ये कैसा संयोग - भाग - 2 श्वेता कर्ण द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ये कैसा संयोग - भाग - 2

गतांक से आगे...

सहसा सामने से किसी औरत की आवाज़ सुनकर सुधा स्तब्ध रह गयी...

वह कुछ देर के लिए चुप हो गई तो उधर से प्रश्न किया गया.. "हैलो कौन?"

सुधा- "मैं सुधा, कौशिक की पत्नी.. कौशिक जी कहाँ हैं और आप कौन हैं?
और उनका फोन आपने उठाया?"

तब उधर से- "क्या बकती हो तुम? कौशिक की पत्नी तो मैं हूँ।"
सुधा- "नहीं... ये मज़ाक का समय नहीं है कौशिक की पत्नी तो मैं हूँ अभी कुछ दिन हुए हैं हमारी शादी को।"

फिर उधर से- "मैं नहीं मानती क्योंकि मैं कौशिक की पत्नी हूँ तथा हमारी शादी के पूरे पाँच साल हो चुके हैं और हमारा तीन साल का एक बेटा भी है।"
इतना सुनते ही सुधा के हाथ से फोन छुटकर नीचे गिर जाता है...।
इतने में सुधा की सास आवाज सुनकर आई और सुधा की हालत देख कर सागर को आवाज लगायी।
सागर भी भागते हुए आया और अवाक-सा खड़ा हो कर वस्तुस्थिति को समझने की कोशिश करने लगा।

फिर सुधा की सास ने सुधा से पूछा कि
"क्या बात है?
किससे बात कर रही थी बहू सब ठीक तो है न?"

सुधा- जो अब यंत्रवत सी बुत बनी हुई थी... अचानक चौंक कर...
"वो,, वो... माँ जी मैंने कौशिक को फोन लगाया था।"
सास- "क्या हुआ कौशिक को, मेरा बेटा ठीक तो है न?"

सुधा- थोड़ा संभलकर.. "जी माँ जी! आपका बेटा बिल्कुल ठीक है साथ में आपकी बहू और पोता भी।"

सास- "क्या बोले जा रही हो? मेरी बहु तो तुम हो, फिर ये क्या बकवास लगा रखी है?"

सुधा- "झूठ मत बोलिए माँ जी! आप लोगों ने मिलकर मेरी जिंदगी को बरबाद कर दिया...
कौशिक शादीशुदा है, ये बात आप लोगों ने मेरे पिता से क्यों छुपायी...? क्यों? आखिर क्यों?"

बताइये माँ जी... आप बोलिए सागर जी... आप लोगों ने मेरे साथ इतना बड़ा छल ऐसा क्यों किया?
क्या केवल दहेज के लिए? क्या दहेज के लिए मेरी ज़िन्दगी को नरक बना दिया आप लोगों ने?
....
सास- "नहीं बहू! ऐसा कुछ भी नहीं है। मुझे तो कौशिक के बारे में ऐसी बात पता भी नहीं है। ये तुम क्या कह रही हो?
...सागर जल्दी से अपने पिता जी को बुला लाओ।
देख बहु क्या कह रही है?"
सागर पिता जी को बुला कर लाता है।
ससुर; "क्या बात हुआ? क्यों ऐसे बैठी हो? बहु को क्या हुआ? अरे! अब कोई कुछ कहेगा भी? "
कौशिक की माँ- "बहू कह रही है कि कौशिक पहले से शादीशुदा है और तीन साल के बच्चे का बाप है और हमने यह बात जानते हुए भी सुधा से उसकी शादी कराई।"

"मैं कौशिक को फोन लगता हूँ।"- इतना कहकर, उन्होंने कौशिक को फोन लगाया।
कौशिक- "प्रणाम पिता जी।"
पिताजी- "कौशिक बहू सुधा क्या कह रही है? क्या तुम सच में पहले ही शादी कर चुके हो? अगर तुम पहले शादी कर चुके थे तो फिर तुमने किसी और की जिंदगी क्यों बरबाद की? बोलो... चुप क्यों हो.. जबाब दो..।"

कौशिक- "पिता जी, मैंने तो पहले ही कह दिया था कि मैं ये शादी नहीं कर सकता लेकिन आप लोगों ने मुझे बाध्य किया।"
पिता जी- "लेकिन तुमने शादी नहीं करने का कारण भी तो नहीं बताया था। तुम अभी के अभी घर आने की तैयारी करो।"

कौशिक- "पिता जी मैं घर नहीं आ सकता।"

देखते-देखते पूरे गाँव में यह बात फैल जाती है सुधा के माता-पिता को भी यह जानकारी मिलती है उन्होंने भी फोन करके सुधा के ससुर जी से सारी जानकारी ली और सुधा के ससुराल के लिए रवाना हो गए।

मीरा जो उस गाँव की बेटी थी, इस समय अपने मायके आई हुई थी, जब उसके कानों में यह बात पड़ी तो वह भी
सुधा से मिलने आई और उसे ढाढस बंधाने लगी।

दूसरे दिन सुधा के पिता और भाई आकर सुधा को अपने साथ ले गए।
अब सुधा अपने मायके में ही रहने लगी। अब वह घर में ही बंद रहती, किसी से कोई मिलना-जुलना नहीं करती।
कोई उसके घर आता तो सुधा कमरे में चली जाती और तब तक बाहर नहीं आती, जब तक लोग चले नहीं जाते...।
घर के लोग भी, इस विषय पर बात करने से कतराते थे।

फिर एक दिन वसुधा जी की मुलाकात अनिल जी के दोस्त के बेटे से हुई और वसुधा जी ने उन्हें सुधा के विषय में बताया...।

... क्रमशः

श्वेता कर्ण