Gunaho ka Devta - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

गुनाहों का देवता - 13

भाग 13

''बैठो, अभी हम एक चीज दिखाएँगे। जरा गेसू से बात कर आएँ।'' बिनती बड़े भोले स्वर में बोली, ''आइए, हसरत मियाँ।'' और पल-भर में नन्हें-मुन्ने-से छह वर्ष के हसरत मियाँ तनजेब का कुरता और चूड़ीदार पायजामे पर पीले रेशम की जाकेट पहने कमरे में खरगोश की तरह उछल आये।

''आदाबर्ज।'' बड़े तमीज से उन्होंने चन्दर को सलाम किया।

चन्दर ने उसे गोद में उठाकर पास बिठा दिया। ''लो, हलुआ खाओ, हसरत!''

हसरत ने सिर हिला दिया और बोला, ''गेसू ने कहा था, जाकर चन्दर भाई से हमारा आदाब कहना और कुछ खाना मत! हम खाएँगे नहीं।''

चन्दर बोला, ''हमारा भी नमस्ते कह दो उनसे जाकर।''

हसरत उठ खड़ा हुआ-''हम कह आएँ।'' फिर मुडक़र बोला, ''आप तब तक हलुआ खत्म कर देंगे?''

चन्दर हँस पड़ा, ''नहीं, हम तुम्हारा इन्तजार करेंगे, जाओ।''

हसरत सिर हिलाता हुआ चला गया।

इतने में सुधा आयी और बोली, ''गेसू की गजल सुनो यहाँ बैठकर। आवाज आ रही है न! फूल भी आयी है इसलिए गेसू तुम्हारे सामने नहीं आएगी वरना फूल अम्मीजान से शिकायत कर देगी। लेकिन वह तुमसे मिलने को बहुत इच्छुक है, अच्छा यहीं से सुनना बैठे-बैठे...''

सुधा चली गयी। गेसू ने गाना शुरू किया बहुत महीन, पतली लेकिन बेहद मीठी आवाज में जिसमें कसक और नशा दोनों घुले-मिले थे। चन्दर एक तकिया टेककर बैठ गया और उनींदा-सा सुनने लगा। गजल खत्म होते ही सुधा भागकर आयी-''कहो, सुन लिया न!'' और उसके पीछे-पीछे आया हसरत और सुधा के पैरों में लिपटकर बोला, ''सुधा, हम हलुआ नहीं खाएँगे!''

सुधा हँस पड़ी, ''पागल कहीं का। ले खा।'' और उसके मुँह में हलुआ ठूँस दिया। हसरत को गोद में लेकर वह चन्दर के पास बैठ गयी और गेसू के बारे में बताने लगी, ''गेसू गर्मियाँ बिताने नैनीताल जा रही है। वहीं अख्तर की अम्मी भी आएँगी और मँगनी की रस्म वहीं पूरी करेंगी। अब वह पढ़ेगी नहीं। जुलाई तक उसका निकाह हो जाएगा। कल रात की गाड़ी से जा रहे हैं ये लोग। वगैरह-वगैरह।''

बिनती बैठी-बैठी गेसू और फूल से बातें करती रही। थोड़ी देर बाद सुधा उठकर चली गयी। तुम जाना मत, आज खाना यहीं खाना, मैं बिनती को तुम्हारे पास भेज रही हूँ, उससे बातें करते रहना।''

थोड़ी देर बाद बिनती आयी। उसके हाथ में कुछ था जिसे वह अपने आँचल से छिपाये हुई थी। आयी और बोली, ''अब दीदी नहीं हैं, जल्दी से देख लीजिए।''

''क्या है?'' चन्दर ने ताज्जुब से पूछा।

''जीजाजी की फोटो।'' बिनती ने मुसकराकर कहा और एक छोटी-सी बहुत कलात्मक फोटो चन्दर के हाथ में रख दी।

''अरे यह तो मिश्र है। कॉमरेड कैलाश मिश्र।'' और चन्दर के दिमाग में बरेली की बातें, लाठी चार्ज...सभी कुछ घूम गया। चन्दर के मन में इस वक्त जाने कैसा-सा लग रहा था। कभी बड़ा अचरज होता, कभी एक सन्तोष होता कि चलो सुधा के भाग्य की रेखा उसे अच्छी जगह ले गयी, फिर कभी सोचता कि मिश्र इतना विचित्र स्वभाव का है, सुधा की उससे निभेगी या नहीं? फिर सोचता, नहीं सुधा भाग्यवान है। इतना अच्छा लड़का मिलना मुश्किल था।

''आप इन्हें जानते हैं?'' बिनती ने पूछा।

''हाँ, सुधा भी उन्हें नाम से जानती है शक्ल से नहीं। लेकिन अच्छा लड़का है, बहुत अच्छा लड़का।'' चन्दर ने एक गहरी साँस लेकर कहा और फिर चुप हो गया। बिनती बोली, ''क्या सोच रहे हैं आप?''

''कुछ नहीं।'' पलकों में आये हुए आँसू रोककर और होठों पर मुसकान लाने की कोशिश करते हुए बोला, ''मैं सोच रहा हूँ, आज कितना सन्तोष है मुझे, कितनी खुशी है मुझे, कि सुधा एक ऐसे घर जा रही है जो इतना अच्छा है, ऐसे लड़के के साथ जा रही है जो इतना ऊँचा''...कहते-कहते चन्दर की आँखें भर आयीं।

बिनती चन्दर के पास खड़ी होकर बोली, ''छिह, चन्दर बाबू! आपकी आँखों में आँसू! यह तो अच्छा नहीं लगता। जितनी पवित्रता और ऊँचाई से आपने सुधा के साथ निबाह किया है, यह तो शायद देवता भी नहीं कर पाते और दीदी ने आपको जैसा निश्छल प्यार दिया है उसको पाकर तो आदमी स्वर्ग से भी ऊँचा उठ जाता है, फौलाद से भी ज्यादा ताकतवर हो जाता है, फिर आज इतने शुभ अवसर पर आप में कमजोरी कहाँ से? हमें तो बड़ी शरम लग रही है। आज तक दीदी तो दूर, हम तक को आप पर गर्व था। अच्छा, मैं फोटो रख तो आऊँ वरना दीदी आ जाएँगी!'' बिनती ने फोटो ली और चली गयी।

बिनती जब लौटी तो चन्दर स्वस्थ था। बिनती की ओर क्षण भर चन्दर ने देखा और कहा, ''मैं इसलिए नहीं रोया था बिनती, मुझे यह लगा कि यहाँ कैसा लगेगा। खैर जाने दो।''

''एक दिन तो ऐसा होता ही है न, सहना पड़ेगा!'' बिनती बोली।

''हाँ, सो तो है; अच्छा बिनती, सुधा ने यह फोटो देखी है?'' चन्दर ने पूछा।

''अभी नहीं, असल में मामाजी ने मुझसे कहा था कि यह फोटो दिखा दे सुधा को; लेकिन मेरी हिम्मत नहीं पड़ी। मैंने उनसे कह दिया कि चन्दर आएँगे तो दिखा देंगे। आप जब ठीक समझें तो दिखा दें। जेठ दशहरा अगले ही मंगल को है।'' बिनती ने कहा।

''अच्छा।'' एक गहरी साँस लेकर चन्दर बोला।

बिनती थोड़ी देर तक चन्दर की ओर एकटक देखती रही। चन्दर ने उसकी निगाह चुरा ली और बोला, ''क्या देख रही हो, बिनती?''

''देख रही हूँ कि आपकी पलकें झपकती हैं या नहीं?'' बिनती बहुत गम्भीरता से बोली।

''क्यों?''

''इसलिए कि मैंने सुना था, देवताओं की पलकें कभी नहीं गिरतीं।''

चन्दर एक फीकी हँसी हँसकर रह गया।

''नहीं, आप मजाक न समझें। मैंने अपनी जिंदगी में जितने लोग देखे, उनमें आप-जैसा कोई भी नहीं मिला। कितने ऊँचे हैं आप, कितना विशाल हृदय है आपका! दीदी कितनी भाग्यशाली हैं।''

चन्दर ने कुछ जवाब नहीं दिया। ''जाओ, फोटो ले आओ।'' उसने कहा, ''आज ही दिखा दूँ। जाओ, खाना भी ले आओ। अब घर जाकर क्या करना है।''

पापा को खाना खिलाने के बाद चन्दर और सुधा खाने बैठे। महराजिन चली गयी थी। इसलिए बिनती सेंक-सेंककर रोटी दे रही थी। सुधा एक रेशमी सनिया पहने चौके के अन्दर खा रही थी। और चन्दर चौके के बाहर। सुबह के कच्चे खाने में डॉक्टर शुक्ला बहुत छूत-छात का विचार रखते थे।

''देखो, आज बिनती ने रोटी बनायी है तो कितनी मीठी लग रही है, एक तुम बनाती हो कि मालूम ही नहीं पड़ता रोटी है कि सोख्ता!'' चन्दर ने सुधा को चिढ़ाते हुए कहा।

सुधा ने हँसकर कहा, ''हमें बिनती से लड़ाने की कोशिश कर रहे हो! बिनती की हमसे जिंदगी-भर लड़ाई नहीं हो सकती!''

''अरे हम सब समझते हैं इनकी बात!'' बिनती ने रोटी पटकते हुए कहा और जब सुधा सिर झुकाकर खाने लगी तो बिनती ने आँख के इशारे से पूछा, ''कब दिखाओगे?''

चन्दर ने सिर हिलाया और फिर सुधा से बोला, ''तुम उन्हें चिट्ठी लिखोगी?''

''किन्हें?''

''कैलाश मिश्रा को, वही बरेली वाले? उन्होंने हमें खत लिखा था उसमें तुम्हें प्रणाम लिखा था।'' चन्दर बोला।

''नहीं, खत-वत नहीं लिखते। उन्हें एक दफे बुलाओ तो यहाँ।''

''हाँ, बुलाएँगे अब महीने-दो महीने बाद, तब तुमसे खूब परिचय करा देंगे और तुम्हें उसकी पार्टी में भी भरती करा देंगे।'' चन्दर ने कहा।

''क्या? हम मजाक नहीं करते? हम सचमुच समाजवादी दल में शामिल होंगे।'' सुधा बोली, ''अब हम सोचते हैं कुछ काम करना चाहिए, बहुत खेल-कूद लिये, बचपन निभा लिया।''

''उन्होंने अपना चित्र भेजा है। देखोगी?'' चन्दर ने जेब में हाथ डालते हुए पूछा।

''कहाँ?'' सुधा ने बहुत उत्सुकता से पूछा, ''निकालो देखें।''

''पहले बताओ, हमें क्या इनाम दोगी? बहुत मुश्किल से भेजा उन्होंने चित्र!'' चन्दर ने कहा।

''इनाम देंगे इन्हें!'' सुधा बोली और झट से झपटकर चित्र छीन लिया।

''अरे, छू लिया चौके में से?'' बिनती ने दबी जबान से कहा।

सुधा ने थाली छोड़ दी। अब छू गयी थी वह; अब खा नहीं सकती थी।

''अच्छी फोटो देखी दीदी। सामने की थाली छूट गयी!'' बिनती ने कहा।

सुधा ने हाथ धोकर आँचल के छोर से पकडक़र फोटो देखी और बोली, ''चन्दर, सचमुच देखो! कितने अच्छे लग रहे हैं। कितना तेज है चेहरे पर, और माथा देखो कितना ऊँचा है।'' सुधा फोटो देखती हुई बोली।

''अच्छी लगी फोटो? पसन्द है?'' चन्दर ने बहुत गम्भीरता से पूछा।

''हाँ, हाँ, और समाजवादियों की तरह नहीं लगते ये।'' सुधा बोली।

''अच्छा सुधा, यहाँ आओ।'' और चन्दर के साथ सुधा अपने कमरे में जाकर पलँग पर बैठ गयी। चन्दर उसके पास बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसकी अँगूठी घुमाते हुए बोला, ''सुधा, एक बात कहें, मानोगी?''

''क्या?'' सुधा ने बहुत दुलार और भोलेपन से पूछा।

''पहले बता दो कि मानोगी?'' चन्दर ने उसकी अँगूठी की ओर एकटक देखते हुए कहा।

''फिर, हमने कभी कोई बात तुम्हारी टाली है! क्या बात है?''

''तुम मानोगी चाहे कुछ भी हो?'' चन्दर ने पूछा।

''हाँ-हाँ, कह तो दिया। अब कौन-सी तुम्हारी ऐसी बात है जो तुम्हारी सुधा नहीं मान सकती!'' आँखों में, वाणी में, अंग-अंग से सुधा के आत्मसमर्पण छलक रहा था।

''फिर अपनी बात पर कायम रहना, सुधा! देखो!'' उसने सुधा की उँगलियाँ अपनी पलकों से लगाते हुए कहा, ''सुधी मेरी! तुम उस लड़के से ब्याह कर लो!''

''क्या?'' सुधा चोट खायी नागिन की तरह तड़प उठी-''इस लड़के से? यही शकल है इसकी हमसे ब्याह करने की! चन्दर, हम ऐसा मजाक नापसन्द करते हैं, समझे कि नहीं! इसलिए बड़े प्यार से बुला लाये, बड़ा दुलार कर रहे थे!''

''तुम अभी वायदा कर चुकी हो!'' चन्दर ने बहुत आजिजी से कहा।

''वायदा कैसा? तुम कब अपने वायदे निभाते हो? और फिर यह धोखा देकर वायदा कराना क्या? हिम्मत थी तो साफ-साफ कहते हमसे! हमारे मन में आता सो कहते। हमें इस तरह से बाँध कर क्यों बलिदान चढ़ा रहे हो!'' और सुधा मारे गुस्से के रोने लगी।

चन्दर स्तब्ध। उसने इस दृश्य की कल्पना ही नहीं की थी। वह क्षण भर खड़ा रहा। वह क्या कहे सुधा से, कुछ समझ ही में नहीं आता था। वह गया और रोती हुई सुधा के कंधे पर हाथ रख दिया। ''हटो उधर!'' सुधा ने बहुत रुखाई से हाथ हटा दिया और आँचल से सिर ढकती हुई बोली, ''मैं ब्याह नहीं करूँगी, कभी नहीं करूँगी। किसी से नहीं करूँगी। तुम सभी लोगों ने मिलकर मुझे मार डालने की ठानी है। तो मैं अभी सिर पटककर मर जाऊँगी।'' और मारे तैश के सचमुच सुधा ने अपना सिर दीवार पर पटक दिया। ''अरे!'' दौडक़र चन्दर, ने सुधा को पकड़ लिया। मगर सुधा ने गरजकर कहा, ''दूर हटो चन्दर, छूना मत मुझे।'' और जैसे उसमें जाने कहाँ की ताकत आ गयी है, उसने अपने को छुड़ा लिया।

चन्दर ने दबी जबान से कहा, ''छिह सुधा! यह तुमसे उम्मीद नहीं थी मुझे। यह भावुकता तुम्हें शोभा नहीं देती। बातें कैसी कर रही हो तुम! हम वही चन्दर हैं न!''

''हाँ, वही चन्दर हो! और तभी तो! इस सारी दुनिया में तुम्हीं एक रह गये हो मुझे फोटो दिखाकर पसन्द कराने को।'' सुधा सिसक-सिसककर रोने लगी-''पापा ने भी धोखा दे दिया। हमें पापा से यह उम्मीद नहीं थी।''

''पगली! कौन अपनी लड़की को हमेशा अपने पास रख पाया है!'' चन्दर बोला।

''तुम चुप रहो, चन्दर। हमें तुम्हारी बोली जहर लगती है। 'सुधा, यह फोटो तुम्हें पसन्द है?' तुम्हारी जबान हिली कैसे? शरम नहीं आयी तुम्हें। हम कितना मानते थे पापा को, कितना मानते थे तुम्हें? हमें यह नहीं मालूम था कि तुम लोग ऐसा करोगे।'' थोड़ी देर चुपचाप सिसकती रही सुधा और फिर धधककर उठी-''कहाँ है वह फोटो? लाओ, अभी मैं जाऊँगी पापा के पास! मैं कहूँगी उनसे हाँ, मैं इस लड़के को पसन्द करती हूँ। वह बहुत अच्छा है, बहुत सुन्दर है। लेकिन मैं उससे शादी नहीं करूँगी, मैं किसी से शादी नहीं करूँगी! झूठी बात है...'' और उठकर पापा के कमरे की ओर जाने लगी।

''खबरदार, जो कदम बढ़ाया!'' चन्दर ने डाँटकर कहा, ''बैठो इधर।''

''मैं नहीं रुकूँगी!'' सुधा ने अकडक़र कहा।

''नहीं रुकोगी?''

''नहीं रुकूँगी।''

और चन्दर का हाथ तैश में उठा और एक भरपूर तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा। सुधा के गाल पर नीली उँगलियाँ उपट आयीं। वह स्तब्ध! जैसे पत्थर बन गयी हो। आँख में आँसू जम गये। पलकों में निगाहें जम गयीं। होठों में आवाजें जम गयीं और सीने में सिसकियाँ जम गयीं।

चन्दर ने एक बार सुधा की ओर देखा और कुर्सी पर जैसे गिर पड़ा और सिर पटककर बैठ गया। सुधा कुर्सी के पास जमीन पर बैठ गयी। चन्दर के घुटनों पर सिर रख दिया। बड़ी भारी आवाज में बोली, ''चन्दर, देखें तुम्हारे हाथ में चोट तो नहीं आयी।''

चन्दर ने सुधा की ओर देखा, एक ऐसी निगाह से जिसमें कब्र मुँह फाड़कर जमुहाई ले रही थी। सुधा एकाएक फिर सिसक पड़ी और चन्दर के पैरों पर सिर रखकर बोली, ''चन्दर, सचमुच मुझे अपने आश्रय से निकालकर ही मानोगे! चन्दर, मजाक की बात दूसरी है, जिंदगी में तो दुश्मनी मत निकाला करो।''

चन्दर एक गहरी साँस लेकर चुप हो गया। और सिर थामकर बैठ गया। पाँच मिनट बीत गये। कमरे में सन्नाटा, गहन खामोशी। सुधा चन्दर के पाँवों को छाती से चिपकाये सूनी-सूनी निगाहों से जाने कुछ देख रही थी दीवारों के पार, दिशाओं के पार, क्षितिजों से परे...दीवार पर घड़ी चल रही थी टिक...टिक...

चन्दर ने सिर उठाया और कहा, ''सुधा, हमारी तरफ देखो-'' सुधा ने सिर ऊपर उठाया। चन्दर बोला, ''सुधा, तुम हमें जाने क्या समझ रही होगी, लेकिन अगर तुम समझ पाती कि मैं क्या सोचता हूँ! क्या समझता हूँ।'' सुधा कुछ नहीं बोली, चन्दर कहता गया, ''मैं तुम्हारे मन को समझता हूँ, सुधा! तुम्हारे मन ने जो तुमसे नहीं कहा, वह मुझसे कह दिया था-लेकिन सुधा, हम दोनों एक-दूसरे की जिंदगी में क्या इसीलिए आये कि एक-दूसरे को कमजोर बना दें या हम लोगों ने स्वर्ग की ऊँचाइयों पर साथ बैठकर आत्मा का संगीत सुना सिर्फ इसीलिए कि उसे अपने ब्याह की शहनाई में बदल दें?''

''गलत मत समझो चन्दर, मैं गेसू नहीं कि अख्तर से ब्याह के सपने देखूँ और न तुम्हीं अख्तर हो, चन्दर! मैं जानती हूँ कि मैं तुम्हारे लिए राखी के सूत से भी ज्यादा पवित्र रही हूँ लेकिन मैं जैसी हूँ, मुझे वैसी ही क्यों नहीं रहने देते! मैं किसी से शादी नहीं करूँगी। मैं पापा के पास रहूँगी। शादी को मेरा मन नहीं कहता, मैं क्यों करूँ? तुम गुस्सा मत हो, दुखी मत हो, तुम आज्ञा दोगे तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ, लेकिन हत्या करने से पहले यह तो देख लो कि मेरे हृदय में क्या है?'' सुधा ने चन्दर के पाँवों को अपने हृदय से और भी दबाकर कहा।

''सुधा, तुम एक बात सोचो। अगर तुम सबका प्यार बटोरती चलती हो तो कुछ तुम्हारी जिम्मेदारी है या नहीं? पापा ने आज तक तुम्हें किस तरह पाला। अब क्या तुम्हारा यह फर्ज है कि तुम उनकी बात को ठुकराओ? और एक बात और सोचो-हम पर कुछ विश्वास करके ही उन्होंने कहा है कि मैं तुमसे फोटो पसन्द कराऊँ? अगर अब तुम इनकार कर देती हो तो एक तरफ पापा को तुमसे धक्का पहुँचेगा, दूसरी ओर मेरे प्रति उनके विश्वास को कितनी चोट लगेगी। हम उन्हें क्या मुँह दिखाने लायक रहेंगे भला! तो तुम क्या चाहती हो? महज अपनी थोड़ी-सी भावुकता के पीछे तुम सभी की जिंदगी चौपट करने के लिए तैयार हो? यह तुम्हें शोभा नहीं देता है। क्या कहेंगे पापा, कि चन्दर ने अभी तक तुम्हें यही सिखाया था? हमें लोग क्या कहेंगे? बताओ। आज तुम शादी न करो। उसके बाद पापा हमेशा के लिए दु:खी रहा करें और दुनिया हमें कहा करे, तब तुम्हें अच्छा लगेगा?''

''नहीं।'' सुधा ने भर्राये हुए गले से कहा।

''तब, और फिर एक बात और है न सुधी! सोने की पहचान आग में होती है न! लपटों में अगर उसमें और निखार आये तभी वह सच्चा सोना है। सचमुच मैंने तुम्हारे व्यक्तित्व को बनाया है या तुमने मेरे व्यक्तित्व को बनाया है, यह तो तभी मालूम होगा जबकि हम लोग कठिनाइयों से, वेदनाओं से, संघर्षों से खेलें और बाद में विजयी हों और तभी मालूम होगा कि सचमुच मैंने तुम्हारे जीवन में प्रकाश और बल दिया था। अगर सदा तुम मेरी बाँहों की सीमा में रहीं और मैं तुम्हारी पलकों की छाँव में रहा और बाहर के संघर्षों से हम लोग डरते रहे तो कायरता है। और मुझे अच्छा लगेगा कि दुनिया कहे कि मेरी सुधा, जिस पर मुझे नाज था, वह कायर है? बोलो। तुम कायर कहलाना पसन्द करोगी?''

''हाँ!'' सुधा ने फिर चन्दर के घुटनों में मुँह छिपा लिया।

''क्या? यह मैं सुधा के मुँह से सुन रहा हूँ! छिह पगली! अभी तक तेरी निगाहों ने मेरे प्राणों में अमृत भरा है और मेरी साँसों ने तेरे पंखों में तूफानों की तेजी। और हमें-तुम्हें तो आज खुश होना चाहिए कि अब सामने जो रास्ता है उसमें हम लोगों को यह सिद्ध करने का अवसर मिलेगा कि सचमुच हम लोगों ने एक-दूसरे को ऊँचाई और पवित्रता दी है। मैंने आज तक तुम्हारी सहायता पर विश्वास किया था। आज क्या तुम मेरा विश्वास तोड़ दोगी? सुधा, इतनी क्रूर क्यों हो रही हो आज तुम? तुम साधारण लड़की नहीं हो। तुम ध्रुवतारा से ज्यादा प्रकाशमान हो। तुम यह क्यों चाहती हो कि दुनिया कहे, सुधा भी एक साधारण-सी भावुक लड़की थी और आज मैं अपने कान से सुनूँ! बोलो सुधी?'' चन्दर ने सुधा के सिर पर हाथ रखकर कहा।

सुधा ने आँखें उठायीं, बड़ी कातर निगाहों से चन्दर की ओर देखा और सिर झुका लिया। सुधा के सिर पर हाथ फेरते हुए चन्दर बोला-

''सुधा, मैं जानता हूँ मैं तुम पर शायद बहुत सख्ती कर रहा हूँ, लेकिन तुम्हारे सिवा और कौन है मेरा? बताओ। तुम्हीं पर अपना अधिकार भी आजमा सकता हूँ। विश्वास करो मुझ पर सुधा, जीवन में अलगाव, दूरी, दुख और पीड़ा आदमी को महान बना सकती है। भावुकता और सुख हमें ऊँचे नहीं उठाते। बताओ सुधा, तुम्हें क्या पसन्द है? मैं ऊँचा उठूँ तुम्हारे विश्वास के सहारे, तुम ऊँची उठो मेरे विश्वास के सहारे, इससे अच्छा और क्या है सुधा! चाहो तो मेरे जीवन को एक पवित्र साधन बना दो, चाहो तो एक छिछली अनुभूति।''

सुधा ने एक गहरी साँस ली, क्षण-भर घड़ी की ओर देखा और बोली, ''इतनी जल्दी क्या है अभी, चन्दर? तुम जो कहोगे मैं कर लूँगी!'' और फिर वह सिसकने लगी-''लेकिन इतनी जल्दी क्या हैï? अभी मुझे पढ़ लेने दो!''

''नहीं, इतना अच्छा लड़का फिर मिलेगा नहीं। और इस लड़के के साथ तुम वहाँ पढ़ भी सकती हो। मैं जानता हूँ उसे। वह देवताओं-सा निश्छल है। बोलो, मैं पापा से कह दूँ कि तुम्हें पसन्द है?''

सुधा कुछ नहीं बोली।

''मौन का मतलब हाँ है न?'' चन्दर ने पूछा।

सुधा ने कुछ नहीं कहा। झुककर चन्दर के पैरों को अपने होठों से छू लिया और पलकों से दो आँसू चू पड़े। चन्दर ने सुधा को उठा लिया और उसके माथे पर हाथ रखकर कहा, ''ईश्वर तुम्हारी आत्मा को सदा ऊँचा बनाएगा, सुधा!'' उसने एक गहरी साँस लेकर कहा, ''मुझे तुम पर गर्व है,'' और फोटो उठाकर बाहर चलने लगा।

''कहाँ जा रहे हो! जाओ मत!'' सुधा ने उसका कुरता पकडक़र बड़ी आजिजी से कहा, ''मेरे पास रहो, तबीयत घबराती है?''

चन्दर पलँग पर बैठ गया। सुधा तकिये पर सिर रखकर लेट गयी और फटी-फटी पथराई आँखों से जाने क्या देखने लगी। चन्दर भी चुप था, बिल्कुल खामोश। कमरे में सिर्फ घड़ी चल रही थी, टिक...टिक...

थोड़ी देर बाद सुधा ने चन्दर के पैरों को अपने तकिये के पास खींच लिया और उसके तलवों पर होठ रखकर उसमें मुँह छिपाकर चुपचाप लेटी रही। बिनती आयी। सुधा हिली भी नहीं! चन्दर ने देखा वह सो गयी थी। बिनती ने फोटो उठाकर इशारे से पूछा, ''मंजूर?'' ''हाँ।'' बिनती ने बजाय खुश होने के चन्दर की ओर देखकर सिर झुका लिया और चली गयी।

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