घर पर आकर रणविजय दादाजी के सिक्रेट कमरे में जाता है और वह किताब ढूंढता है जिसमें नाहरगढ़ का जिक्र था।
' कहां रखी ,कहां रखी वह किताब, यही तो कहीं देखी थी मैंने ,अरे !हां मिल गई '!!
और उस किताब को लेकर उस कमरे से बाहर आ जाता है।
तभी मां की आवाज उसके कानों में पड़ती है "बेटा आ जा खाना खा ले"।
रात को अपने कमरे में रणविजय उस किताब को खोलता है कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा छा जाता है जो उसे चौंका देता है।
पर फिर भी रणविजय इस किताब को पड़ता है और पढ़ते-पढ़ते उसे नींद आ जाती है ।
"रणविजय !बचाओ मुझे ,देखो यह लोग क्या कर रहे हैं मेरे साथ ,रणविजय सुन रहे हो ना, बताओ मुझे"........
पसीने से लथपथ रणविजय अपने आप को संभालता है, अरे यह क्या देखा मैंने सपने मे,
सब ठीक तो है ,नहीं शायद वह किसी खतरे में है मुझे जाना होगा, वह मुझे पुकार रही है !हां मुझे जाना होगा ,उसे मेरी जरूरत है ।मैं आज ही नाहरगढ़ जाता हूं।"
"पापा मेरे दोस्तों के साथ मैंने कहीं घूमने का प्रोग्राम बनाया है क्या हम जा सकते हैं।"
"क्या कहा ?दिमाग तो ठीक है तुम्हारा ,दादाजी की बात नहीं सुनी है मुंबई से बाहर कहीं नहीं जाना।"
"पर पापा हम तो मुंबई में ही है ,पास के एक रिसोर्ट में करवाया है दो-तीन दिन का वही का प्रोग्राम है ,हम सभी दोस्तों का !प्लीज पापा जाने दीजिए ना।"
रणविजय जिद करता है।।
"यह जिद करने का वक्त नहीं है रणविजय ,तुम समझो जरूर कोई बड़ी बात है !वरना पापा के चेहरे पर इतनी परेशानी मैंने आज तक नहीं देखी।"
"दादाजी की परेशानी भी समझता हूं पापा ,पर आप मेरा भी तो समझिए और हम मुंबई से बाहर तो कहीं जा ही नहीं रहे! और मैं अकेला थोड़ी ना हूं ,हम सभी दोस्त साथ हैं बात मानिए मेरी।"
रणविजय की जिद देखकर उसे इजाजत मिल जाती है। वह अपना सामान पैक कर निकल पड़ता है एक नए सफर के लिए।
मयंक को साथ लेकर रणविजय चल पड़ता है नाहरगढ़ की ओर ॥
"क्या यार !यह अचानक क्या प्लान बना लिया तूने ,और सिर्फ हम दोनों ही तो है"।
रणविजय उसकी बात का कोई जवाब नहीं देता है ,और यह सब देखकर मयंक को गुस्सा आता है ।
"तुझ से बात कर रहा हूं मैं ,तू सुन भी रहा है ।कुछ पूछ रहा हूं आखिर हम जा कहां रहे हैं और बात क्या है ,देख रहा हूं मैं जब से वह लड़की मिली है तू पता नहीं कहां खोया रहता है"।
"यार उससे मेरी जरूरत है शायद वह किसी परेशानी में है।"
बस इतना कह कर रणविजय फिर चुपचाप हो जाता है ,और दोनों पहुंच जाते हैं नाहरगढ़।
"यह ले पहुंच गए नाहरगढ़ ,यह अच्छा है मजनू के साथ, मजनू का दोस्त भी दर-दर भटके।"
इसी बात के साथ दोनों के चेहरे पर हंसी खेल जाती है।
और दोनों बस स्टॉप से बाहर निकलते हैं,
और नाहरगढ़ की गलियों में घूमते रहते हैं।
तभी किसी की चीख रणविजय के कानों में पड़ती है।
"बचाओ ,कोई बचाओ "।
रणविजय -"अरे यह तो कनक की आवाज है ,क्या हुआ उसे"
तभी वह सामने देखता है एक सांप कनक की तरफ बढ़ रहा है।
कनक एक तालाब की तरफ भागी जा रही है ,और सांप उसके पीछे ।यह देखकर रणविजय उसे बचाने के लिए उसके पीछे पीछे भागता है।
एक जगह आकर कनक रुक जाती है क्योंकि पीछे जाने का कोई रास्ता नहीं होता और सांप उसकी तरफ हो आगे बढ़कर उसे ढसने ही वाला होता है ,
तभी रणविजय पहुंच जाता है और पास ही तालाब मे पड़ी एक बड़ी सी शिला को उठाकर उस सांप की तरह फेंकता है, सांप भाग जाता है ,
और कनक घबराई हुई रणविजय की तरफ देखती है।
"कड़क तुम ठीक तो हो"।
"मैं ठीक हूं , तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया !पर तुम मेरा नाम कैसे जानते हो ,कौन हो तुम।"
यह सुनकर रणविजय चौंक जाता है -"क्या तुम मुझे नहीं जानती ,मैं रणविजय ।कनक याद है हम दोनों मुंबई में मिले थे।"
"पर मैं तो कभी मुंबई गई ही नहीं तो मैं तुमसे कैसे मिल सकती हूं ,शायद तुम किसी और की बात कर रहे हो ।"
यह कहकर कनक वहां से चली जाती है।
"देख लिया नतीजा ,कहता था ज्यादा मजनुँ मत बन ,लड़की तुझे पहचान भी नहीं रही और तू उसके लिए यहां भाग कर आया है ,तू भी ना एक नंबर का पागल है। चल वापस चलते हैं, दादाजी ने भी मना किया था मुंबई से निकलने के लिए ,पर तू भी सुनता नहीं ।अब चल यहां का माहौल मुझे वैसे भी सही नहीं लग रहा निकलते हैं यहां से।"
"शायद यही सही रहेगा "
भारी मन से रणविजय और मयंक वापस जाने के लिए तैयार होते हैं।
सभी रणविजय का फोन बजता है-" अरे दादा जी का फोन"।
"रणविजय कहां पर हो तुम "
"दादा जी वह मैं अपने दोस्तों के साथ है इसमें पिकनिक पर हूं बताइए क्या हुआ"।
"क्या तुम सच कह रहे हो ,सच सच बताओ मुझे कहां हो अभी तुम ,"
दादा जी गुस्से में पूछते हैं ।
"सच कह रहा हूं दादा जी यहीं पर हूं मुंबई के आसपास "।
"देखो मजाक का वक्त बिल्कुल भी है अगर तुम सच में मुंबई ही हो तो, वही रहना बाहर मत निकलना।" दादाजी ने अपनी बात फिर दोहराई।
और फोन कट जाता है ।
"अरे यार दादा जी को कैसे पता चल गया और यह इतना क्यों सवाल कर रहे थे "।
"मैंने कहा ना रणविजय ,जरूर कोई ना कोई बात है चलते हैं यहां से जल्दी ही।"
"
टैक्सी"
एक टैक्सी वाले को रोक कर मयंक और रणविजय उसमें बैठ जाते हैं ,,
"अरे रणविजय तुम यहां "।
कनक की आवाज सुनकर रणविजय चौक जाता है उसी टैक्सी में कनक भी बैठी हुई होती है ।
"कनक तुम !पर कल तो तुम मुझे पहचान भी नहीं रही थी जब मैंने तुम्हें उस सांप से बचाया था ,और आज तुम। यह हो क्या रहा है क्या मुझे समझाओ की बात क्या है ।"
"चलो तुम ,तुमसे बात करनी है ।"कह कर कनक रणविजय को एक जगह ले आती है।
"वजह है रणविजय और वह है मेरे पिता, वह नहीं चाहते मैं किसी बाहर वाले से मिलूं, उससे बात करूं ।तुम्हें अचानक यहां देख कर मैं डर गई ,मेरे पिता बहुत खतरनाक है अगर उन्हें पता चल गया तो ,हम दोनों के साथ है।पता नहीं क्या करेंगे ।तुम उनसे दूर ही रहना उन्हें पता नहीं चलना चाहिए तुम्हारे बारे में ,इसलिए मैंने कल तुम्हें बाजार में पहचाना ही नहीं ,और मेरे पास से तुम्हारा नंबर भी मिस हो गया था। क्योंकि मेरा फ़ोन पापा ने तोड़ दिया, अब अगली बार जब भी हम मिलेंगे अगर मैं तुम्हें आसानी से पहचान लु तो समझना सब कुछ ठीक है ,और तुम्हें नहीं पहचान तो मेरी मजबूरी समझ लेना ।जहां हम कल मिले थे उसी दरिया यानी तालाब के पास पापा की दुकान है ,प्लीज उनके सामने मत जाना ध्यान रखना ।"
इतना सब कुछ समझा कर कनक वहां से चली गई।
"क्या है यार यह सब ,मुझे अभी भी कुछ पंगा लग रहा है, चल चलते हैं यहां से "। मयंक रणविजय को समझाते हुए बोला।
"अभी कनक ने जो कहा सुना ना तूने ,धीरज रख सब कुछ सही हो जाएगा।"
वही एक जगह देखकर दोनों रहने लग जाते हैं।।
सुबह अखबार की हेड लाइन पर दोनों की नजर पड़ती है 'नाहरगढ़ में दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है सांप का हमला'
"यह बढ़िया है इतने छोटे से गांव में सांप का हमला भी ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती है"।
तभी वहां खाना खाना लेकर आया हुआ नौकर कहता है
" साहब यह नाहरगढ़ है सांप देखना और उनका हमला दूसरे गांवों में आम हो सकता है ,मगर यहा आम बात नहीं है ।जब से हमने होश संभाला है कभी नहीं सुना था यहां पर किसी सांप ने इंसानों पर हमला किया हो ,मगर दो-तीन महीनों से अचानक से यह घटनाएं होने लगी है ।हमारे बड़े बूढ़े कुछ कहानी सुनाया करते हैं ,कि पुराने जमाने में दूध का एक दरिया था वहीं से सारे सांप निकलते हैं ,अब क्या हकीकत है और क्या कहानी है यह तो वही जाने ,मगर यह सारे सांप वही से आते हैं ,और इंसानों पर हमला कर रहे हैं। मेरे बाबा तो काफी डरे हुए हैं कह रहे हैं कुछ ना कुछ अनहोनी होने वाली है।"
इतना कहकर वह नौकरी भी भयभीत हो जाता है।
"यह तो बिल्कुल आम बात है तुम लोग भी ना डर जाते हो, एक सपेरा बुलाओ सारे सांपों को पकड़वा दो कौन सी बड़ी बात है।"
तभी नौकर बोलता है -"अरे नहीं साहब यह कोई आम सापँ नहीं है ,हमारे बाबा कह रहे थे जरूर कुछ होने वाला है ,गांव के कुछ लोग तो यह गांव छोड़कर जाने की भी बात कर रहे हैं ,पता नहीं क्या बात है बाबा पूरी बात बताते भी तो नहीं! मगर जरूर कुछ तो है ।"यह कहकर नौकर वहां से चला जाता है॥
"यह गांव वाले भी ना बिल्कुल पागल है ,पता नहीं कहां से कहां कहानियों को ले आते हैं ,और क्या नाम बताया उसने 'दूध का दरिया' शायद मैंने दादाजी की किताब में इसका जिक्र है पढ़ा है ।"
और रणविजय अपने बैग में लाई दादा जी की किताब निकाल कर उसे पढने लगता है ।
"यह क्या ,यह तो दादाजी की किताब है , यहां क्यों ले आए। तुम्हें कितनी बार मना किया था उस रूम में दोबारा जाने के लिए मगर तुम सुनते ही नहीं ,अब दादा जी का क्रोध तुम ही संभालना।"
"तू भी ना एक नंबर का डरपोक है ,देख कितना कुछ लिखा हुआ है इस किताब में !कितनी रहस्यमई बातें !मुझे तो यह सब काल्पनिक ही लगता है ,मगर अब इस दूध के दरिया को देखने की इच्छा हो रही है चल देखते हैं कहां पर है यह।"
कहकर दोनों निकल पड़ते हैं दूध के दरिया को देखने।
रास्ते में किसी को रोक कर पूछते हैं -"अरे भाई यह दूध का दरिया कहां पर है ।"
वह इंसान उन दोनों को ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखता है -"लगता है यहां पर नये आए हो ,आगे जाकर बाय मुड जाना और सुनो ज्यादा अंदर मत जाना वहां जाना मना है।"
वह दोनों आगे बढ़ते हैं और पहुंच जाते हैं दूध के दरिया पर।
"अरे यार! यह तो वही जगह है जहां पर तूने कनक की जान बचाई थी" मयंक चौंक कर कहता है।
"हां यार जगह तो वही है उस वक्त इतना ध्यान नहीं दिया था, मगर यह जगह जगह अवरोधक क्यों लगाए गए हैं ?क्या राज हो सकता है यहां का?"
वह दोनों कुछ सोच ही रहे होते हैं तभी एक बड़ा सा सांप उन दोनों की तरफ आगे बढ़ता है ,और वह दोनों अपनी जान बचाने के लिए दूध के दरिया की तरफ आगे की ओर बढ़ जाते हैं।
अभी जाकर मयंक किसी और रास्ते पर निकल जाता है और रणविजय उसी दूध की दरिया की तरफ भागता चला जाता है ,आगे जाकर एक दीवार आती है जहां पर गेट लगाकर उसे बंद किया होता है ।रणविजय वहां आकर रुक जाता है और तभी सॉप अपनी पूरी ताकत से उस पर हमला करने के लिए आगे बढ़ता है ,यह देखकर रणविजय डर जाता है और उस गेट को पार कर दूसरी तरफ चला जाता है ,जैसे ही रणविजय उस प्रतिबंधित जगह पर पहुंचता है उसे कुछ ऐसा दिखता है जिसे देखकर वह घबरा जाता है।।
आखिर क्या दिखा रणविजय को ऐसा और दादा जी ने क्यों मना किया था मुंबई से बाहर निकलने के लिए। जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग-