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पुरूषों का छल

Marfa, जनरल की विधवा, जो दस साल से होमियोपैथिक की प्रैक्टिस कर रही है, अपने वार्ड में मरीजों को देख रही है। वह पहले ही दस मरीजों को देख चुकी थी, जब उसने ग्यारहवें मरीज को बुलाया। दरवाजा खुलता है और गरीबी में डूब चुका पड़ोसी जमींदार ज़मू-रिशेन कमरे में प्रवेश करता है। वह मार्फ़ा के पास जाता है और बिना कुछ कहे उसके पैरों में गिर जाता है।

" तुम क्या कर रहे हो ? " मार्फ़ा हैरानी से तेज आवाज में पूछती है।

" जब तक मैं जीवित रहूँगा, आपके चरणों में पड़ा रहूँगा ", ज़मू-रिशेन कहता है। " मेरी देख-भाल करने वाली देवदूत के चरणों में मुझे पड़ा रहने दो, मानव जाति की हितैषी और मुझे नया जीवन देने वाली परी के दर्शन करने दो। मैं अब ठीक हो चुका हूँ, मैंने नया जीवन पाया है मैडम। "

" मैं बहुत खुश हूँ। ", मार्फ़ा धीरे से कहती है और बहुत खुशी महसूस करती है।

ज़मू-रिशेन कहता है, " मुझे गठिया रोग था मैडम। मैं आठ वर्षों से इस रोग से परेशान था, और कई डाक्टरों को दिखाया, सलाह ली। मैंने हर तरह से जतन किया कि मैं ठीक हो जाऊँ; और ईश्वर जानता है कि मैंने क्या-क्या कोशिश नहीं की! मैंने अपना सारा धन डाक्टरों पर बर्बाद कर दिया। लेकिन कोई भी डाक्टर मुझे ठीक नहीं कर सका। उन्होंने बीमारी को और बढ़ा दिया।
मैं मंगलवार को आपके घर गया, आपने जो मुझे तीन गोलियाँ दी, उनका असर तात्कालिक था। "

" जी मुझे नहीं, लेकिन आपको ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। " मार्फ़ा उत्साहित होकर शर्माते हुए कहती है।

" केवल एक परेशानी है: मेरे पास साधन की कमी है। मैं अब ठीक हूँ; लेकिन स्वास्थ्य का क्या उपयोग है अगर यहाँ रहने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है? गरीबी मेरे लिए बीमारी से भी बदतर है। जई ( ओट्स ) बोने का समय है, लेकिन मेरे पास पैसा नहीं है, बीज खरीदने के लिए। " ज़मू-रिशेन ने कहा।

" मैं आपको जई दे दूँगी ", डाक्टर मार्फ़ा ने कहा।


ज़मू-रिशेन ने कहा, " हम पत्थर के घरों में रहते हैं, लेकिन यह बस कहने के लिए घर है क्योंकि इसकी छत बहुत कमजोर हो गई है जिससे रिसाव होता है। और छत ठीक करवाने के लिए, लकड़ी खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। "

" मैं तुम्हें लकड़ी दूँगी ", मार्फ़ा कहती है।

ज़मू-रिशेन एक गाय की भी मांग करता है, और उसे एक गाय भी मिलती है, साथ ही एक सिफारिश पत्र उसकी बेटी के लिए, जिसे वह बोर्डिंग स्कूल भेजना चाहता है।
जब मार्फ़ा ने अपने मरीज को बाहर जाते हुए देखा, तो उसकी नज़र उसके रोगी द्वारा गिराए हुए कागज पर पड़ती है। वह कागज उठाती है, उसे खोलती है, और उसमें तीन तरह की गोलियाँ देखती है - बहुत सारी गोलियाँ,, जो उसने मंगलवार को ज़मू-रिशेन को दी थीं।

" ये तो वही गोलियाँ हैं ", वह सोचती है,,, कागज़ भी वैसा ही है,,, उसने पुड़िया खोली भी नहीं है। उसने तब कौन सी दवा ली है,,, अज़ीब बात है,,, निश्चित रूप से वो मुझसे छल तो नहीं कर रहा होगा! "

और अपने दस वर्ष की सेवा में पहली बार एक संदेह उसके मन में पनपता है। वह और मरीजों को भी बुलाती है, और उनकी शिकायतों के बारे में बात करते हुए उन पर ध्यान देती है जैसा उसने कभी नहीं किया था। सभी मरीज, जैसे एक साजिश के तहत उसके पास आते थे, पहले उसके चमत्कारी ईलाज के लिए उसकी प्रशंसा करते हैं, मार्फ़ा के चिकित्सीय कौशल की बड़ाई करते हैं।
और जब वो बहुत उत्साह से भर जाती है, तब उनकी जरूरतों को पूरा करने लगती है, जो भी माँग उसके मरीज उससे करते हैं। कोई खेती करने के लिए थोड़ी-सी ज़मीन माँगता है। कोई हल, तो दूसरा लकड़ी माँगता है, और तीसरा उसके जंगल में शिकार करने की अनुमति माँगता है,,, और भी बहुत कुछ।

मार्फ़ा नीचे जमीन की ओर देखने लगती है और दुनिया का एक नया सच उसके दिल में प्रकट होता है - एक दुष्ट दमनकारी सत्य - " पुरूषों की नीचता! "
" पुरूषों का छल! "
" The Decietfulness of Men! "

मार्फ़ा की कहानी बहुत कुछ सिखाती है, औरतों के दिल की कोमलता, उनका नरम स्वभाव, हर आदमी के अच्छा समझने की भूल! उनके इसी स्वभाव के कारण हर बार उन्हें पुरूषों द्वारा छला जाता है। नारी स्वभाव से ही बहुत भावुक होती है, ज़रा सा कोई उनके सामने अपना दुखड़ा कह दे, वो तुरंत पिघल जाती हैं। और उनकी इसी भावुकता का पुरूष अक्सर बेज़ा फायदा उठाते हैं।
हाँ ये भी सही है कि औरतों को अपनी तारीफ़ सुनना बहुत पसंद है, और झूठी-सच्ची तारीफ़ करके उन्हें आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है।
कुछ औरतें इसी झूठी तारीफ़ में पूरी जिंदगी उलझी रहती हैं, और स्वयं को भूलकर दूसरों पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती हैं। और जब उन्हें ये छल समझ में आता है, तब वो पूरी तरह से बिखर जाती हैं। उनके पास सिवाय पछतावे के कुछ नहीं बचता, उनका दिल और दिमाग भावहीन होने लगता है। इसके परिणामस्वरूप, दूसरों की सहायता करने वाली स्त्री स्वयं बेचारी बन जाती है। धीरे-धीरे उसके स्त्री-सुलभ सभी गुण क्षीण होने लगते हैं, उसके अंतर की सारी करूणा, दया, क्षमा, स्नेह और वात्सल्य की भावना समाप्त होने लगती है।
इसलिए आवश्यकता है कि नारी सिर्फ दया, क्षमा और ममता की प्रतिमा ना बने, जिसे जो चाहे, जब चाहे अपने तरीके से इस्तेमाल करके तोड़ के चला जाए। खुद को इस योग्य बनाओ कि कोई भी तुम्हारे साथ छल ना कर सके, जिससे की तुम्हें बाद में तुम्हें पछताना ना पड़े। तो जरूरी है कि नारी अपनी वास्तविक शक्ति पहचाने, ममता के साथ तेज और पारखी नजर भी जरूरी है। बेशक दूसरों की सहायता करना गलत नहीं लेकिन ये भी ध्यान रखना चाहिए कि झूठी तारीफ़ में उलझ कर आप अपना अस्तित्व तो नहीं खो रहीं!

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