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सफ़रनामा: यादों का एक सुनहरा दौर - भाग ३ - अक्समात


उदयपुर से अहमदाबाद का सफर २७० किलोमीटर लम्बा और थका देनेवाला था खास कर तब, जब कोई अकेला ही ड्राइव कर रहा हो। शामलाजी से थोड़ी दूर चलने के बाद नेशनल हाईवे ४८ पर शरीर को थोड़ा आराम देने के लिये और हल्का होकर हाथ मुंह धोने के लिये सड़क के किनारे अपनी मूनलाइट सिल्वर कलर की डस्टर को रोका।

उसने कॉटन की सफेद रंग की शर्ट और उसपर मैच करती काले रंग की एलिस ब्लू कंपनी की ट्राउज़र पहनी थी। उसके ग्लॉसी डार्क ब्राउन रंग के जूते बता रहे थे कि वो किसी फंक्शन से लौट रहा था। कार का दरवाजा खोल वो निकला और थोड़े ही जा कर हल्का होने के बाद उसने पानी की बोत्तल से अपना हाथ मुंह धोकर खुद को थोड़ा रिफ्रेश कर लिया अब भी उसे काफी लंबा रास्ता तय करना था।

अपनी बंधी हुई काले रंग की टाई जिस पर तिरछी सफेद रंग की लाइने बनी थी उसे उसने ढीला किया ताकि बाहर चल रही हवा उसके शरीर तक पहुंच सके।

थकावट उसके चेहरे पर साफ दिखाई रही थी। वो अपनी कार के दरवाजे को पीठ के बल सहारा देते हुवे अपना एक पैर दरवाज़े पर टिकाये हुवे और दूसरा ज़मीन पर गड़ाये हुवे खड़ा होकर पानी की बोतल में से बचा हुआ पानी पीने लगा।

तेज़ चल रही हवा उसके शर्ट में समा रही थी और उसे फुला रही थी। उसके बाल हवामें लहरा रहे थे लेकिन कोंब नही करने के कारण अस्तव्यस्त हो चुके थे। उसकी घनी और बढ़ी हुई दाढ़ी मुछ जिस पर कोई कोई सफेद बाल भी थे, देखकर लगता था कि, वह उम्र के ३० के पड़ाव को पार कर चुका होगा लेकिन, फिर भी वो एक दम फिट, चुस्त, दुरुस्त, तंदुरुस्त लग रहा था। उसके बिना फ्रेम के चश्मे उसके चेहरे पर जंच रहे थे। कुल मिलाकर यदि कहा जाये तो बिल्कुल एक हीरो की माफिक वो दिखाई दे रहा था। लेकिन फिर भी उसका चेहरा न जाने क्यों मायूस सा प्रतीत हो रहा था, या फिर थकावट का असर था कहा नही जा सकता था।

कुछ देर ताज़ा हवा में सांस लेने के बाद फिर से उसने अपनी ड्राइवर सीट ग्रहण करली और जैसे ही चाबी घुमाई इंजिन कोई शेर की तरह घुर्राता हुवा शुरू हो गया। एक्सीलेरेटर पर पांव रखने से पहले उसने म्यूजिक ऑन किया।

"पल पल हर लम्हा मैं कैसे सहता हूं... तुझे भुला दिया... फिर क्यो तेरी यादों ने मुझे रुला दिया...." अनजाना-अनजानी का लोकप्रिय सॉन्ग म्यूजिक प्लेयर के ऑन होते ही बज उठा।

"किस तरह के गाने बजा रहा है यार, कोई डीजे टाइप का बजाना।" इमोशनल गाना शायद उसे रास न आया हो इसीलिये अपने आप से बात करते हुवे उसने कहा।

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शामलाजी, टीटोई, मधुपुर, गामण, गलसुन्दरा, पुनसारी, घड़कण, एक बाद एक के बाद एक करते हुवे अर्जुन उस ट्रक ड्राइवर का पीछा करता रहा जो शामलाजी से सारे सेफ्टी बैरियर्स को रौंदते हुवे निकला था। इतनी लंबी चेज़ करने के बाद भी अर्जुन उस ट्रक ड्राइवर को रोक नही पाया था, जिसका गुस्सा वह ट्रक ड्राइवर पर निकालने के साथ-साथ अपने साथी ड्राइवर पर भी निकाल रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो ट्रक ड्राइवर को इन सब चीज़ों में महारत हांसिल थी और वह इससे पहले भी ऐसे कई सारे अनगिनत अवैध कामो को अंजाम दे चुका था।

दूसरी ओर स्वर्णिम चतुर्भुज रोड जो भारत का एक प्रसिद्ध राजमार्ग, जो कई सारे औद्योगिक, सांस्कृतिक एवं कृषि सम्बंधित नगरों को जोड़ता है उस पर आदिल अपनी मंज़िल की ओर अग्रेसर था। दिन भर की थकान के बाद भी उसके चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी, बरसो बाद वो अपने दोस्तों से रीयूनियन पार्टी में मिल रहा था।

जैसे जैसे अहमदाबाद करीब आ रहा था उसके बीते हुवे कल की सुनहरी यादें उसके दिल के उन बंध पड़े हुवे कमरे पर दस्तक दे रही थी जो कभी उसने जी भर कर जिया था। उसका सुनहरा अतीत जो आज से कई गुना बेहतर था। उसके दोस्त और उनके साथ उसकी कॉलेज की दुनिया। एक एक करके आदिल हर एक लम्हे को याद करने की कोशिश कर रहा था जिसने कभी उसे प्यार क्या होता है उसके मायने समजाये थे, जिसने कभी दोस्त और दोस्ती की अहमियत को जाना था। जिसने कभी दुनिया की परवाह ही नही की थी। आदिल अपने बीते हुवे दिनों को याद करके इतना खो गया था कि, पीछे से आ रहा ट्रक बिना रुके हॉर्न पर हॉर्न बजाये जा रहा था उसे सुनाई ही नही दिया।

जब वह अपने ख्यालो से बाहर आया और उसने पीछे आ रहे ट्रक को बेतहाशा हॉर्न बजाते हुवे सुना लेकिन, इससे पहले कि वो कुछ और सोच-विचार कर पाता ट्रक उसकी कार को पीछे से टक्कर मारते हुवे आगे निकल गया।

ज़बरदस्त लगी टक्कर के कारण आदिल अपने स्टीयरिंग पर काबू नही कर सका और वही स्वर्णिम चतुर्भुज रॉड पर ही उसकी कार चार-पांच पलटियां खाती हुई उल्टी गिर पड़ी। कुछ ही मिनटों में तो भीड़ जमा हो गयी, लेकिन, ट्रक ड्राइवर रुका नही वह भाग गया।

थोड़े ही दूर से जब अर्जुन ने इस दुर्घटना को देखा तो वो सोच नही पा रहा था कि, उसे ट्रक ड्राइवर का पीछा करना चाहिये या फिर उस कारचालक को बचाना चाहिये जो अभी भी रॉड पर अपनी कार में पड़ा हुवा था। लेकिन, उसने निर्णय लेने में देर नही लगाई, इस बार फ़र्ज़ और ड्यूटी के आगे इंसानियत जीत गयी।

पुलिस को घटनास्थल पर देख भीड़ ने रास्ता साफ कर दिया लेकिन जब उसने नीचे मुड़कर देखा तो कारचालक बेहोश हालात में पड़ा था। उसके सर से खून बह रहा था और उसकी हाथो की उंगलियों से भी खून निकल रहा था। ट्रैफिक के नियम का पालन करते हुवे उसने जो सीट बेल्ट पहना था उसके कारण उसे निकालने में भी दिक्कत हो रही थी। कोई नही जानता था कि, वह जीवित था भी की नही।

बड़ी मेहनत और घटनास्थल पर मौजूद कुछ लोग के साथ से अर्जुन ने उस कारचालक को बाहर निकाला, उसकी सांसें अभी भी चल रही थी लेकिन, अगर सही वक़्त तक इलाज नही मिला तो उसकी सांसें कितनी देर तक चलेगी यह कहना मुश्किल था।

गुजरात सरकार द्वारा मुहैया कराई गई १०८ की सेवा का लाभ लेना उसे उचित नही लगा क्योकि, जब तक १०८ आती तब तक शायद देर भी हो जाये ऐसा भी हो सकता था, अर्जुन ने उसे अपनी ही जिप्सी में लेकर जाना मुनासिब समझा।

लोगो की मदद से उसने कारचालक को अपनी जिप्सी में पीछे लिटाया और खुद भी पीछे बैठ गया ताकि, वह उसका उससे जितना बन पड़े उतना ख्याल रख सके।

कुछ ही वक़्त में नज़दीकी पुलिस थाने ने मामला संभाल लिया और अर्जुन ने अपने दोस्त अमन जो अहमदाबाद में सब इंस्पेक्टर था उसे सारी घटना का ब्यौरा दे दिया और ट्रक ड्राइवर को पकड़ने का जिम्मा उसे सौंप दिया।

रास्ते मे उसने जब कारचालक की पर्स की तलाशी ली। "आदिल एम.शेख" उसके ड्राइविंग लाइसेंस परसे उसका नाम पता चला। उसने उसका फ़ोन चेक करना चाहा लेकिन पासवर्ड के कारण उसे वह अनलॉक नही कर सका।

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कुछ देर बाद जब फ़ोन बजा तो अर्जुन ने बिना ही कोई देरी किये कॉल रिसीव कर लिया।

"कहा पहुंचा तू? कब तक आ जायेगा?" सामने की ओर से आवाज़ आयी।

"हेल्लो, मैं अर्जुन बात कर रहा हूँ...

"अर्जुन.. कौन अर्जुन? मैंने तो आदिल को फ़ोन किया है।" इतना बोलते ही उसने अपने मोबाइल को चेक किया कि, कही उसने कोई गलत नंबर तो नही लगा दिया। नंबर बिल्कुल सही था। अगर नंबर बिल्कुल सही था तो अब सवाल यह था कि फ़ोन उठानेवाला शख्श कौन था?

"अर्जुन कौन? यह फ़ोन तो आदिल का है?"

"देखिये, मै DYSP अर्जुन बात कर रहा हूँ...

"Dysp? सब कुछ ठीक तो है न? आदिल कहा है? उसे कोई गलती हो गयी क्या? या यह कोई मज़ाक है?" इससे पहले की अर्जुन कुछ बोल पाता, Dysp का नाम सुन वह थोड़ा बोखला सा गया और उसी हड़बड़ाहट के चलते उसने प्रश्नों की बौछार कर दी

"देखिये, मेरी बात ध्यान से सुनिये, आपने जिस शख्श को फ़ोन किया है उनका एक्सीडेंट हो गया है...

"एक्सीडेंट...? कब...? कैसे...? अरे अभी १ घंटे पहले ही बात हुई थी मेरी उससे वो बिल्कुल ही ठीक था।" फिर एक बार उसने अर्जुन की बात काट दी। आदिल के एक्सीडेंट के बारे में सुन वह बिल्कुल ही स्तब्ध रह गया। अपने कानों से उसने जो भी कुछ सुना था उस पर वह यक़ीन नही कर पा रहा था।

"आप पहले थोड़ा शांत हो जाये मिस्टर...?"

"Sk" इससे पहले की वह फ़ोन में सेव किये हुवे नाम को देखता सामने से आ रही आवाज़ ने अपनी पहचान करवाई।

"हां, तो sk पहले आप शांत हो जाइये और बताइये आदिल आपका क्या लगता है?" अर्जुन ने पूछा।

"सर, मेरा दोस्त है...बरसो बाद हमें मिलने आ रहा था, हमने एक रीयूनियन पा....

"फिलहाल, आपका दोस्त बहुत ही ज़ख्मी है, और हम अहमदाबाद पहुंचने ही वाले है, आपके दोस्त के लिये कोई अच्छे से अस्पताल में एडमिट करने की तैयारी कीजिये, और मुझे कॉल कर के अस्पताल की जानकारी दे हम वही आपसे मिलते है।" sk की बात को अनसुना करते हुवे उस वक़्त पर जो करना बेहद ही आवश्यक था वह करने के लिये अर्जुन ने सुझाव दिया।

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