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अमलतास - एक अनदेखा रहस्य - 1

मांदी घाटी का इलाका जहाँ एक कहानी बहुत प्रचलित है । और वो कहानी अमलतास के पुष्प की है ।

ये कहानी एक ऐसी कहानी है के कुछ लोग इसे केवल लोगो द्वारा फैलाई गई आफ्वाये ही मानते है ।

क्योकि इस कहानी में अमलतास के पसीने को अमृत बताया गया है ।
पर आज तक अमलतास के पुष्प को 12वीं सदी के महाराजा और उनके सेनापति को छोड़ कर किसी ने देखा तक नही

पर अचानक से 19वीं सदी में कुछ ऐसा हुआ की ...
सभी को यकीन हो गया ।

(साथियो 'अमलतास - एक अनदेखा ऱहस्य' पढ़ने से पहले 'अमलतास की खोज' जरूर पढ़ लेना)

19वीं सदी -
यह एक छोटा सा गाँव है जिसके हिस्से बहुत कम जमीन है इस गांव से शहर कम से कम 12km दूर है और जाने का केवल एक ही रास्ता
जंगल का रास्ता , जहा डाकुओ का बसेरा है ।
कोई किसान जब इस रास्ते से अपनी फसल लेकर जाता है तो बहुत कम चांस है वापिस आने के ,
उस स्याम भी कुछ ऐसा ही हुआ रामभज की पत्नी ने सारी तैयारी कर दी रामभज ने खाना लिया और बैलगाड़ी के पीछे रख दिया और निडर होकर बैलगाड़ी पर सवार हो गया

'जल्दी आने की कोशिश कीजियेगा'-रामभज की पत्नी ने रामभज को दिलासा दिया
'चिंता मत करो,मैं कल सुबह समय पर आ जाऊंगा । तुम खाना तैयार रखना '-इतना कहते ही रामभज ने अपने बैल को टसकारी दी और उस खतरनाक रस्ते पर निकल पड़ा ।
रामभज की पत्नी ने रामभज को वहाँ तक देखा जहा तक नजरे पहुंच सकती थी ।
फिर अपने पल्लू को अपने दांतों तले दबा अंदर चली गई

जैसे जैसे श्याम ढल रही थी वैसे वैसे रामभज का डर बढ़ रहा था बैलगाड़ी जंगल के बीचों बीच चल रही थी , पक्षियों की चहचाहट और कुत्तों के भोकने के सिवाय कोई शोर नही था
अचानक से पत्तो के हिलने की आवाज पास से आने लगी । रामभज डर गया उसने अपनी बैलगाड़ी थाम ली । अचानक से एक व्रक्ष रास्ते में आ गिरा जिससे रास्ता बंद हो गया ।
अब रामभज का डर और बढ़ गया था ।
वसंत के दिनों में भी रामभज का बदन पसीने से भीग गया था । रामभज डरते हुए अपनी बैलगाड़ी से उतरा और उस व्रक्ष को हटाने के लिए आगे बढ़ा । अपनी पूरी ताकत से रामभज उस व्रक्ष को रास्ते से हटाने लगा की..

उसे अपने बैल की घंटी जोर से सुनाई देने लगी , रामभज को आभास हुआ की कोई तुम्हारे पीछे है
रामभज का शरीर कांपने लगा । रामभज ने धीरे से पीछे मुड़कर देखा तो आँखे फटी की फ़टी रह गई ।
अब रामभज के सामने करीब 10 नकाबपोश डाकू थे ,सभी के हाथ में नुकीली तलवारे जो अभी रामभज को ही निहार रही थी ।

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अमलतास की कहानी को सच मान इस छोटे से गाँव में एक साइंटिस्ट रहता है जिसे करीब 11 महीने हो चुके है इस गाँव में बसेरा डाले । डॉ रमन , जिनका केवल एक ही उदेशय है गाँव में रहने का , सिर्फ अमलतास को ढूंढना ।
डॉ सुबह निकल जाते है अपनी खोज में और स्याम को वपिस आते है । पर आज तक डॉक्टर को सिर्फ कहानी को छोड़ कर कुछ नही मिला

अभी रात के करीब साढ़े दस बजे है । डॉ अपने मकान से बाहर निहार रामभज की पत्नी को उदास ब्रावंदे के नीचे बैठे हुए देख रहा है जो उस तरफ बार बार देख रही थी जिस तरफ उनके पतिदेव अपनी बैलगाड़ी के साथ निकले थे ।
रामभज की पत्नी सुबह का इंतजार कर रही थी ।
रामभज की पत्नी उठी और अंदर चली गई । कुछ देर बाद रामभज के छोपड़े का दीया बंद हो गया । शायद अब वह सो गई थी ।
इस दृश्य को पूरा देख डॉ अपने मकान से एक लालटेन लेकर बाहर निकला और अपने मकान को ताला लगा उस अँधेरे जंगल की तरफ चल पड़ा । उन झाड़ियों को चीर करीब 30 मिनट के अंदर डॉ गहरे जंगल में पहुच गया जहाँ एक सुंदर मकान था । पास जाकर डॉ ने दरवाजा खटखटाया

" तो परिंदे पहुच गये " - यह अंदर दे एक आवाज थी
" मैंने पर गिन लिए" - डॉ ने जवाब दिया
तभी दरवाजा खुला , यह डाकू ही था । डॉ ने अपनी लालटेन को दरवाजे के बाहर ही लटका दिया और अंदर की तरफ चल दिया ।

चार दिवारी मकान में एक दीवार पर अलग अलग हथियार टंगे हुए थे तो एक तरफ उन सभी डाकुओ के बिस्तर लगे हुए थे । दीवारों पर जानवरो के सर कटे हुए लटक रहे थे तो एक तरफ ओल्ड डाइनिंग टेबल थी
कुछ डाकू बिस्तर पर सो रहे थे तो कुछ अपनी तलवार को धार दे रहे थे एक तो अभी तक खाने पर लटका हुआ था
डॉ यह देख रहा था के डाकुओ के सरदार भीखू ने पीछे से डॉक्टर के कंधे पर हाथ रखा ।
डॉक्टर ने घूम कर देखा । भीखू कुछ चबा रहा था
" क्या हुआ डॉ साहब, सुबह होने का इन्तजार भी नही कर सकते क्या?" -शब्दो के साथ ही भीखू ने अपने झूठे हाथ डॉ के कपड़ो पर रगड़ दिए
पर डॉ चुप रहा
"ये बात नही है भीखू , मैं तो ....."
"हे .. भीखू सरदार बोल ।" - एक रॉब से कहा
"सरदार , मैं तो बस आपको याद करता रहता हूं "- बेखोफ होकर डॉ ने कहा
अभी डॉ के चहरे पर जरा भी डर नही था
तभी भीखू ने अपनी तलवार निकाली और और डॉ की गर्दन से चिपका दी -
" डाकुओ के साथ दोस्ती करने की भूल मत करना डॉ "
"मैं कोई दोस्ती नही कर रहा सरदार "-डॉ ने तलवार को हाथ से हटा दिया-"बस तुम भी पैसो के लिए काम करते हो और हम भी पैसो को इज्जत देते है "-प्यार से डॉ ने जवाब दिया
"हे...!" -भीखू ने एक को आवाज लगाई
"हां सरदार हुकम कीजिये " एक ने जवाब दिया
"हिस्सा लाओ रे महान साइंटिस्ट का" -नजरे तोड़े बिना भीखू लगातार डॉ की आँखों में देख रहा था
तभी एक डाकू एक थैली में कुछ अशरफिया लेकर आया
ज्यो की त्यों भीखू ने वो डॉ को थमा दी-
"ले तेरा हिस्सा और कल्टी मार "
" सरदार , उस किसान के साथ क्या किया ? " - डॉ ने धीरे से पूछा
सुनकर सरदार हँसने लगा -"अरे वही काट डाला साले को "

यह सुनकर डॉ मुस्कुराने लगा
"ok , Good night !"
डॉ अपनी लालटेन के साथ उस रास्ते पर चल पड़ा जहा पर बैलगाडी को लूटा था
जल्दी ही डॉ वहाँ पहुच गया पर एक पल के लिए सोचने लगा
क्योकि वहाँ पर उस किसान की लाश नही थी । बैलगाड़ी का एक पहिया टुटा हुआ था कुछ अनाज जमीन पर बिखरा हुआ था । खून के धब्बे रस्ते पर पड़े हुए थे
पर फिर सोचा कही इधर उधर लेजाकर काट फेंका होगा ।

फिर अपने घर की तरफ चल दिया

पर जिसे डॉ ने मरा हुआ सोचा वह तो अमलतास की सरण में पहुच गया

शेष भाग - 2

उस गुप्त अंधेरे से निकल कर करीब 12:15 बजे डॉक्टर अपने घर पहुंचा अपने घर के एक कोने में रखी उस मेज पर जाते ही बैठ गया और अपनी डायरी खोलकर उसमें कुछ लिखने लगा

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डॉक्टर अपने बिस्तर से सुबह की किरणों के साथ उठा । अंगड़ाई लेते हुए खिड़की से बाहर देखा तो रामभज की पत्नी बरामदे में बैठी अपने पति का इंतजार कर रही थी
,रामभज ने तुरंत घूम कर घड़ी की तरफ देखा । समय करीब 8:15 बजे डॉक्टर ने अपना बैग उठाया जो बिस्तर के ऊपर लगी खुंटी से लटक रहा था ,बाहर निकलते हुए डॉक्टर ने ताला उठाया जो दरवाजे के बिल्कुल पास कि आली में रखा हुआ था बाहर निकल कर कुछ पल के लिए उस सुंदर दृश्य को निहारा जो डॉक्टर की आंखों के सामने छलक रहा था । आकाश में बादल पलटी मारकर अपने गंतव्य पर पहुंच रहे थे । उस बड़े सूर्य की लालिमा के पास से कुछ पक्षियों का झुंड परछाई की तरह एक कतार में आगे बढ़ रहा था । कुछ छोटे बच्चे (अवस्था करीब 7 साल) बिल्कुल नग्न अवस्था में बादलों की अंधी परछाई को पकड़ने की कोशिश कर रहे थे जिसका कोई अंत नहीं , फिर वह सुसाव युक्त फलों की टोकरी लेकर डॉक्टर के सामने से गुजरी । रामभज के बिल्कुल बाजू (बाई तरफ) वाले मकान के सामने उस चबूतरे पर दादी अम्मा अपना चरखा चला रही थी । इसी बीच महेश बाबू हर रोज की तरह अपने साइकिल पर सवार दोनों तरफ दूध के ड्रामो को लटकाए अपने साइकिल की घंटी बजाते हुए उन छोटे बच्चों की भीड़ को चीरता हुआ निकल जाता है ।

पर इसी बीच डॉक्टर की नजरें दोबारा रामभज की पत्नी पर पड़ती है उसे देख मानो मेहताब की चांदनी को किसी ने कैद कर दिया हो ।

जो अभी भी उस रास्ते को निहार रही थी जिस रास्ते पर रामभज अपने अनाज के साथ निकला था ।
परंतु डॉक्टर के मन में कोई दया घाव नहीं था । डॉक्टर ने घूमकर अपने मकान को ताला लगाया और उस सुंदर दृश्य को अपने मन की माला में पिरोए अपने गंतव्य की तरफ चल दिए ।

वह कल की थकी हारी बेचारी जलती हुई अग्नि की लपटों की तरह बेचैन सी । लगातार अपनी सांसो को थाने अपने शौहर का इंतजार कर रही थी पर उसे कोई यह बताने वाला नहीं था कि तू अभी भी पतिवंती है । घड़ी की सुइयां इंतजार के लिए थम नहीं रही थी । पर किसी की सांसे समय के साथ चलने को तैयार नहीं थी ।

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आंखें खुली तो वह किसी चट्टान पर लेटा हुआ था जो एक बिस्तर के आकार में बराबर कटी हुई थी ।
यह एक छोटा सा कमरा था जो चट्टान को काटकर सुंदर तरीके से बनाया गया था अब रामभज ने अपने शरीर को देखा तो वह बिल्कुल ठीक था । तलवारों से किए गए जख्म कहीं नजर नहीं आ रही थे । तभी रामभज ने उस छोटे कमरे में नजर घुमाई तो दाईं तरफ एक आदमी अपने मुंह को दूसरी तरफ घूमाए हुए कुछ पीस रहा था ।

"कौन हैं आप"-रामभज ने पूछा ।

तो वह आदमी तुरंत रामभज की तरफ घुमा

"अरे ! आ गया आपको होश, कैसा लग रहा है अब आपको?"-उस आदमी ने पूछा

रामभज एक क्षण के लिए जवाब न देकर उसके पहनावे को देखने लगा जो बड़ा ही अजीब पर सुंदर था, ओल्ड था पर कीमती था

एक लंबा सूट जो घुटनों से थोड़ा नीचे था काले रंग की उस पोशाक पर चमकीले हीरे चिपके हुए थे ,धोती काले रंग की मगर कुछ हद तक फैली हुई थी जो उस सँकरे सूट पर बेहद खूबसूरत लग रही थी , गले में पड़ी हीरे मोतियों की माला जिसकी कीमत का अंदाजा महज़ दिमाग में भी कम पड़ जाए । राजाओ-सी ऊंची शान सा सुंदर खूबसूरत चेहरा जिसकी चमक दोनों कंधों पर लहरा रहे लंबे लंबे बालों ने और बढ़ा दी ।

"किस सोच में पड़ गए जनाब"-चुटकी बजाते हुए उस आदमी ने पूछा
रामभज चुटकी की आवाज के साथ ही उस रूप से बाहर निकले

"आप......?" -राम भजन ने चेहरे पर कई सवाल दर्शाते हुए पूछा
"फिक्र मत कीजिए"-इन्हीं शब्दों के साथ वह आदमी रामभज की तरफ बढ़ा-"आपकी इस उलझन को भी सुलझा देते हैं"-फिर वही राम भज के कंधे पर हाथ रख बैठ गया-"मेरा नाम राजीव है"
यह सुनकर रामभज की आंखें फटी की फटी रह गई
"राजीव ! 'सेनापति राजीव' ,आपके साम्राज्य के राजा के सेनापति"-राजीव ने दोबारा दोहराया |
यह सुनकर रामभज तो कुछ क्षण तक सुन सा हो गया |

"और आप अभी जीवित हैं क्योंकि आपकी रगों में अभी अमलतास का पसीना बह रहा है | जिसने आपको संपूर्ण जीवन दान दिया है |" -रामभज को बताया |

रामभज अभी भी बड़ी बड़ी आंखों से राजीव को निहार रहा था |
"प…प…पानी !"-अपनी कपकपी आवाज से राम भज ने पानी पीने का इशारा दिया
"हां जरूर, अभी लाते हैं | "-राजीव खड़ा हुआ और उस छोटे कमरे से बाहर निकल गया |
रामभज उस छोटे कमरे के छोटे दरवाजे से बाहर देखने की कोशिश कर रहा था |
रामभज बैठे-बैठे बाहर का दृश्य तो पूरा नहीं देख सका पर इतना जरूर पता चला कि बाहर खुला प्रांगण था |
सेनापति राजीव अब एक गिलास में पानी लेकर अंदर प्रविष्ट हुए | वह गिलास भी सोने का था ।

राम भज अब यही सोच रहा था कि यहां कुछ बड़ा राज दफन है |

"यह लीजिए पानी"-वह गिलास रामभज को थमा दिया-"आप को डरने और घबराने की जरूरत नहीं है अब आप यहां से सुरक्षित बाहर जा सकते हैं "-राजीव ने प्यार से समझाया

पानी की दो घूंट भरते ही राम भज ने उस गिलाश को अपने होठों से दूर किया ।
"लाइए!"-उस गिलास को पकड़ राजीव ने नीचे रख दिया
"निश्चित रूप से यह जगह कौन सी है?"-हल्की घबराहट के साथ रामभज ने पूछा

राजीव सुनकर थोड़ा सोच विचार करने लगा-

"निश्चित रूप से तो नहीं पर हां इतना बता सकते हैं कि यह जगह आपके गांव की सीमा के अंदर ही है |"-राजीव ने जवाब दिया
"क्या मैं अमलतास को देख सकता हूं?"-रामभज ने उत्सुकता से पूछा
"हां जरूर, आइए !"-राजीव उठ खड़े हुए- " इस मनोरम दृश्य को अपनी आंखों में बसा लीजिएगा क्योंकि यह दृश्य आप बार-बार नहीं देख पाओगे "- कहकर राजीव आगे आगे चल दिया

और उस छोटे दरवाजे से झुक कर बाहर निकल गया पीछे पीछे रामभज भी चल दिए फिर उस नीचे दरवाजे से झुककर अब खुले प्रांगण में आ गए उस दृश्य को देखकर रामभज की आंखें चमक उठी ।

शेष भाग- 3

समय रात के करीब 2 बजकर 35 मिनट । डॉ अपनी चारपाई पर आराम से सो रहा था की अचानक डॉ के कानों में कुछ आवाज सुनाई पड़ी ।
डॉ न चाहते हुए भी अपनी आँखों को मलते हुए खडे हुए और खिड़की से बाहर देखा ।
जो देखा उसे देख कुछ क्षण के लिए डॉ बस पत्थर-से बन गए ।
यह आवाज रामभज के बैल की घंटी की थी डॉ ने देखा

रामभज अपने बैल को जुए से हटा ब्रावंदे के खूंटे से बांध रहा था
डॉ ने फिर ध्यान से देखा , अब ये पक्का हा पक्का रामभज ही था ।
रामभज ने अपने बैल को खूंटे से बांध दिया फिर गाड़ी के पिछे आकर एक मिटटी का पात्र उठाया जो चमक रहा था डॉ को समझने में देर न लगी की उस पात्र में कीमती सामान था

ब्रावंदे में खड़ी रामभज की पत्नी, रामभज ने वह पात्र अपनी पत्नी को थमा दिया
फिर दोनों अंदर चले गए

डॉ दूर से उनकी बातें तो न सुन सका पर इतना जरूर पता चला की उस पात्र में वो चमक कुछ खाश थी ।
अब डॉ के मन में कई सवाल थे । जिनका जवाब केवल रामभज ही दे सकता था

डॉ के सामने खिड़की के सहारे लालटेन टंगी हुई थी, डॉ ने घड़ी की सुई को नही देखा बस लालटेन उठाई और उस गुप्त अँधेरे जंगल की तरफ चल दिए ।

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अधीरता भाव के साथ रामभज ने अपने मकान में प्रविष्ट होते ही अंदर से दरवाजा बंद कर लिया । अपने आप को थका हरा मान कर धुप में रखी बर्फ की सिल्लि की तरह दरवाजे से चिपककर धीरे धीरे नीचे तशरीफ़ रखी ।
तब तक उस चमकदार घड़े को अंदर रखकर रामभज की पत्नी रामभज के सामने आ खड़ी हुई थी , रामभज को इस तरह टुटा हुआ देख और चहरे के भाव एक भयानक मंजर को ज़ाहिर कर रहे थे -

"आपको काफी समय हो गया यहाँ से गये हुए और दो दिन बाद इस दुर्दशाग्रस्त अवस्था में....." -धीमी और शांत आवाज के साथ रामभज की पत्नी ने पूछा

पर रामभज का ध्यान अभी भी किसी गहरी और चिन्तनीय सोच में था ।

"पहले एक गिलास पानी लेकर आओ , फिर कुछ बताएंगे "- रामभज का गला बैठा हुआ था

कोने में ही स्टैंड पर पानी का घड़ा रखा था रामभज की पत्नी ने पानी का गिलास भरा और रामभज के सामने जाकर बैठ गई ।
"ये लीजिये ! "
रामभज ने पानी का गिलास लेते ही आपने होटो से लगा लिया ।

"आपकी आवाज बैठ गई है । और इतने दिनों तक तो आपने मेरी भी साँसे रोक दी थी । आखिर कहा चले गए थे फसल को बेचने "-पत्नी ने पूछा

शब्दो के बीच ही रामभज ने गिलास को होटो से हटा अपने पास रख लिया
अपनी पत्नी के बोल को सुनकर रामभज ने उस सूंदर दृश्य को फिर एक बार याद किया ।
अपनी आँखों को धीरे से बंद करके मंद मंद मुस्कुराने लगा
उस क्षण रामभज की पत्नी , रामभज की ख़ुशी को रामभज के चहरे पर साफ देख रही थी ।

"आप ठीक तो है ना..."-पत्नी ने पूछा
रामभज ने धीरे से अपनी आँखे खोली -

"मैं बिलकुल ठीक हु । पर एक बात समझ नही आती "-चहरे की ख़ुशी के साथ रामभज ने जवाब दिया

"क्या हुआ ? "

"दरअसल तुमने जो पूछा, मतलब 'मैं कहा था ' तो समझ में नही आता की इतने सुंदर सफर और कहानी को कहा से शुरू करू"

अब रामभज की ख़ुशी को देख कर तो रामभज की पत्नी भी खुश हो गई

"दो दिनों तक जो आपने मुझे चिंतामय बनाया है तो आप इतना तो कर ही सकते है की एक सूंदर और रोचक कहानी से मेरी उस चिंता को परिपूर्णतयः कर सके "

"तो दिल थाम के सुनना , क्योकि ऐसे रोचक तथ्य बार बार नही बातये जाते । और सूनने की हिम्मत भी रखना "

"आप बताइए मैं आपका सफर सुनना चाहुगी "

"तो सुनो ....मेरा पुनर्जन्म हुआ है । "
इतना सुनते ही वह चकाचोंध रह गई

"मेरा शरीर पूरी तरह नष्ट हो चूका था "

"आप ये क्या कह रहे है ? " -चेहरें की ख़ुशी क्षण में ओझल हो गई - "जब आप यहाँ से निकले थे तो साँसे थम-सी गई थी दो दिन के इन्तजार ने मुझे पागल सा बना दिया था । आपको दोबारा देख आँखों में चमक और ख़ुशी की सीमा न रही । और अब आप ... "

"मजाक की हद को मैं अच्छी तरह जानता हूं परिणीता " -अपनी पत्नी के शब्दों को बिच में रोक कर बताया -"मेरे चेहरे के भाव ख़ुशी के है पर एक अनोखी वारदात से गुजरकर मैंने स्वर्ग से सूंदर जगह का आनंद लिया है "
रामभज की पत्नी के चेहरे पर अब सम्भ्रम भाव साफ़ नज़र आ रहे थे
"प्रिय... ! मुझे जाते वक्त डाकुओ ने बुरी तरह काट फेका था । मेरी फसल को मैं अपनी आँखों से लूटते हुए देख रहा था , पर मैं अधमरा कुछ न कर सका " -इस भयंकर मंजर को रामभज बेखोफ होकर ज़ाहिर कर रहा था ।
साथ साथ रामभज की पत्नी सम्भ्रमता और शांति से उस कहानी को सुनकर उसे अपने दिमाग में चलचित्र की तरह पेश कर रही थी ।
"पर मेरा शरीर उस तकलीफ को सहन न कर सका , जल्द ही एक तड़प के साथ मेरी आँखे बंद हो गई । उसी क्षण मैं मौत की ढेरी बन चूका था उसके बाद...."

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जंगल के बीच डाकुओ के मकान के सामने डॉ ने अपने कदम
थाम लिए । उस दिन की तरह डॉ ने अपनी लालटेन बाहर खुंटी से लटका दी । फिर दरवाजा खटखटाया

" तो , परिंदे पहुच गये ? " - यह अंदर से पासवर्ड के साथ आवाज थी
"मैंने पर(पंख) गिन लिए " -डॉ ने तुरंत जवाब दिया ।

अंदर से दरवाजा खुला , डॉ के सामने सफेद बनियान पर काले रंग का आस्तीनदार छोटा कोट पहने सरदार भीखू खड़ा था
कोट के बटन खुले हुए थे नीचे सफेद धोती फैले हुए आकार में थी छोटी दाढ़ी पर बड़ी मुछे बड़ी सूंदर लग रही थी

"बताइये डॉ , कैसे आना हुआ ? " - अपनी मुछो को ताव देते हुए पूछा
"जनाब ,पहले मैं अंदर आ सकता हु "-डॉ ने अंदाज से कहा
"हाँ जरूर, आइये"-उसी अंदाज के साथ भीखू ने जवाब दिया ,फिर डॉ ने अंदर प्रविष्ट किया ।
भीखू ने दरवाजा बंद किया

"हाँ जी डॉ साहब , अब बताइये कैसे आना हुआ हमारी दहलीज पर "
"बस आपको कुछ याद दिलाने आए है आपकी दहलीज पर "

"बात को लंबी मत बनाओ बस सीधे बको , क्या कहना चाहते हो "

"सरदार, आप पता नही क्यों , लेकिन हमारे बीच हुई बातो को भूल गए है शायद "
"मतलब...!"
"मतलब ये की हमने कहा था कि किसी भी वारदात को अंजाम देते वक्त किसी को जिन्दा छोड़ने की भूल मत करना"

"तुम कहना क्या चाहते हो , माँ कसम अभी तक तो इस तलवार की धार खाली गईं नही "

"तो एक काम करो सरदार , इस तलवार की धार को और मजबूत कर दो क्योकि यह धार अब फीकी पड़ गई है"

डॉ के शब्द ख़त्म होते ही झट से भीखू ने अपनी तलवार निकाली और डॉ की गर्दन से चिपका दी -
"तलवार की धार को कमजोर बताने से पहले महज में एक बात जरूर डाल लेना डॉ , जिस दिन वार खाली गया उसी दिन हथियार छोड़ देंगे .." -भीखू ने अपनी तलवार को हटाकर वापिश म्यान में रख दी - "धार तो अभी बता देते आपको ,बस परिणाम बताने के लिए तुम नही रहोगे समझे"

"रामभज जिन्दा है , जिसका अनाज तुमने दो दिन पहले लुटा था" -डॉ ने तड़ाक से बोल दिया

सुनकर भीखू को यकीन नही हुआ । एक पल के लिए ठहर -सा गया- "ये नही हो सकता ,भीखू का किया हुआ वार कभी खाली नही जा सकता "

"जनाब , हम यकीन से कह सकते है वो जिन्दा बच ही नही सकता" - यह आवाज तीसरे डाकू की थी जो उन दोनों के पीछे बिस्तर पर अभी अभी नींद से उठकर बैठा था ।

वह उठकर उन दोनों के पास आया -
"अब आपको क्या बताये डॉ साहब , इतनी बुरी तरह हाथ पांव काट के फैंके थे की देखने वाले की भी रूह कांप जाये"

"डॉ साहब , धड़ में इतने छेड़ किये थे की चील कौओं को नोचने की जरूरत नही पड़ी होगी" -भीखू ने पुनः बताया

अब डॉ उन दोनों की बाते सुनकर चिंतामय अवस्था में आ गया । डॉ को डाकुओ की बाते झूठ नही लग रही थी , पर जो डॉ ने देखा वह भी झूठ नही था ।
डॉ मकान से बाहर निकल गया
'इसका मतलब .... अमलतास एक सच है ' -डॉ बुदबुदाया

"क्या हुआ डॉ ? " - पीछे पीछे भीखू भी बाहर निकल आया

डॉ ने मुड़कर देखा , डॉ के चेहरे पर खुशी साफ छलक रही थी -"अभी तो कुछ नही हुआ सरदार पर बहुत कुछ होने वाला है"
"तो क्या मैं इस ख़ुशी का कारण जान सकता हु"
"ये ख़ुशी अकेले मेरी नही है सरदार "
"मतलब, मैं कुछ समझा नही "
"मतलब ये सरदार के मेरी खोज अब पूरी होने वाली है "-भीखू के दोनों कंधे पकड़ कर तस्सली से बताया

"अमलतास की खोज ?"

"हाँ सरदार , हाँ .. अमलतास"

पर भीखू ज्यादा खुश नही हुआ - "तो इसमें हमारा क्या फायदा "
यह सुनकर वह खुश चेहरा मुरझाये हुए पौधे की तरह शांत हो गया
"तुमने पूरी जिंदगी में इतना नही कमाया होगा जितना तुम अब कमाने वाले हो " - डॉ ने तीव्रता से जवाब दिया -"पर मैं इस बार हिस्सा नही लूंगा "

भीखू के चेहरे की ख़ुशी बढ़ने लगी - "ऐसी क्या खबर लेकर आये हो इतनी रात को "

"अब गाँव में मेरा काम ख़त्म हो चूका है । मुझे सिर्फ रामभज चाहिए वो भी जिन्दा "
"पर रामभज तो....."
"रामभज जिन्दा है सरदार , अभी कुछ देर पहले उसने गाँव में प्रवेश किया है "
यह सुनकर भीखू के होश उड़ गए-
"पर ये कैसे हो सकता है मैंने तो उसे बुरी तरह..."

"अमलतास की वजह से " - भीखू के शब्दों को बिच में रोककर कहा -" इसका कारण सिर्फ अमलतास ही है , और एक बात , सूना है कि अमलतास की सरण में बहुत सारा खजाना अर्पित है "
सुनकर भीखू की आँखों में चमक बड़ गई

"उसी खजाने से एक कलस भरके रामभज अपने घर लेकर आया है , मैंने यह अपने घर से साफ साफ देखा है"-डॉ ने इच्छुकता से बताया

भीखू सोच विचार करने लगा - "पर आपने एक बात और नही सुनी शायद "
"???.." - डॉ के चेहरे पर प्रश्न चिह्न था

"उस खजाने की रक्षा सेनापति राजीव कर रहा है " - भीखू ने बताया

"मझे यह भी पता है , लेकिन अगर अमलतास तक पहुच गए तो सेनापति का भी प्रबंध करेंगे , सबसे पहले अभी के अभी तुम्हे गाँव को खंडर बनाना होगा । और अगर तुम्हे वो सोने से भरा कलस मिल गया तो पूरी जिंदगी आराम से बैठ कर खा सकते हो बस एक बात का ध्यान रखना , मुझे रामभज जिन्दा चाहिए । उसके बाद तुम अपने रास्ते और हम अपने रास्ते "
- अपनी बातों को विश्राम देते ही डॉ ने अपनी लालटेन उठाई और उस गुप्त अँधेरे की तरफ गमन किया

"सरदार.." - भीखू को पीछे से आवाज आई
भीखू ने घूम कर देखा यह भीखू का ही आदमी था
"बोलो " -भीखू ने जवाब दिया

"हमारे डॉ साहब क्या बताकर गये है "

सुनकर भीखू शैतानी हँसी हँसने लगा -" तुम्हे चिंता करने की जरूरत नही है शागिर्द , डॉ अपने आप को बहुत चालक समझता है , गेहुँ के एक दाने से हमारा पेट भरना चाहता है पर उसे नही पता की आगे क्या होने वाला है"

शेष - भाग 4

" बड़ी ख्वाइश थी सेनापति से मिलने की पर ये न सोचा था कि मैं तुम्हारी ये हालत भी कर पाउँगा " -डॉ ने सेनापति से कहा
जो अभी उसके सामने घुटनो के बल आखरी साँसे गिन रहा था यह वही जगह है जहाँ रामभज का इलाज हुआ था
" नी. च्च्च्च ..तू..म्हे सजा ..तो जरूर मिलेगी " - तड़पते हुए सेनापति राजीव ने कहा
" ओ....तो तुम मुझे सजा दोगे , मैं चाहू तो तुम्हे अभी खत्म कर सकता हु पर अभी बहुत टाइम है । तेरी बकवास थोड़ी देर और सुनुँगा उसके बाद..."

कुछ समय पहले:-

" प्रिय ! मैं जब उस छोटे कमरे से बाहर निकला तब उस दृश्य को देख मेरी आँखों की चमक बड़ गई " - रामभज निरंतर अपनी पत्नी को अमलतास तक पहुचने की कहानी बता रहा था - " यह एक खुला प्रांगण था । उस वक्त शायद मैं एक पहाड़ के अंदर था जिसे अंदर से गोलाकार तरीके से काट कर एक बड़ा होल बनाया गया था । उस हॉल के बीचों बीच एक नदी बह रही थी उस नदी का पानी सामने एक गुफा से होते हुए ठीक उसके सामने वाली गुफा में जा रहा था उस नदी के किनारे कुछ पौधे लगे हुए थे । जो देखने में अति सुंदर थे । कुछ पल के लिए मैं सिर्फ उन्हें ही देखता रहा फिर..."

रामभज अपने उस सफर को अच्छी तरफ बताने के लिए ,कुछ क्षण के लिए उस कहानी में घुस गया

" रामभज ! रामभज ! " - सेनापति ने कहा
" ..हा..! " - मेरा अचानक से ध्यान सेनापति पर गया
" क्या हुआ तुम्हे " -सेनापति ने पूछा
" हे मालिक ! इतने सुंदर दृश्य को मैंने पहले कभी नही देखा "
" उस नदिया किनारे उन पुष्पो को देख रहे हो रामभज "
" हा ..अति सुंदर मेरी तो उन पुष्पो से नजर ही नही हटती "
" वही अमलतास का पुष्प है साथी "
यह सुनकर रामभज ने ज्यादा हेरानीयत नही दिखाई
"मुझे देखते ही आभास हो गया था मालिक । की इतनी सुंदरता से रचित यह अमलतास ही हो सकता है " -रामभज ने पुनः कहा
फिर सेनापति राजीव उस अमलतास के पौधे की तरफ बड़ा , जाते ही उसके पास बैठ गया । अपनी कमर में टँगी एक छोटी शीशी निकली और उसका ढक्कन खोला ।
अमलतास की पात पर पसीना कुछ कुछ क्षण बाद इकट्ठा होकर ,उस पात की नोक से नीचे पानी में बह रहा था
उस शीशी को सेनापति ने उस पात की नोक के नीचे लगा लिया । उसी प्रक्रिया में पसीना नोक से पानी में नही उस शीशी में आ गया । वह शीशी सेनापति ने सीधे रामभज को थमा दी
"ये लो साथी " - सेनापति ने रामभज को कहा

पुनः रामभज विचार करने लगा

" तुम्हे ज्यादा सोचने की जरूरत नही है साथी , इसी पसीने ने तुम्हारी जान बचाई है "

रामभज ने उस छोटी शीशी में डली उस एक बूंद को झट से निगल लिया फिर वह शीशी सेनापति को थमा दी
" मेरे पीछे आओ । साथी " -सेनापति ने कहा

जिस गुफा में पानी जा रहा था । उसी गुफा। की तरफ सेनापति चल दिया । अंदर कुछ कदम चलने पर बाई ही तरफ एक छोटा दरवाजा था , सेनापति उस दरवाजे को खोल कर अंदर चला गया । पीछे पीछे रामभज भी उसी कमरे की तरफ घूम गया ।
रामभज की आँखे फ़टी की फ़टी रह गई जब उसने उस सोने के ढेर को देखा , राम भज हक्का बक्का रह गया उसके सामने उस खुले हॉल से भी बड़ा कमरा था जो सिर्फ अलग अलग सोने की ढेरियों से भरा हुआ था
" रामभज ! रामभज ! " - सेनापति ने रामभज को हिलाया
"..हा..! " - रामभज पुनः होश में आया
" क्या हुआ कहा खो जाते हो बार बार "
" हे मालिक! क्या मजाक करते हो आप भी, मैंने कभी 30₹ से ज्यादा धन नही देखा और आज आपने सोने के ढेर के सामने लाकर खड़ा कर दिया फिर पूछते हो कहा खो गए "

" हाँ.. हाँ. हाँ.." -सेनापति हँसने लगा - " साथी , तुम्हारी गरीबी के दिन गये समझो । मैं तुम्हे यह ढेर सिर्फ दिखाने के लिए नही लेकर आया ,अब तुम सीधे अपने घर जाओगे पर वही गरीब रामभज बनकर नही "

तभी रामभज समझ गया कि वह उसे यहाँ क्यों लेकर आया है - "हे मालिक ! अपनी जिंदगी को मैं इस तरह संवारना नही चाहता इस धन की मुझे कोई जरूरत नही है । आपने मेरे प्राण बचाकर मुझपर बहुत बड़ा एहसान किया है । एक जिंदगी मुझे ऊपर वाले ने दी है और दूसरा जन्म आपने ,हे मालिक ! मैं आपसे वादा करता हु की आपकी दी हुई इस जिंदगी पर आपको एक दिन बेहद खुशी और फक्र मह्सुश होगा । "
" अरे ..अरे ! आप ये क्या कह रहे है । मैंने आप पर कोई अहसान नही किया है , यह मेरा कर्तव्य है जो मैं पूरा कर रहा हूँ पर आपके आदर भरे शब्द सुनकर मैं आपके लिए कुछ करना चाहता हूँ "
"क्या मालिक ! "
"तुम्हे पता है, मैंने बहुत से लोगो का यहाँ पर इलाज किया है । पर जब वो यहाँ से निकलते है उन्हें कुछ याद नही रहता इस जगह के बारे में पर मैं तुम्हारी यह सद्भावना, ईमानदारी और आदर स्वभाव से बहुत खुश हूं , मैं तुम्हे यकीन से कहता हूं कि जब तुम यह से निकलोगे तो तुम्हे यह दृश्य याद रहेगा"

तभी रामभज की आँखों के सामने सब धुन्दला पड़ने लगा अचानक से रामभज की आँखे बंद हो गई । फिर धीरे से आँखे खुलने लगी पर यह वो जगह थी जहाँ रामभज को डाकुओ ने मारा था , सड़क के एक कोने में पड़ा रामभज अभी उठकर बैठा था उसके सामने उसका बैल , गाडी से जुड़ा हुआ था । बैल का मुह गांव की तरफ था
रामभज अब उठ खड़ा हुआ वह बैलगाड़ी के पास गया, उसने देखा की बैलगाड़ी में सोने से भरा कलश रखा हुआ है ।रामभज ने आस पास नजर दौड़ाई पर कोई नही था । रामभज ने कलश को घास फुस से ढक दिया और अपने बैल पर सवार होकर अपने घर की तरफ चल दिया

तभी रामभज उस कहानी से बाहर निकला - " यह मेरे इस पूरे सफर की कहानी थी प्रिय ! " - उसने अपनी पत्नी को बताया

"काश आपके भाई इस वक्त आपके साथ होते , तो वह भी अमलतास की हकीकत सुनकर खुश होते "- रामभज की पत्नी ने कहा
यह सुनकर रामभज रोने लगा
"क्या हुआ जी ? " - रामभज की पत्नी रामभज को संभालने लगी
" प्रिय ! जब भी मैं अपने भाई और अपने परिवार से अलग होने की उस कहानी को याद करता हु तो बहुत दर्द होता है"

शेष भाग :- 5

" सुबह के 10 बज चुके है । जंगल से लकड़िया लेकर आनी थी जी । " - रामभज की पत्नी ने रामभज को कहा

जो इस वक्त अभी चटाई पर लेटा हुआ था । रामभज की पत्नी के हाथ में पानी का लोटा था । उसने वह लोटा रामभज के सिरहाने रख दिया

रामभज अपनी आँखें मलते हुए बैठ गया, लोटा उठाया और दरवाजा खोल कर बाहर मुँह धोने लगा ।

अंदर दरवाजे के पीछे कुल्हाड़ी और आरी रखी थी , रामभज ने कुल्हाड़ी और उस आरी को अपने कंधे पर रख लिया - " जल्दी ही आ जाऊंगा खाना तैयार रखना " - कहते ही रामभज जंगल की तरफ निकल पड़ा

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" जल्दी से अपनी धार को मजबूत बना लो हम बस कुछ ही देर में यहां से हमले के लिए निकलेंगे " - भीखू निरन्तर अपने साथियों के बीच चक्कर लगा रहा था
" सरदार ! घोड़े क...."
" घोड़े आ चुके है तुम चिंता मत करो " - अपने साथी की बात को बिच में काट कर भीखू ने बताया
इस वक्त सभी डाकू अपने मकान के अंदर अपने अपने हथियारों को धार दे रहे थे

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रामभज एक अच्छे से पेड़ को देख रहा था काटने के लिए, पर अभी तक उसे कोई अच्छा पेड़ नजर नही आया पर काफी दूर आ चूका था रामभज ।
फिर रामभज को एक पेड़ दिखा , रामभज बिना अपना समय गवाये उस पेड़ पर चढ़ गया और शुरू होग्या

रामभज को कुछ शोर सुनाई दिया , यह घोड़ो के दौड़ने की आवजे थी पर रामभज को आस पास कुछ दिखाई नही दिया , रामभज उस पेड़ पर और ऊपर चढ़ गया । रामभज ने दूर जंगल में देखा की कुछ डाकू घोड़े पर सवार गांव की तरफ भाग रहे है ।
रामभज की नजर एक मकान पर पड़ी , यह मकान डाकुओ का ही था । पर अभी रामभज को यह नही पता था
रामभज पेड़ से नीचे उतरा, और उस मकान की तरफ चल दिया , रामभज जल्दी ही वहां पहुच गया । रामभज छुपकर मकान के पास गया , मकान को कुण्डी लगी हुई थी , जाहिर था कि मकान में कोई नही था ।
रामभज ने कुण्डी खोली और मकान के अंदर चला गया ।
वहा कोई नही था , सामने डाकुओ के हथियार रखे हुए थे , उसने उन हथियारों को चला कर देखा , अब बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद ,रामभज ने उन हथियारों को वापिश रख दिया , पर रामभज को डर था कि कोई आ न जाए , इसलिए रामभज वहाँ से जल्दी निकलने लगा पर निकलते वक्त रामभज की नजर दोबारा एक पुस्तक पर पड़ी , जो पास की टेबल पर रखी थी । उस पुस्तक पर बाहर भीखू का नाम बड़े अक्षरो में लिखा हुआ था जो दूर से साफ दिख रहा था, रामभज उस पुस्तक के पास गया ।
रामभज ने पुस्तक को खोला उसके पहले ही पेज पर एक नकाबपोश डाकू का चित्र था , उसी पेज पर सबसे ऊपर आत्मकथा लिखा हुआ था ।
रामभज को एक डाकू के जीवन की कहानी पढ़ कर देखना उस वक्त अच्छा लगा । रामभज ने पुस्तक को बंद कर दिया शायद पड़ने के लिए वह जगह अच्छी नही थी इसलिए रामभज ने उस पुस्तक को अपने साथ ले लिया । और उस मकान से निकल पड़ा ।

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सभी डाकू अपने अपने घोड़ो पर सवार , उस ऊंची ढलान पर खड़े थे जहाँ से पूरे गांव का नक्शा नजर आ रहा था ।
उसी तरफ से चलकर डॉ पैदल डाकुओ की तरफ आ रहा था , शायद डाकू इन्ही का इंतजार कर रहे थे । डॉ डाकुओ के पास आकर रुक गया - " सुबह से इंतज़ार कर रहा हु । बड़ी देर कर दी तुमने " -डॉ ने कहा
"जनाब, घोड़ो का इंतज़ार कर रहे थे ... टाइम तो अभी भी बहुत है । अगर पुरे गांव को श्मशान न बना दिया तो मेरा नाम भीखू नही " -एक अंदाज से जवाब दिया

" याद रहे , अपना कर्तव्य मत भूल जाना , पुरे गांव को लूटने के बाद मुझे रामभज सही सलामत चाहिए "

" हे.. हम डाकू है , हमारे सामने कर्तव्य की बात मत किया कर , अभी तक तुझे हमारे बारे में पता ही कहा चला है "

"तो , तुम्हारी इस बात का मतलब क्या समझू , कही धोखा तो ..."
" डॉ साहब ..सोचा तो था हमने, पर तरस आ गया तुम पर " -भीखू ने डॉ के सब्दो को बिच में ही काटकर कहा -" अगर कर भी दे तो तू क्या उखाड़ लेगा हमारा "

" तो कही तुम्हारे दिमाग में कुछ ...और..! "

"समय बलवान है डॉ , फिर भी तुम्हे चिंता करने की जरूरत नही है , हम डाकू है जिसके साथ वक्त गुजार ले , उसे कभी तंग नही करते " - भीखू ने पुनः डॉ के शब्दों को बिच में ही काटकर कहा

यह सुनकर डॉ को डाकुओ पर विसवास हुआ
" तो , शुरू करे .." - डॉ ने कहा

भीखू उस इशारे को समझ गया
" साथियो , बेझिझक टूट पड़ो , याद रखना कोई दया नही कोई रहम नही " - भीखू ने अपने साथियों से कहा

फिर घोड़ों पर बैठे सभी डाकुओ ने अपने हाथ में तलवार थाम ली और गांव की तरफ दौड़ पड़े

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रामभज अच्छी सी जगह देख कर पेड़ के तने के सहारे बैठ गया , रामभज ने उन दो पेज से आगे जब एक पेज को और पलटा , उस पेज पर लिखा हुआ था 'चेतन की आत्मकथा' , तुरन्त रामभज सहम गया क्योंकि यह नाम बचपन में बिछड़े रामभज के भाई का था , सहमे बैठे रामभज की आँखों से ख़ुशी के आँसू टपकने लगे । वह अपनी खुशी किसी को बताना चाहता था पर आस पास कोई नही था

चेतन तो किसी का भी नाम हो सकता है पर रामभज अभी क्यों चोंक गया , जबकि अभी तक तो उस पुस्तक को पढ़ना शुरू भी नही किया ।।

क्योकि रामभज का भाई उसे हमेशा कहता था कि मैं एक डाकू बनुगा और अपनी कहानी को हर रोज एक डायरी में बंद करता रहूंगा

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गाँव में अफरा तफरी का माहौल बन चूका था , डाकुओ ने हर तरफ झोपड़ियो में आग शुरू कर दी । हर घर में घुश कर डाकुओ ने लूटना शुरू कर दिया था , भय से भयभीत लोग इधर उधर अपने बचाव में भाग रहे थे ।
रामभज की पत्नी अपने ही मकान में दुबक कर बैठी थी । मकान के सामने , भीखू और उसका साथी घोड़े पर बैठे ताक लगाये उस बंद दरवाजे को निहार रहे थे ।

" क्या हुआ जनाब ? किस बात का इन्तजार है अब " - भीखू के साथी ने पूछा

भीखू ने अपने साथी की तरफ देखा और रामभज के मकान की तरह बढ़ने लगा , जोर से दरवाजे को एक टक्कर मारी जिससे दरवाजा खुल गया । सामने रामभज की पत्नी दुबक कर बैठी थी पर भिखु की नजरे उस सोने के कलश और रामभज को ढूंढ रही थी । पर दोनों में से भीखू को कोई नजर नही आ रहा था न कलश और न ही रामभज , भीखू ने रामभज की चिंता छोड़ दी , भीखू सीधे जाते ही रामभज की पत्नी के पास बैठ गया

" मुझे पता है , उस कलश को तुमने इस तरह सामने तो रखा नही होगा । कही न कही छुपाकर ही रखा होगा तो मेरा ढूंढने का कोई फायदा नही , तुम जल्दी बता दो कलश को कहा छुपाया है मेरा वादा है तुमसे ...., बहुत ....आसान ...
मोत दूंगा तुम्हे , "

रामभज की पत्नी घबराए हुए जरूर थी पर एक विचार जरूर पनपने लगा मन में की उस कलश के बारे में इन्हें कैसे पता चला होगा, अभी झूठ बोलने का कोई फायदा नही था

" अं.. दर ..वाले ..कम...रे में रखा है । अना..ज की बारी ..के अं..दर " - कपकपी आवाज में रामभज की पत्नी ने बताया

भीखू फटाक से उठा और उस दूसरे कमरे की तरफ चल दिया


शेष भाग - 6

साथियों , तहे दिल से आप सभी से माफ़ी मांगता हूं कि मैं अपनी कहानी के भाग प्रकाशित करने में लेट हो जाता हूं ।
पर काम बहुत हो जाता है , फिर भी मैं जितनी कोशिश होती है उतनी जल्दी आपके समक्ष कहानी रखता हूँ ।

भाग-6

( भीखू की कहानी )

35 साल पहले :-

जंगल के खुले प्रांगण में चिड़ियों की मधुर चहचाहट और कोयल की मधुर वाणी के रश में भीगे हम दोनों (चेतन (भीखू) और रामभज) अवस्था करीब 12 वर्ष ,

अपनी आँखों को बंद किए जमीन से थोड़ी झुकी हुई उस डाल पर बैठे दोनों ,अरण्य के कोने कोने से आ रही उस मधुर आवाज को शांत स्वभाव से सुन रहे थे

" भाई , यहाँ मुझे बड़ी शांति मिलती है, एक प्यारा संगीत बार बार कानो में गूंजता है । काश , मेरा घर इन्ही जंगलो के बीच होता " - मैंने कहा

रामभज हँसने लगा -" हे पागल ! हर रोज की तरह तू ऐसी उद्भावना मत देखा कर जिसे पूरी करने के लिए तुम्हे जिंदगी में सब कुछ बेचना पड़ सकता है , एक मकान तो नही पर झोपडी जरूर बना सकता है " - शीघ्रता से रामभज ने जवाब दिया
" देख तू मुझ पर हँस मत , .." -निरपेक्ष भाव के साथ मैंने कहा

पर रामभज हँसे ही जा रहा था - " चल तेरे मकान बनाने की सोचते है पर , बापू का कर्ज कोन देगा , वो भी तो हमे ही उतारना है । और मेरे हिसाब से पूरी जिंदगी में वो कर्ज पूरा हो जाए तो काफी होगा " - रामभज पुनः हँसने लगने लगा

हम दोनों की वार्तालाप इसी तरह चलती रही पर....

वहाँ परेशानियो के ढेर तले दबे हुए मेरे पिताजी धनानन्द ,
बस नाम ही धनानन्द है पर जिंदगी कर्ज के बोझ तले दबी हुई है ।
जहाँ इस वक्त हम दोनों बैठे हँस रहे थे वही दूसरी तरफ मेरे पिताजी ऋणदाता के समक्ष बैठे अपने हिसाब के बारे में पूछ रहे थे
" क्या फायदा है धनानन्द ? मुझे पता है कि यह कर्ज तू नही उतार पायेगा । फिर भी तेरे लिए मैंने मौका छोड़ दिया था पर अब ...तुम्हे ऋणदास बनना होगा " - सामने बैठे लालची बनिये ने शीघ्रता से कहा

यह सुनकर मेरे पिताजी हेरान हो गए । पर फिर थोड़ा सोचने पर उन्हें समझ आया की ऋणदाता सही कह रहा है वैसे भी इस जिंदगी में इतना कर्ज नही उतर सकता
मेरे पिताजी हलकी हँसी हँसने लगे - " हे मालिक ! मुझे लगता है मेरा यह जीवन परमेश्वर ने आपके लिए ही लिख कर भेजा है "
" सिर्फ तुम्हारा जीवन नही साथी , "

रामभज प्रश्नात्मक भाव से देखने लगा ।

" तुम्हारे बच्चे भी अब जवान हो गए है । धनानन्द " - बनिए ने पुनः कहा
मेरे पापा बनिये का इशारा समझ चुके थे ।

मेरे पिताजी ने उनके समक्ष हाथ जोड़ लिए- " हे दाता ! आपका नौकर बनकर खून का पानी बना दूंगा , ईमानदारी से काम करके, पर ! मेरे बच्चों के भाविष्य को मत उजड़ने दीजिये " - उस वक्त मेरे पिताजी गिड़गिड़ाने लगे ।
सिर्फ हमारे लिए , हमारे भविष्य के लिए पर..

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हमारा मकान बिलकुल मैन गली पर हुआ करता था , एक झोपड़ी ,ठीक उसके सामने 15×15m का खुला आँगन जिसके चारों तरफ जमीन से 4 फुट ऊँची दीवार बनी हुई थी

शाम का वक्त , मैं और मेरा भाई रामभज । दोनों खाना खा रहे थे, मेरी माँ (रजनीदेवी) रह रह कर अपने हाथों से हमे खाना खिला रही थी ।
तभी मेरे पापा बाहर से अंदर प्रविष्ट हुए । मेरे पापा के चहरे के भाव साफ़ बता रहे थे की वह चिंता और गहरी सोच में थे । वह हमारे पास आकर थम्ब के सहारे बैठ गए ।
हम सभी की नजरे मेरे पापा को निहार रही थी ।

" क्या हुआ जी ! " - मेरी माँ ने पिताजी से पूछा
पर पिताजी ने जवाब न दिया , वह अभी भी एक सोच में डूबे हुए थे

"आप बोलते क्यों नही ! " -माँ ने पुनः पूछा
इस बार पिताजी ने ध्यान दिया , वह हम सब को निहारने लगे
" यह कर्ज हमसे न उतर पायेगा प्रिय ! " - शांति से पिताजी ने जवाब दिया - " ब्याज दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है पर.." -धनानन्द कहता हुआ बिच में ही रुक गया
" पर क्या ? " -माँ ने पूछा -"बताइये ! "
" अब हमें उसके घर ऋणदास बनकर रहना पड़ेगा । हम कर्ज़ नही चूका पाएंगे " - मेरे पिताजी ने बताया

और हम सब सोच में पड़ गए ।
" और 'हम' से आपका क्या मतलब है " -मेरी माँ ने पुनः पूछा

" मैं अभी वही से आया हु , और ....###### ..." - बनिये के साथ हुई सभी बाते पिताजी ने विस्तार से बता दी

" तो इसमें मेरे बच्चों का क्या कसूर है "- मेरी माँ ने रोते हुए कहा- " वो समस्या आपकी है आपसे विनती करती हूं मेरे बच्चों का भविष्य खराब मत कीजिये " -मेरी माँ रोती रही

माँ को देख कर पिताजी भी रोने लगे । मैं दौड़ कर अंदर आया और घड़े से एक पानी का गिलास भरा ,
इतने में

" धाय ! ..धाय ..! धाय..! " - ये बाहर से गोली की आवाज थी ।
मैं दौड़ कर बाहर आया ।मैंने देखा मेरे पिताजी , मेरी माँ और भाई तीनो तड़प रहे थे । मेरे हाथ से पानी का गिलास छूट गया और सामने देखा
पाँच घुड़सवार डाकू अपने हाथों में दुनाली लटकाए घर से निकल रहे थे

मैंने रोते बिलखते हुए अपने पापा को संभाला अपने भाई रामभज को देखा जिसने मेरे देखते देखते दम तोड़ दिया , मेरी माँ ने मेरी तरफ हाथ किया पर जब मैं उनकी तरफ बढ़ा तो उन्होंने भी साँसे छोड़ दी । अब तीनो मेरे सामने ढेर हो गए थे मैं चीखता रहा चिल्लाता रहा पर लोग केवल घर के बाहर खड़े यह सब देख रहे थे ।
गांव वालों ने मेरा साथ न दिया । मैंने अकेले ही जलप्रवाह दाग की तैयारी की , मैंने अकेले ही पूज्य पिताजी , मेरी माता , और प्रिय भाई का आपने हाथो से अंतिम संस्कार किया । मेरे आंसू रोके नही रुक रहे थे ।

तब..मैंने जल हाथ में उठाया - " माँ, पूज्य पिताजी , प्रिय भाई मैं ये कसम लेता हूं कि जिसने भी यह हँसता खेलता परिवार खत्म किया है उसे मैं नही छोडूंगा , अब ये चेतन , चेतन नही रहेगा सरदार भीखू कहलायेगा , अब से , अभी से , मैं अपने मन की सहानुभूति और प्यार का त्याग करता हूँ "

तभी मैं उन पांचो को मारने की तरकीब सोचने लगा । पर दिमाग से काम लेकर मुझे पहले ट्रेनिंग की जरूरत थी और ये पता लगाना था कि उन्होंने मेरे परिवार को क्यों मारा

अब ट्रेनिग के लिए ये देखना था कि ऐसा कोन हो सकता है जो ऐसी ट्रेनिग दे की डाकुओं को पीछे छोड़ा जा सके । तभी दिमाग ने काम किया ।
जंगल का वह इलाका जहा पर पिताजी जाने से रोकता था क्योंकि वहाँ भील रहते थे । भील एक बार जिसे पकड़ ले तो उसका बचना बहुत मुश्किल था । वह बहुत फुर्तीले और आवाज पर निशाना लगाने में माहिर होते है , उनकी युद्ध कला अत्यंत रोचक है ।
पर अभी यहाँ एक समस्या और थी , क्या वो मेरी बात सुनेंगे , क्या मैं वहाँ जाकर वापिश आ पाउँगा ।
इन बातों को सोचता हुआ मैं उसी जगह आ गया जहाँ पर मैं और मेरा भाई रामभज बैठ कर बाते किया करते थे ।
आराम से मैं उस झुकी हुई डाल पर बैठ गया । पुनः मेरे दिमाग ने काम किया और एक तरकीब सूझी ,
पौराणिक किताबो के अनुसार भील इंसान को पकड़ कर उनके गुरु के सामने बलि देते है । अब शर्ते ये है कि वह उस इंसान को वापिश छोड़ देते है जिसके शरीर का कोई हिस्सा कटा होता है । अब मुझे एक बहुत बड़ा रिश्क लेना होगा , मुझे मेरी ऊँगली काटनी होगी ।

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रामभज ने रोते हुए पुस्तक को बंद कर दिया - " भाई काश तूने जलप्रवाह दाग देने से पहले एक बार , सिर्फ एक बार , मेरे दिल की धड़कन महशुस की होती " - रामभज ने बुदबुदाते हुए कहा

तभी रामभज को गांव की तरफ कुछ आवाज सुनाई दी ।
रामभज ने उस पुस्तक को अपने पास रख लिया और अपनी कुल्हाड़ी और आरी को उठा गाव की तरफ चल दिया ।

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भीखू ने अंदर वाले कमरे में कदम रखा सामने सीधे उस अनाज की बारी पर नजर गई , भीखू ने उस बोरी को उधेड़ के रख दिया फिर उसमें वही सोने का कलश निकला ।
उसे लेकर भीखू रामभज की पत्नी के सामने खड़ा हो गया और अपनी तलवार निकाल ली - " अगर तुम्हारे पति का नाम रामभज न होता तो अब तक तुम्हारे टुकड़े टुकड़े कर चुका होता " - यह कहकर भीखू और उसका साथी कमरे से बाहर निकल गया

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जंगल की उस ऊँची पहाड़ी से नीचे उतरते हुए रामभज ने गाँव की तरफ नजर दौड़ाई, जहा से पूरा गांव साफ़ नज़र आ रहा था , झोपड़िया जल रही थी , लोग इधर उधर भाग रहे थे, रामभज अचंभित हो गया , रामभज जल्दी से अपने गाँव की तरफ दौड़ा ।
रामभज खाक होती हुई उन झोपड़ियो की गली से गुजरा , अब न कोई डाकू था और न ही लोगो में अफरा तफरी थी , बस अपने जलते हुए मकानों को देख कर सभी रो रहे थे , इनकी तरफ ध्यान आकर्षित न करते हुए रामभज सीधे सीधे अपने घर पहुंचा , दरवाजा खोलते ही सामने ....

to be continue....

शेष भाग -7
रामभज की पत्नी कमरे में नही थी , घबराहट के साथ रामभज ने दूसरे कमरे में देखा , तब वहा रामभज को साँस मिली , रामभज की पत्नी उस बिखरी हुई अनाज की बोरो को इकट्ठा कर रही थी , रामभज ने ध्यान दिया की यह वही बोरी है जिसमे सोने का भरा कलश था

" तुम ठीक तो हो " -रामभज कहते हुए अपनी पत्नी के करीब आया
तब पत्नी ने ध्यान दिया
" आप आ गए " -पत्नी ने पूछा - " पता नही उन्हें इस कलश की भनक कैसे लगी , पुरे गाँव को तबाह कर दिया , एक पल में खंडर बन गया सब कुछ "-पत्नी ने पुनः बताया

" प्रिय ! आज जीवन की बहुत बड़ी खुशी मिली थी । पर पता नही उस ख़ुशी में झुमु या अपने लुटे हुए गाँव का दर्द महसूस करु , ....."

एक पल के लिए रामभज की पत्नी सोचने लगी । फिर उसकी नजर रामभज के हाथ थमी उस किताब पर गई

" ये आपके हाथ में किताब कैसी है " - रामभज की पत्नी ने पूछा
रामभज ने किताब की और देखा - " यही वो किताब है प्रिय , जिसने मुझे मेरे भाई तक पहुचने का रास्ता दिखाया है । "

पर यह पहेली रामभज की पत्नी को समझ नहो आ रही थी - " पर आपके भाई तो...."

" हां प्रिय ! किंतु वो अभी तक जिन्दा है । यह किताब खुद उसने लिखी है । जिसने इस गांव को लूटा है उन्ही लुटेरों में एक मेरा भाई है प्रिय ! " - अपनी पत्नी के शब्दों को बिच में रोककर बताया

" आप जरूर किसी धोखे में है , मतलब ..,आपके भाई एक.....डाकू "

" हां प्रिय, वह डाकू ही है " - रामभज ने अपना मुह फेर लिया -" बचपन में ही उसकी एक आशा थी की वह जंगल में घर बनाये , और आज उसका मकान जंगल के बीचों बीच है " - रामभज वही जमीन पर बैठ गया - " प्रिय ! मैं अपने भाई के पूरे सफर को जानना चाहूंगा " - रामभज ने वह पुस्तक खोली

रामभज की पत्नी भी रामभज के पास बैठ गई

०००

" कहा भागे जा रहे हो भीखू सरदार " - डॉ ने डाकुओ का रास्ता रोक कर पूछा
भीखू अपने घोड़े से उतरा - "मुझे पता था डॉक्टर की तुम बिच में जरूर आओगे " - भीखू ने कहा

डॉ की नजर सीधे उस भरे हुए सोने के कलश पर गई जो भीखू के हाथ में था - " तो लूट लिया पूरा गांव तुमने , पर शायद मुझे भूल गए " - डॉ , भीखू के करीब आकर खड़ा हो गया - " मुझे रामभज चाहिए । " - डॉ ने कहा

" तो जा पकड़ ले उसे , मुझे तो नही मिला "

यह सुनकर डॉ समझ गया कि अब ये उसकी बात नही सुनेंगे
- " भीखू , तुम अपनी जुबान से मुकर रहे हो "

" अबे काहे की जुबान ! तुझे बोला था ना , डाकुओ से दोस्ती नही , चल अब निकल "

डॉ का गुस्सा बढ़ने लगा - " अबे साले ! " - डॉ ने भीखू का गिरेबान पकड़ लिया - " तुझे इतना सारा माल दिया , और मैंने कुछ नही माँगा और तू टपोरी साला गद्दारी करता है "

धीरे से नजर झुका कर भीखू ने अपने गिरेबान को झांका फिर कड़वी नजरो से डॉ को देखने लगा ।
जोर से भीखू ने एक झापड़ डॉ के कान तले रख दिया , डॉ खड़ा सिर्फ देखता रहा

" अभी तो सिर्फ झापड़ मारा है , पर अगर कुछ देर और यहाँ खड़ा रहा तो अभी तक तलवार की धार में रस बचा हुआ है । आशा करता हु के समझ गए होंगे "

" सरदार , झमेला खत्म करो , बहुत कुछ जानता है ये हमारे बारे में " - यह उन्ही डाकुओ में से एक की आवाज थी

इतना सुनते ही डॉ अपने झापड़ वाले गाल को हाथ लगा वहाँ से भागने लगा ।
भीखू ने यह दृश्य देख - " अबे क्यों डरा दिया सालो ! कुछ देर और रुक जाते , प्यार से बलि देते , अभी , पकड़ना पड़ेगा हरामी को " - भीखू ने अपने साथियों को ऊँची आवाज से कहा

०००

डॉ कही छिपते छुपाते एक पेड़ की जड़ के नीचे छुप गया जो जड़े जमीन के ऊपर से फैली हुई थी ।
डॉ डर से गंभीर अपने पशीने पोछने लगा तभी ..
भीखू ने डॉ का गिरेबान पकड़ कर डॉ को बाहर निकाला
- " कितना दोड़ायेगा बे ..! " - इसी के साथ एक जबरदस्त पंच भीखू ने डॉ के थोबड़े पर घुमा दिया

डॉ सीधे सामने भीखू के साथियों के बीच जा गिरा ।
डॉ ने नजर उठाई देखा तो सभी डाकुओ ने उसे चारो तरफ से घेरा हुआ है , सभी के हाथ में तलवार जो उसे ही निहार रही थी
" क्यों रे डॉ साहब ! कैसा लग रहा है " - भीखू ने पूछा

डॉ ने भीखू की तरफ देखा - " तूने आखिर अपनी जात दिखा ही दी भीखू , मुझे तो मरना ही है पर फिर भी जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है के तेरी मोत मेरे हाथों लिखी है भीखू " - डॉ ने बेखोफ होकर कहा
" हाँ..हाँ.. हाँ ..! " -भीखू जोर से हँसने लगा - " कमाल कर दिया यार तूने , मौत के मुँह में खड़ा है और बाते मुझे खत्म करने की .."
" खत्म करो रे इसे ! " - भीखू ने पुनः कहा और अपना मुँह एक तरफ फेर लिया
पर जब पुनः भीखू ने घूम कर देखा तो वह चकित रह गया ।
डॉ भीखू के साथी की तलवार छीन उनसे मुकाबला कर रहा था ।
डॉ सभी डाकुओ से टक्कर ले रहा था

" हे...! " - भीखू ने ऊँचे स्वर में कहा

सभी रुक गए - " क्या लड़ता है रे तू , ....चल , मैं भी देखु कितना बड़ा तलवारबाज है तू " - अपनी तलवार निकाल कर भीखू डॉ की तरफ बढ़ने लगा "

" चल तेरे लिए खुला चान्स " - भीखू ने पुनः कहा और अपनी तलवार फैंक दी - " मैं बिना हथियार के तुमसे लड़ूंगा " - भीखू ने कहा

डॉ ने अपनी पोजिशन ले ली -" कभी ओवर कॉन्फिडेंस नही होना चाहिए सरदार " - डॉ ने कहा और तभी तलवार के साथ भीखू की तरफ दौड़ पड़ा

" भगवान् तुम्हारी आत्मा को शान्ति दे । " - भीखू बुदबुदाया
डॉ के पास आते ही अपनी फुर्ती से भिखु ने तलवार छीन कर सीधे डॉ की गर्दन में घुसा दी
डॉ की आँखे फट गई और आह.! तक न निकली , डॉ वही ढेर हो गया
" बहुत बड़ी - बड़ी बातें कर रहा था साला " - बुदबुदाते हुए भीखू ने तलवार अपनी म्यान में वापिश रख ली

" सरदार ...! " - डाकुओ में से एक ने कहा

" क्या ? " - भीखू ने पूछा

" क्या रामभज सच में जिन्दा है ? कहि ये साला डॉ हमे ऐसे ही गोली दे रहा हो "

भीखु ने सुनकर एक तरफ मुँह फेर लिया - " नही रे , ये सच कह रहा था , अगर रामभज वाली बात झूठ होती तो ये सोने का कलश भी हमे न मिलता "

" जनाब , सबसे बड़ी बात तो हमारे लिये ये है कि वो कैसे बचा होगा "
" तुम सही कहते हो शागिर्द । अगर रामभज जिन्दा है तो हमारे लिए सबसे बड़ा खजाना वो दवा है जिसने रामभज को जिन्दा किया और उस दवा के बारे में सिर्फ रामभज ही जानता है "

" जनाब , सुना है उस दवा का नाम अमलतास है और जहाँ ये दवा है वहाँ बहुत सारा खजाना भी है "

यह सुनकर भीखू की आँखों में चमक बढ़ गई - " तुमने सही सुना है शागिर्द , अब हमें रामभज को ढूंढना होगा । "

०००

धीरे से आँखे खुली , धुन्दलापन धीरे से आँखों के सामने से दूर हुआ ,अजीब से कमरे में अपने आप को देख कर डॉ की उत्सुकता बढ़ने लगी ।
यह वही कमरा था जहाँ रामभज का इलाज हुआ था
डॉ ने अपने आप को देखा , गर्दन पर अब कोई तलवार का निशान नही था वह अचंभित था अपने आप को सुरक्षित देख कर
फिर एक आदमी ने उस छोटे कमरे में प्रवेश किया - " अरे ! कमाल है , बड़ी जल्दी होश आ गया आपको " - अंदर आते ही कहा
यह सेनापति राजीव थे

शेष भाग :- 8

रामभज ने भीखू की कहानी आगे जानने के लिए उस पुस्तक को खोला और वही दोनों ( रामभज , रामभज की पत्नी ) बैठ कर भीखू की आत्मकथा का वही पृष्ठ खोला जहा रामभज ने उसे अधूरा छोड़ा था ।

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मेरे हाथ में तेज धार वाला छुरा था , मैंने अपनी एक ऊँगली टेबल पर बलि के लिए तैयार की , मैं अपनी ऊँगली नही काटना चाहता था पर मेरे परिवार की वह तड़प मेरी आँखों के सामने झलक रही थी , उन डाकुओ से इंतकाम लेने की आग लगातार बढ़ती ही जा रही थी
मैंने धड़ाम से वह तेज धार वाला छुरा अपनी ऊँगली पर चला दिया , मैं दर्द से कराह उठा पर उस वक्त के जनून की वजह से वह दर्द मुझे ज्यादा दर्द न दे सका ।

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मैं लगातार जंगल की गहराई में बढ़ रहा , मेरे मन में कोई खोफ नही था पर आज पता नही क्यों जंगल शांत लग रहा था , जानवरो और पशु पक्षियों की वह मधुर आवाज जो मैं रोज सुनता था वो आज सुनाई नही दे रही थी ।

मुझे 2 घण्टे हो गए चलते चलते पर मुझे कोई नही दिखा , उस पल मुझे लगा की शायद मेरे पापा मुझे भीलो के बारे में एक बनावटी कहानी सुनाते थे ।
मैं थक हार कर एक वर्क्ष की छांव में बैठ गया ।

" ये जंगल का खतरनाक इलाका है बेटे , तुम्हे यहाँ नही आना चाहिए "

मैंने छट से घूमकर देखा , ये एक बूढ़े बाबा थे जो अपनी लाठी के सहारे चल रहे थे , मैंने सांस ली और मेरा डर कम हुआ

" पर बाबा , अगर ये जंगल खतरनाक है तो आप यहाँ क्या कर रहे है " - मैंने पूछा
वो थोड़ी देर तक चुप रहे ।

" बेटे ! " - मुझे कहते हुए मेरे पास बैठ गए - " मुझे डर नही लगता , पर तुम्हे बता दू , इस जंगल के इस इलाके में कदम रखने के बाद बहुत कम लोग वापिश जाते है " - बाबा ने बताया

" ऐसा क्या है बाबा इस जंगल में ? " - मैंने आश्चर्यचकित होकर पूछा

बाबा हँसने लगे
" तुम यहाँ आये किसलिए हो ! बताओ तो सही " - हँसते हुए बाबा ने पूछा
" बाबा ! ...सच बताऊ तो .." - उस वक्त मैं बातो के लिए धीर हो गया था

तभी बाबा का चेहरा अचानक से सीरियस हो गया । मानो उन्हें कुछ सुनाई दिया हो ।
मैंने चारो तरफ देखा पर कोई नही था

" क्या हुआ बा..." -मैंने पूछना चाहा पर

बाबा ने मेरी गर्दन को झटाक से नीचे झुका दिया और एक तीर सीधे मेरे पास से होते हुए पीछे पेड़ में घुस गया
मैं उस वक्त घबरा गया था ,
बाबा खड़े हो गए , चारो तरफ से भीलो का झुण्ड निकलकर सामने आया , उन्होंने हमें घेर लिया

" बहुत दिनों बाद किसी ने हिम्मत की है इस इलाके में आने की " - एक भील सामने निकलकर आया उसने कहा

" ये एक बच्चा है सुधन " - बाबा ने कहा
और मैं हैरान हो गया , बाबा को उस भील का नाम पता था

" आचार्य जी , हमारे लिए हमारा काम ही हमारा सबसे बड़ा धर्म है । " - भील ने जवाब दिया
और एक बार फिर मैं हैरान हुआ , पर मुझे इतना तो पता चल चुका था कि दोनों की आपस में पुरानी जान पहचान है

" मैं चाहता हु तुम इस वक्त यहाँ से चले जाओ, मेरी आज्ञा का पालन हो " - पुनः बाबा ने कहा
" जो आज्ञा आचार्य जी ! पर आप ये मत भूलना आचार्य जी की इस इलाके में कदम रखने के बाद आज तक कोई वापिश नही गया है , और इस रीत के मुताबिक ...ये बच्चा भी वापिश नही जाना चाहिए । आपने ही हमे सिखाया है "
" तुम भली भाँति जानते हो , मैंने तुम्हे आज्ञा का पालन करना भी अच्छी तरह सिखाया है सुधन ! "
इतना सुनते ही सुधन समझ गया , और मेरी तरफ कड़वी दृष्टि से देखते हुए वापिश घूमकर चला गया

और मैं अब बाबा को आश्चर्यचकित होकर देखने लगा , बाबा भी मुझे ही निहार रहे थे , मेरे चेहरे के भाव देख कर बाबा समझ चुके थे

" तुम मुझे ऐसे मत देखो बेटे ! ..जो तुमने देखा वो बिलकुल सही देखा है " - बाबा ने मुझे बताया

" इसका मतलब आप ही इन सभी के गुरु है बाबा "
" हाँ बेटे ! ... पर अब नही "
" अब नही , मतलब ..? "
" बस इसके पीछे भी एक कहानी है बेटे ...खेर छोडो , ...तुमने अभी तक बताया नही .. आप यहाँ किसलिए पधारे है "
और मैं एकदम चुप .. मेरे चेहरे के भाव गहरी सोच में थे
" क्या हुआ बेटे ! .. तुम जवाब क्यों नही देते " - सहसा बाबा ने पुनः पूछा
फिर मेरा ध्यान बाबा की तरफ हुआ - " बाबा ... मुझे पता है कि यह इलाका बहुत खतरनाक इलाका है । पर मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नही था " - मैं धीर भाव से बोले जा रहा था - " मेरे पुरे परिवार में मैं बस इकलौता जिन्दा बचा हूँ "
" हे राम ! ऐसा क्या हुआ आपके परिवार के साथ " - साहस उन्होंने पूछा
" बाबा ! ... मेरे परिवार को डाकुओ ने खत्म कर दिया । " - अपने शब्दों के साथ मैं सुबक सुबक कर रोने लगा

" बेटे ! " - उन्होंने मेरा सर पुचकारते हुए कहा - " मैं तुमसे यह पूछ कर तुम्हारा दिल नही दुखाना चाहता था , मुझे माफ़ कर दो "
" नही बाबा ! " - मैंने अपने आँशु पोंछे - " आपको माफ़ करने वाला मैं कोन होता हूं , पर सच में बाबा मैं आपसे मिलकर बहुत खुश भी हु " -
" मैं भी तुमसे मिलकर बहुत खुश हु बेटे ..पर मुझे अब भी समझ में नही आया , क्या तुम्हे यही इलाका मिला था अपने आप को कुर्बान करने के लिए "
" अरे नही बाबा ! " - मैंने झट से कहा - " मैं यहाँ कुर्बान होने नही आया हूँ , बल्कि मेरा एक खास मकसद है यहाँ आने का "
" मकसद..? " - बाबा ने प्रश्नात्मक भाव से पूछा
" हाँ बाबा , मैं चाहता हु की यहाँ भीलो से मिलकर उनसे मैं उनकी कला सीखू और उन डाकुओ से बदला ले सकू । पर पता नही वो मुझे सिखाएंगे भी या नही "
पर यह सुनकर बाबा शांत हो गए
" बेटे ! ......वो तुम्हे नही सिखाएंगे "
मैं थोड़ी देर के लिए अपने शब्दों के ठहराव में था
" पर क्यों बाबा " - फिर मैंने पूछा
" क्योकि भीलो की कला केवल भील सदस्य ही सिख सकते है , ये कबीले का नियम है " - बाबा ने पुनः बताया

बाबा की इस बात को सुनकर मैं बहुत उदास हुआ
" बाबा ! क्या मेरे गिड़गिड़ाने पर भी वो नही सिखाएंगे "

" बेटे .! ये नियमो के बड़े सख्त होते है । अपने नियमो को ये किसी भी हालात पर नही तोड़ेंगे "

" बाबा ..! " - मैंने उनके सामने हाथ जोड़ लिए - " आपसे विनम्र निवेदन है कि बस मुझे आप उस कबीले तक पहुचा दीजिये "

" नही ! " - उन्होंने तड़ाक से जवाब दिया - " मैं तुम्हे बचाने की कोशिश कर रहा हूँ और तुम आत्महत्या करने पर तुले हो , वो तुम्हे कुछ कहने का मौका नही देंगे , तुम्हे देखते ही निशाना आर पार होगा "

" पर फिर भी बाबा , मैं कोशिश करूंगा " - आत्मविश्वास के साथ मैंने जवाब दिया

अगले भाग का मुख्य सीन ....

भील मेरे चारो तरफ खड़े थे ,मैं एक चबूतरे पर रस्सियों से एक खम्बे से बंधा हुआ था , बाबा मेरे सामने अपने धनुष से मुझ पर निशाना लगाए खड़े थे , साथ ही भीलो ने भी मुझ पर अपना निशाना साध रखा था

बाबा ने तीर छोड़ा और तीर सीधा मेरी छाती में घुस गया , साथ ही उन सभी भीलो ने मुझ पर तीरों की बरसात कर दी , मैंने अपनी आँखे बंद कर ली

शेष भाग :- 9

हम कबीले के पास पहुचे , यह एक चार दिवारी के अंदर कबीला था जिसका एक मुख्य गेट था
हम कबीले के अंदर दाखिल हुए , अभी हम एक गली से गुजर रहे थे यहाँ बहुत भीड़ थी गली के दोनों तरफ झुग्गियां(झोपड़िया) थी , यह गली किसी बाजार की तरह थी । एक बूढ़े बाबा धनुष के लिए नुकीले तीर बना रहा था एक छोटा लड़का उस बाबा की मदत कर रहा था और मेरी दाई तरह की कतार में अलग अलग तरह का माँस लटक रहा था ठीक उसके सामने कुछ भील उस माँस को अग्नि में पका आनंद ले रहे थे ।
मैंने उन अंकल को भी देखा जो लोगो को अपनी और आकर्षित करने के लिए जोर जोर से आवाज लगा रहा था -
" हर दर्द की दवा ...हर रोग का इलाज आइए ..आइए ! " -वो अंकल बार बार पुकार रहे थे उनकी झुग्गी के सामने कुछ टोकरियों में अलग अलग पेड़ पौधों के पत्ते और जड़े थी
जैसे जैसे हम चल रहे थे भीड़ बढ़ रही थी , मैं रुक गया , यहाँ बहुत जबरदस्त सांप और नेवले की लड़ाई हो रही थी भील उस तरफ अशरफिया फैंक रहे थे और एक आदमी उन अशर्फियों को इकट्ठा कर रहा था ।
सच में ऐसा सूंदर दृश्य मैंने पहले कभी नही देखा था
" लगता हैं, पहले इन सब क्रीड़ाओं से परिचित नही हो तुम ! " - बाबा ने मेरे चेहरे को देख कर कहा
पर मैं अभी भी उस रोचक खेल को देख रहा था
" बाबा ! ,सच बताऊ तो मैं कभी अपने गाँव से बाहर निकला ही नही । सुना है ये सब क्रीड़ाए शहर में होती है , पर आज आपने मुझे यह सब दिखा कर मेरे मन की आकांक्षा को पूरा किया है " - मैंने उस लड़ाई को देखते हुए जवाब दिया
" तो अब क्यों न आगे बढ़े , यह सब देखने के लिए तुम्हारे पास बहुत टाइम है , पर सबसे पहले हमें सरदार से मिलना होगा " - बाबा ने पुनः कहा
और हम आगे चल दिए ,
इसी भीड़ से निकलकर सामने अब एक बड़ा तंबू था , जिसके ठीक सामने दो भील भाले के साथ पहरे पर थे

बाबा ने मुझे रोका - " ये हमारे सरदार का दरबार है, तुम्हे यहाँ जाने की अनुमति नही होगी , तुम यही रुको मैं अंदर जाकर बात करता हूँ "
और मैंने इशारे से गर्दन हिला कर हामी भर दी

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बाबा अंदर दाखिल हुए , इस दरबार का दृश्य अंदर से और भी सुंदर था सरदार सामने ऊँची गद्दी बैठे हुए थे , मंत्रीवर सरदार के पास ही बैठा हुआ था , अभी बहुत से सज्जन सभा में विराजमान थे

मानो किसी मुद्दे पर बहस चल रही हो

" पर फिर भी सरदार , आचार्य जी ने उस बच्चे को बचा कर हमारे नियमो की अवेहलना की है " - उस सभा में सबसे आगे बैठे सुधन ने जवाब दिया

बाबा को समझ आ गया था कि इस सभा का मुख्य कारण क्या है

" यह फैसला तुम्हारी इस बात पर नही हो सकता सुधन , की बाबा ने उस बच्चे को बचा कर हमारे नियमो को तोड़ा है , आचार्य जी 50 वर्षो से लगातार हमारे कबीले के वफादार रहे है , अगर उन्होंने उस बच्चे को बचाया है तो जरूर ही इसका कोई मुख्य कारण रहा होगा " - सरदार ने ऊँचे स्वर में जवाब दिया
" सरदार ऐसा क्य..."
" आपने सही कहा सरदार , इसका भी एक मुख्य कारण है " - सुधन की बात को बिच में ही काट कर बाबा ने कहा

सभी का ध्यान आचार्य जी पर गया
" यह सुधन मेरी सिखाई हुई हर कला में उत्तीर्ण रहा पर न जाने क्यों यह भूल जाता है कि शिकार करने से पहले अपने शिकार की परिस्थिति देख लेनी चाहिए " - अपने शब्दों के साथ लगातार आचार्य जी आगे बढ़ते रहे
" सरदार , अगर वह तीर उस बच्चे को वही ढेर कर देता तो..हमारे नियमो की जरूर अवेहलना होती " - रुककर आचार्य ने पुनः कहा
" अपनी बात को पूर्ण रूप से स्पष्ट करे आचार्य जी " -सरदार ने पूछा
" सरदार ! उस बच्चे की ऊँगली कटी हुई थी , और हमारे तीर किसी दोषी अपराधी को निशाना बना सकते है परंतु उसे कभी नही भेद सकते जो पूर्ण शरीर के आभाव में है "
कुछ पल के लिए आचार्य जी शांत हुए - " अब जरा , इनसे भी पूछिये सरदार ! इस गलती की ये क्या सजा लेना चाहेंगे " - बाबा ने पुनः कहा
" सुधन ये क्या हो रहा है ? " - सरदार ने ऊँचे स्वर में कहा
" सरदार ..! " - इसी शब्द के साथ सुधन अपने स्थान पर खड़ा हो गया
" हम पहले भी तुम्हारी गलतियों को माफ़ कर चुके है सुधन ! और तुम बार बार ..."

" माफ़ कीजियेगा सरदार " - सुधन ने बिच में टोंका - " पर जो सम्पूर्ण शरीर के आभाव में होता हैं हम उसे कैद कर लेते है और जरा आचार्य जी से भी पूछ लीजिये सरदार , क्या उन्होंने उस बच्चे को जिन्दा पकड़ कर अपना फर्ज पूरा किया है " - सुधन ने आचार्य जी पर ताना कसते हुए कहा

" तुम कुछ ज्यादा ही लॉप लगाने लगे हो सुधन मुझ पर ! "

" पर आचार्य जी , क्या आपने ऐसा किया है " - आचार्य जी की बात पर सरदार ने पूछा
" सरदार ! वो बच्चा तो मेरे साथ आया हुआ है पर ....कैदी बनने के लिए नही "
" तुम कहना क्या चाहते हो " - सरदार ने हल्के क्रोध के साथ पूछा
" मतलब ये सरदार की , मैं उसे यहाँ एक योद्धा बनाने के लिए लेकर आया हु "

बाबा के इन शब्दो से सभा में सनसनी हो गई

" सरदार , वह बच्चा भटकते हुए यहाँ नही पहुंचा , बल्कि उसके परिवार के साथ एक दर्दनाक हादसा हुआ है और उसका बदला लेने के लिए वह हमारी कला सिखने के लिए हमारे पास आया है "

" आपका दिम्माग तो ठीक है आचार्य जी "- गुस्से के साथ सरदार गरजे - " आप ऐसा सोच भी कैसे सकते है , आप अच्छी तरह जानते है हम हमारे कबीले की कला को हमारे कबीले तक ही रखते है , फिर भी .."

" सरदार , आपका गुस्सा जायज है लेकिन मैं सोच चूका हूँ मुझे उस बच्चे की बातों पर पूरा यकीन है । यदि आप मना करोगे तो मुझे विवशता से ....... कार्णिक की मदत लेनी होगी " - बाबा के चेहरे पर जरा भी शिकन नही थी

( कार्णिक इस कबीले की एक योद्धा है जिसे 2 साल पहले कबीले से निकाल दिया गया था क्योंकि एक स्त्री होकर उसने धनुष उठाया था और यह कबीले के नियमो के विरुद्ध था । जल्द ही कार्णिक पर एक अलग से उपन्यास प्रकाशित होगा )

" सरदार , क्या हमारे इतने बुरे दिन आ गए की अब हमें हमारी कला का प्रदर्शन बाहर करना पड़े " - सुधन ने कहा

सरदार कुछ देर के लिए शांत हो गए

" हम उसे जरूर सिखयेगे आचार्य जी , लेकिन .."

" पर सरदार .."
" विराम ! " - सरदार ने सुधन के शब्दो को बिच में ही रोका

" ' लेकिन ' क्या सरदार ? " - आचार्य ने पूछा
" कुछ बाते आपको भी हमारी माननी होगी और हम सबसे पहले उसे दो दिन तक परखना चाहेंगे । आपको उस बच्चे पर पूरा विस्वास है लेकिन हमे नही । "

" मुझे मंजूर है सरदार जी " - आचार्य जी ने खुशी खुशी हामी दी
अब सुधन का तो सारा खून ही खोल उठा यह सुनकर

" और एक बात .." - सरदार पुनः बोले - " दो दिन के दौरान अगर इस बच्चे ने कोई भी गलत हरकत या कुछ नियमो के विरुद्ध किया तो सजा केवल मौत होगी "

एक पल के लिए आचार्य जी यह सुनकर ठहर गए। पर उन्हें उस बच्चे पर पूरा विसवास था

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शाम का वक्त, सुधन मदिरे के नशे में चूर । सुधन का प्रिय मित्र रुद्र , रह रह कर सुधन के मदिरे का प्याला भर रहा

" पता नही क्यों पर बार बार ये आचार्य मेरे सामने दीवार बनकर खड़ा हो जाता है " - और सुधन ने उस प्याले को होठो से लगा झट से खत्म कर सामने उस मेज पर धड़ाम से रख दिया- " मित्र , मेरी मदद करो । मैं आचार्य का नाम खत्म करना चाहता हूँ । मुझे जलन होती है जब कोई उसे आचार्य , जी कहकर पुकारता है "

" धैर्य रखिये उस्ताद ! जिस तरह आपने आचार्य की गद्दी को छीन लिया उसी तरह जल्द ही उसके नाम को भी छीन लेंगे "- रुद्र ने जाम को भरते हुए जवाब दिया

" पर कब आएगा वो दिन "

" एक और ...छल ! ... की तैयारी कीजिये उस्ताद "

इसी के साथ , एक और प्याले को ख़त्म कर सुधन ने धड़ाम से टेबल पर पटक दिया

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" आप बताते क्यों नही बाबा ! क्या कहा उन्होंने ? "

" बता तो दिया ! इजाजत दे दी तुम्हे यहाँ रहने की , और क्या " - अपने तम्बू में चेतन का बिस्तर तैयार करते हुए बाबा ने बताया
" बस इतना ही ? उन्होंने विरोध नही किया मेरे यहाँ रहने पर "
- चेतन ने पूछा
" यहाँ बैठ जाओ " - बाबा ने बिस्तर तैयार कर दिया

चेतन अपने बिस्तर पर बैठ गया
" हाँ किया , पर ये बाबा था ना , मना लिया सरदार को " - बाबा ने अंदाज से बताया
" इसका मतलब , कल मुझे सिखाया जाएगा "

बाबा चुप हो गए - " नही , "

" है...." - चेतन के चहरे पर प्रश्नात्मक भाव थे - " तो इजाजत क्या मिली बाबा । "

बाबा जोर से हँसने लगे -" अरे ! इजाजत मिल चुकी है । दो दिन तक तुम्हे यहाँ के कायदे कानून समझाए जाएँगे , उसके बाद तुम्हारा अभ्यास शुरू होगा । ये दो दिन तुम्हे सुधन के साथ निकालने होंगे , वो तुम्हे पुरे कबीले के नियम समझा देंगे"
" पर बाबा ! आप क्यों नही ? " - प्रश्नात्मक भाव से चेतन ने पूछा
बाबा चेतन के दिल की बात समझते थे - " क्योकि मैंने सीखना और समझना छोड़ दिया है । कुछ साल पहले "

" कुछ साल पहले ऐसा क्या हुआ था बाबा ..? "

" आचार्य जी , गुरु जी इन्हें बुला रहे है " - यह द्वार पर खड़ा एक भील सैनिक था उसने चेतन की तरफ इशारा करते हुए कहा

" चलो भई ! अभी तो आपका बुलावा आ गया है , फिर कभी फुर्शत में आपको यह कहानी भी जरूर बताएंगे " - बाबा ने बड़े ही इतमिनाम से चेतन को समझाया

" मुझे उस पल का बेसब्री से इन्तजार रहेगा बाबा ..! " - चेतन ने जवाब दिया और उस भील के साथ चलने के लिए खड़ा हुआ

" अरे ..! " - बाबा प्रश्नात्मक भाव से पीछे से बोले
चेतन ने घूमकर देखा
" हम सुबह से एक साथ है । और काफी लम्बा समय एक साथ बिताने वाले है " - शब्दो के साथ बाबा उठकर पास आये - " और मुझे अभी तक तुम्हारा नाम तक नही पता "

चेतन ने भी हलकी मुश्कुराहट दी - " बाबा ! मेरा नाम चेतन है "
" चेतन ! ...बड़ा प्यारा नाम है । पर जल्द ही तुम एक योद्धा होगे और योद्धाओं के नाम प्यारे नही होते , खतरनाक होते है "
" तो बाबा , आप ही कोई अच्छा सा नाम रख दीजिए अपनी तरफ से "

" मैं ? ...अ..! "
" हां बाबा , कोई भी , जो आपके दिमाग में है "

बाबा कुछ देर तक सोचने लगे -" बेटे , अभी मेरे दिमाग में तुम्हारे लिए कोई नाम नही है पर जब तुम एक योद्धा बन जाओगे तब तुम्हारे गुरु से तुम्हारा एक नाम मांग लेना "

" जरूर बाबा " - और फिर चेतन उस भील सैनिक के साथ चल पड़ा

भाग - 2

जिंदगी के इस सफर में हम बहुत बार गलतियां करते है जिनका हमे पता नही चलता । कई बार हमारी आँखों के सामने से छलावा निकल जाता है और हमे पता तब चलता है जब हम उसके शिकार हो चुके होते है
कुछ इसी तरह की घटना चेतन के साथ भी हुई ।

समय शाम के 6 बजे

इंसानों की इतनी खतरनाक चीखे मानो दरिंदे उन्हें नोच नोच कर खा रहे हो ।

" ये चीखे गुरूजी , ये सब क्या है ? कहा से आ रही है ये चीखे ??" - चेतन ने पूछा

इस वक्त दोनों ( सुधन और चेतन ) एक ऊँची पहाड़ी पर खड़े , उनके सामने एक गहरी खाई , जिसकी गहराई का अन्दाज भी न लगाया जाए

" बेटे , आज तुम्हे यही बताने के लिए यहाँ लेकर आया हु । ......वो देख रहे हो "
सामने पुरे कबीले का दृश्य दिखाई दे रहा था

" वो तो हमारा कबीला है गुरु जी " - चेतन ने जवाब दिया
" हाँ , ....अब इस तरफ देखो । "
उसके बगल में कुछ दूरी पर एक गुफा का रास्ता था
" हाँ गुरु जी , यहां एक गुफा दिखाई दे रही है "
" वो चीखे उस गुफा से आ रही है शागिर्द ! "
और चेतन हैरान हो गया
"पर ...? "- हेरानीयत से चेतन ने पूछा
" अब मैं जानता हूँ की तुम्हारे मन में बहुत से सवालो ने जगह बना ली है शागिर्द । "

सुधन चुप हो गया और चैन की सांस लेने लगा , चेतन लगातार सुधन की तरफ देख रहा था

" क्या तुम्हे पता है ? अभी मैं तुम्हे कुछ नही सिखाऊंगा , क्योकि सरदार ने हमे दो दिन तक तुम्हारा व्यवहार देखने को कहा है "
" हाँ गुरु जी , बाबा ने बताया था । पर विस्वास कीजिये , मेरे मन में कोई भी कपट न होगा "
" मैं तुम पर विश्वास नहीं कर सकता,पर तुम मुझे विश्वास दिलाने के लिए मेरे कहे हुए कार्य को पूरा कर सकते हो," - सुधन चेतन को बताया
" गुरुजी,आपके लिए मैं अनजान हूं, और आज के युग में किसी भी अनजान पर भरोसा नहीं किया जा सकता ! आपका मत भी सही है गुरु जी | अब आपके विश्वास को जीतने के लिए चाहे मुझे जो करना पड़े, मैं करूंगा आप मुझे बस अपना पाठ दीजिए" - चेतन ने बेधड़क से जवाब दिया
" तुम्हारा पाठ आज यहीं से शुरू होगा, और एक बात जान लो जब तक तुम्हारा यह पाठ खत्म नहीं होगा तब तक तुम्हारे पाठ के बारे में तुम किसी को नहीं बताओगे"
" जी गुरु जी!"
" अब जरा उस तरफ देखो " - सुधन ने पहाड़ी के नीचे की ओर इशारा किया, वहा नीचे एक गुफा का रास्ता दिखाई दे रहा था
" वहां एक गुफा है गुरुजी ! "
" तुम्हें जो चिंखे सुनाई दे रही थी , वो उसी गुफा से आ रही "
चेतन के चेहरे पर प्रश्न आत्मक भाव था
"मैं तुम्हारे चेहरे पर बहुत से सवालों को देख रहा हूं, पर तुम चिंता मत करो,दरअसल बात यह है कि उस गुफा में हमारे दुश्मनों को सजा दी जाती है"
"दुश्मन? मैं समझा नहीं गुरुदेव"
"शागिर्द! हमारा एक दुश्मन कबीला है, जो हमारे कबीले पर हमला करने के अलग अलग तरीके ढूंढता रहता है । पर हर तरीके उनके नाकाम हो जाते है ,और उनके भेजे हुए सिपाहियों को हम बंदी बना लेते हैं। उनके साथ ऐसा क्रूर व्यवहार किया जाता है कि वो , अपना नाम तक भूल जाते हैं "
"पर गुरुजी जिस तरह से उनकी चीखें सुनाई दे रही है क्या इस गुनाह की उन्हें इतनी क्रूर सजा देना ठीक रहेगा"
"यह बात तो मैं भी अच्छी तरह से जानता हूं,पर कभी लेकिन नियमों के विरुद्ध में बोल भी तो नहीं सकता ।इसलिए मैं तुम्हें यह पाठ देता हूं कि तुम उन सभी कैदियों को आजाद करवाओ"
"पर गुरु जी अभी मैं कुछ नहीं जानता ,मुझे बहुत कुछ सीखना है"
"मैं जानता हूं,पर मैं अभी यह भी चाहता हूं कि तुम आगे कोई सवाल ना करो । तुम्हें जो बताया गया है तुम सिर्फ इतना करो , "
"जी गुरु जी, मैं आपके बताए हुए पाठ को जरूर पूरा करूंगा"

०००

दरवाजा धड़ाम से खुला दरवाजे पर भीखु सरदार था , यह देख रामभज ने किताब को साइड में रख दिया, डाकुओं को अपने दरवाजे पर देख रामभज डर गया पर भीखु रामभज को जिंदा देख हैरान था
" अरे वाह ! ... यह तो आज मैंने करिश्मा ही देख लिया" - भिखु रामभज के पास आकर बैठ गया - "तू कैसे बच गया बे..., मुझे इतना तो पता है कि तू ऐसे अपना मुंह नहीं खोलेगा । पर जब तक तुम अपना मुंह नहीं खुलेगा तब तक तुम्हें कष्ट तो देना पड़ेगा " - भिखू खड़ा हो गया -" उठाओ रे! हमारे प्यारे रामभज को,और जरा प्यार से , हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा खजाना है ये "
"भीखूं की इसी आवाज के साथ भीखू के साथियों ने रामभज को जबरदस्ती उठा लिया रामभज की पत्नी डाकुओं के पांव पड़ने लगी गुजारिश करने लगी - " मेरे पति को छोड़ दूं, आपके पांव पड़ती हूं , दया कीजिए । " -पर डाकुओं को कोई रहम न आया रामभज की पत्नी को एक ठोकर मारी, जिससे रामभज के पत्नी का सिर दीवार से टकराया ,और वहीं बेहोश हो गई ।

०००

" अरे बड़ी जल्दी होश आ गया आपको " -अंदर दाखिल होते ही सेनापति राजीव ने कहा
"आप ...? " -डॉक्टर के चेहरे पर प्रश्न आत्मक भाव था
सेनापति के हाथ में एक छोटी कांच की शीशी थी । सेनापति डॉक्टर के पास आकर बैठ गया
"आप सबसे पहले यह दवा पी लीजिए" - वह सीसी सेनापति ने डॉक्टर के हाथ में थमा दी
डॉक्टर अब सेनापति के पहनावे को देखकर सब कुछ समझने लगा था।
"आप कौन हैं?"-डॉक्टर ने बेझिझक होकर पूछा
"क्या आपने सेनापति राजीव का नाम सुना है" -सेनापति राजीव ने कहा
बस इतनी ही लाइन से डॉक्टर सब समझ गया, वह जान चुका था कि इस वक्त वह कहां है ,डॉक्टर के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी डॉक्टर ने अभी तक सेनापति की दी हुई दवा नहीं पी थी ।
" मैं सेनापति राजीव हूं " -सेनापति राजीव को डॉक्टर के चेहरे पर खुशी साफ दिखाई दे रही थी- "आपको आश्चर्य चकित होना चाहिए पर आपके चेहरे से तो यह लग रहा है मानो आप यही आने का इंतजार कर रही थे "
"आपने सही कहा सेनापति जी ,मैं तो कई सालों से एक ही सपने का पीछा कर रहा था कि मैं कब अमलतास के दर्शन कर सकूंगा " -अपने शब्दों के साथ ही डॉ अपने बिस्तर से उठ खड़े हुए ,उस समय डॉक्टर के मन में कपट कूट-कूट कर भरा हुआ था ।
" तो आप का सपना आज पूरा हो गया। " -सेनापति भी डॉक्टर के साथ उठ खड़े हुए
"सेनापति ! तुम नहीं जानते, जितने वर्षों से तुम अमलतास की सुरक्षा कर रहे हो उन वर्षों से कहीं ज्यादा तड़प मेरे अंदर दफन थी अमलतास को प्राप्त करने की " -डॉक्टर की भाषा से सेनापति को संदेह हुआ कि कहीं उसने एक गलत व्यक्ति को तो पनाह नहीं दे दी

शेष भाग :- 10

०००
जंगल के प्रांगण में ले जाकर रामभज को रस्सियों से बांध दिया गया, और वहीं रामभज के आसपास सभी डाकू विराजमान हो गए । भिखू लगातार रामभज पर कोड़ों की बरसात कर रहा था, रामभज का शरीर लहूलुहान भी हो चुका था और कोड़ों की मार से नीला पड़ गया था

"चल गुरु, हो जा शुरू" - एक हाथ में कोड़ा लिए भिखू वही रामभज के पास बैठ गया
"अब या तो सब शराफत से बता दो आई कसम तुझे छोड़ देंगे, या फिर हमारी नाइंसाफी तो तुम देख ही चुके हो ।"
" तुम इन सब के सरदार हो पर मेरे लिए तुम एक डाकू हो, पर पता नहीं क्यों आज मुझे तुम से डर नहीं लग रहा । यह हिम्मत शायद मेरे अंदर बह रहे अमलतास के रस के कारण है, जिसने जिगर में इतना हौसला भर दिया " - अमलतास का नाम सुनते ही भिखू की आंखों में खुशी दिखाई देने लगी-" पर तुम्हें खुश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि तुम्हारी गंदी दृष्टि उस अमलतास और वहां के खजाने को स्वपन में भी नहीं देख सकती, उस अमलतास की पूरी कहानी मेरे सीने में दफन है ,जिसे तुम अपने किसी भी अत्याचार से उसे बाहर नहीं निकाल सकते । और मेरे पास तो सिर्फ कहानी है साहब ! रास्ते के लिए तो तुम्हें फिर भी भटकना पड़ेगा,"
" हम उस डॉक्टर तक की तरह मुर्ख नहीं है "-शब्दों के साथ ही भिखू खड़े हुए और रामभज के पास आकर रुक गया जो 20 वर्षों से ऐसे ही भटकते रहे। दुनिया की किसी भी चीज को छीनकर प्राप्त करने की हिम्मत रखते हैं हम,"
"इसी हरकत को गीदड़ बड़ी ही बखूबी से निभाते हैं "-फिर रामभज सभी डाकुओं की तरफ भावुक दृष्टि से देख देखने लगा
" कुछ देर पहले मुझे बहुत खुशी हुई कि अब मैं अपने भाई से मिल सकूंगा । मेरा भाई जो बचपन में ही मुझसे दूर हो गया था। "
"तेरी कहानी सुनने के लिए हम सब यहां इकट्ठा नहीं हुए बे...! तेरा अंत इतनी नजदीक है और तू कहानी सुना रहा है।"
" कहानी तो तुम्हें सुननी पड़ेगी, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि जब मैं मारूं तो मेरे भाई को बाद में यह पछतावा हो कि मैं आखरी बार अपने भाई से बात नहीं कर सका "- भिखू प्रश्न आत्मक दृष्टि से रामभज की तरफ देखने लगा
"आप मुझे खत्म कर सकते हैं, पर आप से इतना अनुरोध है कि मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दीजिए। मैं अपने भाई चेतन से मिलना चाहता हूं, इतना सुनते ही भिखू को जोरदार झटका लगा
फिर अगले ही क्षण भिखू एक सोच में चला गया-" ये. ये.. मेरा भाई,, पर मेरा भाई तो ! नहीं ,यह मेरा भाई नहीं हो सकता । "
"इसे खोल दो "-भिखू ने अपने साथियों से कहा
साथियों ने बिना किसी सवाल के रामभज को खोल दिया फिर सभी की तरफ रामभज भावात्मक दृष्टि से देखने लगा,
"मैंने डाकुओं के बारे में ,उनके अत्याचार के बारे में सुना था..." - रामभज ने गर्दन उठाकर देखा तो सरदार रो रहा था रामभज भी भिखू के रोने का यह कारण समझने लगा ,परंतु जिस तरह से भिखू रो रहा था , रामभज को समझने में यह देर न लगी कि यही मेरा भाई है।
रामभज भिखू की आंखों में उस मिलन की तड़प को साफ देख सकता था
" भाई ..!"-रामभज ने कहा
भिखू से रहा न गया और भिखू ने झट से रामभज को गले लगा लिया
" भाई तुम जिंदा हो !"- भिखू ने कहा

दोनों भाइयों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे
"हां भाई, मैंने आपको कहां-कहां नहीं तलाशा, पर आप कहीं नहीं मिले।"- रामभज ने जवाब दिया
"मुझे माफ कर दो भाई! मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई ।"

"नहीं भाई !आपका दोष नहीं है ,दोष तो अभागी किस्मत का था ,जो उस वक्त हाथ छोड़ दिया और अब ,भैया देखो! किस्मत का खेल, किस्मत ने अब दोबारा हाथ पकड़ लिया, हम दोनों बिछड़े हुए भाइयों को दोबारा मिला दिया ।"
दोनों अलग हुए
"भाई !अब आप...."
" सरदार ..!"-शब्दों को बीच में रोककर भिखू के आदमी ने कहा
" यह झूठ बोल रहा है!"- देखिए सरदार ! "-उसके हाथों में 'भिखू की कहानी ' की किताब थी-" यह इसके घर से मिली है सरदार!"- झटाक से भिखू ने रामभज की तरफ संदेश आत्मक दृष्टि से देखा
"नहीं भाई !.."
" चुप ..!"- भिखू ने का रामभज के शब्दों को बीच में रोककर कहा - "मैं भी कितना पागल था, मैं क्यों भूल गया कि मेरा भाई अब इस दुनिया में नहीं रहा। मैंने अपने इन हाथों से ही जल प्रवाह दाग दिया था ,"
"मैं रामभज! तुम्हारा सगा भाई हूं भाई! देखो मेरी तरफ"
" तुम्हारी शराफत के ढोंग और मेरी मेरे भाई से मिलने की ललक ने मुझे कितना पागल बना दिया था ,और कितनी जल्दी तुम्हारी बातों के भंवर में फंस गया था मैं ,क्यों भूल गया था कि इन्हीं हाथों से अपने पूरे परिवार को जल प्रवाह.."- और फिर भिखू वही घुटने टेक कर रोने लगा
भिखू ने रोना छोड़ कर अपने चेहरे पर गुस्सा बना लिया-" पहले मैं तुम्हें सिर्फ मौत देता ,लेकिन अब !दर्दनाक मौत दूंगा।"-"बांध दो इसे ! " - भिखू ने अपने आदमियों से कहा
" भाई मुझे पता है ,अब मैं आपसे जो भी कहूंगा आपको वह सब फरेबी और धोखा लगेगा, क्योंकि अब आपको यह किताब नजर आ रही है। "-मन ही मन रामभज ने कहा -" पर सच कहता हूं भाई! मुझे मरने से डर नहीं लगता ,पर अब मेरी आखिरी ख्वाहिश यह है कि मेरे मरने से पहले आपको यह पता चले कि मैं ही आपका भाई हूं और उसके लिए अभी मुझे किसी ने किसी तरह यहां से भागना होगा।"- अपने मन ही मन इन शब्दों को राम भज ने विराम दिया

दो आदमी रामभज की तरफ बढ़ रहे थे उसे बांधने के लिए उन्होंने रामभज को उठाया और बांधने लगे, पर रामभज ने इन दोनों को धक्का दे दिया और जंगल की तरफ भाग गया । भिखू ने उसे झट से रामभज को भागते हुए देखा
"लो.. भई ! कर दी ना गलती । अब यही गलती डॉक्टर ने भी की थी" - भिखू ने धीरे से कहा

०००

" आप का मतलब क्या है "- संदेहआत्मक से सेनापति ने पूछा
जब सेनापति को डॉक्टर पर शक हुआ तो डॉक्टर ने बात बदल दी
" मेरा मतलब अमलतास को देखने की इच्छा से था"- डॉक्टर ने कहा
"ओ..! ,तो आप चिंता मत कीजिए । अब आप अमलतास को देखने के लिए तैयार हो जाइए,आप की ललक आज सच में पूरी होने जा रही हैं । सबसे पहले आपके हाथ में जो यह दवा है आप उसे पी लीजिए ,"
डॉक्टर की हाथ में जो दवा थी वह लाल रंग में थी, परंतु डॉक्टर ने अमलतास की पसीने को हरा रंग का अपनी किताबों में पढ़ा था। सेनापति डॉक्टर को देख रहा था डॉक्टर ने जटाग से उस दवा को अपने मुंह में रख लिया ।
"अब आप मेरे पीछे आइए! "
यह कहकर सेनापति छोटे दरवाजे से झुक कर बाहर निकला डॉक्टर ने उस दवा को अपने मुंह से निकाल कर एक कोने में फेंक दिया और सेनापति के पीछे पीछे बाहर निकला बाहर निकलते ही इस दृश्य को देखकर डॉक्टर की आंखें चकाचौंध रह गई ।यह दृश्य इतना सुंदर था कि डॉक्टर का मुंह खुला का खुला ही रह गया, डॉक्टर की नजरें अमलतास के पौधे पर पड़ी, जो सामने 15 मीटर की दूरी पर नदी के किनारे पर था रह-रहकर अमलतास का पसीना उस नदी में गिर रहा था। नदी का पानी सामने की गुफा में जा रहा था।
"क्या सोचने लगे राजन !आप किसी स्वपन में नहीं है। यह हकीकत है "
पर अभी भी डॉक्टर आंखें फाड़कर अमलतास को देख रहा था । अपने दोनों हाथों को फैला डॉक्टर अमलतास की तरफ बढ़ा और वही अमलतास के पास जाकर बैठ गया
" इसका मतलब, वो सब सच है जो मैंने सोचा था अब मैं लोगों को बता सकूंगा कि मैं पागल नहीं था, "
सेनापति भी डॉक्टर की खुशी से खुश था पर उसके अगले ही क्षण...
"अब मैं अमलतास को यहां से लेकर जाऊंगा । "
यह सुनते ही सेनापति संदेह आत्मक भाव से डॉक्टर की तरफ देखने लगा।
अगर अमलतास हकीकत है ,तो यह भी हकीकत है कि महाराज वीरभद्र का सारा खजाना भी यही है ।"
सेनापति डॉक्टर की इस भाषा से यह समझ गया कि यह कितना फरेबी है सेनापति ने अपनी तलवार निकाली
"महाराज वीरभद्र का खाजा खजाना भी यही है, और उस खजाने की रक्षा में यह सेनापति भी आज तक यही है!"
- डॉक्टर ने तुरंत घूमकर सेनापति की तरफ देखा
डॉक्टर सेनापति को देखकर हंसने लगा -"अबे !तुझे तो मैं भूल ही गया था, अब तुम्हारे साथ क्या करूं !"
"मूर्ख! तुझे बचाना मेरी बहुत बड़ी भूल निकली। अब तेरे टुकड़े टुकड़े करके वापस वहीं फेंक दूंगा जहां से तुझे उठा कर लाया था ।"-सेनापति ने क्रोध से कहा
"अच्छा !तो क्या तुम मुझे निहत्थे ही मारोगे !"-सेनापति ने अपनी तलवार नीचे कर दी -"निहत्थे नहीं !"-सेनापति ने अपनी तलवार डॉक्टर की तरफ फेंक दी -"तलवार उठाओ राजन! बल्कि मैं तुमसे निहत्थे ही लडूंगा"
डॉक्टर ने सेनापति की तरफ देखते हुए धीरे से तलवार उठाई "आओ !प्रहार करो, "-सेनापति ने कहा
सेनापति सामने दोनों हाथों को फैला निहत्थे खड़ा था, रामभज तलवार लिए दौड़ कर सेनापति की तरफ बढ़ा। सेनापति ने वार से बचकर डॉक्टर के डॉक्टर के पेट पर घुटने से वार किया फिर चार-पांच पंच जबड़े पर दिए और फिर डॉक्टर को उठाकर पटक दिया, डॉ तलवार के साथ दोबारा फिर उठा ...

०००
रामभज के पीछे डाकुओं का झुंड था पर अब रामभज ने पेड़ों की आड़ लेकर उन्हें भ्रमित कर दिया और दौड़ते हुए एक नदी के किनारे पर आ गया ।वहां रामभज ने बैठकर अपना मुंह धोया ,
"क्या दिन आ गए जिंदगी के, आज मेरा भाई जिसे मुझे देखते ही खुशी होती थी ,सारा दिन मेरे साथ उन जंगल की डालियों पर खेलता था। आज वही भाई इस भाई को पहचानने से इंकार कर रहा है ।हे भगवान !कैसे बताऊं अपने भाई को ,कैसे यकीन दिलाओ कि मैं ही उसका भाई हूं।" रामभज ने अपने आप से बातें करते हुए कहा
तभी रामभज के चेहरे के घाव ठीक हो गए। राम भज ने हाथ लगाकर देखा-"यह क्या चमत्कार है ,"
राम भज ने अपने शरीर पर चोटों के निशान देखे, वह अभी भी वैसे की वैसे ही थे । रामभज ने थोड़ी देर सोचा फिर..
झटाक से पानी की तरफ देखा, रामभज को समझने में देर नहीं लगी ..
"लगता है पानी में ही कोई ऐसी दवा है, जो हर जख्म भर सकती है!"
राम भज ने झट से पानी में अपने शरीर को डाला और देखते-देखते जख्म ठीक हो गए। रामभज ने उस तरफ देखा जिस तरफ से पानी आ रहा था ,यह एक गुफा नुमा रास्ता था, रामभज ने उस पल को याद किया जब वह अमलतास के पास था, वहां से एक नदी बह रही थी ,अमलतास का पसीना रह-रह कर उस नदी में जा गिर रहा था
"कहीं यह रास्ता अमलतास तक तो नहीं जाता ,"-शब्दों के साथ रामभज ने उस गुफा की तरफ देखा

शेष भाग- 11

नमस्कार साथियों आप सोच रहे होंगे कि अगर अमलतास तक पहुंचना इतना ही आसान था तो डॉक्टर ने इसकी खोज में 20 साल कहां बर्बाद कर दिए ,पर नहीं साथियों।
अमलतास तक पहुंचना इतना तो आसान नहीं है

जारी ...
रामभज उस गुफा में गया और जल्दी ही रामराज उस गुफा के दूसरे छोर पर निकल गया। जहां से पानी गुफा के अंदर आ रहा था, वहां से तो नदी बहुत दूर तक दिखाई दे रही थी
-" यह क्या पहेली है भगवान!"- राम भज ने घूमकर गुफा की तरफ मुंह किया -" ऐसा पानी में क्या था ?जिससे मेरे घाव भर दिए "-राम भजन वापस घूमकर नदी की तरह मुंह किया
नदी की लंबाई बहुत दूर तक दिखाई दे रही थी -"यह नदी दूसरे गांव से आ रही है, परंतु उस समय सेनापति राजीव ने कहा था कि - 'यह जगह निश्चित रूप से तुम्हारे ही गांव की सीमा में है' - इसका मतलब यह हुआ कि जो भी झोल है, वह बस इस गुफा के अंदर ही है ।"
फिर रामभज अचानक सीरियस हो गया-" मैं क्यों बार-बार इतना सोच रहा हूं, मुझे क्या जरूरत है अमलतास को खोजने की , हे भगवान! मैं जानता हूं कि इसके पीछे भी कुछ न कुछ तेरी ही महिमा होगी"- रामभज अंदर चला गया
पर एक जगह जाकर रुक गया चट्टान की दीवार जमीन से 5 फुट ऊपर ,दीवार से बहुत ज्यादा पानी रिस रहा था
राम भज ने उस चट्टान के पास जाकर चट्टान को हटाने की कोशिश की ,पर बड़ी ही आसानी से वह चट्टान हट गई । मानो वह पत्थर की नहीं किसी लकड़ी की हो
यह एक बड़ा 4 बाई 4 फुट का होल था, एक लंबी सुरंग थी

-"यह तो बहुत लंबी सुरंग नजर आ रही है,"

०००
डॉक्टर बार-बार उठकर सेनापति से लड़ाई कर रहा था। डॉक्टर कुछ हद तक जख्मी भी हो चुका था, डॉक्टर उठने की कोशिश कर रहा था
"तुम्हारे पास बहुत समय है मुझसे लड़ने के लिए,"- सेनापति ने कहा -"जब तक तुम्हारे प्राण नहीं निकल जाते ,मैं तुम्हें मौका देता रहूंगा ।"
अब डॉक्टर मैं उठने की हिम्मत बहुत कम नजर आ रही थी सेनापति डॉक्टर के पास जाकर बैठ गया
-"रणभूमि को छोड़कर हमेशा इन हाथों ने दूसरों की जान बचाई है। कभी किसी के प्राण नहीं लिए, अगर तुम अपनी गलती का पश्चाताप करते हो तो मैं तुम्हें जीने का एक मौका और देता हूं । पर मैं अभी तक हैरान हूं ,कि तुम बेहोश क्यों नहीं हुई जबकि तुमने वह दवा भी पी ली थी। पहले तो कभी किसी इंसान पर उस दवा नहीं इतना समय नहीं लिया। "
डॉक्टर हंसने लगा डॉक्टर ने अपने मुंह से खून थूका
-" तो उस सीसी में बेहोशी की दवा थी ,मुझे पता था सेनापति, की यह कोई दवा नहीं है ।इसलिए तुम्हारे बाहर निकलते ही, मैंने उसे वहीं कोने में थूक दिया था । रही बात पश्चाताप की, तो सुनो शायद तुम्हारे पूर्वज भी इतना अमलतास के बारे में नहीं जानते होंगे ,जितना मैं अमलतास के बारे में जानता हूं। मैं अमलतास से जुड़ी हर चीज के बारे में अच्छी तरह जानता हूं। जैसे तुम ,तुम्हारा मनपसंद खाना, मनपसंद हथियार मनपसंद खेल, और बस यही नहीं, तुम्हारी कमजोरी भी..."- अभी डॉक्टर के चेहरे पर मुस्कान आई
सेनापति इस मुस्कान का कारण समझने की कोशिश करने लगा तभी डॉक्टर ने कुछ चिपचिपा पदार्थ सेनापति के चेहरे पर छिड़क दिया ।
उसके तुरंत ही सेनापति पीड़ा से कराह उठा ,इधर-उधर भागने की कोशिश करने लगा ,मौके का फायदा उठाकर डॉक्टर ने तलवार उठाई और झट से सेनापति के शरीर में घोप दी। सेनापति का मुंह खुला, और आंखें फटी, उसी के साथ सेनापति जमीन पर सिमट गया
-" धोखा ..छ..ल किया है तुमने कायर! यह कायरता सिर्फ कायर लोगों के लिए ही बनी होती है ।"- अपनी कपकपी आवाज से सेनापति ने कहा
डॉक्टर वही सेनापति के पास बैठ गया-"छल और धोखा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके आप प्रभु श्री राम को बेइज्जत ना करें ।क्या आप नहीं जानते कि उन्होंने बाली को किस तरीके से मारा था । छल से, और पता है उन्होंने ऐसा क्यों किया था? क्योंकि बाली श्रीराम से ताकतवर थे। अब अगर भगवान छल कपट कर सकते हैं तो हम तो फिर भी इंसान हैं भाई"
" तू तो इंसान भी नहीं है रे !आज जिस तरह तूने अपने कर्म दिखाए हैं ,यह सिर्फ हैवानियत है । डॉक्टर ने अपने हाथ पर बंधी घड़ी में टाइम देखा -"2:15 ,अभी बस तुम्हें 15 मिनट और देता हूं ,उसके बाद.. स्वाहा!"

०००

राम भज छोटी गुफा के रास्ते आगे बढ़ रहा था ,धीरे-धीरे गुफा का रास्ता बड़ा होता जा रहा था, तभी रामभज को सामने होल की चमक दिखाई दी ।अब रामभज चमक की तरफ जल्दी जल्दी बढ़ने लगा ,फिर रामराज का ध्यान अपनी साइड की दीवार पर गया, जहां एक छोटा दरवाजा था ।
राम भज ने उस दरवाजे में झुककर देखा, यह सोने चांदी जेवरात से भरा एक विशाल कक्ष था-" हे भगवान! यह तो वही जगह है "
राम भज को कुछ आवाज सुनाई दी रामभज ने उस कक्ष से ध्यान हटाया और दोबारा सामने चलना शुरू किया
रामभज अब उस हॉल में आ चुका था । राम भज ने सेनापति को जख्मी हालत में पड़े हुए देखा, उसके सामने एक आदमी तलवार लिए बैठा था ,रामभज को सिर्फ उसकी पीठ दिखाई दे रही थी। राम भज वही पत्थर की ओट में उनकी बातें सुनने के लिए बैठ गया ।

०००
भिखू और उसके साथी रामभज को तलाश करते हुए उसी नदी के किनारे किनारे भागते हुए उस गुफा में घुस गए । उस गुफा के अंदर उसकी नजर चार बाई 4 फुट के हाल पर गई।

" जनाब ! वह देखिए,"- भिखु के आदमी ने उस होल की तरफ इशारा किया

०००

"बड़ी ख्वाहिश थी सेनापति से मिलने की ,पर यह नहीं सोचा था कि मैं तुम्हारी यह हालत भी कर पाऊंगा"- डॉक्टर ने सेनापति से कहा
जो अभी उसके सामने घुटनों के बल आखिरी सांसें गिन रहा था-" नी..च तुझे स..जा तो जरूर मिलेगी"- सेनापति ने अपनी कपकपी आवाज से कहा
" ओ.. तो तुम मुझे सजा दोगे ? मैं चाहूं ,तो तुम्हें अभी खत्म कर सकता हूं। पर अभी बहुत वक्त है, तेरी बकवास थोड़ी देर और सुन लूंगा उसके बाद.."
" तुमने यह अच्छा नहीं किया "- सेनापति ने दर्द सहन करते हुए कहा
"अच्छा! तो अच्छा क्या किया मैंने अभी तक? और तुम तो मुझे पहचान ही गए होगे कि कितना जानता हूं मैं तुम्हारे बारे में ,और मुझे इस बात का पता था कि तुम्हारी कमजोरी यह आंवले का तेल था, और मैंने इसे तुम्हारे ऊपर मौके का फायदा देखते ही छिड़क दिया । और अब मैं तुमसे सिर्फ इतना पूछना चाहता हूं की तुम्हारी आखिरी ख्वाहिश क्या है?"
"मैं आपको बताता हूं महाशय जी!"- यह आवाज रामभज की थी
डॉक्टर ने तुरंत घूम कर देखा और डॉक्टर को रामभज देखते ही पहचान गया
"अरे ..! आप डॉक्टर साहब, आप यहां कैसे पहुंचे ?राम भज ने लाचार पड़े सेनापति की तरफ देखा
"आप ठीक तो है पिताजी "-राम भज ने सेनापति से पूछा
" पिताजी..!"- डॉक्टर चकित रह गया
" हां ..हां । पिताजी ,इन्होंने ही तो मुझे इस दुनिया में पुनः जन्म दिया था ,और अब इसकी जान तो मैं अमलतास से भी बचा लूंगा, पर तुम्हारा क्या करूंगा?"
" मैं बताता हूं रामभज "-यह आवाज भीखु की थी
उसने गुफा के रास्ते हाल में प्रवेश किया साथ ही उसके सभी साथियों ने होल में प्रवेश किया
-" सच में मुझे बहुत हैरानी हुई ! डॉक्टर को जिंदा देखकर। लेकिन अब मैं तुम दोनों की कब्र यही पर खोद डालूंगा ,साला एक बात समझ में नहीं आती, जिसको भी लूढकाता हूं वही कैसे बच जाता है "
"जनाब! वो देखिए,"- भीखु के आदमी ने तड़पते हुए सेनापति राजीव की तरफ इशारा किया
उसकी वेशभूषा पुरानी थी, और भीखु को डॉक्टर के हाथ में तलवार दिख रही थी
भीखु समझ गया कि..
" यह कौन से काल से टपका है वे ! "- भीखु ने सेनापति की तरफ इशारा करते हुए कहा
"मैं बताता हूं भाई ! "-राम भज बोला
"हे नौटंकी ! तूने जो किया है ना, उसकी सजा तुम्हें बहुत दर्दनाक मिलने वाली है । मैं सोच रहा था कि जब तुम मेरे सामने दोबारा आओगे तो घबरा कर तुम अपने आप ही मेरे सामने दम तोड़ दोगे ,पर तेरी हिम्मत की तो दाद देनी पड़ेगी, इतनी हिम्मत आई कहां से?"
" भाई ..!" - राम भज ने अमलतास की तरफ इशारा किया
भीखु भी एक पल के लिए उस पौधे को देखता रहा-"अरे बाप रेे..! अब यह कौन सा पौधा है ,"
"भाई ,यही अमलतास का पौधा है"- राम भजन ने बताया
भीखु को अब सब कुछ समझ में आने लगा -"अच्छा! तो यही वह पौधा है जिसकी सुरक्षा एक सेनापति करता है ,तो वह सेनापति कहां है "
भीखु का ध्यान उस जमीन पर पड़े व्यक्ति पर गया -"अच्छा! तो यह हमारे सेनापति जी हैं।"
" तुम्हें अब क्या चाहिए "-डॉक्टर ने भीखु पूछा

" मुझे जो चाहिए, तू दे सकता है क्या? अगर तुम्हारी जरूरत होती तो मैं तुम्हें कभी टपकाता नहीं ,अब देख इस रामभज की वजह से मुझे अमलतास भी मिल गया और तुम्हें दोबारा मारने का मौका भी,"
भीखु अमलतास की तरफ बढ़ने लगा-" सुना है अमलतास के पसीने का सेवन करने वाला वर्षों तक जीवित रह सकता है"
" खबरदार भीखू !"- डॉक्टर ने तलवार के इशारे से भीखु को चेतावनी दी
" अरे वाह.. बड़ी हिम्मत आ गई सच में तुमने तो"
" हिम्मत ही नहीं भीखू ,मैं जानता हूं तुम मुझसे बड़ी आसानी से जीत सकते हो ,मगर अमलतास को पहले मैंने खोजा है तो इस पर मेरा हक है"
" और अगर मैं यह कहूं कि यह हक मेरा है तो .!"
"जीत भगवान भरोसे ,पर मैं तुमसे युद्ध जरूर करूंगा "

भीखु ने डॉक्टर की हालत देखी वह अधमरा सा था
"चलो ठीक है ,यही सही !पर अब मुझे मैदान में आने की जरूरत नहीं है ,"-"खत्म करो भाई डॉक्टर को "- भीखु ने अंदाज से कहा
और वही पत्थर के टुकड़े पर बैठ गया,डॉक्टर को सभी डाकू ओ ने घेर लिया डॉक्टर ने अपनी तलवार को कस लिया रामभज दबे पांव सेनापति के पास जा पहुंचा
" सेनापति जी! सेनापति जी..!"- धीरे से राम भज ने पुकारा

पर सेनापति की आंखें बंद थी राम भजन सेनापति की सांसे देखी, अब सेनापति नहीं रहे थे ,रामभज ने अमलतास की तरफ देखा।
युद्ध शुरू हुआ ,सभी डाकुओं ने एक साथ डॉक्टर पर हमला किया डॉक्टर ने सभी की तलवारों के वार को अपनी तलवार पर डाल लिया और एक जोरदार आवाज के साथ डॉक्टर ने सभी को इधर-उधर फेंक दिया
"मुझे किसी ना किसी तरह अमलतास तक पहुंचना होगा"- राम भज ने अपने आप से कहा
रामभज ने अमलतास तक पहुंचने का रास्ता देखा, अमलतास तक पहुंचने के लिए रामभज को दबे पांव भीखु के पीछे से निकलना होगा ।
राम भज ने तुरंत सेनापति की कमर से छोटी कांच की शीशी निकाली ,छोटी-छोटी चट्टानों के पीछे से होते हुए रामभज दबे पांव भीखू के पीछे से निकलकर अमलतास तक पहुंचा
भीखू का सारा ध्यान डॉक्टर और उस युद्ध पर था डॉक्टर अच्छी टक्कर ले रहा था अमलतास की पात से पसीना इकट्ठा हुआ और उस नोक पर आ गया राम भज ने सीसी खोली और उस बूंद को उस सीसी में डाल लिया
फिर वापस भीखु के पीछे से होते हुए सेनापति के पास पहुंचा और उस सीसी को खोलकर वह बूंद सेनापति के मुंह में डाल दी
" तुम क्या सोच रहे थे मुझे पता नहीं चलेगा"- यह भीखु की आवाज थी
पीछे से रामभज की गर्दन पर तलवार लगाई ,राम भज खड़ा हो गया और भीखू की तरफ घूम गया
" बड़ी होशियारी दिखाई तुमने"- भीख उन्हें पुनः कहा
"भाई मैं सच कहता हूं ,जब आप मुझे मारोगे तब बाद में आपको बहुत पछतावा होगा"

उधर डॉक्टर ने हार कर घुटने टेक दिए एक ने छाती पर वार किया एक ने पीठ पर एक ने पेट में ही तलवार घुसा दी और एक बार फिर डॉक्टर स्वर्ग सिधार गए
"सच्ची यार.! तू जो एक्टिंग करता है ना उसके लिए तुझे बहुत बहुत बड़ा इनाम देना चाहिए । चल अब मैदान में आ तुझे इनाम देते है "
तलवार के इशारे पर भीखु रामभज को अपने साथियों के बीच लाकर खड़ा कर देता है
" अब सभी ध्यान से सुनो "- भीखु कह रहा था -"इसे डॉक्टर की तरह मत मारना, बल्कि तड़पा तड़पा कर मारना है जैसे पहले इसकी आंखें निकाली जाएंगी उसके बाद उंगलियां काटी जाएंगी इसकी तड़प बहुत लंबी होनी चाहिए "
"भाई .!"-राम भज ने डॉक्टर के शव के पास से धीरे से तलवार उठाई -
"अभी तक आपने कमजोर दिल ,और लाचार रामभज को देखा है । अब आज ये रूप भी देख लो" -राम भज ने जवाब दिया
भीखु का आदमी रामभज की तरफ बढ़ा पर रामभज ने उसे एक ही बार में ऊपर पहुंचा दिया यह देखकर भीखू चकाचौंध रह गया अब एक-एक करके सभी ने रामभज पर हमला किया
पर सभी से बच कर रामभज ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया

" ओ..तेरी.! कितना भयंकर लड़ता है यार और हम इसे बकवास समझ रहे थे "- भीखु ने धीरे से कहा
अब भीखुु के आदमी धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे ।
यह देख -"रुक जाओ रे !" - भीखु ने जोर से आवाज लगाई

सभी वहीं की वहीं रुक गए । भीखु ने तलवार उठाई
-"मैं भी तो देखूं ऐसी कौन सी कला जानता है जिस पर इतना गुरुर कर रहा है"
भीखु को अपनी ओर आता देख राम भज ने अपनी तलवार डाल दी
भीखु भी वहीं रुक गया -"क्या हुआ रे .! हथियार क्यों डाल दिया,"-भीखु ने पूछा
"यह आपके लिए मजाक होगा पर भाई मैं आप से लड़कर आप को दोषी नहीं बनाना चाहता । "
"अभी तक उसी कहानी में उलझा हुआ है "
"आपके लिए बस यह कहानी है मुझे नहीं लगता कि आप यह समझ पाएंगे कि मैं सच में आपका भाई हूं अच्छा होगा कि आप मुझे खत्म करदे, हो सकता है शायद मेरे खत्म होने के बाद आपकी मन की उलझन भी खत्म हो जाए"
ना जाने क्यों रामभज की इन बातों से सीधा भीखु के दिल पर घात हो रहा था ।
भीखु वहीं ठहर गया -"कहीं यह सच में मेरा भाई तो नहीं "-भीखु मन ही मन इन बातों को दोहरा रहा था -"नहीं, यह मेरा भाई कैसे हो सकता है ?पर अगर हुआ तो तू अपने आपको जिंदगी भर माफ नहीं कर पाएगा"
" क्या हुआ भीखु क्या सोचने लगा आओ और मुझे खत्म कर दो शायद मुझे खत्म करके तुम्हारे अंदर की उलझन भी खत्म हो जाए"- राम भजन जोर से कहा
"तू क्यों बार-बार यह सोच रहा है यह ढोंगी है फरेबी है इसकी बातों का शिकार मत बन "- मन ही मन ने कहा
और एक जोरदार गुर्राहट के साथ रामभज की तरफ दौड़ पड़ा राम भज ने अपनी आंखें हंसते-हंसते बंद कर ली और बिना सोचे भीखू ने रामभज पर वार किया

शेष -अंतिम भाग 12

उस वार को सेनापति ने बीच में ही आकर अपनी तलवार पर डाल लिया
और भीखु को दूर फेंक दिया , भीखु ने सेनापति को सुरक्षित देखा तो..
"अब आप का भी सामना करना पड़ेगा महाशय जी !"- भीखु ने कहा
" नहीं जनाब! आप से कुछ तलवारबाजी सीखने की कोशिश करूंगा "- भीखुजमीन से उठ खड़ा हुआ
"आज मुझे पता चलेगा कि मेरी तलवार की धार कितनी तेज है जिंदगी में पहली बार एक योद्धा से सामना हुआ है "-भीखु ने अपनी तलवार उठाई
"सेनापति जी आप ठीक हैं"- रामभजन ने पीछे से पूछा
" हम ठीक हैं साथी तुम चिंता मत करो अब आप सुरक्षित हैं"- सेनापति ने जवाब दिया
भीखु तलवार के वार के साथ सेनापति की तरफ बढ़ा जैसे ही भीखु सेनापति के करीब आया
"रुक जाओ! "-राम भजन ने बीच में आकर कहा
" क्या हुआ साथी! "-सेनापति ने पूछा
" सेनापति जी! यह मेरा सगा भाई है"
" क्या?.."-"पर चाहे जो भी हो, इसका रास्ता अधर्म का है इसकी सजा तो इसे जरूर मिलेगी "
"सेनापति जी, मुझे सिर्फ 2 मिनट दीजिए अगर वह उसके बाद भी यह समर्पण ना करें तो चाहे जो आप कीजिएगा"
सेनापति ने इशारे से हामी दी
"भाई! "-राम भज भीखु से बोला -"आप मुझे मार सकते हैं पीट सकते हैं परंतु एक बार मुझे अपना 'छोटा भाई 'कह कर पुकार लीजिए "
"तू क्यों बार-बार मेरे सामने इस एक्टिंग से गिड़गिड़ाने लगता है काश ऐसा होता, पर मुझे आज भी वह दिन अच्छी तरह याद है जब इन हाथों से मैंने अपने पूरे परिवार को जल प्रवाह दाग दिया था"
" आपको बस यही याद है ?मैं जानता हूं कि आप मेरी बातों पर यकीन इसलिए नहीं कर रहे क्योंकि मेरे पास आपकी वह किताब जो मिल गई । पर अब जरा आप ध्यान से सुनिए गा, क्या उस किताब में आपने यह लिखा है कि आप हमेशा पापा का झूठा खाना पसंद करते थे "-यह सुनकर भीखु हैरान हो गया
"और अगर आपने यह भी लिखा है तो यह नहीं लिखा होगा कि एक दिन जब हम जंगल में लकड़ी लेने गए थे तब आप पेड़ से गिर गए थे आपके पांव की उंगली आज तक ठुमकी हुई है "-राम भज ने तुरंत भीखु के पांव की तरफ इशारा किया इतना सुनते ही भीखू के हाथ से तलवार छूट गई
"और अगर आपने यह भी लिखा होगा तो हम दोनों की एक निजी बात आपको मैं बताता हूं भैया "- रामभज बोले जा रहा था -"जब आप नदी में नहाते थे तो मैं पीछे से आपके कपड़े छुपा दिया करता था "-यह बताते हुए रामभज रोने लगा
भीखू यह समझ गया कि यही मेरा भाई है भीखु की आंखों से आंसू बहने लगे
"और अगर यह भी आपने लिखा होगा तो यह नहीं लिखा होगा कि हम दोनों भाइयों ने एक लंगड़े कुत्ते को पाला था उसका नाम हमने शेरा रखा था और अगर..."
"बस कर भाई! और कितना रुलयेगा, " भीखू ने झट से रामभज को दौड़ कर गले लगा लिया
" भाई जब मैंने आपकी किताब पढ़ी तो मैं बहुत खुश हुआ कि अब मुझे मेरा भाई मिल जाएगा परंतु आप तो ..."
"मुझे माफ कर दो भाई! मैं कितना पागल था जो आपको पहचान नहीं सका आप बार-बार कहते रहे और मैं पागल था जो बार-बार तुम्हें नजरअंदाज करता रहा है "
सेनापति ने अपनी तलवार वापिस म्यान में डाली और उन दोनों को देखकर बहुत खुश हुआ
"यह भी ऊपर वाले का लेख था साथियों इतने वर्षों से बिछड़े भाइयों को मिलन "-सेनापति ने उनके पास आकर कहा
दोनों भाइयों ने अलग होकर सेनापति की तरफ ध्यान दिया "याद है रामभज? परसों ही तुम यहां से गए थे और जाते वक्त तुमने मुझसे कहा था कि एक दिन मुझे इस दी हुई जिंदगी पर बेहद खुशी महसूस होगी ?आज मुझे बेहद खुशी महसूस हो रही है आज तुम नहीं होते तो शायद यह जगह लूट चुकी होती और आज सेनापति का कोई वजूद नहीं होता ,आज तुमने इस जगह और मुझे नया जीवनदान दिया है "
"जीवन दान देने वाला मैं कौन होता हूं मालिक !आपको जीवन तो अमलतास ने दिया है, शायद भगवान भी यही चाहते थे कि हम यहां आए वरना अमलतास की खोज के लिए तो बहुत से लोग अपने घरों से निकले हुए हैं उन्हें भी आज तक अमलतास के दर्शन नहीं हुए और हम भागते भागते यहां पहुंच गए"

सेनापति ने डाकुओं की तरफ देखा जो रामभज से लड़े थे
भीखू ने देखा कि सेनापति उन्हें अजीब ढंग से देख रहा है "आप चिंता मत कीजिए जनाब! ये अपना मुंह नहीं खोलेंगे"- भीखु ने कहा फिर अमलतास की तरफ देखा
"कितना सुंदर पौधा है। "-अमलतास की तरफ देखते हुए कहा -"सेनापति जी ! आप वह दवा तैयार कीजिए जिससे हम अपने 1 घंटे पीछे का सब कुछ भूल जाते हैं"- भीखू ने पुन: कहा
" आपको कैसे पता कि हम ऐसी दवा का इस्तेमाल करते हैं"- सेनापति ने पूछा
" क्या सेनापति जी, यह जो डॉक्टर था ना, हमारे साथ ही रहता था जो हमें अमलतास की कहानी सुनाता रहता था। जिस मे आपका भी जिक्र आता था"
" हां मालिक! अगर यह जगह हमारे दिमाग में रही तो डॉक्टर की तरह कोई और लालची भी हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा"- राम भज ने उन्हें कहा
" मैं अभी दवा तैयार करके लाता हूं "- यह कह कर सेनापति उस छोटे कमरे की तरफ चल दिया
" छोटे भाई !"-भीखू ने कहा
यह सब सुनकर रामभज की आंखों में खुशी साफ दिखाई दे रही थी
" जिस दिन मैं डाकू बना उस दिन मैंने यह प्रण लिया था कि कभी दया धर्म नहीं दिखाऊंगा और मुझे एक बुरी राही ने जकड़ दिया था परंतु आज मुझे मेरा परिवार मिल चुका है मैं उस राही को भूल जाऊंगा" - भीखू ने अपने भाई को गले लगा लिया
तभी वहां सेनापति आ गया
" दवा बन चुकी है आप इसे पी सकते हैं। "-सेनापति ने कहा
और एक एक सीसी सभी को थमा दी ,रामभज और सभी दवा को पीने ही वाले थे कि
" पर भाई !"-राम भज बोला
सभी का ध्यान रामभज पर गया-" मैंने आपकी किताब पूरी नहीं पड़ी ,मैं यह जानने के लिए इच्छुक हूं कि आपने प्रशिक्षण कहां से लिया क्या आपने प्रशिक्षण सुधन ने दिया? "-राम भज ने पूछा
" सवाल तो आपसे भी बहुत बड़ा है भाई, कि जब मैंने आपको जल प्रवाह दाग दे ही दिया था तो आप वापस कैसे आए? परंतु इन सवालों को हम घर जाकर भी पूरा कर सकते हैं। शांति से ,"
"ठीक है भाई !"-राम भज ने कहा
और फिर दोनों दवा को पीने लगे तो सेनापति ने बीच में रोका
"क्या हुआ मालिक ?"-राम भज ने पूछा
" इस दवा को पीने के बाद आप 1 घंटे पहले का सब कुछ भूल जाएंगे फिर आप अपने घर वहां, और मैं अपने घर यहां। पर उससे पहले मैं भी यह चाहता हूं कि जिस कहानी ने आप दोनों के मन में सवाल छोड़ दिए वह कहानी है क्या ?"-सेनापति ने पूछा
"सेनापति जी! अगर आप जानना ही चाहते हैं तो सुनीए, कौन मेरे गुरु बने ?कैसे मेरा नाम भीखू पड़ा ....

जल्द ही - {कर्णिका-एक वीर योद्धा}

कहानी का शेष भाग

समाप्त
(86839-50260)


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