क्या बचपन अब ज़िंदा है? - 3 - अंतिम भाग Heena_Pathan द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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क्या बचपन अब ज़िंदा है? - 3 - अंतिम भाग

बचपन जीना सबके नसीब में कहा ! कुछ बच्चे मनीष जैसे भी होते है जो बचपन को जी नहीं पाते है ! अब तक आपने देखा मनीष को नई ज़िंदगी मिल जाती है उसे N.g.o ।
मे पढ़ने और उसे संभालने की जिमेेदारी !

आज कल बच्चे अब बड़े होने चाहते हैं ! अब जैसे जैसे टेक्नोलोजी आगे बढ़ रही है वैसे वैसे सब मासूमियत जैसे कहीं गुम हो रही है! पहले फोन सिर्फ एक हुआ करता था और सब मिले के बात करते थे ! टीवी भी सब मिलके देखते थे अपने पसंदीदार प्रोग्राम ! रेडियो था जहां कहीं खबरे और कहानियां सुनते थे ! कभी लगता था कैसे यह सब सुनाई क्यू देता है देखता क्यू नही और कोन है अन्दर एशे ख्याल आते थे और एक बार तो रेडियो खोल भी लिया ! देखने के लिए कि आखिर क्या है इसमें ! कभी रेलगाड़ी देख कर भी होता था कि क्यू यह सड़क पर नहीं चलती ! कैसे हवाई जहाज आसमा से कहा जाता है? और लगता ता बड़े होने पर ज़िन्दगी बदल जाएगी पर !

" भागते बचपन में भी थे भागते आज भी है बस बस्ता वहीं है बस बोझ पहले किताबो का था और अब ज़िम्मेदारियों का है" !
आज कल बच्चे टिक टोक से फुर्सत मिले और ऑनलाइन दुनिया से बाहर आए तब ज़िन्दगी के सफर के बचपन को जी पाए बचपन फिर लौट के नहीं आता ना वह बचपन के दोस्त !
पहले कहानी सुनके सोया करते थे पर अब वीडियो हमे की आवाज़ से सोते है ! पहले खेल कूद में माहिर थे बच्चे अब फोन को चलाने में उसके हर एक पुर्जे से वाकिफ है ! वह बूढ़ी के बाल, वह कुल्फी, उस एक रुपए से भी चेहरे पर चमक आ जाती थी और आज 500 ₹ के नोट देख कर भी नहीं आती बचपन में 1 रुपए होने पर और ५₹ होने पर हम अपने आपको अमीर मान लेते थे ! ना जाने वह बचपन कहा खो गया ! कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी ! पहले गुलक ही बैंक हुआ करती थी ! मैदान मे उस रैत से खेलना और उस देश कि मिट्टी मेरे वतन कि मिट्टी बहुत याद आती है वह खुशबू ! वह स्कूल के दिन वह गाव वह वतन के पेड़ जहा कभी जुला जुलते थे उस पेड़ पर ! ना जाने क्यू अब वह मैदान रोता है कहा गए वह बच्चे जो इश मिट्टी को चूमा करते थे सुने है मैदान और गली या कहा गए वोह मासूम सब आज कल इंटरनेट मे मशहूर है मुजरा करने में . पहले कॉल फ्री नहीं था पर अब कॉल फ्री है पर कोई फ्री नहीं ! वह कलम से खत लिखने का रिवाज़ फिर आना चाही ए यह चैटिंग की दुनिया बड़ा फरेब फैला रही है !

बचपन में शामे भी हुआ करती थीं अब बस सुबह से बस रात हुआ करती है ! बचपन के उस खिलौने ने भी रोते हुआ कहा कैसा लगता है जब कोई तुम्हारे साथ खेलता है! वोह फैमिली फोटो का जमाना था अब सेल्फ़ी का दौर है !


"बचपन में मेरे पास घड़ी नहीं थीं पर समय बहुत था… अब बडे हो गया हैं और हाथो में घड़ी भी है पर समय नहीं हैं."

माता-पिता चाहते हैं कि बच्चा जल्दी-जल्दी सब कुछ सीख ले। माता-पिता की अपेक्षाओं-तले बच्चों का बचपन खत्म-सा होता जा रहा है। हर माता-पिता को अपने बच्चे को उसका बचपन स्वाभाविक रूप से जीने देना चाहिए। या आज कल टेक्नोलोजी का बड़ जाना आजकलल के बच्चों का बचपन लगता है कहीं खो-सा गया है ? आशा करते है कि आपको यह पसंद आई होगी यह कहानी ! और बचपन कि कुछ यादें.

~ समाप्त~