा ऋतु के आते ही कागज की नाव बनाकर पानी में तैराना दौड़कर पानी में भीगी जाना झूले पर झूलने की जिद करते हुए भाई को झूले पर से उतार कर स्वयं बैठ जाना और परस्पर झगड़ा करना तथा झगड़ने के बाद मां से शिकायत करना रोना मनाना न जाने कितनी घटनाएं आज उसे याद आ रही है। हां उसे यह भी याद है कि भाई द्वारा राखी बांधने का आग्रह करने पर खूब सारे रुपए और बड़ी सी चॉकलेट लेने की जिद वह हमेशा ही किया करती थी और छोटी होने के कारण निर्णय हमेशा उसके पक्ष में ही होता था लेकिन मायके से दूर अपरिचित अनजान से प्रतीत होने वाले ससुराल वाले लोगों के बीच में रहकर आज उसे अपने भाई की बहुत याद आ रही है। आज पहली बार उसे भाई-बहन के प्यारे रिश्ते की अहमियत का एहसास हो रहा है। और क्यों ना हो? भाई-बहन के रिश्तो की यह पवित्रता आत्मीयतऔर प्यार का बंधन हमारे यहां सदियों से चला आ रहा है। रक्षाबंधन का पर्व आते ही भारत वसुंधरा की प्रत्येक लड़की के मन में एक अजीब सा उत्साह एक अनोखा आनंद हिलोरे लेने लगता है कि वह शुभ घड़ी कब आएगी जब वह अपने भाई के माथे पर टीका और कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर अपने भाई की दीर्घायु एवं सुख संपन्नता हेतु ईश्वर से प्रार्थना करेगी। केवल बहन ही नहीं अपितु भाई भी बहुत दूर ससुराल में बैठी अपने प्यारी बहना के पास जाने की तैयारी करने लगता है वह भी बड़ी बेताबी से उस दिन की प्रतीक्षा करता है जब उसकी कलाई बहना के प्यार से भरपूर होगी जगमगा उठेगी और वह दुनिया का सबसे अधिक भाग्यशाली भाई होगा। यहां अनामिका भी बैठी हुई यही सोच रही थी कि श्रावण मास प्रारंभ हो चुका है मेरा प्यारा भाई भी शीघ्र ही मुझे लेने आ रहा होगा। फिर हम दोनों बड़े प्यार से बचपन की याद ताजा करते हुए रक्षाबंधन का त्यौहार मनाएंगे। यह रक्षाबंधन का पर्व भी वास्तव में अपने आप में बड़ा ही अनूठा है

आया रक्षा पर्व बहन हंस-हंसकर तिलक लगाती है
जुग जुग जिए दुलारा भैया हरदम यही मनाती है।

मां का लाड़ और बहना का प्यार दोनों ही ऐसी अनूठी चीजें है जिनका विश्व में कोई सानी नहीं है। तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है

मिलहि ना जगत सहोदर भ्राता
मां की कोख से उत्पन्न सगे भाई बहन का प्यार अन्यत्र दुर्लभ है। रक्षाबंधन का पर्व वैसे तो सामान्यतः भाई द्वारा बहन की रक्षा के संकल्प पर आधारित है परंतु मेरी दृष्टि में व्यापार भाई बहन जैसे पवित्र रिश्ते को सुरक्षित बनाए रखने का पर्व है। लाली मां की कहानी किसी बात की पुष्टि करती हुई प्रतीत होती है


लालिमा की कहानी एक ऐसी लड़की की कहानी है जो बचपन से ही अपने सगे भाई के लिए बहुत तड़पी है। न जाने कितने दिन कितने रातें और कितने वर्ष उसने रो रो कर ईश्वर से भाई को पाने की प्रार्थना की है और भाई ना होने पर अपने भाग्य को कौसा है। श्रावण मास प्रारंभ होते ही अन्य लड़कियों के समान लालिमा के मन में भी एक अजीब उत्साह की लहर दौड़ ने लगती थी परंतु जैसे-जैसे रक्षाबंधन का पर्व निकट आता था वह उदास हो जाती थी। उसके जीवन का प्रत्येक रक्षाबंधन तथा भाई दूज का पर्व कोई भी ऐसा व्यतीत नहीं हुआ होगा जबकि वह दिन में कई बार जोर-जोर से हिचकी भर भर कर न रोई हो। यद्यपि उसके और भी बहने थी परंतु सबसे अधिक दुख लालिमा को ही होता था। वह बहुत अधिक संवेदनशील लड़की है वह दुखी होकर रोते-रोते सोचती कि मैंने न जाने पिछले जन्म में कौन से ऐसे पाप किए थे जिनके कारण ईश्वर ने मुझे भ्रातृ सुख से वंचित रखा है। हिचकी भर भर कर जोर-जोर से लालिमा को रोते देख कोई भी संवेदनशील व्यक्ति दुखी हुए बिना नहीं रहता। देखने वाले के नेत्र भी सजल हो उठते थे परंतु ईश्वर के विधान के सामने हम सब विवश हो जाते हैं

कहते हैं सच्चे हृदय के आंसू पत्थर को भी पिघला देते हैं। ईश्वर भी पूर्ण निर्दया नहीं है लालिमा ने भी जब पढ़ लिख कर सर्विस करना प्रारंभ किया तब अचानक उसकी भेंट अपने ही स्टाफ के ऐसे व्यक्ति से हुई जिसकी बहन तो थी पर जल्दी ही ईश्वर को प्यारी हो गई दोनों के ही मध्य भाई-बहन का अभाव तथा पुनः उस रिश्ते को पाने की लालसा ने उन दोनों को भाई-बहन के पवित्र व अटूट रिश्ते में बांध दिया। शायद ईश्वर का यही विधान था। लालिमा अपने उस भाई को पाकर बेहद खुश है और भाई ने भी मानो अपनी बहन को पुनः पा लिया था । लालिमा के माता पिता ने तथा बाद में शादी होने पर उसके पति ने भी उन भाई बहन के रिश्ते को सहर्ष स्वीकार किया। उधर उस भाई के परिवार में ही नहीं अपितु संपूर्ण रिश्तेदारों में भी लालिमा को बहन का प्यार व सम्मान प्राप्त होने लगा। भाईलाल में बहुत खुश है। जब भी भाई के घर जाती है तो अपने भाभी मां भतीजे भतीजीयों से ढेर सारी बातें करते नहीं अघती। भाई बहन के इस प्यारे रिश्ते को मेवाती हुए आज भी उस स्थिति पर हैं जब उसकी भाभी अपनी भांजी की शादी हेतु भात भरने की लालसा संजोए हुए हैं आई लालिमा अपने को बहुत ही सौभाग्यशाली मानती है क्योंकि रिश्ते की अहमियत सगे या माने हुए की भावना में नहीं अपितु उस रिश्ते को सम्मेलनों के साथ अनुभव करने में हैं। तभी तो मैं कहती हूं कि रक्षाबंधन का पर्व भाई बहन के रिश्ते की सुरक्षा का पर्व है। उस पवित्र और प्यारे रिश्ते को संवेदना ओं के साथ अनुभव करने का पर्व है जिससे वो रिश्ता कभी बोझ ना बन जाए बंधन न लगने लगे आधुनिकता की दौड़ में रक्षाबंधन का पर्व कहीं केवल बंधन का पर्व ही बनकर न रह जाए। जी हां आधुनिक युग में इन सगे और माने हुए रिश्तो के बीच में भी लालिमा अपनी सहेली सपना की विडंबना को सोचकर दुखी हो उठती है जिस के एक नहीं अपितु तीन सगे भाई होने पर भी प्यार व संवेदनाओ के अभाव में वह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मानो भुला ही बैठी है। रक्षाबंधन का पर्व उसके भाइयों को बंधन का पर्व लगने लगा है। सपना भी रिश्तो के बोझ को ढोती हुई मानव थक सी गई है हताश हो चुकी है । लालिमा बार-बार सोचती है कि मैं तो भाई के अभाव में रोती बिलखती थी परंतु सगे भाई होने पर भी रोना बिलखना पड़े तो ऐसे भाव शून्य रिश्तो की अहमियत की क्या।? वर्तमान समय में फोन के पवित्र रिश्ते भी मात्र एक बंधन व बोझ बनते जा रहे हैं


हमारी प्राचीन वैदिक संस्कृति का वह स्वरूप कितना सुहावना लुभावना व आनंददाया हुआ करता था जब प्रत्येक ऋतु व मौसम में जीवन को सुखमय वह आनंदमय बनाने हेतु कोई ना कोई त्योहार व पर्व मनाया जाता था। यह सभी पर्व मानव जीवन को हर्ष व उल्लास से भर दिया करते थे। हम लोग प्रसन्नता व प्रकृति के उपासक हैं यही कारण है कि हमारा प्रत्येक दिन एक त्यौहार व पर्व के समान हुआ करता था। भाई दूज व रक्षाबंधन जैसे पर्व का उद्देश्य भी समाज में प्रेम व भाईचारे की भावना का निरंतर विस्तार करते हुए वसुधैव कुटुंबकम के मूल मंत्र को सुदृढ़ करना ही है जिससे युवाओं में परस्पर भाई-बहन की भावना का विकास हो सके तथा समाज में बढ़ते भ्रष्टाचार को रोका जा सके

कहते हैं दुआ में बड़ी शक्ति होती है। जहां दवा भी काम करना बंद कर देती है वहां अपनों की दुआ काम कर जाती है। दुआ में बड़ा रहस्य छुपा हुआ है। तब क्या भाई दूज व रक्षाबंधन जैसे पर्वों पर बहनों द्वारा दी गई दुआएं भाइयों की दीर्घायु व सुख संपन्नता को शुद्र करने में सहयोगी सिद्ध नहीं होती? अवश्य होती है और यही दुनिया का अटल सत्य है। माता पिता तथा भाइयों के प्रति बेटी व बहन के दिल में इतना प्रगाढ़ प्रेम होता है जिसे वह जीवन भर नहीं भुला पाती। यही कारण है कि संपन्न व सुखी ससुराल मिल जाने पर भी प्रत्येक बेटी व बहन मायके से विदा लेते समय गले मिलकर अवश्य रोती है उसके नेत्रों से अश्रु धारा बहने लगती है जो सभी को द्रवीभूत कर देती है। माता पिता और भाई भी अपने कलेजे के टुकड़े को तथा अपनी लाडली बहना को गुड़गांव की सीमा तक सदा वर्तमान में रेलवे स्टेशन तक छोड़ने जाते हैं। बहन तथा बेटी की विदा का वह भावुक क्षण वास्तव में भावुकता व आत्मीयता की पराकाष्ठा का क्षण होता है। और उस समय वह बहना भाई से पुनः अगले त्यौहार पर शीघ्र बुलाने का आग्रह करती हुई ससुराल के लिए विदा हो जाती है

भारतीय संस्कृति में सभी त्योहार व पर्व भावना व आत्मीयता के पर्व है। ईश्वर से प्रार्थना है कि आज का भारतीय भी भौतिकता की चकाचौंध व स्वार्थ की संकीर्णता से उभर कर सभी त्योहारों वह पर्वों को उसी आत्मीयता व प्रेम के साथ मनाएं जिससे रक्षाबंधन का पर्व भी प्रेम के बंधन का पर्व बन सके।


इति

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