फंस गया गुलशन - 2 BRIJESH PREM GOPINATH द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फंस गया गुलशन - 2

Recap:

गुलशन कुछ गुंडों से जान बचाकर भाग रहा था...अचानक दो मोटरसायकिल सवार उस पर तलवार से हमला कर देते हैं...वार कंधे पर लगता है...इससे पहले की उस पर दूसरा हमला होता सामने से पुलिस की जीप आ जाती है, गुलशन बेहोश हो जाता है...अस्पताल में पुलिस इंस्पेक्टर गुलशन के दोस्त से उसके बारे में पूछता है...

अब आगे...

”गुल्लू...प्यार से हम गुलशन को गुल्लू ही कहते हैं साहबजी...कमाल का बंदा है...बिंदास...मस्तमौला...दूसरों की मदद करने वाला...घर परिवार का ख़याल रखने वाला...हमेशा हंसना और दूसरों को हंसाना...क्या बताऊं कितनी खूबियां हैं इसमें...तभी तो हैरानी होती है...कि इतने प्यारे इंसान की जान लेने की कोशिश भी कोई कर सकता है...हम दोनों तो बचपन के दोस्त हैं...23 साल की उम्र हो गई है हमारी, साथ पले बढ़े. इस दौरान सुख दुख के साथी रहे हैं साहब...अपने मां बाप का इकलौता बेटा है...घर की माली हालत पिछले कुछ समय से बिगड़ गई थी...गुलशन के पिताजी को खेती में बड़ा नुकसान हुआ, उन पर काफी कर्ज़ा हो गया था...गुलशन का मन खेती में नहीं लगता था...वो कुछ बड़ा करना चाहता था, खूब पैसा कमाना चाहता था, खेती में हाथ न बटाने को लेकर पिता से झगड़ा भी होता लेकिन मां का लाडला था इसलिए वो हमेशा उसे बचा लेती थीं. पहली बार उसने पिता को टेंशन में देखा, छिप के मां को आंसू बहाते देखा तो गुलशन को एहसास हुआ कि परिवार पर वाकई संकट आन पड़ा है...मां बाप चाहते थे वो पढ़े लेकिन गुलशन ने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी...गांव में कमाई का जब कोई रास्ता नहीं दिखा तो उसने नौकरी के लिए हाथ पैर मारना शुरु किया...मुझे याद है वो दिन जब नौकरी के लिए उसे कॉल आया...” वीर सिंह बेंच से उठा और चलता हुआ रूम के दरवाज़े तक पहुंच गया, नज़र बेड पर बेसुध पड़े गुलशन के मासूम चेहरे पर टिक गई...और पुरानी यादें किसी फिल्म की तरह आंखों की स्क्रीन पर फ्रेम बाई फ्रेम तैरने लगीं...

6 महीने पहले

“अरे पापाजी...मां....अरे कहां हो...मुझे नौकरी का कॉल आया है...अभी अभी मोबाइल पर मुझे बोला कि एक तारीख से जॉइन करना है...आज से एक हफ्ते बाद”...पहली मंज़िल पर बने अपने कमरे से खुशी से चिल्लाता हुआ गुलशन नीचे उतरता है...और किचन से आती मां को गोद में उठा लेता है, “अरे उतार मुझे शैतान...अपने को छुड़ाने की कोशिश करती हुई मां की बात को गुलशन अनसुना कर देता है और मां को लेकर आंगन में गोल गोल चक्कर काटने लगता है, अरे मुझे चक्कर आ रहा है गुल्लू, उतार मुझे, दरवाज़े की कुंडी खटकती है तो गुलशन मां को नीचे उतार देता है, ”बेटा...बाबाजी का लाख लाख शुक्र है उसने हमारी सुन ली”...गुलशन के माथे को चूमते हुए मां की आंखों में आंसू आ जाते हैं...”क्या बात है गुल्लू, तू बड़ा खुश लग रहा है”...बात क्या है”...उसका दोस्त वीर सिंह जो उसी समय पहुंचा था उसने गुलशन का कंधा पकड़ कर कहा...”अरे वीरा...मुझे नौकरी मिल गई यार”...”अरे बधाई हो दोस्त...तूने सोनी को बताया...कान में वीर ने कहा...अभी तो कॉल आया ही है...हां तो बता दे नहीं तो गुस्सा करेगी”...”रुक न यार पिताजी को तो बता दूं”...आंगन काफी बड़ा था,उसके एक कोने से सरदार जोगिंदर सिंह गाय का चारा लगाकर निकलते हैं, “क्या शोर मचा रखा है तुम सबने”, हाथ में लगे भूसे को साफ करने के लिए आंगन के दूसरी ओर लगे पानी के पाइप की तरफ बढ़ते हैं...”पिताजी मेरी नौकरी लग गई दिल्ली में, एक हफ्ते बाद जॉइन करने जाना है”, हाथ साफकर आंगन में ही रखे तखत पर जोगिंदर सिंह बैठ जाते हैं... जोगिंदर सिंह ने नौकरी के बारे में जानकारी लेनी शुरु की...”काम क्या करना होगा”...”बड़े बड़े लोगों से बातें...जोगिंदर सिंह गुलशन को घूरते हैं, तो वो समझाता है, “विदेशियों से अंग्रेज़ी विच बात करनी होगी रात को”...”बात करनी होगी...तू और अंग्रेजी विच बात करेगा...शकल देखी है अपनी...बात करता है...A B C D तो आती नहीं अंग्रेजी विच बात करेगा...और ये बता रात में क्या बात करेगा किस तरह की बात करेगा...तुझे शरम नहीं आती”...जोगिंदर सिंह की आंख बचाकर गुलशन ने सड़ा सा मुंह बनाया लेकिन जोगिंदर सिंह बेटे की इज्ज़त का कचरा करते रहे ...”जब तुझे अंग्रेजी आती नहीं तो तुझे कैसे रख सकते हैं”...गुलशन ने फिर मुंह बनाया तो वीर उसके बचाव में आया, ”अरे अंकल तुस्सी जानते नहीं हो गुलशन को...गांव में इस जैसी अंग्रेजी तो कोई बोल ही नहीं सकता...सबके फॉर्म, लेटर सब गुलशन ही तो लिखता और पढ़ता है”...वीरा गुलशन की ओर देखकर बड़े फ़क्र से बोला...वीर ने उड़ता तीर अपनी ओर ले लिया, तोप का मुंह गुलशन से वीर सिंह की ओर घूम गया, ”ओए गुलशन के चमचे, तू चुपकर,बड़ा आया तरफदारी करने वाला, अरे इसके बिगड़ने में तेरा बड़ा हाथ है, दोनों सिर्फ आवारागर्दी करते फिरते हो, काम धाम कुछ नहीं, तू क्यों नहीं जाता खेतों पर, करतार के शरीर में जान नहीं है और तू बाप का हाथ बटाने की जगह मोपेड पर बैठ कर गांवभर में मुंह काला करता फिरता है, तुझे शर्म नहीं आती”, जोगिंदर की लताड़ लगते ही वीर ने वहां से खिसकना ही ठीक समझा, “अच्छा मैं चलता हूं गुल्लू, नुक्कड़ पर मिलूंगा”,आखिरी लाइन उसने दबी ज़ुबान कही ताकि जोगिंदर सिंह न सुन सकें...गुलशन को अपने साथ साथ बचपन के दोस्त की बेइज्ज़ती नागवार गुज़री, वो कुछ कहता उससे पहले ही मौके की नज़ाकत को भांपते हुए मां ने जोगिंदर सिंह को झिड़की दी...”अरे जी तुमको भी बस मीन मेख निकालने को कह दो...बेटे को नौकरी मिली है, उससे खुश होने, हौसला बढ़ाने, आशीर्वाद देने के बजाय उसकी हिम्मत तोड़ रहे हो...हाय मेरा बच्चा दिल्ली में खायेगा कहां...सूख जाएगा बेचारा...मैं कैसे रहूंगी उसके बगैर”...मां ने बेटे को लेकर चिंता जतायी...”हां तो तू भी चली जा उसके साथ”...जोगिंदर सिंह ने फिर छेड़ा...”अच्छा पगार कितनी है”...”20 हज़ार...खाना फ्री...आना जाना फ्री...और अच्छा काम किया तो इनसेन्टिव अलग से... कुल मिलाकर 30 35 हज़ार तक कमा लूंगा”...गुलशन ने अपना पॉइंट रखा, जोगिंदर सिंह ने बेमन से सिर हिलाया,”लेकिन ये बात करने की कौन सी नौकरी होती है, वो भी रात में...जब सारी दुनिया सोएगी तो तू बात करेगा” जोगिंदर सिंह ने सशंकित होते हुए कहा...”अरे विदेश में उस समय दिन होता है जब यहां रात होती है” गुलशन ने समझाने की कोशिश की...”तो तू दिन में क्या करेगा”...पिताजी के न खत्म होने वाले सवालों से गुलशन IRRITATE हो रहा था, तभी मोबाइल की घंटी ने उसे बचा लिया...सोनी कॉलिंग...गुलशन ने हैलो कहा और धीरे से घर के बाहर निकलने लगा...दरवाज़े पर पहुंच कर उसने मां को आवाज़ लगाई...”मां मैं आता हूं अभी थोड़ी देर में”...”दो मिनट भी घर में मन नहीं लगता इसका, ये क्या नौकरी शौकरी करेगा...दिल्ली गया तो और बिगड़ जाएगा”...”देखो जी मेरे बेटे को कुछ नहीं कहना...एक तो घर की हालत देखकर उसने नौकरी करने की सोची और तुम हो की सिवाय कमी निकालने के कुछ नहीं करते”...मां पिताजी की नोक झोंक के बीच गुलशन तेज़ी से घर के बाहर निकल गया...”हां सोनी...यार वो मां पिताजी साथ ही थे इसलिए बात नहीं कर पा रहा था”...”मैं चिल्ड्रेन्स पार्क में तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं...जल्दी आओ, ज़रूरी बात करनी है”... “मैं आ रहा हूं, मुझे भी एक खुशखबरी देनी है”...तेज़ कदमों से गुलशन गली के नुक्कड़ पर पहुंचा जहां वीर उसका इंतज़ार कर रहा था...वीर ने मोपेड स्टार्ट की नहीं हुई तो गुलशन ने धक्का मारा और स्टार्ट होते ही लपक कर फौरन पीछे की सीट पर लद गया... दोनों चिल्ड्रेन्स पार्क की ओर रवाना हो गए...पार्क के गेट पर वीर ने गुलशन को छोड़ा...”फ्री होकर मुझे फोन कर देना...मैं आ जाउंगा...जा बेटे मौज कर” वीर ने गुलशन को छेड़ा...”क्या मौज कर...चल रास्ता नाप”...गुलशन ने वीर को झिड़का...गुलशन और वीर की जोड़ी सिर्फ करतारपुर गांव में ही नहीं आस पास के गांवों तक फेमस थी...दोनों की दोस्ती ऐसी कि मौका पड़ने पर जान देने को भी तैयार...गुलशन के पिताजी की आदत वीर अच्छी तरह जानता था इसलिए उनकी बातों का कभी बुरा नहीं मानता था...

चिल्ड्रेन्स पार्क में कोने की बेंच पर अपने ही ख़यालों में खोई सोनी बैठी थी...गुलशन चुपके से उसके पीछे गया और ’ हो ’... कहकर उसे डरा दिया...चौंकती हुई बोली, ”लाफा खाएगा तू”...”MY DARLING, MY LOVE, MY LIFE, MY ROMEO, MY JULIET, YOU COME IN MY DREAM…YOU ALWAYS THERE IN MY MIND…I OPEN EYES FIND YOU, CLOSE EYES SEE YOU, IN ROTI, IN DAAL, IN COW, IN VEER EVERYWHERE YOU…I LOV YOU …WE MARRY…2 CHILDREN BORN…GIRL HAPPY BOY PAPPY…YOU MOTHER, ME FATHER…HAPPY GULSHAN FAMILY…” गुलशन जो आज ज़्यादा ही खुश था ऊटपटांग अंग्रेज़ी बोले जा रहा था शायद नौकरी का ऑफर लेटर मिलने का सुरूर था...

“ये क्या हो गया है तुझे...पागल हो गया है तू”..गुलशन फिर शुरू हो जाता है.. “HAPPY GULSHAN FAMILY…MRS SONI WIFE OF MR GULSHAN”, “तू चुप होगा या नहीं” सोनी ने डांट लगाई... “मैं सीरियस बात करने आई हूं”...वो उठकर जाने लगी तो... “PLEASE DARLING…DARLING…DARLING PLEASE न जाओ तुस्सी,अच्छा अब मैं नहीं बोलूंगा… “तुझे हर वक्त मज़ाक सूझता है, life में कब सीरियस होगा”...सोनी का मूड देखकर गुलशन को समझ आ गया मामला कुछ गंभीर है, वो बिल्कुल खामोश हो गया और एकटक सोनी की ओर देखने लगा, “देख गुल्लू मेरी शादी तय हो रही है”... “WAAT!!!!! कककक्या कहा तूने...अभी तो तू सिर्फ 21 की हुई हो...करनी है तो थोड़ा रुक के करना...वैसे मुझे कोई एतराज़ नहीं, तू चाहे तो मैं आज भी तेरे से ब्याह कर सकता हूं” गुलशन ने फिर मसखरी की... “मैं तेरे से शादी की बात नहीं कर रही...फिरोज़पुर में लड़का है”... “अरे तो क्या लुधियाना में मुंडे नहीं हैं”... “गुलशन अगर तुझे नहीं सुनना तो मैं जा रही हूं”..सोनी ने धमकी दी तो गुलशन ने समझाने की कोशिश की, “OK OK, NOW I AM FULL SERIOUS…तो तू इतना घबरा क्यों रही है...तेरी शादी तो मेरे साथ ही होनी है...सोणियो...MRS GULSHAN बनाना है तेरे को”..गुलशन ने बड़े Confidently कहा तो सोनी उसके बिल्कुल करीब जाकर उंगली दिखाते हुए बोली. “एक तो न तू ये अंग्रेजी अपनी जेब में रख ले वर्ना मैंने तेरा सिर फोड़ देना है,दिमाग पका दिया यार सड़कछाप अंग्रेजी बोलके”, ओए जिसे तू सड़कछाप अंग्रेजी कह रही है न उसी अंग्रेजी ने मेरी नौकरी लगा दी है”, अब सोनी चौंकी, “क्या कहा तूने, तेरी नौकरी लग गई”, यही GOOD NEWS देने के लिए तो मैं भागा चला आ रहा था मेरी जान…हां मेरी नौकरी लग गई है...दिल्ली में...अब तो गुस्सा नहीं है तू...तेरे घरवाले यही तो कहते हैं न कि मैं नकारा हूं, कुछ करता नहीं हूं...अब तो मान जाएंगे”...गुलशन ने सोनी के पैरों पर घुटने के बल बैठते हुए कहा, “पता नहीं...फिरोज़पुर वाला लड़का तेल बेचता है”... “तेल...कौन सा तेल”.तुझे क्या करना है तेल से... कौन सा तेल हुं...”सोनी ने बुरा सा मुंह बनाते हुए गुलशन की नकल की, फिर continue किया... “महीने का 40-50 हज़ार कमाता है”... “मिलावटी तेल बेचता होगा स्साला...रेड पड़वाउंगा उसके यहां, तू फिकर ना कर”... “गुल्लू यार कभी तो सीरियस हुआ कर, तू रेड पड़वाता रह जाएगा और मेरा ब्याह हो जाना है उसके साथ”...सोनी ने झिड़का तो गुलशन को जैसे करंट लगा, दिमाग की घंटी बज उठी, सोनी के बिना ज़िन्दगी, वो सपने में भी नहीं सोच सकता था, “यार सोनी...मेरी सैलरी 20 हज़ार है, मैं कुछ भी करुंगा, दिन रात मेहनत करुंगा,ज़्यादा से ज़्यादा कमाने की कोशिश करुंगा, सुना है इनसेन्टिव बड़ा अच्छा है, तो मैं खींच खांच कर 30 35 तक कर लूंगा, अब थोड़ा तो adjust करेंगे न तेरे घरवाले”... “नहीं करेंगे”, सोनी ने तपाक से जवाब दिया तो गुलशन को गुस्सा आ गया, “उन्हें पैसों से शादी करनी है या उस मुंडे नाल जो उनकी कुड़ी को खुश रख सके और अगर तुझे भी पैसों से शादी करनी है, तो जा तू भी तेल बेच ”…गुलशन का मूड देखकर सोनी ने मुस्करा कर कहा, “अच्छा, और जो मैं चली गई, तो तू रह लेगा मेरे बिना” सोनी ने गुलशन की कमज़ोर नस दबाई... “तू देख ऐसी बात ना ही किया कर, तुझे कुछ करना होगा सोनी...कैसे भी करके कुछ दिन संभाल ले...एकबार मैं दिल्ली गया तो कुछ कर के लौटूंगा”...तुझे और तेरे बुड्ढे”...सोनी ने आंख दिखाई तो गुलशन बोला, “मतलब तेरे प्यों को भी मैंने खुश कर देना है”, गुलशन के बात पूरी करते ही सोनी ने धमकी दी, “और सोच ले अगर तूने कुछ नहीं किया न, तो मैंने ज़हर खाकर जान दे देनी है लेकिन ब्याह किसी और संग नहीं करना है”… “ओए SHUT UP, मैंने कही बिल्कुल SHUT UP, मैं गुलशन की हैप्पी फैमिली बनाने की बात कर रहा हूं, तू मरने शरने की बात कर रही है” गुलशन ने सोनी को बाहों में भरते हुए कहा तो मासूम सी आवाज़ में सोनी बोली... “लेकिन तू दिल्ली चला जाएगा, तो मैं अकेली हो जाउंगी, हम मिल भी नहीं पाएंगे” सोनी भी गुलशन को जान से ज़्यादा चाहती थी... “कुछ दिनों की बात है Sweetie...फिर तो मैं तुझे ब्याह कर ले जाउंगा दिल्ली”…गुलशन ने सोनी का डर दूर करने की कोशिश की, अचानक अपने को गुलशन की बाहों से अलग करते हुए मुंह फुलाते हुए, कमर पर हाथ रखकर सोनी बोली “ये स्वीटी कौन है”...गुलशन उसकी भोली सूरत और सवाल पर हंस पड़ा, “तेरे इसी भोलेपन पर ही तो मैं मर मिटा हूं सोनिये...अरे तू ही तो है मेरी स्वीटी, मेरी जान, मेरी जानेमन, दर्देदिल, दर्देजिगर,” गुलशन के शब्द सोनी के सिर के ऊपर से निकल गए, गुलशन ने फिर सोनी को बाहों में भर लिया और हिलाते हिलाते बोलने लगा…. “दिल्ली में तुझे चांदनी चौक के पराठे खिलाउंगा”,गुरुद्वारा सीसगंज में मत्था टेकेंगे,बाबाजी से मैंने तो छोटी सोनी मांगनी है”, गुलशन की बात सुनते ही सोनी ने शरमा कर अपना सिर उसके सीने में छिपा लिया... “अच्छा...दिल्ली में और क्या क्या है” दिल्ली का नाम आते ही सोनी का मन खुशी के सागर में हिंडोले मारने लगा, उत्सुकता से सोनी ने सवाल किया तो गुलशन ने फौरन अपने ज्ञान का पिटारा खोला... “कुतुब मीनार है...लालकिला है...गेटवे ऑफ इंडिया है...ताज महल है”…गुलशन की गलती पकड़ी गई... “ताज महल तो आगरा में है” सोनी ने टोका... “तुझे तो बड़ा पता है मेरी QUEEN, चल ठीक है आगरा भी चलेंगे” गुलशन ने दिल बहलाया तो सोनी का चेहरा चमक उठा... “सच...लेकिन गुल्लू तू जल्दी करना...मुझे डर लग रहा है...वो फिरोज़पुर”...सोनी ने खुद को अलग करते हुए कहा तो गुलशन ने तड़ी दी, “उसे तेल के ड्रम में ही डुबा के मारुंगा...”..सोनी बेंच पर बैठ गई तो गुलशन उसकी गोद में सिर रखकर लेट गया...सोनी ने अपनी उंगलियां गुलशन के बालों में फिरानी शुरू की तो उसे लगा जैसे जन्नत पहुंच गया है...गुलशन ने सोनी की उंगलियां लेकर चटकानी शुरू कर दीं...इस समय को वो रोक लेना चाहता था...प्यार के ऐसे पल ज़िन्दगी के सुनहरे पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो जाते हैं...गुलशन और सोनी अपने अपने ख़यालों में खोए थे...दोनों ही एक दूसरे के साथ भविष्य के ताने बाने बुन रहे थे...अचानक गुलशन ने सोनी की छोटी उंगली चटकाई तो उसने अपना हाथ खींच लिया, “ओए तोडेगा क्या” फिर जैसे सोनी को कुछ याद आया, “अच्छा तूने अपनी नौकरी के बारे में तो बताया नहीं...करना क्या होगा”…सोनी के सवाल पर रोमांटिक अंदाज़ में गुलशन ने जवाब दिया , “ सिर्फ बातें...बातें...और सिर्फ बातें”... “बातें…ये कैसा काम हुआ, और बात तू किससे करेगा”...सोनी ने हैरानी से पूछा... “विदेशियों से...अंग्रेजी में”... “उठ...मैंने कहा उठ”, गुलशन सोनी के तेवर देखते ही उठकर बैठ गया, “तूने मुझे पागल समझा है...जिसकी कम्पार्टमेंट आई हो... तूने बीए भी पास नहीं किया और तू कह रहा है, अंग्रेज़ी में बात करने की नौकरी”...अचानक गुलशन सीरियस हो गया,उसने सोनी का चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया और भारी आवाज़ में बोला “सोनी ये हमारी ज़िन्दगी का सवाल है, मैं तेरे से झूठ क्यों बोलूंगा”...गुलशन के शब्दों में, उसकी आंखों में सच्चाई थी, सोनी के पास उसपर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं था... “लेकिन बात क्या करोगे”, सोनी ने फिर पूछा... “ये तो वहां जाकर ही पता चलेगा”...तभी सोनी के मोबाइल की घंटी बजी...दूसरी तरफ मां थी... “बस मां आ रही हूं...नहीं पूजा के साथ हूं...बस आ रही हूं”...फोन काटते ही उसने कहा, “मुझे जाना है...पिताजी पूछ रहे हैं...भाई भी आ गया है”... “आ गए दुश्मन”...गुलशन भुनभुनाया, तो सोनी गुर्राई, “क्या कहा”, “अरे कुछ नहीं यार, मैं कुछ कह सकता हूं भला, मेरी इतनी औकात कहां जो मैं अपने ससुर और साले को कुछ बोल सकूं”, गुलशन ने मुंह बनाते हुए सरेंडर किया तो सोनी हंस पड़ी...सोनी के मोती जैसे दांत उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे, फिर कुछ खयालों ने चेहरे पर उदासी ला दी...गुलशन ने सोनी को गले लगा लिया और प्यार से उसके गालों को थपथपाते हुए बोला... “शादी तो तेरी मेरे से ही होगी...चाहे उठाकर ले जाना पड़े”...सोनी की आंखों में आंसू आ गए...मैं भी रह नहीं पाउंगी तेरे बगैर...दोनों बात करते हुए बाहर की ओर बढ़ चले... “DON’T WORRY BE HAPPY”…

जैसे ही गुलशन और सोनी पार्क के गेट से बाहर निकले वीरा ने बाइक उनके सामने लाकर खड़ी कर दी... “सत श्री काल भाभीजी”..सोनी मुस्कराई... “मैंने कहा जोड़ी बोत सोणी है...जचते हो दोनों”... सोनी ने कुछ कहा नहीं बस मुस्करा कर तेज़ कदमों से उस ओर चली गई जहां पूजा का घर था...वीरा ने गुलशन को देख कहा... “ओए चेहरा क्यों लटका है...अरे आज ही की तो बात है...कल फिर मिलना होगा, इसमें उदास होने की क्या बात है”... “नहीं यार बात वो नहीं है...सोनी की शादी के लिए घरवाले पीछे पड़ रहे हैं...कोई फिरोज़पुर में लड़का है, तेल बेचता है स्साला उसे पसंद कर रहे हैं”... “ओ ल्लै...इत्ती सी बात...अबे जब हमने दूसरों की बहु बेटियों को उठा कर”...गुलशन ने घूरा तो वीरा ने करेक्ट किया, “मतलब यारों की प्रेमिकाओं की शादी उनसे करवा दी तो फिर यहां तो अपना मामला है, जान दे देंगे प्यारे लेकिन शादी कहीं और नहीं होने देंगे...तू फिक़र ना कर...दिल्ली जाकर नौकरी कर...यहां मैं संभाल लूंगा”...गुलशन के चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसने चैन की सांस ली और वीरा की मोपेड के पीछे बैठ गया...उधर सोनी और इधर गुलशन अपना भविष्य सुरक्षित जान शांत मन से घर को रवाना हो गए इस बात से अनजान की ये तूफान से पहले की शांति है...

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